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गहन निराशा और अंधकार से तारती – मां तारा

प्रीति शर्मा “असीम”
सोलन हिमाचल प्रदेश
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तारा जयंती विशेष

जयंती चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस वर्ष महातारा जयंती २१ अप्रैल २०२१, के दिन मनाई जाएगी। चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों और उनके भक्तों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। दस महाविद्याओं में से एक हैं-भगवती तारा। महाकाली के बाद मां तारा का स्थान आता है। जब इस दुनिया में कुछ भी नहीं था तब अंधकार रूपी ब्रह्मांड में सिर्फ देवी काली थीं। इस अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई जो माता तारा कहलाईं। मां तारा को नील तारा भी कहा जाता है। जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप माना जाता है।
तांत्रिक साधको के लिए माँ तारा की उपासना सर्वसिद्धिकारक माना जाता है। मां तारा के प्रमुख तीन रूप है क्रमशः उग्रतारा, एकाजटा, नील सरस्वती देवी हैं। इन्हें महातारा के नाम से भी पूजा जाता है। देवी तारा शत्रुओं का नाश करने वाली सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सागर मंथन हो रहा था तो सागर से अनेक वस्तुएं निकल रही थी परन्तु जब विष निकला तब तीनो लोक संकट में पड़ गए। इसके बाद देव-दानवो तथा ऋषि-मुनियो ने भगवान रूद्र से रक्षा की प्रार्थना की।
शिव जी ने विष को पी लिया और अपने कंठ में धारण कर लिया। भगवान शिव जी का कंठ विष के कारण नीला हो गया। माता पार्वती ने भगवान शिव के अंदर समाहित होकर विष को अपने प्रभाव से हीन कर देती है परन्तु विष के प्रभाव से माता का शरीर भी नीला पड़ जाता है। इस कारण मां नीलतारा के नाम से भी जानी जाती है। महातारा जयंती पूरे देश में उत्साह के साथ कोरोना गाईडलाईन के साथ मनाई जाएगी।
माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप माना जाता है, जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं। देवी तारा शक्ति स्वरूपा हैं इनकी साधना से साधक को ज्ञान, विज्ञान और सुख-संपदा प्राप्त होती है। देवी तारा को तारिणी विद्या भी कहा जाता है। उग्र तारा, नील सरस्वती और एकजटा इन्हीं के रूप हैं। शत्रुओं का नाश करने वाली सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए सहायक मानी जाती हैं।

कहा जाता है कि सृष्टि से पहले चारों ओर घोर अन्धकार व्याप्त था न कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अंतहीन अंधकार का साम्राज्य ही था और इसी अंधकार की देवी थी माँ काली, तब इस घोर अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न होती है जो तारा कही गई। यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रह्माण्ड में जितने भी पिंड हैं सभी की स्वामिनी देवी तारा ही मानी जाती हैं, सृष्टि उत्पत्ति के समय प्रकाश के रूप में इनका प्रकाश हुआ इस कारण इन्हें देवी महातारा नाम प्राप्त हुआ, देवी तारा को महानीला या नील तारा भी कहा जाता है इस नाम के पिछे एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब सागर मंथन हुआ तो सागर से अनेक वस्तुएं निकलती हैं और जब विष निकला, जो तीनों लोक संकट में पड़ गए, देव-दानवों, ऋषि मुनिओं ने भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, तब भगवान शिव ने उस विष को पी लिया, और विष को कंठ में ही रोक लिया किंतु विष के प्रभाव से उनका शरीर भी नीला हो गया, जब देवी ने भगवान को इस संकट में देखा तो वह भगवान शिव के भीतर प्रवेश करके विष को अपने प्रभाव से हीन कर देती हैं। किंतु विष के प्रभाव से देवी का शरीर भी नीला पड़ जाता है। तब भगवान शिव ने देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार देवी नीलतारा नाम से विराजमान हुईं। देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती देवी ब्रह्म की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी, ब्रह्मांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती हैं। यह सात शक्तियां हैं परा, परात्परा, अतीता, चित्परा, तत्परा, तदतीता तथा सर्वातीता, देवी का ध्यान एवं स्मरण करने से भक्त को अनेक विद्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है। देवी तारा के भक्त के बुद्धि बल का मुकाबला तीनों लोकों में कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है।

देवी तारा की पूजा एवं मंत्रों का जप करने से वाक शक्ति, शत्रुनाश एवं मुक्ति की प्राप्ति होती है। देवी के मंत्रः “स्त्रीं हूं हृं हूं फट्” का उच्चारण करने से सभी का कल्याण होता है। इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप भक्त को सदगती प्रदान करता है। देवी तारा माता भगवती का ही एक रुप हैं इन्हीं के द्वारा सृष्टि प्रकाश मान है, देवी तारा जीवन शक्ति हैं।

माता सती की बहन : माता सती ने ही पार्वती के रूप में दूसरा जन्म लिया था। माता सती राजा दक्ष की पुत्री थीं। राजा दक्ष की और भी पुत्रियां थीं जिसमें से एक का नाम तारा हैं। तारा एक महान देवी हैं जिनकी पूजा हिन्दू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में होती है। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा भी कहा जाता है।

तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा : माता तारा को तांत्रिकों की देवी माना जाता है। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है। शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।

तांत्रिक पीठ : तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है। इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे सिद्धियां हासिल की थीं।
तारा देवी का एक मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग १३ किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है। तिब्‍बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी ‘तारा’ का काफी महत्‍व है। और दूसरा मंंदिर नालागढ़ जिला सोलन में है। जो नालागढ़ से तीन किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। और पूरे क्षेत्र को अपनी ओट में लेकर रक्षा कर रही हैं।

परिचय :- प्रीति शर्मा “असीम”
निवासी – सोलन हिमाचल प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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