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सांवरे की सूरत आज भी
कविता

सांवरे की सूरत आज भी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सांवरे की सूरत आज भी, भक्तों को बड़ी सुहाती है, गोपाल के खेल देख लो, गोपिका बहुत लुभाती है। सांवरे की सूरत आज भी, हर जन मन बस जाती है, कान्हा की मुरली देख लो, ग्वालों को बहुत सुहाती है। सांवरे की सूरत आज भी, सुंदर सा पैगाम दे जाती है, लाख प्रयास बेशक कर ले, ये मौत अटल बन जाती है। सांवरे की सूरत आज भी, गोकुल में तुम्हें बुलाती है, सूनी हो चुकी जो गलियां, वो कहानी स्पष्ट सुनाती हैं। कहीं धाम राधा कृष्ण के, कहीं द्वापर नगरी प्यारी है, कहीं बृज की होली खेलों, कहीं मटकी तोड़ तैयारी है। सांवरे की सूरत आज भी, गोवर्धन पर्वत में मिलती, अंगुली पर उठा लिया था, मानव की खुशियां खिलती। गोपियों संग में रास रसाते, ऋषि मुनियों को वो बचाते, सत्य का वो साथ देते सदा, सोये हुये को वो ही जगाते। विष्णु के...
उम्मीद अभी भी बाकी हैं
कविता

उम्मीद अभी भी बाकी हैं

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** टूट गये सब ख्वाब तो, शेष अभी भी शाकी है, पलट गये हैं पासे सभी, उम्मीद अभी बाकी हैं। महामारी ने खूब सताया, अच्छा समय लौट आया, अभी भी ताका झांकी है, उम्मीद अभी भी बाकी है। मृत्यु शैया पर पड़ा हुआ, पास खड़े हैं चाहने वाले, उनकी हर बुराई माफी है, उम्मीद अभी भी बाकी है। जब तक इंसान धरती पर, होती रहेंगी ये भूल सुधार, उम्मीदों का सहारा पाकर, नहीं हो सकती कभी हार। हार गये राज पाट पांडव, मिल चुका था अज्ञातवास, श्रीकृष्ण आये बोले हँसते, उम्मीद अभी भी बाकी है। प्राण हर लिये सत्यवान, सावित्री संग में यमराज, प्राण वापस लाने की वो, उम्मीद अभी भी बाकी है। मार्कंडेय मृत्यु के निकट, बाल रूप अति सुहाना है, शिवभोले में अपार भक्ति, जीने की उम्मीद बाकी है। तूफान से अब घिर चुके, मृत्यु आती पल पल पास, जीन...
सब्र से ही इश्क महरूम है
कविता

सब्र से ही इश्क महरूम है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सब्र करना जरूरी होता है, सब्र करना कभी मजबूरी है, सब्र कभी मजा देता धूम है, सब्र से ही इश्क महरूम है। इश्क की हालात पतली है, हुस्न की जीत ही असली है, पर सब्र से लेना होता काम, इश्क लगती सुंदर ढफली है। घर द्वार भी सज जाते कभी, जब हुस्न चलके घर आता है, बहारे भी फूल बरसाती देखी, कभी इश्क दिल तड़पाता है। इंतजार करना भी मजबूरी है, बांहों में सजना भी जरूरी है, जब हवायें विपरीत चलती है, दिलों की बढ़ती बस दूरी है। कभी इश्क भी ताने सहता है, कभी हुस्न दिल में रहता है, सब्र भी कभी कब्र बन जाता, अश्रु की धार झर झर बहते हैं। जब चाहत बलि चढ़ जाएगी, तब तो हुस्न बनता मासूम है, सब्र करना पड़ता तब कभी, सब्र से ही इश्क महरूम है। सब्र करके मजनूं रोया है, लैला का दुपट्टा भिगोया है, सब्र से ही इश्क महरूम है, ...
बारिश हो रही है शहर में
कविता

