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हर तरफ यार का तमाशा है
कविता

हर तरफ यार का तमाशा है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खिलखिलाकर वो हँस रहे, मन से हटी सब निराशा हैं, लो हम सभी हँसे खुलकर, हर तरफ यार का तमाशा है। मंजिल के करीब पहुंच गये, नय कह रहे अजब भाषा है, नहीं कभी हम यूं पीछे हटेंगे हर तरफ यार का तमाशा है। खेल रहे हम मिल बागों में, जीत की मन लिये आशा है, आखिर बाजी जीत ही लेंगे, हर तरफ यार का तमाशा है। नयन मिले जब दोनों के तो, समझ गये नैनों की भाषा है, प्रेम आलिंगन नजर आये वे, हर तरफ यार का तमाशा है। चांद पर जरूर कदम रखेंगे, पहुंच गये सीधे यूं नासा है, आखिर चांद को छू लें हम, हर तरफ यार का तमाशा है। हमने क्या खोया विगत वर्ष, लो करते आज खुलासा है, नये वर्ष में होंगे काम सुंदर, हर तरफ यार का तमाशा है। हंसना चाहिए दिनरात सदा, क्यों बैठ गये अब उदासा है, निठल्ले बैठ पाप लगता चूंकि हर तरफ यार का तमाशा है। पा जाये विश्व ज्ञान एक दिन, चूंकि दिल...
मुश्किल राहें
कविता

मुश्किल राहें

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मुश्किल राहे लग रही, आज बनी हालात, कहीं किसान आंदोलन, चलती दर्द बारात, नहीं पता किस मोड़ पर, ले जाएंगी ये राहें, बैर भाव सब त्याग दो, देश फैला रहा बांहें। मुश्किल राहें लग रही, युवा खड़ा है दोराहे, उल्टी सीधी बातें करे, होकर खड़ा चौराहे, युवा वर्ग के चेहरे पर, चिंता की लकीरें है, चलना चाहिए तेज गति, चलता धीरे-धीरे है। मुश्किल राहें आज हैं, रोजगार है बदहाल, चपड़ासी की नौकरी, लाखों बजा रहे ताल, बेरोजगारी, भुखमरी, दे रही जमकर दुहाई, आज गर बदहाल है, भविष्य का क्या हाल। मुश्किल राहें लग रही, भविष्य की इंसान, छोटी उम्र में जा रही, देखो जान पर जान, फास्ट फूड और मांसाहार, बना खास खाना, दूध, दही, घी,मक्खन, किसी ने न पहचाना। मुश्किल राहें लग रही, निर्धन जन संसार, नंगे भूखे मर रहे, उनको दो रोटी से प्यार, गरीब गरीब बन रहा, नहीं दे रहा है...
सच्चा साथी
कविता

सच्चा साथी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** प्रभु, पत्नी, सखा और मित्र, कहलाते हैं ये रिश्ते पवित्र, सच्चा साथी, इनको कहेंगे, पल पल अपने साथ रहेंगे। नहीं धन दौलत मिले चाहे, नहीं भैंस, घोड़ा और हाथी, सुख जरूर मिलता है जब, जीवन में मिले सच्चा साथी। बड़े बड़े धोखा दे देते जब, पड़ जाएगा छोटा सा काम, सच्चा साथी पास जब आये, हो सकता है जगत में नाम। जिनका भला लाख करोगे, वो वक्त पड़े तो बने दुश्मन, सारी नेकी पल में भूल जा, बेशक अर्पण कर दे तन मन। सोच समझकर कदम बढ़ाए, जगत में मिलेंगे अल्प अपने, जब विश्वास काम बनने का, चूर-चूर हो जाए सारे सपने। पहला साथी पत्नी कहलाती, सुख सपनों में वहीं मदमाती, पास रहती दुख-दर्द मिटाती, जीवन को पावन कर जाती। सबसे बड़ा सुख कहलाता, पति पत्नी को दुख बतलाता, वो दुखों में भी पति हर्षाती, ऐसे में सच्चा साथी कहाती। सखा व साथी मिले कभी, मन प्रफुल्लित ...
क्या लिखा है किस्मत में
कविता

