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वो नीलपक्षी

मंजिरी “निधि”
बडौदा (गुजरात)
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                              गर्मीं की रातों में नींद तो सुबह ही आती है। ओर उसमें भी रात को बिजली चली गईं हो। सुबह नींद लग ही रही थी कि नीम के झाड पर असंख्य चिड़ियों का मेला लगा था। वे चहचहा रहीं थीं मानों अपना दिनभर की योजना के बारे में चर्चा कर रहीं हों। मुझे उठना ही पड़ा। चाय लेकर बरामदे मैं बैठी तो एक नीले पंख की चिड़िया बरामदे में लगे शीशे पर बैठ शीशे में अपनी ही छवि को देख लगातार अपनी चोंच मार रही थी कि ये मेरे जैसी दूसरी चिड़िया कौन? देख मैं मुस्कुरा दी और सोचने लगी कि कितनी नादान है ये? आखिर थककर वह मुंडेर पर जा बैठी। यह उसका रोज का ही कार्यक्रम बन गया था। सूरज अपना साम्राज्य खोले उसके पहले ही इसकी हरकतें शुरू हो जातीं। मेरे बरामदे की बेल से नीम्बू के पेड़ से गुलाब के गमले में फुदकती पर पास लगे अशोका के पेड़ पर कभी न जाती। वह आँगन में ही फुदकने में मस्त रहती। कुछ ही दिनों में हम दोस्त बन गए। गमले में पानी देने मैं बाल्टी भरती तो वो उस पानी में नहा लेती। फिर धूप में अपने पंख फड़फड़ाती और कभी-कभी तो अपने पंखों को पसारे रखती। पिछले कई दिनों से देखा कि अब दो नीलपक्षी आते हैँ। गौर से देखा तो दूसरा नर था। अब दोनों साथ-साथ फुदकते साथ ही खाते। उन्होंने बरामदे में लगे नीम्बू के पेड़ पर अपना धौंसला बना लिया था। कुछ दिनों बाद मैंने नीलपक्षी को अक्सर घोंसले में देखा। उसने अंडे दिये थे। वो अण्डों पर बैठी थी। फिर नर को देखा कि वो मादा नीलपक्षी के लिए खाना लाता। एक दिन अचानक से मैंने नीलपक्षी की डरी हुईं चहचहाट सुनी। जब तक मैं बाहर आई तब देखा कि अंडे गिर कर फूट गए थे। तभी मेरी नजर बिल्ली पर गई। मुझे सब समझ में आ गया। हाय बेचारे पक्षी। दोपहर मैंने देखा कि नीलपक्षी अकेली मुंडेर पर बैठ निम्बू के पेड़ को देख रही थी। और नर नीलपक्षी गायब था। दिल में एक टीस उठी कि कहीं बिल्ली नर पक्षी को……………

परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर “निधि”
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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