बारिश हो रही है शहर में

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** पल-पल मौसम बदल रहा, बूंदाबांदी हुई है दोपहर में, ठंडी-ठंडी हवा चल रही है, बारिश हो रही है शहर में। पोखर भर गये गांव-गांव, कौवे कर रहे कांव-कांव, दादुर सुर में गीत गा रहे, बच्चे चलाए कागज नाव। काले-काले बादल चलते, नये विचार मन में पलते, चहुं ओर हरियाली छाई, प्रेमी युगल राहों में मिलते। छतों पर मच रहा है शोर, जंगल में नाच रहे हैं मोर, बादल गरजे घटा घनघोर, लुक्का-छिपी करते चितचोर। गलियों में बह रहा पानी, पैदल चले याद आये नानी, पानी की हो अजब कहानी, नहाये बच्चे करते मनमानी। नभ पर उड़ते रंगीन पतंग, पेच लड़ाये छेड़ रहे जंग, वो मारा वो काटे का शोर, बरस बरसकर हो गई भोर। छपाक-छपाक करते चले, पनपे प्यार अंबर के तले, कहीं सर्प करते फुफकार, पपीहा को वर्षा से प्यार। वाहन चलते तेज रफ्तार, वर्षा का ...
सावन का सोमवार
कविता

सावन का सोमवार

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सावन माह शिव को समर्पित, करते हैं जप, तप, व्रत विचार, सोच समझकर खाना लेते जन, शिव की भक्ति अमिट अपार। सावन का जब आये सोमवार, शिव आराधना का दिन होता, पूरे साल जिसने पाप किया है वो भी अपने पाप कर्म धोता। अपार शक्ति लिये होते शंभू, जिसके आगे शक्ति है जीरो, उसकी भक्ति में सुख मिले, बन सकता है जग में हीरो। शिव तपस्या का होता माह, शिवरात्रि का आता है पर्व, शिवभक्त कांवड़ लाते चल, होता उन भक्तों पर ही गर्व। सावन माह का बड़ा महत्व, उससे महत्वपूर्ण है सोमवार, शिव आराधना दिनभर चले, शिव शक्ति जग का आधार। विभिन्न रूपों में समाये शिव, त्रिनेत्र धारी जग में कहलाते, अल्प ज्ञान से उनको पुकारो, शिवभोले बस चलकर आते। सावन का आता है सोमवार, भर देता मन उमंग और प्यार, बेलपत्र, गंगाजल से कर पूजा, जग में कभी नह...
बूंद-बूंद जीवन बरसे
कविता

बूंद-बूंद जीवन बरसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बूंद-बूंद जीवन बरसे, देख-देखके मन तरसे, जब जब बारिश होती, आसमान बादल गरजे। जल जीवन का आधार, कर ले जल से तू प्यार, अमृतमय होता है जल, महिमा होती है अपार। अद्भुत द्रव्य कहलाता, शीतलता तन दिलाता, क्रोध अगर जब आये, पल में ही शांति लाता। किसान रहता है निर्भर, बहता नदियों में झरझर, बच्चे नहाते खुशी-खुशी, पसीनों से हो तर बतर। नदी, नाले और हैं सागर, जल भरे देता बड़ा गागर, जल लाता खुशियां हजार, हर जन को जल से प्यार। बूंद-बूंद जीवन बरसता, लेकर चले हल किसान, जल होगा तो कल रहेगा, जल बचत को रहे तैयार। बूंद-बूंद जीवन बरसेगा, आयेगी बागों में बहार, पपीहा बोलेगा वन में, आएं अनेकों ही त्योहार। जल बरसेगा जब आंगन, मन में उठे प्यार की लहर, बादल फट जाते हैं कभी, टूट पड़ेगा तब एक कहर। बूंद-बूंद जीवन ब...
मुझे अफसोस है
कविता

