Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: सुभाष बालकृष्ण सप्रे

किराये का जब था मकान
कविता

किराये का जब था मकान

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** किराये का जब था मकान, बदल-बदल कर, आती थकान, कामों में ही उलझ कर रह गये, घर न बना सके ऐसे वो नादान, खुशबू भरे मौसम कई आये गये, बहारों में भी, मन रहता, बेजान, ठिकाने ओरों के देख होते मायूस, अपने घर का सपना, न था आसान, बैंक ने जब हमें दी, कर्ज की सौगात, दिला दी घर ने समाज में नई पहचान परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टे...
राष्ट्र का मान
कविता

राष्ट्र का मान

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी है हमारे, राष्ट्र का मान, जग मेँ मिला है इसे सम्मान, गति इसकी कभी न रुक सकी, इसकी प्रगती का हमेँ अभिमान, बहुत दम्भ था आंग्ल भाषा को, हिंदी को मिल गया तीसरा स्थान, नहीँ वो दिन, अब अधिक दूर, हिंदी को मिलेगा सर्वोच्च स्थान, मृग मरीचिका है, विदेशी भाषा, रक्खो सदा तुम, इसका ध्यान, नासा मानता इस शक्ती का लोहा, होना चाहिये सबको इसका भान, सँगणक की अब भाषा,होगी हिंदी, गर्व से करो, इसका मान सम्मान करनी है शुरुवात नये पहल की, गर्व से गाओ हिंदी के सब गान परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक ...
व्यंग की धार पर
हास्य

व्यंग की धार पर

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** व्यंग की धार पर, नेताजी हुये नाराज़, ऊधम करने हेतु, मिला चमचोँ को काज़, मिला चमचोँ को काज़, चली न एक उनकी, बडे नेता ने भी दी उनको प्यारी सी घुडकी, कैसे नेता हो व्यंग, समझ न आये तुमको, ज़ब वोट लेने ज़ाओगे, समझेगी ज़नता तुमको, राजनीति मेँ आये हो तो, बांधो गाँठ रुमाल विरोधी तो बात बात मेँ खीचेंगे तुम्हारी खाल, देश सेवा का अभी से, ओढ लो एक दुशाला, न ज़ाने कब आड बन, ये बने सुरक्षा का पाला परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्त...
रिश्तों की दीवार…
कविता

रिश्तों की दीवार…

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** संभाल न सके जो रिश्तों की दीवार, बेदर्दी से अपनों को कर दिया, किनार, देखते-देखते ये साल भी बीता जा रहा, उनकी यादों से सजा रखा, मैने घर द्वार, तस्वीर से तेरी नज़रें कभी हटा नहीं पाते, जन्म दिवस पर, आपको कैसे देंगे पुष्प हार, हम लोग वक्त, फिज़ूल कभी, जाया न करते, सपने, हमने भी देखें थे, भविष्य के, बेशुमार, कभी-कभी सालता है ये तनहाई का आलम, चंद सांसों का जीवन भी न मिल सका, उधार परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लो...
काश मेरा भी एक …
कविता

काश मेरा भी एक …

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** काश मेरा भी एक घर होता, इस छांह में, मेरा सर होता, राह में भटकनें पर भी, यहां, मेरा भी यार एक, दर होता, मायूस थे दुश्वारियों, से हम, अदावट का फिर, ड़र होता, इल्म की राह, कभी चले नहीं, सफे पर हमारा, अक्षर होता, देखी, दुनिया की खुशनसीबी, काश, अपना भी मुकद्दर होता, जेहन में है गजब का जज़्बा, काश, जोश का, समंदर होता" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुय...
सुनाइ नहीं देता अब
कविता

सुनाइ नहीं देता अब

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "सुनाइ नहीं देता अब, कहीं सगीत का आलाप, लोगों की प्रतिभा भी, न दिखाती, कोई प्रताप, खुलते नहीं रोज की तरह, आज घरों के दरवाजे, जनमानस के चेहरों से, झांक रहा है, शोक संताप, नगर के रास्तों पर हंसती, खेलती थी, जो जिंदगी, बागानों में पेडो की छाव तले होता था प्रेमालाप, दीमक की तेरह खोखली, हो गईं जब, सब आशायें, मूक दर्शक बन गये हम, दूर से सुनते, रुदन, प्रलाप, जब अच्छा समय न रहा, तो ये समय भी न रहेगा, परमेश्वर की असीम कृपा से दूर होगा ये अभिशाप" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
एक स्पर्श
कविता