क्या लिखा है किस्मत में

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** क्या लिखा है किस्मत में, कई लोग भ्रम में पड़े हुये, किस्मत अपने हाथों में हो, जब दाता ने दो हाथ दिये। उनकी किस्मत हो जिनके, हाथ और पैर नहीं होते हैं, रख आलसी हाथ पे हाथ, अपनी किस्मत को रोते हैं। प्रभु कहता महसूस होता, कर ले रे इंसान! तू काम, किस्मत रोना रोता रहा तो, हो जाएगा जग में बदनाम। गरीबी जन की हो गायब, जुट जाये करे मेहनत जोर, देखो खुशियां घर में आये, नाच उठता है मन का मोर। अमीर अगर घर में बैठेगा, करेगा ना जब कहीं काम, धन दौलत खत्म हो जाए, करते रहो किस्मत बदनाम। क्या लिखा है किस्मत में, जाके पूछो मजदूर किसान, किस्मत अपनी लिखता है, कहलाता है धरा भगवान। क्या लिखा है किस्मत में, पूछो मेहनती विद्यार्थी से, किस्मत कदमों में झुकती, नहीं पूछ हाल स्वार्थी से। खाने को दो जून न रोटी, मूर्ख कहे किस्मत खोटी, काम करे मुफ्त ना खाय...
दावत पर बुलाया है
कविता

दावत पर बुलाया है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कभी दावत पर बुलाते थे, घर स्नेह निमंत्रण आते थे, प्रीतिभोज, मीठी वाणी से, प्रेम संग खाना खिलाते थे। दावत नहीं वो प्यार होता, खुशियों में दामन भिगोता, भाई भाई को पास बुलाता, आया नहीं जीवनभर रोता। दावत पर कभी बुलाते थे, बैठाकर खाना खिलाते थे, आदर और सम्मान देकर, उन्हें अपने पास बैठाते थे। बैठके खाना खाते थे जब, मन संतुष्टि मिल जाती थी, पानी पीते थे घड़े का ठंडा, मन में खुशी छा जाती थी। शास्त्रों में भी बताया जाता, बैठके खाना खाओ हरदम, रोग दोष से दूर रहोगे फिर, तन व मन में आएगा दम। वक्त ने पलटी खाई ऐसी, आया है खड़ा अब खाना, भाग दौड़कर समय मिले, भागदौड़ कर कैसा खाना? दावत पर बुलाया है जी, एक बार दर्शन दे जाना, खड़े खड़े खाना खाकर, कपड़ों पर दाग लगवाना। एक हाथ में थाली पकड़े, एक हाथ से खाते खाना, बार बार कोई न्यौता न दे, आना बे...
कुछ याद नहीं
कविता

कुछ याद नहीं

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** भला करना बुरा नहीं है, करते रहना सदा भलाई, एक दिन सबको जाना, कभी न लो कोई बुराई। किसका भला किया था, किसे दिया था सम्मान, अब स्मृतियां खोई कही, अब कुछ भी याद नहीं। अच्छे कामों से बनती हैं, सारे जहां में नेक इंसान, सत्कर्मों से आशीर्वाद ले, बन जाती जन पहचान। सदा किया वो काम हमें, जो लगते जन सदा सही, परहित में जीना सीखा है, पर अब कुछ याद नहीं। मां बाप का ऋण रहेगा, चाहे जन्म लेना हजार, उतारा नहीं वो जा सके, जन्म जन्मांतर रहे भार। पैदा छोटे बच्चे होते हम, मां ने पिलाया दूध दही, याद करते उनकी बातें, पर अब कुछ याद नहीं। दर्द कभी दे जाते आंसू, भूला नहीं पाता है जन, समय बीत जाए बेशक, याद आता सदा दर्द मन। बिछुड़ गये कितने अपने, दिल से अब आंसू बही, कितने हम यादों में रोये, हमें तो कुछ याद नहीं। सपने तो, सच्चे नहीं हो, सपने कभी रुला ...
सलाम लिखता है शायर तुझे
कविता