मुझे अफसोस है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** अब ना जवानी ना जोश है, राक्षसों के प्रति नहीं रोष है, सच कहना खुद में दोष है, देख देख बड़ा अफसोस है। देशभक्त अनेकों मिलते थे, अब ना वो नेताजी बोस है, देशद्रोही जगत में अब बढ़े, इसका अधिक अफसोस है। अब नहीं रहे देश में बच्चे, मात, पिता, गुरु से डरते है, दर्द दे रहे दिन रात अब तो, इस पर अफसोस करते है। चरित्रवान मिलते थे बहुत, अब मिलता चरित्र दोष है, अत्याचार बढ़ा गली गली, मुझे इस पर अफसोस है। मेहनत एक नारा होता था, अब मेहनत ही एक दोष है, निठल्ले मिले हर गली गली, मुझको इस पर अफसोस है। मुफ्तखोर जगत में बढ़ गये, बढ़ता ही जाये यही दोष है, सुर बदल जाते हैं पलभर में, इसका तो मुझे अफसोस है। अत्याचार बढ़े महिला पर, समाज आज भी खामोश है, सदियां बीती कष्ट सहती है, इसका मुझको अफसोस है। पुस्तकों से र...
नूर गुलाबी ओढ़कर
कविता

नूर गुलाबी ओढ़कर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** नूर गुलाबी ओढ़कर, प्रभु करे निवास, मनोकामना पूर्ण हो, आये सबको रास, उसकी कृपा से ही, आये जन को सांस, उसके ही आधीन, बनकर उनका दास। नूर गुलाबी ओढ़कर, करता है इंसाफ, दोषी को सजा मिले, निर्दोष हो माफ, उसके ही प्रताप से, करते सभी जाप, पापी कितने ही हो, कर देता है साफ। नूर गुलाबी ओढ़कर, जन को देता बल, गरीब इंसान सदा, बन जाता है सबल, हर समस्या का वो, करता पल में हल, हर जगह मिलता है, वायु हो या जल। नूर गुलाबी ओढ़कर, दिखलाता है रूप, इज्जत मान बढ़ जाये, बेशक हो कुरूप, पूजा सभी हैं करते, लेकर हाथ में धूप, उसके ही आधीन है, रंक हो या भूप। नूर गुलाबी ओढ़कर, भर दे मन में जोश, उसकी लाठी जब पड़े, खो देता है होश, जिसने नाम ना जपा, उसे है अफसोस, अंतिम सत्य रूप में, ले लेता आगोश। नूर गुलाबी ओढ़कर, बूझा देता है प्य...
आंखें थकती नहीं
कविता

आंखें थकती नहीं

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सजग प्रहरी बन गई, सीमा पर टकटकी, दुश्मनों को ढूंढती, देखे जो सोचती सही, नींद भरे नयन है, पर मजाल क्या छिपते, अनवरत देखती रहे, ये आंखें थकती नहीं। पहाड़ों पर बर्फ जमी, दूर तक वर्षा कहीं, फूलों की खुशबू में लगे, आंखें वहीं टिकी, पेड़ों के आलिंगन में, चूम लेती नभ दूरियां, ये आंखें थकती नहीं, माथे पर पड़े झूरियां। आंखें थकती नहीं, देखती व्योम के नजारे, अपना कोई मिल रहा, लग रहे सुंदर प्यारे, टकटकी लगा देखती, नृत्य करते राजदुलारे, दूर कोई अपना होता, ये आंखें उसे पुकारे। सुबह होती भोर देखे, शाम के सुंदर नजारे, वादियों में दूर तक, बिखरे पड़े कई नजारे, प्रेमी युगल देखती, करती तब आंखें इशारे, आंसुओं से भीगती, दर्द में जब दिल पुकारे। जीवन से मृत्यु तक, नयन क्या क्या देखती, अच्छी बातें याद रखती, बुरी को वो फेंक...
घड़ी भर ही सही
कविता

घड़ी भर ही सही

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** घड़ी भर ही सही, मिले दोस्त कही, यादें हो जाये ताजा, लगे जमाना सही, बहने लगे आंखों से, कीमती वो आंसू, सच्ची दोस्ती इस, जमाने ने यह कही। घड़ी भर ही सही, आये वीरों की याद, गोली उन पर चलाई, वो सारे जल्लाद, वीरों ने खून बहाया, नहीं की फरियाद, नाम रहेगा जहां में, सदियों के भी बाद। घड़ी भर ही सही, दिखाये दरियादिली, हर जन कह उठे, सुख की घड़ी मिली, हर देशभक्तों की, होती है इच्छा दिली, खुशियां देखकर, हर फूल कली खिली। घड़ी भर ही सही, मिले हर जन खुशी, दर्द मिटे पल में, कोई नहीं रहेगा दुखी, मालिक की नजरें, हर जन रहे इनायत, ईश्वर के सदा सामने, नजरें रहे यूं झुकी। घड़ी भर ही सही, प्रभु मिल जाये आज, उस घड़ी पर ताउम्र ही, मुझको हो नाज, खुशियां नहीं समा पाये, यह दिल मेरा, उस दाता का रहा है, इस जहां में राज। घड़ी...
तेरा एक बार संवरना बाकी है
कविता

