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Tag: सूरज सिंह राजपूत

घी रोटी
कविता

घी रोटी

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** मां, मेरे हिस्से की क्या हुई ? क्या वह सच में बहुत अच्छी होती है ? स्कूल में, हर दिन कोई ना कोई लाता है घी रोटी ! मैं ..., मां मैं कभी क्यों नहीं ले जाता ? तुम तो हमेशा कहती हो .... कल ले जाना ! कल ... कल ये कल कब आएगा? अब तो, मां अब तो सब मुझे चिढ़ाते हैं ... प्याज रोटी ! मां, पापा कब लायेंगे? धी रोटी ! वो कहां गए? कब आयेंगे? कब लायेंगे? धी रोटी ! मुझे याद है पापा लाए थे ... बहोत पहले सब्जी और घी रोटी, पापा अपने हाथों से खिलाए थे ! अब इतने दिनों से नहीं आए, सब लोग बुरे हैं ... उनके शरीर घी मल दिया और न जानें कहां ले गए? पापा को कंधे पर झूला झुलाते ... मां, क्या पापा घी लेकर गए हैं लाने को रोटी? सब लोग खाए थे तब हमारे घर पूरी पकवान और दही भी ! अब कोई नहीं आता हमारे घर, मां, तब मैं तीसरी ...
तुम्हें बहुत लिखना है
कविता

तुम्हें बहुत लिखना है

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** तुम्हें बहुत लिखना है मुझे बहुतों को तुम्हें भुख से मरने वालों की संख्या मुझे कारण। तुम्हें बलात्कार का सरकारी आंकड़ा मुझे हर उच्चारण। तुम्हें मरते किसानों की संख्या मुझे निवारण। तुम्हारे लेख राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मेरे साधारण। परिचय : सूरज सिंह राजपूत निवासी : जमशेदपुर, झारखंड सम्प्रति : संपादक- राष्ट्रीय चेतना पत्रिका, मीडिया प्रभारी- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जमशेदपुर घोषणा : मैं सूरज सिंह राजपूत यह घोषित करता हूं कि यह मेरी मौलिक रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
भूख
कविता

भूख

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** मुझे बेशक गुनहगार लिखना साथ लिखना मेरे गुनाह, हक की रोटी छीनना। मैंने मांगा था, किंतु, मिला तो बस, अपमान, संदेश, उपदेश, उपहास, और बहुत कुछ। जिद भूख की थी, वह मरती मेरे मरने के बाद। इन, अपमानो, संदेशों, उपदेशो, उपहासो, से पेट न भरा, गुनाह न करता तो मर जाता मैं, मेरे भूख से पहले। मुझे बेशक गुनहगार लिखना लिखना, मैं गुनहगार था, या बना दिया गया। हो सके तो, लिखना, उस कलम की, मक्कारी, असंवेदना, चाटुकारिता, जिसकी नजर पड़ी थी, मुझ पर मेरे गुनाहगार बनने से पहले लेकिन, उसने लिखा मुझे, गुनहगार बनने के बाद। परिचय : सूरज सिंह राजपूत निवासी : जमशेदपुर, झारखंड सम्प्रति : संपादक- राष्ट्रीय चेतना पत्रिका, मीडिया प्रभारी- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जमशेदपुर घोषणा : मैं सूरज सिंह राजपूत यह घोषित करता हूं...