सलाम लिखता है शायर तुझे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सलाम लिखता है शायर तुझे, तुम्हारे हौसले रखेंगे सदा याद, महामारी २०२० की झेली मार, फिर भी ना की कोई फरियाद। सलाम लिखता है शायर तुझे, युद्ध के नायक तुम कहाते हो, दुश्मन का सीना तुमने चीरा है, तुम दुश्मन का खून बहाते हो। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुमने काव्य लिख डाला बड़ा, सुनकर दुश्मन हौसले है पस्त, दुश्मन के इरादे हुये है ध्वस्त। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुम्हारी मेहनत रंग लाई जगत, कोरोना की खोज डाली दवाई, कितने लोगों की जान बचाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुमने जन में अलख वो जगाई, दिन रात सेवा कर की भलाई, भूखे नंगों की कई जान बचाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, युद्ध में तुमने न पीठ दिखाई, मारे दुश्मन एक एक हजारों, दिखा डाली जग की सच्चाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, खेतों में करता रहता है काम, मेहनत के आगे कायल नाम, किसान को मिले सच्...
नाराज हो मुझसे
कविता

नाराज हो मुझसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खपा-खपा लगते हो, बस शिकायत तुझसे, मुंह चिढ़ा बात करते क्यों नाराज हो मुझसे? बस यूं ही बात करते, फुरसत क्षणों में तुझसे, वादों पर खरा उतरा हूं, क्यों नाराज हो मुझसे? कभी झगड़ा ना हुआ, शिकायत नहीं तुझसे, बातें नहीं कर रहे हो, क्यों नाराज हो मुझसे? कभी दिल दुखाया ना, हँसकर बातें की तुझसे, मुंह फेर लेते मिलने पर, क्यों नाराज हो मुझसे? साथ-साथ चलते आये, दूर ना हुये कभी तुझसे, बातें करना गवारा नहीं, क्यों नाराज हो मुझसे? जब भी कष्ट मिला है, पुकारा बस मैंने तुझको, पर अब वो बात नहीं, क्यों नाराज हो मुझसे? साथ खाना खाया हमें, खपा नहीं कभी तुझसे, तुम अलग राह चलती, क्यों नाराज हो मुझसे? रात दिन तुझे चाहा था, मुहब्बत बड़ी थी तुझसे, दूर-दूर छुपकर रहते हो, क्यों नाराज हो मुझसे? खेल अधूरा छोड़ों ना, यह प्रार्थना बसु तुझसे, अच्छा नहीं लग...
मासूम चेहरे का राज
कविता

मासूम चेहरे का राज

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बड़ा कातिल चेहरा है, होता है जन को नाज, लो तुम्हें मैं बतलाता, मासूम चेहरे का राज। प्यारी सी सूरत लगती, सिर पर रखा है ताज, बहुत छुपा रखा जन, मासूम चेहरे का राज। धर्म कर्म की बात पर, हो जिस पर हमें नाज, कृति के पन्नों में छुपा, मासूम चेहरे का राज। देेश सीमा पर जा रहे, सुरक्षा उनके सरताज, कहीं पैर न डगमगाएं, मासूम चेहरे का राज। हसरतें छुपा प्यार की, दफन हैं दिल में राज, भेद अब न खुल जाये, मासूम चेहरे का राज। मां का साया उठ गया, पिता नहीं रहे हैं आज, दर्द भरा दिल पुकारता, मासूम चेहरे का राज। राज्य भर में टाप रहा, हर मानव को है नाज, मन ही मन छुपा रहा, मासूम चेहरे का राज। गणेश जी ध्यान धरा, संपूर्ण हुये सब काज, सारी खुशियां छुपाई, मासूम चेहरे का राज। सूदखोर लो खा रहा, गरीब जन का ब्याज, आगे की सोच बताए, मासूम चेहरे का राज। चरव...
कुछ पूछना है तुझसे
कविता

कुछ पूछना है तुझसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कुछ पूछना है तुझसे मां, कितने ही कष्ट उठाये हैं, मुझको जो जन्म दिया है, वो दर्द दिल में छुपाये हैं। कुछ पूछना है तुझसे मां, कैसे मुझको दिया सहारा, खुशी भुला डाली अपनी, बस तुझको मैं लगा प्यारा। कुछ पूछना है तुझसे मां, कैसे वे उपकार उतारूंगा, हजारों जन्म ले लेकर के, बस तेरा ऋण उतारूंगा। कुछ पूछना है तुझसे मां, एक बार मुझे दर्शन देना, मुझको तुम यूं छोड़ गई, मुझे भी अपने साथ लेना। कुछ पूछना तुझ से तात, कैसे पालपोष पढ़ाया है, दिनरात एक कर कमाया, वो राज तुमने छुपाया है। कुछ पूछना तुझसे पिता, कितनी देर तुम सोते थे, मेरे कष्टों को देख देख, तुम घुट घुटकर रोते थे। क्यों छोड़ गये मुझे पिता, बस तुझसे यही पूछता है, जैसे बचपन में रूठा था, एक बार वैसे रूठता हूं। कुछ पूछना तुझसे भाई, तुमने भी राह दिखाई है, कभी अपने संग रखा है, कभी भूख मेर...
बड़ी देर कर दी
कविता