तेरा एक बार संवरना बाकी है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन में संवारती आई हो तुम, चेहरा तेरा लगता जैसे शाकी है, बहुत बार संवार चुकी हो प्रिय, तेरा एक बार संवरना बाकी है। पैदा हुई जब परिवार ने संवारा, रूप तेरा हर जन को था प्यारा, तेरा एक बार संवरना बाकी है, कह रहा है पागल दिल हमारा। बड़ी हुई तब बच्ची कहलाई थी, पोशाक नई-नई कई मंगवाई थी, बचपन में जब तुम संवरती रहती, दिल में तुम बहुत ही इतराई थी। मेहमान जब कभी घर में आते, नई-नई पोशाक चुनकर के लाते, पहनाकर तुम्हें बेहतर से कपड़े, परियों की कई कहानियां सुनाते। सजने संवरने का क्रम यूं चला, मां बाप का मिलता रहा दुलार, पहन पोशाक रंग बिरंगी तन पे, भाग दौड़ की नहीं मानी है हार। युवा अवस्था में जब रखा है पैर, नहीं जमाने में तब युवा की खैर, सभी अपने ही तुम्हें लगते रहे हैं, माना ना तुमने कभी कोई भी गैर। ...
विश्वास का आधार
कविता

विश्वास का आधार

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मात पिता एक बार मिले, होते विश्वास का आधार, निज बच्चे पर कुर्बान हो, लुटा देते हैं पल में प्यार। सृष्टि के हम साथ जी रहे, वो है विश्वास का आधार, बेशक कोई लाख दुख दे, जगत में मिले सुख हजार। विश्वास का आधार होते, भाई बहन का जग प्यार, भाई मिलता हर विपत्ति, जान देने को बहन तैयार। विश्वास का आधार कहे, शिक्षा दीक्षा देते जो गुरु, हर कदम पर देते साथ, होता है नव जीवन शुरू। विश्वास का आधार कहो, दोस्त, दोस्ती और संसार, भ्राता से कम नहीं दोस्त, जग का अमूल्य हो प्यार। लेन देन जब जन से हो, कहलाए विश्वास आधार, कहीं न कहीं झलकता है, गहन दोस्ती रूपी प्यार। विश्वास का आधार कहो, आपस में संबंधों का दौर, संबंध विच्छेद अगर होता, मच जाता है जग में शोर। रिश्तों नातों में छुपा हुआ, विश्वास का एक आधार, सं...
ईद मुबारक
कविता

ईद मुबारक

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** ईद मुबारक कह रहे, कोरोना के काल, महामारी फैला रही, जन पर मक्कडज़ाल, गले मिलना तो दूर है, दूर दूर करे बात, ज्यादा गले मिले तो, आ सकती वो रात। ईद मुबारक मत कहो, महामारी भगाओ, हँसी खुशी हो चेहरे पर, खुशहाली लाओ, हाथ धोकर पीछे पड़ा, पहले जान बचाओ, ईद मुबारक फिर कहो, हँसों और हँसाओ। एक साल बीत गया, भेंट चढ़ गये त्योहार, हुक्का, पानी छूट गया, पर ना मानी है हार, कमजोर पड़ रहा अब, महामारी का रूप, अंधेरा जल्द मिट जाए, आएगी फिर धूप। कैसी ईद मुबारक है, कैसा अजब संसार, धीरे-धीरे लुप्त हुआ, भाई-भाई का प्यार, हँसना भी अब मुमकिन है, कैसा यह वक्त, त्योहार मनाने पर भी, प्रशासन हुआ सख्त। पहले जिंदा रहना है, फिर मनेगी वो ईद, जल्द से महामारी भागेगी, ऐसी है उम्मीद, हँसी खुशी से मिलकर गाएं, वक्त आएगा, ऐसी मार मारेंगे, कोरोना की निकले लीद। ईद मुबार...
सन्नाटा फैला है
कविता

