हर श्वांश गरजे सम सिंह
सुरेश चंद्र भंडारी
धार म.प्र.
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ओ भगवाधारी, है कहाँ तुम्हारी हुंकारें,
हिंदुत्व कहाँ, हैं कहाँ गतुम्हारी तलवारें।
सिहासन सौंपा था कि कुछ बदलाव मिले,
अफसोस सदा, हमको घावों पर घाव मिले।
विधर्मीयो से लड़ते हुवे गुर्राए झल्लाये थे,
हिन्दू सलामत रहे, योगी मोदी चिल्लाए थे।
हिन्दू हितेषी हो, सपना हमने दिन में देखा था,
आज़म अखिलेश को सत्ता से बाहर निकाला था।
शिव गणपति की यात्रा पर, नित नए हुड़दंग,
हिन्दू इस सरकार में, रहता है हरदम तंग।
आँखे बंद, विश्वाश हम उनका करने लगे,
पुण्य धरा, प्रतिबंधित तिरंगा, अब तो जागे।
दिन के उजाले में, कमलेश का संहार किया,
भरोसा जितने में, अहो, कैसा उपहार दिया।
हत्या नहीं, धब्बा है हमारी हिन्दू अस्मिता पर,
जय श्रीराम, उद्घोष जड़वत, मौन आत्मा पर।
दम्भ भरने वाले, स्वयंभू रक्षक, आज है मौन ,
तुम्हारे रहते, कलंकित कर्म, करने वाले है ये कौन ।
कहते है...