बड़ी देर कर दी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन की राह में, नहीं चलती मर्जी, समय पर चलना, बड़ी देर कर दी। समय का पाबंध, नहीं हो खुदगर्जी, देरी न हो अच्छी, बड़ी देर कर दी। दर्द कभी ना दो, बनो नहीं बेदर्दी, देरी भ्रष्टाचार हो, बड़ी देर कर दी। गर्मी जब बीतती, फिर आती सर्दी, सावन भी कहता, बहुत देर कर दी। मरीज दम तोड़ता, चले डाक्टर मर्जी, नहीं लगती अर्जी, बहुत देर कर दी। अन्न पैदा न हुआ, कैसी खेती करली, बीज बोया देर से, बहुत देर कर दी। विद्यार्थी फेल हो, खूब लगाई अर्जी, सालभर पढ़ा नहीं, बहुत देर कर दी। युद्ध में हार गया, तत्परता न बरती, चारों ओर घिरता, बहुत देर कर दी। मरीज बीमार हो, लापरवाही बरती, रोग ठीक न हुआ, बहुत देर कर दी। बढ़ा हुआ प्रदूषण, हदें ही पार करली, अब भी वक्त बचा, बहुत देर कर दी। रोग बढ़ता जाएगा, जब लगी हो सर्दी, वक्त है बचाव कर, बहुत देर कर दी। जोह र...
व्हाट्सएप मैसेज नहीं कोई खत भेज दो मेरे पते पर
कविता

व्हाट्सएप मैसेज नहीं कोई खत भेज दो मेरे पते पर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** पता नहीं चल पाता है, संदेश आकर जाता है, कई कई दिन पढ़ते ना, नहीं इनसे कोई नाता है। पुराने वक्त का खत था, आकर मन हर्षाता था, गमी और खुशी सारी, एक झलक कहता था। खत जब आता था घर, डाकिया चल आता था, जोर से दरवाजे पर बोल, खत हमको दे जाता था। आस पास पता लगता, इनके कोई चिट्ठी आई, खुशी भरी खबर मिले, सारे मोहल्ले खुशी मनाई। गम भरा खत होता था, सबको पता लग जाता, पढ़कर वो समाचार ही, गम हमें बहुत सताता। अब क्या मोबाइल चले, दिनभर करे आंखें खराब, लगता चेहरा मानव का, जैसे पी रखी हो शराब। इंसान रखता मोबाइल है, सोचता अपने को महान, ये चीजें कभी ना बनाती, इंसान की कोई पहचान। पुरानी विचारधारा बनी, मोबाइल नहीं खत रूप, खत संदेश दे मन खुशी, खत संदेश होता अनूप। करते थे इंतजार दिनरात, आयेगा कोई शुभ संदेश, अच्छा संदेश जब मिले, इच्छा ना रहती थी शेष। ...
राही और मंजिल
कविता

राही और मंजिल

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** राह पर चलते कई बटोही वो मंजिल अपनी भटके हैं, कभी राहें मंजिल बनती हैं, कभी लगते घातक झटके हैं। राही वहीं जो मंजिल पहुंचे, मन मंजिल कहीं नहीं भटके, इस पार-उस पार की सोचे, चलता जाए कभी ना अटके। मुसाफिरखाना जगत कहाये, कुछ दिन ठहरकर जाना है, मंजिल पर चलकर जाना हैं, अंतिम लक्ष्य को ही पाना है। सफल सफर उनका ही हो, सहज सरलता पाये मंजिल, रातें अंधियारी, खत्म जहां, करते नहीं, तारें झिलमिल। जीवन में खुशहाली हो तो, बटोही हँसता झूमता जाता, दुख, दर्द जब राही मिलते, कदम कदम पर रोता पाता। आसान नहीं मंजिल पाना, सदियां बीतानी पड़ती हैं, कभी खुशी फुहार पड़ेगी, कहीं मार कसूती पड़ती है। मंजिल चले, दो राही तो, राह आसान बन जाती है, राह में कांटे बिखरे पड़े, शोणित पग पग आती है। हौसला जनून दिल में हो, बढ़ते ही जाना राही को, डरना न कांटे और खाई, प...
बचपन की शरारतें
Uncategorized, कविता