सन्नाटा फैला है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** महामारी खा गई साहित्य योद्धा, नजर आता यह कैसा झमेला है, अश्रु बहा रहा हैं आज जग सारा, साहित्य जगत में सन्नाटा फैला है। गीतों के राजा गये छोड़कर जग, कुंवर बेचैन नाम वो कहलाते थे, पढ़ते जिनका गम भरा काव्य तो, बस आंखों में आंसू आ जाते थे। गंगा प्रसाद विमल छोड़ गये जग, हादसे ने ले ली उनकी भी जान, रोहित सरदाना पत्रकार चल बसे, जिनकी विश्वभर में होती पहचान। नरेंद्र कोहली का निधन हो चुका, और गये जग से ही कलीम उर्फी, कुलवंत भी गये जगत को छोड़कर, कुमार विमल गये जो बने हैं सुर्खी। भगवती प्रसाद देवपुर चले गये हैं, राहत इंदौरी यूं चले गये मुख मोड़, कितने कवि लेखक चले गये अब, साहित्य जगत में अकेला ही छोड़। देते आज श्रद्धांजलि साहित्य को, या महामारी को देते हम ये दोष, कितने आंसू बह निकलते मन से , चले गये उनका हमको अफसोस। कहीं नजर उठाकर जब...
मजदूर हैं हम
कविता

मजदूर हैं हम

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मजदूर हैं, मजदूरी देना, बहुत दुख दर्द सहते हैं, दिनरात काम ही काम, मजदूर लोग यूं कहते हैं। तन पर कपड़े फटे हुए, खाने को नहीं दो रोटी, हाय गरीबी मजदूर की, कैसी किस्मत है खोटी। कई दिन भूखे प्यासे रहे, फिर नहीं मिलता काम, भूख प्यास मिटा लेते हैं, बस लेकर प्रभु का नाम। मजदूर की मजदूरी देख, आंखें भी हो जाएंगी नम, प्रभु की माया निराली है, कितना दिया उनको गम। धनवान के घरों में सदा, मजदूर करते हैं मजदूरी, अपने सगे संबंधियों से, बनाए रखते सदा ही दूरी। भूखे प्यासे उनके बच्चे, हाथ पसारने से डरते हैं, दवा अभाव में कभी तो, सड़कों किनारे मरते हैं। कोई ना सुने मजदूर की, गरीब बेचारे ये सारे है, प्रभु की नजरों में तो ये, आंखों के कहाते तारे हैं। कभी ना बनाना मजदूर, तरस खा कुछ भगवान्, इनका घर धन से भरो, जीने की बढ़ जाए शान। फटे हाल रहते मजद...
विपुरुषत्व की परिभाषा
कविता

विपुरुषत्व की परिभाषा

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बच्चे से जब जवान हो, बढ़ती है परिजन आशा, विकास में हो भागीदारी, ये पुरुषत्व की परिभाषा। पुरुषत्व वो गुण होता है, जो करता जनहित काम, हर क्षेत्र में जन नाम हो, जीवन बन जायेगा धाम। हर युग में हुये पुरुष वो, मिटा डाले जिन्हें संताप, धर्म कर्म की बेल फैली, उड़ ये पल में सारे पाप। एक से बढ़कर एक हुये, किसका यहां पे नाम लूं, किस गुण की चर्चा हो, हर मानव को पैगाम दूं। भगवान राम अवतार ले, राक्षसों को संहार किया, पुरुषत्व की दी परिभाषा, अमन का ये पैगाम दिया। भागीरथ का जन्म हुआ, लाया वो धरती पर गंगा, जीवन भर वो संघर्षमय, कर गया जन भला चंगा। श्रीकृष्ण अवतार लिया, पुरुषत्व का दिया पैगाम, पापी मिटा दिये पल में, धर्म कर्म का फैला नाम। देव आये हर युग में तो, पुरुषत्व का ले सिर भार, जुटे रहे काम में हरदम, मानी नहीं कभी भी हार।। पुरुषत्व की...
हार-जीत भूलकर
कविता

