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वो खूबसूरती की निशानी

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.

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वो खूबसूरती की निशानी
वो पूनम का चाँद,
आज सुबह जैसे
उतर आया मेरी खिड़की पर

लगा जैसे कुछ कह रहा है मुझसे…
वो मंद मंद मुस्कुराता रहा
और कहने लगा कि देख मुझे…
आज सबको रोशन कर रहा
कल से फिर खत्म हो जाऊंगा
फिर खुद को बनाऊंगा,
और सम्पूर्णता को पाऊंगा

रुचि!!! सुन यही जीवन है…
मैं तो सदियों से हर माह जीता मरता हूं
लेकिन हर बार इस दुनिया को
शीतल रोशनी से भरता हु
लाखों तारे है मेरे साथ…
फिर भी तो मैं अकेला हूँ।।

लेकिन जब मैं चमकता हु,
तो सिर्फ मैं ही दिखता हु…
मेरी चाँदनी की रोशनी में ही
प्रकृति खूबसूरती पाती है।।

बस यही सीखाने आया तुझको,
कि हर बार नई शुरुआत होती है
हर बार पूर्णता आती है,
बस चलते चलते तू कर्मपथ पर
हर अमावस के बाद
पूर्णिमा ही आती है
पूर्णिमा ही आती है

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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