बचपन की शरारतें

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** अल्हड़ बचपन याद आता, जब करते थे कुछ शरारतें। भूल नहीं पाते उनको अब, वो बन चुकी हैं वो इबारतें।२। नंगे पैर, अर्ध नग्र बदन था, पतंग की पकड़ते थे डोर। देख देखके मात पिता का, मच जाता था जमकर शोर।४। कंचे खेलते, ताश खेलते, कभी भागते चिडिय़ा पीछे। कभी किसी से झगड़ा करे, गुरुजन पकड़ कान खींचे।६। झीरनी, खुलिया, टेम था, शरारत भरे सारे थे काम। उलहाना आता गन्ने तोड़े, कभी होता नाम बदनाम।८। खिलौने से खेला करते थे, दिनभर हंसते थे गली गली। क्या मनमोहक, बचपन था, लगती थी ज्यों फूल कली।१०। किसी की चोटी पकड़ते, कभी बहुत अकड़ते थे। कभी किसी बात लेकर, आपस में ही झगड़ते थे।१२। कभी घूसंड मारते देखे, कभी झूठ बोलते आगे। कभी किसी चीज उठा, कभी शरारत कर भागे।१४। नहीं डर था मारपीट में, झगड़ा करते पल में हम। कभी बेर तोड़ लाते थे, बातों में होता एक दम।१६...
गाय चराना शर्म, कुत्ता घुमाना गर्व
कविता

गाय चराना शर्म, कुत्ता घुमाना गर्व

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** दुर्भाग्य इस देश में गाय चराना शर्म है कुत्ता घुमाना गर्व है, कुत्ते से मनाते पर्व है। दुर्भाग्य है इस देश में गंदगी को गले लगाते, बुराई को दिल लगाते गाय नहीं पास बुलाते। गाय गोबर काम का, लिपते चूल व चौका कुत्ता पालकर पाते हैं, मल उठाने का मौका। गाय का घी दूध भी बहुत सेहतमंद होता, कुत्ता काटे जब कभी, फिरता रहे जन रोता। गाय को माता कहते देश में यह प्रथा रही, कुत्ते से करते प्यार वे कहते उसे बाप नहीं? गाय पालो धर्म काम मां की सेवा करते हैं लेकिन ये लोग अब गायों से ही डरते हैं। कुत्ता गंदगी करता हैं घर में कोई काम नहीं, कुत्ता काटता जब कभी, मिले कभी आराम नहीं। अब पाल लो घर गाय सेहत बुद्धि बढ़ जाएगी, पूरे जगत में होगा नाम, खुशियां लौट आएगी। कुत्ता का मल उठाओ, नहीं किसी काम का, कुत्ता रोगों का घर है, राम का न श्याम का।। परि...
मुफलिसी में भी मजा है
कविता

मुफलिसी में भी मजा है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** तुलसीदास गंगा के तट पर, मुफलिसी दिन रात बिताये, उनकी सच्ची भक्ति देखकर, खुद श्रीराम मिलने को आये। मुफलिसी में नरसी भगत ने, प्रभु भक्ति का छोड़ा न साथ, श्रीकृष्ण भात भरने आये थे, आया पकड़ा नरसी का हाथ। मुफलिसी में दिन बिताये थे, गरीब सुदामा करता विनती, श्रीकृष्ण ने आकर घर भरा, दौलत नहीं, हो पाई गिनती। सबरी प्रभु भजन कर रही, मुफलिसी में बिताती दिन, ईश्वर श्रीराम, पहुंचे मिलने, झूठे बेर खिलाये गिन गिन। रैदास को कौन नहीं जानता, मुफलिसी उनके काम आई, गंगा में जब पैसा फेंका था, सुन रैदास, गंगा हाथ बढ़ाई। मन चंगा तो कटौती में गंगा, गरीबी,भक्ति दोनों ही दर्शाता, रैदास की गरीबी और भक्ति, रह-रहकर मन को तरसाता। नामदेव,कबीर और त्रिलोचन, सधना, सैनु निम्र वर्ग कहलाए, भक्तिभाव दिल में अति जागा, ईश्वर के वो बहुत पास आए। मुफलिस हो जन जन के ...
कुछ देर में जब
कविता