हार-जीत भूलकर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन में मिले हार जीत, बस दोनों से कर ले प्रीत, जिंदगी का कहते हैं गीत, दुख का बना अपना मीत। गीता में बस कहते कृष्ण, हार जीत को सम समझ, मेहनत से बस कर काम, होगा एक दिन तेरा नाम। हार का गले हार पहनो, जीत का कर लेना ध्यान, हार में कभी रोना नहीं हैं, कहाता है गीता का ज्ञान। हार-जीत सदा भूलकर, बस दे जगत को पैगाम, प्रीत रीत सबसे बड़ी है, बिगड़े बनाती सारे काम। हार देखकर जो रोता है, मिलता उसे नहीं किनारा, जीत देखकर सम रहता, प्रभु को लगता वो प्यारा। हार जीत को भूलकर जो, रखता है जो लक्ष्य ध्यान, वहीं मंजिल को पा जाता, कहलाता है वो जग महान। हार से मिलती एक सबक, जीत पर क्यों जन इतराये, हार में जो जन मुस्कुराता, वहीं एक दिन जग हँसाये। हारे नहीं जो जन हारकर, जीते ना जो जन जीतकर, काम से काम रखता है जो, बस उस नर से प्रीत कर। हार जीत को...
मैं बँधन में नहीं लिखता
कविता

मैं बँधन में नहीं लिखता

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** आदत होती है इंसान की, रहे दास या फिर आजाद, दास जीवन नरक समान, करता रहता वो फरियाद। बंधन में बंधकर लिखना, घुट घुटके मरने समान है, आजादी में जो रहता हो, वो जन जीवन महान है। 30 वर्ष से लिखता आया, सीधा सादा इंसान दिखता, रोब झाड़के कितने गये हैं, मैं बँधन को नहीं लिखता। बंधन में जीवन जो जिये, हो जाये जीना तब हराम, सारे जीवन ही अच्छे हो, बुरा होता है बंधन काम। बंधन में जीता था भारत, गुलाम कभी देश अपना, मन की बातें मन में रहे, आजादी बन गया सपना। वीर जांबाज लाख आये, तोड़ डाले गुलामी बंधन, अंग्रेजों के दांत किये खट्टे, अंग्रेज घबरा करते क्रंदन। खाना,पीना, हँसना, रोना, सबके सब हैं बंधन मुक्त, बंधन में एक बार बंधा, मस्तिष्क हो जाता रिक्त। पैदा होता इंसान आजाद, बंधन में बंधता दिन रात, लाखों बंधन बन जाते हैं, कभी उसको लगती लात। लिखने ...
मन में कोई दुविधा मत रखो
कविता

मन में कोई दुविधा मत रखो

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** हँसो, खेलो, कूदो, मुस्कुराओ, सुख दुख हरदम स्वाद चखो, दूसरों की सहायता कर देना, मन में कोई दुविधा मत रखो। काम करो सदा सोच समझ, वरना पड़ जाता है पछताना, जो रूठकर जाना चाहते हो, बस उन्हें प्यार से समझाना। राह चलना सदा हँसते गाते, देश विकास का एक तराना, आगे बढऩे की ललक रखो, एक दिन याद करेगा जमाना। पाप कर्म जो करता जगत में, हो जाता जन का जरूर नाश, आजादी मिली हमको प्यारी, बनकर नहीं रहना कभी दास। संसार में कुछ करने को आये, पाप कर्म में कभी नहीं गंवाये, दाता का निर्मित किया संसार, होठों पर ये खुशियां गुनगुनाये। सरस,रसधार मन में रखना है, पाप, नीच, अधम मत बनना, खुद भी बढ़ों औरों को बढ़ाए, बस दिल में ताना बाना बुनना। सिकंदर जैसे कितने ही आये, एक दिन उनका सूर्य भी अंत, बस चार दिनों की जिंदगी है, कह गये कितने ही साधु संत। मन में कोई भी...
सितारों से आगे …
कविता