एक स्पर्श

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "मेरे गालों पर जब हुआ एक स्पर्श, जान गया, किसने किया, ये स्पर्श, मां की यादे, हृदय में सन्जोये, बैठे, मन में, होता है, मुझे फिर अपार, हर्ष, आशीश उनका, शीश पर सदा बना रहे, जीवन में, तभी, होता रहेगा, उत्कर्ष, ज़ब किसी परेशानी से, मैं, त्रस्त रहता, मां, देती रहती, अपना अमूल्य परामर्श, हिम्मत हार के, न कर पाता, कोई काम, मां की हौसला अफजाही से, पाता उत्कर्ष" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गी...
आज झंझावात
कविता

आज झंझावात

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "ये कैसी चल पडी, खबरों से, मन पर होता है, आघात, बन्द, घरों में हो गये हैं, अब सारे लोग, लगता जैसे महीनों से न हुई हो बात, तडफ रही जिंदगी, प्राण वायू के लिये, कैसे बचायें हम, अपनों के हृदयाघात, किसने कहा कि ये अंधेरा छ्टेगा नहीं, सुनहरी किरणो से होगा कल सुप्रभात, मायूसी के बादल तो अब लगे हैं छटने, नई कोपलों ने लाई, खुशियों की सौगात" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित...
सकारात्मक
मुक्तक

सकारात्मक

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "सकारात्मक खबरों की तू बात कर, हौसलों को, बढाने की, तू बात कर, बांट सके दर्द को, कुछ काम, कर ऐसा, आसूंओं को पोछने की ही तू बात कर." "लोग करते न कभी हमसे आंखे चार, पंछी भी नहीं करते अब हमसे दुलार, खुरदरी काया बन गई पहचान हमारी, मीठे फलों की सौगात, हम देते हजार." परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निवृत्त अधिकारी निवासी...
पृथ्वी दिवस
कविता

पृथ्वी दिवस

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "लोग अक्सर करते हैं जिक्र हमारा, देखते नहीं क्या हो रहा है, हश्र हनारा, जल जंगल जमीन का बिखर रहा नाता, मायूसी के आलम में टूट रहा, सब्र हमारा, जहां, लहलहाते थे, मीलों हरे भरे, जंगल, कुल्हाडी के घावों से रिस रहा लहू हमारा, चीख-चीख कर आगाह कर रहे कई लोग, मतिभ्रम से हो रहा पल पल विनाश हमारा, अनियंत्रित हो रहे हैं, सारे दुनिया, में मौसम, बढती उष्मा से पिघल रहा ग्लेशीयर हमारा, प्रकृति हमेशा देती, इस बात की पूर्व चेतावनी, समय रहते ही जाग कर, बचा लो संसार हमारा." परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन...
वक्त का ये दौर
कविता

वक्त का ये दौर

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का ये दौर भी गुजर जायेगा, बारिशों का मौसम, फिर आयेगा, गर, महफूज़ रहे, अपने घर में हम, खुशियों की, सौगात, फिर लायेगा, मायूसी को दर किनार कर ए दोस्त, फिज़ा की रौनक, को, लौटा लायेगा, न रहो आप किसी भी कशमकश में, जहां, ये फिर जिन्दादिल ही कहलायेगा, फिक्र न कर तू, बेबुनियाद खबरों की, कल का सूरज, फूलों की खुशबू लायेगा परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति...
प्यार की ठंडी फुहार
कविता

प्यार की ठंडी फुहार

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार में, जब होता है, इंतजार, खुशियों के, गुब्बारे ऊडते हजार, दिन रात चैन कभी पडता नहीं, सफर भी, ये लगता है, फिर बेजार, कभी न की हमनें उनसे बदज़ुबानी, जाने, किस बात की, है उन्हें तकरार, बारिशों में जब भीग गई सारी कायनात, हमनें, फिर मोहब्बत का, किया इज़हार, दिलवर की, नज़र-ए-इनायत, क्या हुई, तन्हा दिल पर पडी, प्यार की ठंडी फुहार परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये ह...
कभी बारिश की नमी थी
कविता

कभी बारिश की नमी थी

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** धरा पर कभी बारिश की नमी थी, वन विकास की गति अब थमी थी, शहरीकरण ने उजाडे आवास हमारे, पेडो के आशियाने हमारी सर जमी थी, गर्मी से निजात दिलाता, न है अब कोई, सर छ्पाने सघन छाया की, बेहद कमी थी, दाने-दाने को तलाशना, मज़बूरी है, हमारी, पानी के बिना हलक में, बची न नमी थी, याद आते हैं, जंगल के, वो हरे भरे, नज़ारे, क्या यही, वो, हमारी सस्य श्यामला जमीं थी. परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन...
नया साल नया ज़माना
कविता

