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तर्पण

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वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर)

पित्रौ को सुखी देखना चाहते है।
पित्रौ का कनागत करना चाहते है।
जीते जी उनका सम्मान करे।
जीते जी आदर प्रेम करे।
मरने पर आत्माएं दूसरी,
योनियों में विलीन हो जाती।
जीते जी अपने,पराये समझ आते।
मरने पर पितृ विलीन हो जाते।
सिर्फ चित्र-चरित्र याद रह जाते।
भवनाओं से अपनो को अपना ले।
चाहे फिर पित्रौ का श्राद्ध करे ना करे।
उनके दिलों को दर्द ना दे।
सुख का भोग जीते जी अर्पण करे।
मन से भावो से प्रेम का तर्पण करे।
जीते जी प्रेम अपर्ण करे।
मारने पर भाव भीनी श्रद्धांजलि समर्पण करे।
दिखावे का तर्पण ना करे।
जीते जी पित्रौ को प्रेम अर्पण करे।
प्रेम अर्पण करे।

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लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि :
५.९.१९७०
लेखन विधा :
लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा :
एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:-
बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद, 
कविताएं :-
वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन :
भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान :
“भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा


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