सितारों से आगे …

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मचा हुआ जहां अति शोर भी है, रात कभी बीतती होती भोर भी है, पतंग जब उड़ती साथ डोर भी है, सितारों से आगे जहां और भी हैं। हिम्मत जिसमें होती आसमां तोड़े, निठल्ले उड़ाते रहते हैं कागजी घोड़े, इंसान वो जो काम से थकता थोड़े, देव वो है जो कष्ट में मुख ना मोड़े। झुक जाता है आसमान जो झुकाता, छुपता नहीं झूठ बेशक लाख छुपता, महान है जो हँसकर समय बीताता, राक्षसी लोगों से संत इज्जत बचाता। कभी अपनों पर भरोसा अधिक नहीं, चलते चलते मिल जाये प्रभु भी कहीं, दर्द होता है दिल से आंसू भी हैं बही, शुभ कर्म करते रहो मिलता दूध दही। हिम्मत जिसमें हो तो किनारा मिलता, पतझड़ जब गुजर जाये फूल खिलता, बिछुड़ा हो अगर एक दिन है मिलता, पवन के झोंके जब चले पर्वत हिलता। सांझ बीत जाये तब सवेरा भी आएगा, बल दिल में हो तो सुबह भी आयेगा, करने की तमन्ना हो तो, जरूर पाए...
नहीं हो तुम मगर
कविता

नहीं हो तुम मगर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कठिन बड़ी डगर, नहीं हो तुम सगर, बोल रहे हर- हर, नहीं हो तुम मगर। चले हैं हम सफर, लगता नहीं है डर, गये थे हम घर घर, नहीं हो तुम मगर। अकेले हमें चलना, घर छोड़ निकलना, प्रकृति होती सुंदर, प्रकृति में ही पलना। सांझ जरूर ढलती दिन फिर निकलता, कभी खुशियां मिले, कभी दिल मचलता। कौन साथ जग देता, क्यों दर्द व्यर्थ लेता, जिंदगी गुलगुनाइये, कहते आये हैं वेत्ता। कभी खुशी मिलती, कभी मिलते हैं गम, कभी दर्द सह- सह, आंखें हो जाती नम। प्राण बेशक जाते हैं, साहस नहीं छोडऩा, अपने भी पराये होते, पराये जन खोजना। जिंदा दिल इंसान को, सारा जगत ही पूजता, हिम्मत हारे जन को, कुछ भी नहीं सूझता। धन दौलत की चाह, जन को दे जाए दर्द, बिन पैसे के जीना है, कहलाता है वो मर्द। वक्त के साथ चलो, वक्त साथ देता रहे, वक्त को छोड़ देना, मृत्यु के सम कहे। आया जन जाएग...
अपने हिस्से की भूख
कविता

अपने हिस्से की भूख

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** परहित में जीना है बड़ा, हित में जाता गला सूख, दूसरे को नहीं दे सकता अपने हिस्से आई भूख। भूख सभी को लगती है, जिसने जन्म यहां लिया, पर भूख खत्म हो जाये, भलाई नामक रस पिया। कैसी विडंबना इस जग, शांत नहीं हो जन भूख, हड़प लेते हैं निर्धन का, उल्टे सीधे रखता रसूख। निज भूख जो कम माने, दूसरे की भूख माने अति, पुण्य कर्म में जीवन बीते, जग में हो उसकी सद्गति। गरीब को भूख लगती है, कोई पूछता नहीं है हाल, कितने निर्धन चले गये हैं, जग से काल के ही गाल। खाने की भूख नहीं लगे, धन दौलत पर यूं मरते हैं, अमीर लोग बात अजब, भोजन खाने से डरते हैं। भूख के रूप अनेकों होते, बिन भूख के मिलते कम, भूख देखते गरीब जन की, आँखें खुद हो जाती नम। नहीं मिट सकती इस जहां, भूख अजब निराली होती, कुछ को रोटी भूख सताये, कुछ को भूख हो हीरे मोती। नहीं बाट सकता कोई यहां...
नाजुक उम्र है तुम्हारी
कविता