नया साल नया ज़माना

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नये साल का आ गया नया ज़माना, विगत साल पर, आँसू, नहीँ बहाना, अनुभव अनेक मिले होंगे, तुम्हेँ, जीवन मेँ उन्हेँ कभी न भूल, ज़ाना, दिन तो आते रहते, हैँ, झन्झावातोँ के, दिल मज़बूत कर, कभी न घबराना, जिंदगी मेँ ज़ब आयेँ, खुशियोँ के दिन, दोस्तोँ के संग, मस्ती मेँ खिलखिलाना, मुफलिसी के दौर, गुजर रहे, लोगोँ संग, कुछ अमुल्य क्षण भी, ज़रूर बिताना, साल तो क्या आयेंगेँ और चले जायेंगेँ, सभी लोगोँ के संग, सरलता से पेश आना . परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रका...
चार दिन की
कविता

चार दिन की

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** चार दिन की जिंदगी, तू अधिक न ज़ोड, झूठे हैँ नाते रिश्ते, इन्हेँ जल्दी से छोड, रास्ते तो हैँ कठिन, आयेंगे इसमेँ कई मोड, चट्टानेँ हैँ तेरे रास्ते, इन्हेँ जल्दी से फोड, हर कदम हैँ, दुश्मन, बाहेँ तू इनकी म्ररोड, तेज़ रफ्तार है, जिंदगी, लगानी पडेगी तुझे, होड, ये दौड धूप रहेगी, सदा, खोफ से तू, मुँह न मोड. . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भ...
नदी सा
कविता

नदी सा

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नदी सा बने रहो प्रवाहमान, छुये न तुम्हेँ, कभी अभिमान, शिथिल न हो, तुम्हारी राह, संसार मेँ तभी, बढेगा मान, समस्यायेँ तो ज़ब तब होंगीँ, मुदित मन से होगा समाधान, सहकार्य करना होता है, कठिन, सेवा भाव से ही होगा उत्थान, सहज़ न, गौरव, मिलता कभी, सत्कार्य, बनेगा, तुम्हारी पहचान . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निव...
गर्वोक्ति
कविता

गर्वोक्ति

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** गर्वोक्ति है नही, कोई उचित उक्ति. हो सके तो पा लेँ इससे शीघ्र ही मुक्ति, इसके गर्भ मेँ छिपे हैँ, कमजोर आधार, ढह जायेँगे कभी भी, ये होकर निराधार, इससे ही निकलते हेँ, ऐसे अप्रिय उदगार, सुनने वाले के दिल को करते हेँ तार तार, इतिहास की गहराईयोँ मे हेँ अनेक प्रसँग, गर्वोक्ति का होता है, हमेशा सिरे से मोहभँग, समय रहते सुविचारोँ की बना लेँ, अभेध्य ढाल, ज़ो भेद दे मन के, गर्वोक्ति के सारे मकड्जाल . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत...
आज़ गुलिस्ताँ मेँ
गीत

आज़ गुलिस्ताँ मेँ

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** आज़ गुलिस्ताँ मेँ, सुंदर पुष्पहार देखा, प्रकृति का मनोरम सा उपहार देखा, वन श्री सँपन्न है, विविध फलोँ से वन प्रांतर के जीवोँ का, आहार देखा, भागते हैँ, मैदानोँ मेँ, निर्भय वन्य जीव, घास मेँ छिपे, बाघ का, प्रहार देखा, सदियोँ से बसे थे, ज़ो आदिवासी ज़न, उजडते जंगलोँ मेँ, उन्हेँ निराहार देखा, गरज़ परस्त बनी इस दुनिया मेँ, दोस्त, हर दिन इंसान का बदलता व्यवहार देखा . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस...
वसंत
कविता

वसंत

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** खिल उठा है बसँत, फूल उठी है अमराई, खुशगवार मौसम नेँ, जीने की उम्मीद, जगाई, वन प्राँतरोँ मेँ खिला,टेसू, और सेमल जैसे कहीँ पर, आग किसी ने है,लगाई, होली के सप्त रँगो ने, रिश्तोँ मेँ, गरमाहट की, नई अलख है जगाई, बजते ढोल, उडता गुलाल, रँगीन पानी की बोछारेँ, सबके नज़र मेँ हैँ, आईँ, हसतेँ चेहरोँ के बीच, फिर, भाँग की मस्ती है छाई, ज़माने भर के दुखडोँ से, एक दिन के लिये ही सही, ह्मेँ पूर्ण मुक्ती दिलाई . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्...
अफसोस
व्यंग्य

