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तेरी पायल की झनकार

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार।
दबे पैर आ जाना तेरा चुपके से हर बार।।

तेरी खनकती चूड़ियां भी मेरा होंश उड़ाती है।
तेरे आने का एहसास पल पल मुझे दिलाती है।

तेरी बिंदिया भी मुझको चुपके से करती प्यार…
भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार।

तेरे आने से पहले तेरी खुशबू की महक आती है।
छा जाता है नशा मेरी आंखे भी बहक जाती है।।

तेरी आँखों का काजल भी करता है इकरार…
भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार।

पागल मुझे बनाता है तेरे माथे का टीका।
दुनिया का सारा श्रृंगार तेरे आगे है फीका।

तेरे कान के झुमके ही बस करते है इनकार…
भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार।

हाय तेरा बाजूबंद और ये मांग का सिंदूर।
ये दोनों तुझसे मुझको होने नही देते दूर।

तेरे मंगलसूत्र से ही तो बसा मेरा संसार…
भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार।

पहन नाक में नथ और फूलो का गजरा आ जाओ।
लगाके मेहंदी हाथ मेरी बस मेरी होकर रह जाओ।

आ भी जाओ मिलने करके सोलह श्रृंगार…
भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार।
दबे पैर आ जाना तेरा चुपके से हर बार।।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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