नाजुक उम्र है तुम्हारी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सूरत मनमोहक प्यारी, आगे बढऩे की तैयारी, देवजन की राजदुलारी, नाजुक उम्र है तुम्हारी। सदा आगे यूं ही बढऩा, अच्छे से तुम यूं पढऩा, बस यही दुआ हमारी, नाजुक उम्र है तुम्हारी। पढ़ लिख आगे बढऩा, परहित के करना काम, आएगा एक दिन ऐसा, होगा पूरे जगत में नाम। मां बाप का करो नाम, जन कीमत एक छदाम, आनंद से घर में रहना, घर होता है सुंदर धाम। सुख दुख आए जीवन, डगमग जब करे नैया, उस प्रभु का रख याद, वो ही है जगत खेवैया। बिछुड़ जाए सारे साथी, यादें बन आती बाराती, बस आगे यूं ही बढऩा, चाहे ना हो घोड़े हाथी। सच की है राह कठिन, सुख नहीं दुख ही गिन, बनेगी तब जग पहचान, यूं बनना है तुम्हें महान। देंगे दगा जगत के लोग, पाप कर्म लगते हैं भोग, चुगली चाटा बुरे कहाते, कैंसर भांति होते ये रोग। जाना हो धरती से कभी, रो रोकर आंसू बहे सभी, ऐसा दिन जब भी आये, मान...
अधूरी कहानी
कविता

अधूरी कहानी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन है एक कहानी, सबने मानी जग जानी, दिल की दिल में रहे, जब करते हैं मनमानी, तमन्ना लेकर आते जन, हो ना पाती जब पूरी, इंसान चले जाते हैं, रह जाती अधूरी कहानी। एक बार की बात है, वृद्ध बता रहा खजाना, अंतिम घड़ी पास में, परिवार ने कहना माना, बताते-बताते साँस छूटी, रह गई अधूरी बात, मन की मन में रह गई, खजाना न लगा हाथ। मियां बीवी चले जा रहे, कार गति बढ़ाई थी, खुश होकर बातें करते, शादी खुशी मनाई थी, रास्ते में हो गई दुर्घटना, दोनों की हो गई मौत, दिल की दिल में रह गई, खामोश रह गये होठ। एक समय की बात है, राजा-रानी चले थे साथ, कहा राजा ने रानी से, बतलाऊंगा कल एक बात नींद में दोनो खो गये, छा गई अंधेरी काली रात, सुबह दोनों चिरनिद्रा में थे, रह गई अधूरी बात। वक्त समय पर काम हो, तब ना रहे अधूरी बात, नहीं पता किस मोड़ पर, हो जाती है मुलाकात...
प्रेम पथ
कविता

प्रेम पथ

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** प्रेम मार्ग अति कठिन, चलना होता मुश्किल, जब तक राह नहीं चले, लगती है झिलमिल, जब चल पड़ते राह पर, कठिन हो तिल तिल, खुशी और गम मिले, मंजिल जब जाये मिल। हीर-रांझा चले राह पर, अंतिम मौत ही पाई, सोहनी और महिवाल ने, प्रेम पथ ही निभाई, कभी-कभी इस मार्ग में, मिले बड़ी कठिनाई, कभी-कभी इस राह में, ,चलकर नाम कमाई। प्रेम पथ कांटों भरा होता, चलना संभल संभल, प्रेम पथ पर चलकर ही, प्रेमी दूर जाता निकल, प्रेम पथ एक दरिया हो, कितने हो चुके विफल, प्रेमी दर्द में चलते रहते, अंत में होते हैं सफल। प्रेम मार्ग पर जब चले थे, शीरी और फरियाद, प्रेम बात जब चलती है, उनको करते सब याद, प्रेमी युगल आगे बढ़ता नहीं करता वो फरियाद, प्रेम पथ पर सफल रहा, जग करता उनको याद। प्रेम पथ एक सागर है, कितनों ने नैया उतारा है, कुछ उतर गये कुछ डूबे, कितने जन पछताए हैं, कि...