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दर्द की दास्तां

डॉ. तेजसिंह किराड़ ‘तेज’
नागपुर (महाराष्ट्र)
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दुनिया के गमों में बंटी ये जिंदगी
अपनों से पटी ये बेरूखी बंदगी
दर्द की दास्तां हैं हर घर की कहानी
किसको बयां करें ये अपनी जुबानी

हालात के मारे हैं हम बेबस हैं जिंदगी
रब से गिला नहीं बस पाक रहे जिंदगी
तन का बोझ भी अब संभलता नहीं
मन की बातें दिल से कोई कहता नहीं

जिंदगी के टूटें अरमानों को
आंखों में सहेजकर रखा हैं।
मुसीबतों के दर्द को चेहरें की
मुस्कराहट में छिपाएं रखा हैं।

मैं कोसो दूर से एक उम्मीद लिए
इस शहर में आकर बसा हूं।
कहना मुश्किल हैं यहां पर
पता नहीं कब पहले खुलकर हंसा हूं।

एक दर्द हैं जो दिखाई नहीं देता हैं
रोज की जिंदगी में तन्हा हूं मैं।
दोस्त की तलाश का इंतजार हैं मुझें
कहीं फिर से यहां भटक ना जाऊ मैं।

ये कमबख्त उम्र भी कुछ ऐसी हैं
अब गिला करू तो किससे करू मैं।
मुझें समझ सकें मन की बातें मेरी
इसी उम्मीद में रोज जी रहा हूं मैं।

अनजान आवाजें हैं और सुना हैं रास्ता
पता नहीं कब कोई आवाज देगा।
निकल पड़ा अब मैं अनजान राहों पर
आंखों की भाषा कोई तो समझेगा।

कातिल कोरोना के कहर से अब
आशियाना टूटकर बिखर गया हैं।
उम्मीदों के सहारे टिकी थी जिंदगी मेरी
अब रिश्तों में भी कोरोना पसर गया हैं

दर्द की दास्तां को ये दर्द ही समझेगा
नाजूक संबंधों को फिर कौन समझेगा
किसे अपना कहे भीड़ में किसी को
जो गुमनाम हैं शहर में दर्द हैं उसी को

परिचय :- डॉ. तेजसिंह किराड़ ‘तेज’
मूल निवासी : अमझेरा, जिला धार (म.प्र.)
जन्म दिनांक : १२/११/१९६६
शिक्षा : एम.ए.,एमफिल, पीएच.डी
* वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक
* शिक्षाविद्‌
* भूगोलवेत्ता
* पीएचडी शोध सुपरवाईजर
* कवि, कहानीकार व लेखक
सम्प्रति : (सहायक कुलसचिव ) नागपुर (महाराष्ट्र)
सम्मान : ग्राम गौरव अवार्ड, समाज रत्न सम्मान, समाज भूषण अवार्ड, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, प्रखर प्रवक्ता सम्मान, साहित्य रत्न और साहित्य भूषण सम्मान, यंग ज्याग्राफर्स अवार्ड, क्रांतीकारी लेखक सम्मान, उत्कृष्ट मंच संचालक सम्मान, शब्द अलंकरण सम्मान, सरस्वती मानस सम्मान, उत्कृष्ट समाज सेवक सम्मान आदी सम्मान से सम्मानीत।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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