कुछ देर में जब

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कुछ देर में जब, रावण होगा दहन, बुराइयां जल जाएंगी, मन हर्षाएंगी, अगले वर्ष फिर रावण, जब जलाएं, रावण खत्म न हो, कोई तो बतलाए। कुछ देर में जब, बम होता विस्फोट, बे-मौत मर जाते, उनका क्या खोट, कब तग आतंकवादी, यूं ही सताएंगे, आतंकवाद को कब तक जला पाएंगे? कुछ देर में जब, सुनते हैं बलात्कार, फिर गई एक औरत जिंदगी ही हार, कब तब ये तमाशा देखते रह जाएंगे, कोई बताए, बलात्कारी मिट पाएंगे? कुछ देर में जब, सुनते हुआ शहीद, एक-एक कब तक शहीद हो जाएंगे, बैर भाव सीमा पर बढ़ता जा रहा है, इस बैर भाव को कैसे हम मिटाएंगे? कुछ देर में जब, सुनते हैं भ्रूण हत्या, एक लिंग जांच गिरोह, और पकड़ा, भ्रूण हत्या का पाप कैसे हम हटाएंगे, देश के दरिंद्रों को कैसे हम मिटाएंगे? कुछ देर में जब, औरत फांसी खाई, आखिरकार ऐसी क्या नौबत है आई, औरत अस्मिता को कैसे हम बचाए...
आज फिर घूमना है
कविता

आज फिर घूमना है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** स्वतंत्रता मिल चुकी है, आजादी से सबको प्यार, आसमान अब चूमना है, लो आज फिर घूमना है। आजादी के रूप अनेक, कोई काम से है आजाद, किसी को बचपन याद, कोई करता है फरियाद। कोरोना के बंधन में थे, अनलॉक के दिन आये, बीते के दिन भूलना है, लो आज फिर घूमना है। कैदी काट रहा था जेल, कैदियों से था बस मेल, छूट गया फिर, कैद से, कैद से खत्म हुआ खेल। कैदी हुआ कैद से रिहा, कैदखाना दिन भूलना है, प्रसन्न बहुत नजर आया, आजाद फिर, घूमना है। पढ़ते पढ़ते हुआ बोर, नींद हैं आंखों में घोर, परीक्षा संपन्न हो गई, आज फिर, घूमना है। दौड़ रहा मंजिल ओर, मंजिल अभी दूर ना है, एक दिन मिले मंजिल, तब तक यंू घूमना है। दुश्मन बचकर निकले, आंसू आंखों से, बहते, अब दुष्ट को, घूरना है, ले आज फिर घूमना है। गर्मी की छुट्टियां, शुरू, स्कूल अब, भूलना है, दौड़ चले, सैर सपाटा, लो...
आजादी के मतवाले सरदार भगत सिंह
कविता

आजादी के मतवाले सरदार भगत सिंह

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी भगत सिंह नाम था, आजादी रग रग में बसे, आजादी पाना काम था, अंग्रेजों से किया मुकाबला, आजादी दीवाना था, अत्याचारों के आगे न झुके, ऐसा वो परवाना था। केंद्रीय संसद में बम फेंके, सांडर्स को जाके मारा, सुनकर उनकी दीवानगी, खून खौलता है हमारा, रंग दे बसंती चोला गीत, सिर चढ़कर बाला था, अंग्रेजी हुकूमत खातिर, बम, बारूद व गोला था। असहयोग आंदोलन जब, पूरे देश में फेल हुआ, भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव, क्रांतिकारी नाम दिया बंगा गांव में जन्में थे, भागोंवाला उन्हें नाम दिया, ऐसा बहादुर वीर जिन्होंने पूरे जग में नाम किया। जिस दिन उनका जन्म हुआ, शुभ दिन कहलाया उस दिन उनके चाचा अजीत, सुवर्ण, कृष्ण आये उनके पिता किशन सिंह, निज भाई गले से लगाये भगत की दादी मां, बेटों को देखकर अति हर्षाये २३ मार्च १९३१ को अंग्रेजों ने, उ...
मन
कविता