अफसोस

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नेताजी गहन वार्तालाप मेँ व्यस्त थे, तभी उन के व्यक्तिगत सहायक ने उन्हे याद दिलाया कि उन्हे एक  सार्वजनिक कार्यक्रम मेँ  वनो की मह्त्ता व उनके समग्र विकास पर एक परिचर्या के लिये जाना है नेताजी परिचर्या मेँ पहुंचे व उनकी बारी आने पर, वनोँ  के विनाश, वन महोत्सव की उपयोगिता पर अपने विचार रखे। भारत मेँ लगातार हो रहे औद्योगिक विकास की भेँट चढ रहे वनो के विनाश, आदिवासियोँ के पलायन, दुर्दशा पर उनका भाषण इतना ओजस्वी एवँ भावना पूर्ण था कि लग रहा था कि वे अब रोये कि तब रोये उनका दावा था कि यदि उचित माध्यम से तथा सभी के सहयोग से अगर वनोँ  के विनाश को रोकने, वनो मेँ अनवरत पौधा रोपण करने, उनकी निरँतर देखभाल करने, तथा वनोँ की सुरक्षा के बारे मेँ समग्र प्रयास कि जायेँ तो वनोँ की घटती सँख्या पर काबू पाया जा सकता है उनहोंने जनता से अपील की अपने घर क...
आज समाज मे
कविता

आज समाज मे

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** समांत:- है पदांत:- आव ‘आज समाज मेँ एक दिखता है, प्रभाव, धर्म कर्म मेँ लोगोँ का दिखता है, भाव, धर्म निरपेक्ष की रीत, को हम मानते, और व्यवहार मेँ भी दिखाते है, सदभाव, साथ रहते हुये, पीढियाँ कई गुजर गईँ, छोटी छोटी बातोँ पर, न दिखाते हैँ, ताव, शातीँ प्रिय हैँ हम, बात सभी ये जानते, हर सँकट मेँ सेवा का दिखाते हैँ, स्वभाव, दुष प्रचार करने का काम करते, कुछ, लोग, हमारे आपसी स्नेह से, नही होता, दुष्प्रभाव.” . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत...
सुप्रभात
कविता

सुप्रभात

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** ”निशा के गर्भ से हो गया है, आज़ सुप्रभात का श्रीगणेश, भास्कर की किरणोँ से, नहीँ अब, अँधकार का अवशेष, पँछीयोँ के मधुर गान से, गुँजायमान है, सारा परिवेश, प्राणियोँ मेँ स्फूर्त हुआ, ऊर्जा का नवीनतम, समावेश, भजन गातीँ प्रभात फेरीयाँ, देती ह्मेँ यह सुखद सँदेश, जागो ऊठो, दूर करो, तनमन से आलस का, शेष, बागोँ, खेतोँ मेँ बिखरी है, बसँत की नव बहार, नये कार्योँ का श्री गणेश करो, नव शक्ती की है, यही पुकार, देवी सरस्वती का ध्यान करेँ, पायेँ उनसे सदबुद्धी का उपहार." . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
राम
गीत

राम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. “कलियुग मेँ त्राता हैँ राम, सबके विधाता भी हैँ, राम, न पाओगे उन्हेँ मंदिर मेँ, हृदय तल मेँ बसे हैँ राम, जीवन की आपा धापी मेँ, एक सुगंधित बयार हैँ,राम, समझो, सभी, ये सत्य है, कि, नर भूपाल नहीँ हैँ, राम, पृथ्वी आकाश पाताल मेँ, अनादी और अनंत हैँ राम, पाप की गठरी, को भूलकर, भवसागर पार कराते हैँ, राम लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैं...
उठालो कलम
गीत

उठालो कलम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. समांत :- आ पदांत :- गया है “उठालो कलम समय ये कैसा आ गया है, हर शहर मेँ मानव भय से घबरा गया है, चहकतीँ थीँ चिडियाँ, जिन घरोंदे मेँ, अब तक, वहाँ पर शमशान का सन्नाटा छा गया है, जिन बडी ऊम्मीदोँ से बनाये थे हमने घरोंदे, बरसोँ से कोई वहाँ, झाकने भी नहीँ गया है, जिस माँ से घंटोँ होती थी, बच्चोँ की बातचीत, दो मिनिट बात के लिये, कोई, तरसा गया है, छिटक दो सारे दुख, अपना कर किसी गैर को, ईश्वर पर अटूट विश्वास का समय आ गया है.”   लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संक...
लोग कर रहे ऐसे काम
कविता

लोग कर रहे ऐसे काम

********** सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. "आज़ कुछ लोग कर रहे ,ऐसे काम, हो रहा है जहाँ मेँ,देश मेरा बदनाम, खबरचियोँ की,ज़ब गल न रही,दाल, चीख चीख कर गला हो रहा है जाम, हालत-ए-मुल्क पर त्रास उन्हे न कोई , निकाल रहे वो सिर्फ राजनैतिक भडास, निस्पक्ष पत्रकारिता तो है एक मुखोटा,, पालते मन मेँ हैँ,वो मलाई की आस, दिन हवा हुये ज़ब,सफर,हवाई होता था, हुक्म्ररानोँ के साथ,लवाज़मा भी होता था, यात्रा कितनी होती,देश हित मेँ,नहीँ पता, गरीबी की आड मेँ,जश्न अमीरी का होता था.”   लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाश...