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Tag: सूर्य कुमार

विश्वगुरु
कविता

विश्वगुरु

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** शर्म हुई बेशर्म लोक हुआ शर्मशार। लोक-लाज लज्जित हुई फिर भी इज़्ज़तदार। यही तो मर्म हमारा।। धर्म-सुख की चाह में हिन्द का बण्टाधार। बन गयी पहचान हमारी नफरत की झंकार। यही वसूल हमारा।। हमें भारत है प्यारा।। वैष्णवी हो गये राम जी, शंकर शैव समाज। टुकड़े-टुकड़े बांट रहे हैं, नेता ग़रीबनवाज़। यही है रीति हमारी और हम सब पर भारी।। यही सुकृत्य हमारा।। हमें भारत है प्यारा।। नफ़रत से नफ़रत मिटे और दंगे से दंगा। खुल कर करें सियासत अब होकर नंगम -नंगा। मणिपुर जैसे मुद्दों पर बन जाएं हम अंधा। सनातन धर्म हमारा हमें प्राणों से प्यारा। गाँधी थे अधनंगे हम होंगे पूरा नंगा। उनसे आगे जाना हमको, सब हो जाए चंगा।। यही है कर्म हमारा हमारा हिन्द है न्यारा। नैतिकता-मर्यादा का जब कोई करे उल्लंघन। नेता-नेता कहने ...
मैं भी कभी ज़ुबान थी
कविता

मैं भी कभी ज़ुबान थी

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं भी कभी ज़ुबान थी ज़बान की ज़ुबान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी सच बोलने को तरस गयी सच का कभी विधान थी उसूलों का मैं ही बयान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी क्या आज ये सब हो गया माया में मोह फँस गया छल-कपट में धँस गयी मैं मैं बेशक़ीमत गुमान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी हर यक़ीन की जान थी पुरखों की आन-बान थी अद्भुत ही मेरी शान थी गूँगों की मैं पहचान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी दिमाग़ की तरंग थी दिलों की मैं उमंग थी जज़्बों का मैं ही रंग थी जवानी की अनंग थी जिह्वा की भाषा थी ग़रीब की आशा थी नेताओं का सम्मान थी विश्वास और मान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी ज़बान मेरी मात थी वो ही सही सौग़ात थी इज़्ज़त उसी से थी मेरी उसकी भी इज़्ज़त मैं ही थी मैं भी कभी ज़ुबान थी इन्सान का ईमान थी मुझसे जुड़ा समाज था मुहब्बत का पैग़ाम थी मुझसे बदल...
झूठ की आकुलता
कविता

झूठ की आकुलता

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** ज़ुबान लड़खडाने लगी झूठ बड़बडाने लगा बहुत दिया तुम्हारा साथ अब तो छोडो मेरा हाथ आजिज़ आ गया हूँ थू-थू हो रही है चहूँ ओर मेरी भी तुम्हारे साथ अब छोड़ दो मेरा हाथ छोड़ दो मेरा हाथ तुम्हारी हो न हो पर मेरी तो सीमा है करने की बर्दाश्त तुम्हारी तो जायेगी किन्तु मेरी तो ख़त्म हो जायेगी साख अब छोड़ दो मेरा हाथ अब छोड़ दो मेरा साथ नही छोड़ोगे तो मैं छोड़ दूँगा चला जाऊँगा साथ सच के खोल दूँगा तुम्हारी सारी पोल-पट्टी बचा लूँगा अपनी साख तुम्हारी हो न हो किन्तु मेरी तो कुछ इज़्ज़त है मेरी सच्चाई तो जानते हैं सब करेंगे यक़ीन मुझ पर और मेरी हर बात पर यह धमकी मत समझना बख़्श दो मेरी गरिमा और छोड़ दो मेरा हाथ छोड़ दो मेरा साथ अब बहुत हो चुका बस बहुत हो चुका अब छोड दो मेरा...