मन

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** वक्त बुरा नहीं होता, बुरे होते विचार, मन मेरा प्रसन्न हो तो,लोग करें प्यार, मन को काबू कर, बन सकता महान, मन मंद वेग मेें हो, बन जाए पहचान। मन की गति समझ नहीं पातेे, कितने, जगत हुये पंडित और हजारों विद्वान, मन पर काबू किया, साधु, संत महान, काबू से बाहर मन, राक्षस उन्हें जान। फूल सा मन था, जब होता था बच्चा, मेरा मन कहता था, दिल का हूं सच्चा, काम मन से किया, लगता था अच्छा, छल पट से दूर था, इसलिए था बच्चा। हुआ युवा,मन जवां, करता उल्टी बातें, मेरे मन से सोच में, कट जाती थी रातें, मन मलिन हो गया, कुत्सित थे विचार, मन की मेरी समझे, घट का जन प्यार। हुआ बुजुर्ग आज मैं, नहीं रहा ये जवां, बुरे भले विचार पले,नहीं रहा मन जवां, सोच विचार करता, शुभ वक्त दिया गवां सूखा पेड़ बन गया, खुश्क हो गई हवा। एक दिन मेरा मन, यूं कहने लगा मुझसे, अभी वक...
खामोशी और शब्दों का खेल
कविता

खामोशी और शब्दों का खेल

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खामोश रहे फिर भी कहे, यह अजब खेल होता है, देख-देख इन नजारों को, दर्द में आंखें भिगोता है। दृश्य- १. लुट गया सुहाग अबला, मौन दर्द में वो रहती है, उसकी आंखें जगत को, कष्टों के आंसू कहती है। दृश्य- २. हार गया सैनिक युद्ध में, मौन अपने को छुपाता है, उसके दिल के शब्द ही, खामोश हाल बताता है। दृश्य- ३. मलयुद्ध लड़ा पहलवान, हार गया लगा एक दाव, लोग उसको निहार रहे हैं, खामोशी कहे डूबी नाव। दृश्य- ४. फेल हो गया मेहनत कर, खामोश है लगता है डर, आंखें उसकी बोल रही, कैसे जाऊंगा अपने घर। दृश्य- ५. मृत्यु शैया पर लेट रहा , खड़े परिजन चारों ओर, खामोश सभी कुछ कहे, नहीं दो प्रभु विपत्ति घोर। दृश्य- ६. अमीर स्वाद लेता मिठाई, गरीब की आंखें ललचाई, खामोश रहे फिर भी कहे, हमने बासी रोटी ही खाई। दृश्य- ७. बूढ़े को निकली लाटरी, खुशी के मारे हुआ मौन, धन देख उ...
अध्यापक से मिली सीख
कविता

अध्यापक से मिली सीख

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** चंचल मन घूम रहे थे, नहीं कोई था डर, पढऩे जात स्कूल में, आते शाम को घर, रूखी सूखी चटनी छाछ, भोजन था प्यारा, थैला उठाकर जाते थे, पास स्कूल हमारा। शिक्षक मेरा शिव कुमार, बहुत कड़क था, लेख देख-देख डंडे मारता, जब भड़कता, पीट पीटकर कर दे लाल, डर लगता था, कोई शिकायत लेकर जाए, उसे घड़ता था। बहुत डर लगता पर, एक मजबूरी सामने, गरीबी हालात घर की, कागज कहां मिले, लेखनी कैसे चला पाऊं, हाथ मेरे बंधे थे, पर शिक्षक के व्यवहार, नहीं शिकवे गिले। उनकी एक ही शिक्षा, अपना लेख सुधारों, दस सफा लिखो राज के, ना समय गंवाओ, कलम, दवात, होल्डर, सभी को रखना पास, सुंदर लेख लिखकर, कक्षा पूरी को हँसाओ। शिक्षक आकर रोज कहे, लेख और सुधारो, मैं कहता गुरुजी डर लगता, डंडा मत मारो, फिर भी ५-७ मार डंडे के,पड़ पड़ वो पड़ते, बहुत उदास रहते देख, मन घुटता था हमारो। सोचा...
नारी और न्याय
कविता

