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आँखों के आंसू

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रचयिता : संजय वर्मा “दॄष्टि”

बेटी के ससुराल में
पिता के आने की खबर
बेसब्री तोड़ देती बेटी की
आँखे निहारती राहों को
देर होने पर
छलकने लगते आँसू
दहलीज पर आवाज लगाती
पिता की आवाज -बेटी

रिश्तों, काम काज को छोड़
पग हिरणी सी चाल बने
ऐसी निर्मल हवा
सूखा देती आँखों के आंसू
लिपट पड़ती अपने पिता से
रोता – हँसता चेहरा बोल उठता
पापा इतनी देर कैसे हो गई

समय रिश्तों के पंख लगा उड़ने लगा
मगर यादें वही रुकी रही
मानो कह रही हो
अब न आ सकूंगा मेरी बेटी

मगर अब भी
आँखे निहारती राहों को
याद आने पर
छलकने लगते आँसू
दहलीज पर आवाज लगाती
पिता की आवाज -बेटी
अब न आ सकी

पिता की राह निहारने के बजाय
आकाश के तारों में ढूढ़ रही पापा
कहते है की लोग मरने के बाद
बन जाते है तारे
आंसू ढुलक पड़ते रोज गालों पर
और सुख जाते अपने आप
क्योकि निर्मल हवा कभी
सूखा देती थी आँखों के आंसू
जो अब है थम

 

परिचय :- नाम :- संजय वर्मा “दॄष्टि” पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ – मई -१९६२ (उज्जैन )
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग )
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक “, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५ , अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच

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