घी रोटी
सूरज सिंह राजपूत
जमशेदपुर, झारखंड
********************
मां, मेरे हिस्से की क्या हुई ?
क्या वह सच में बहुत अच्छी होती है ?
स्कूल में,
हर दिन कोई ना कोई लाता है
घी रोटी !
मैं ...,
मां मैं कभी क्यों नहीं ले जाता ?
तुम तो हमेशा कहती हो .... कल ले जाना !
कल ... कल
ये कल कब आएगा?
अब तो,
मां अब तो सब मुझे चिढ़ाते हैं ... प्याज रोटी !
मां,
पापा कब लायेंगे?
धी रोटी !
वो कहां गए?
कब आयेंगे?
कब लायेंगे?
धी रोटी !
मुझे याद है
पापा लाए थे ...
बहोत पहले
सब्जी और घी रोटी,
पापा अपने हाथों से खिलाए थे !
अब इतने दिनों से नहीं आए,
सब लोग बुरे हैं ...
उनके शरीर घी मल दिया
और न जानें कहां ले गए?
पापा को कंधे पर झूला झुलाते ...
मां,
क्या पापा
घी लेकर गए हैं
लाने को रोटी?
सब लोग खाए थे
तब हमारे घर
पूरी पकवान और दही भी !
अब कोई नहीं आता हमारे घर,
मां, तब मैं तीसरी ...