नारी और न्याय

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सदा दर्द में जीती आई, मिला नहीं न्याय, सदियों से शोषित रही, होता रहा अन्याय, आजीवन कष्टों में रहती, कहलाती बेचारी, चीर हरे, कभी हरण करे, जग व्याभिचारी। कमजोर नहीं काम में, फिर भी है अबला, उसकी सुंदरता समक्ष, पुरुष बजाये तबला, न्याय की खातिर जगत, दर-दर भटके नारी, काम वासना के लिए, बहुतों को लगे प्यारी। सतयुग में तारामती, करती थी घर में काम, हरिश्चंद्र मरघट करे, बिके सरदार डोम नाम, रोहित उनका मारा गया, पहुंची मरघट द्वार, न्याय नहीं मिला वहां, अंत में जीत गई हार। त्रेता में सीता नारी, रावण ने किया अपहरण, सीता को न्याय मिले, श्रीराम पहुंचे तब रण, रावण पापी नष्ट हुआ, देर में मिला था न्याय, फिर एक जन बोल से, वन गमन था अन्याय। द्वापर युग भी नहीं भला, द्रोपदी का हरा चीर, भटकती रही हर द्वार पर, कृष्ण हर लिया पीर, द्रोपदी के चीर हरण का,...
बारिश की आहट
कविता

बारिश की आहट

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** नभ पर काली घटा छाई, बादल गरज रहे घनघोर, देख -देख नभ की घटा, नृत्य कर रहे वन में मोर। द्युति से चमक रहा नभ, टप टप बूंदों का है शोर, दादुर जल में टेर लगाते, टिड्डे कर रहे मन विभोर। कहीं काले, कहीं नीले, कहीं लोग करे भागदौड़, कोई हँसता खिलखिला, भरेंगे अब तड़ाग,जोहड़। रेगिस्तान में उठी मतंग, मतंग ऋषि के नाम पर, बरसेंगी वो रेगिस्तान में, फिर बारिश हो घर घर। किसान हुये अब प्रसन्न, भीगा उनका तन व मन, खुशगवार होगा मौसम, सावन गया, है अगहन। बारिश की अब आहट, चकौर की बढ़ी चाहत, सूरज डूबा बादल ओट, गर्मी हटे मिलेगी राहत। चकवा चकवी मन हँसे, सीप के मुंह, बने मोती, किसानों ने ली है राहत, अब मिलेगी खूब रोटी। लहलहाएगी ये फसल, अनाज कमी मिले हल, टकटकी लगा देख रहे, ताक रहे नभ पल पल। तरुवर पर आयेगी बहार, चित चोरों की बढ़े प्यास, होगी जमकर अब बार...
व्यवहारिक कुशलता
कविता

व्यवहारिक कुशलता

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बड़ी बहुत जिंदगी बड़ा बहुत संसार, जिंदगी बेकार बने, सीखा न व्यवहार, व्यवहार कुशल होना, होती बड़ी बात, इससे जीवन मोल है, जन्मभर दे साथ। दो प्रकार के लोग, मिलते इस संसार, बुद्धिमान को लोग, करे जमकर प्यार, एक तो वो ज्ञानी, कहलाते जगत में, दूजे जो है पागल, मिलते कई हजार। पागल उनको जानिये, न जाने व्यवहार, मार पीटकर दम ले, नहीं माने वो हार, बुद्धिमान वो कहलाते, कुशल व्यवहार, हर काम को पूरा करे, जन से हो प्यार। व्यवहार कुशल जो, इस जहान में हो, व्यवहारिक कुशलता का जिनको ज्ञान, ऐसे जन सदा सफल हो हर जगह पर, अच्छे बुरे की मिलती उसको पहचान। भूख मरेगा वो जग, कुशल न व्यवहार, पैसे लेकर लौटाये ना, करता ऐसे कार, एक बार तो दे देंगे, धन, वस्तु व्यापार, भूले से फिर ना मिले, लोगों का प्यार। गरीब वहीं कहलाते, जाने ना व्यापार, या फिर उनका, कुशल नही...