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कर्मों का बहीखाता
कविता

कर्मों का बहीखाता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सब जानते हैं जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल पायेंगे गीता का यही ज्ञान, है जीवन का विज्ञान। कौरव पांडव का उदाहरण सामने है रावण विभीषण, सुग्रीव बाली के बारे में हम सब जानते हैं कंस का भी ध्यान है या भूल गए। सबका बहीखाता चित्रगुप्त जी ने सहेजा, किसी को राजा तो किसी को प्रजा तो किसी रंक बनाकर भेजा अमीर गरीब का खेल भी मानव का नहीं कर्मानुसार उसके बहीखातों का खेल है। यह और बात है कि हमें अपने पूर्व जन्म या जन्मों का ज्ञान नहीं होता, इसीलिए अपने कर्मों का भी हमें पता नहीं होता। और हम सब इस जन्म के साथ ही पूर्वजन्मों के कर्मों का फल पाते हैं। क्योंकि हमारे कर्मों का बही खाता निरंतर भरता रहता है, उसी के अनुसार कर्म फल का निर्धारण होता है और हमें अच्छा बुरा कर्म फल मिलता है। वर्...
कहाँ है आजादी
हास्य

कहाँ है आजादी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये कैसी आज़ादी है? जहां हमें तो कोई आज़ादी ही नहीं है, कदम-कदम पर अंकुश है नियमों की बंदिशें, कानूनों का डर है अपराध, हिंसा की न छूट है साम्प्रदायिक दंगा फैलाने की भी कहाँ आज़ादी है? लूटमार, हत्या, बलात्कार की बात क्या करें भ्रष्टाचार, बेईमानी और धोखाधड़ी की भी तो तनिक न छूट है। सब कहते हैं देश शहीदों की शहादत से मिला है, तो भला इसमें मेरा क्या दोष है? उन्हें शहीद होने का कीड़ा कुलबुलाया था पर शहीद होकर भला क्या पाया था, कौन याद करता है आज उन्हें ईमानदारी से कोई तो बताए हमें। वे सब सिर्फ़ औपचारिकता वश ही याद किए जाते, बहुत हुआ तो पुतला बनाकर खड़े कर दिए जाते हैं सौ दो सो मीटर जगह घेरने के अलावा सिर्फ धूल-धक्कड़ से नहाते हैं , जाड़ा, गर्मी, बरसात सहकर हर समय तने रहते हैं, हमें लगता वे अभी तक श...
मधुब्रत गुंजन : एक अनूठा उपहार
समीक्षा

मधुब्रत गुंजन : एक अनूठा उपहार

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव (गोण्डा, उ.प्र.) वरिष्ठ शिक्षक/कवि/संपादक/छंद प्रणेता डॉ. ओम प्रकाश मिश्र 'मधुब्रत'जी के काव्य संग्रह "मधुब्रत गुंजन" का प्रारंभ ही कवि के परिचय के बाद उनकी "साहित्य के प्रति अनुराग एवं लेखन की प्रेरणा...." में उनके साहित्य के प्रति अनुराग आरंभ, रचनाएं, सम्मान एवं पुरस्कार, शैक्षणिक सम्मान और पुरस्कार, रचनाओं के प्रकाशन, संप्रति एवं शैक्षणिक कार्य स्थल के बारे में विस्तार से लिखा गया। इसके प्रारंभ में ही डॉ. मधुब्रत के साहित्य के प्रति बढ़ते अनुराग, उन्हें प्राप्त होने वाले सानिध्य, प्रोत्साहन और वरिष्ठ, श्रेष्ठ रचनाकारों को पढ़ने और उसमें रहने का पता चलता है। प्रसाद,पंत, निराला, महादेवी वर्मा, दिनकर, डॉ. राम कुमार वर्मा, राम नरेश त्रिपाठी, हरिवंशराय बच्चन, प्रोफेसर क्षेम के साहित्य से प्र...
देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय – चंदन माटी मातृभूमि की
पुस्तक समीक्षा

देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय – चंदन माटी मातृभूमि की

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक- सुधीर श्रीवास्तव वरिष्ठ कवि डॉ. रवीन्द्र वर्मा जी की पुस्तक "चंदन माटी मातृभूमि की" कुछ माह पूर्व ही मुझे प्राप्त हो गई थी। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से कुछ लिखने का विचार आगे बढ़ता रहा। अब जब नवोदय परिवार ने यह अवसर उपलब्ध कराया, तो थोड़ा विवश हो गया। जो अच्छा ही है कि एक विचार को अब साकार करने का समय आ ही गया। देशप्रेम और देशभक्ति रचनाओं का १७७ पृष्ठीय १०८ रचनाओं वाले काव्य संग्रह "चंदन माटी मातृभूमि की" को रचनाकार ने "अपने भारत राष्ट्र को समर्पित सभी बलिदानियों, देशधर्म व स्वतंत्रता को लड़े वीर क्रांतिकारियों, इस देश की अखंडता व स्वाभिमान के लिए जीवन समर्पित करने वाले सभी महान पुरुषों को श्रद्धावनत नमन करते हुए समर्पित किया है। विद्या वाचस्पति मानद उपाधि प्राप्त रवीन्द्र वर्मा के इस पुस्तक की भूमिका म...
भावों की पोटली है : पोटली …एहसासों की
पुस्तक समीक्षा

भावों की पोटली है : पोटली …एहसासों की

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव पिछले दिनों जब अनुजा भारती यादव 'मेधा' का एकल कविता संग्रह "पोटली ...एहसासों की" स्नेह स्वरुप प्राप्त हुई थी, तो बतौर कलमकार से अधिक अग्रज के तौर पर मुझे अतीव प्रसन्नता का बोध हुआ था, तब मन के कोने में यह जिज्ञासा, उत्सुकता अब तक बनी रही कि मुझे कुछ तो अपने विचार व्यक्त करने ही चाहिए। वैसे भी काफी समय से भारती से आभासी संवाद और आभासी मंचों, पत्र पत्रिकाओं में पढ़ने सुनने का अवसर जब-तब मिल ही जाता है। सबसे अधिक प्रसन्नता तब हुई, जबसे यह ज्ञात हुआ कि मेधा के पिता (श्री राम मणि यादव जी) स्वयं एक वरिष्ठ कवि साहित्यकार हैं। तब से लेकर अब तक उनका स्नेह आशीर्वाद मिलता रहने के साथ संवाद भी जब तब हो ही जाता है। गद्य, पद्य दोनों विधाओं में सतत् सृजनशील संवेदनशील मेधा पारिवारिक दायित्...
संघर्ष
लघुकथा

संघर्ष

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य के अभाव में उपजी परिस्थितियों के चलते लीला को अपनी बच्ची के लिए घर छोड़कर निकलना पड़ा। बच्ची को साथ लेकर वह अपनी एक सहेली रमा के घर पहुंची, और अपनी पीड़ा कहते हुए रो पड़ी। रमा ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि जब तक उसके रहने का प्रबंध नहीं हो जाता तब तक वह यहीं रहे। उसने पति से कहा कि लीला के लिए काम का प्रयास करें। कई दिनों के प्रयासों के बाद रमा के पति के माध्यम से लीला को काम तो मिल गया। पति से बात करके रमा ने लीला को अपने ही घर में एक कमरा रहने के लिए दे दिया। लीला की बच्ची छोटी थी, इसलिए उसने ना नुकूर भी नहीं किया। वैसे भी अभी उसके हाथ में इतने पैसे भी नहीं है कि वो कहीं अलग कमरा लेकर रह सके। शुरुआती संघर्ष के बाद पढ़ी लिखी लीला के काम से उसके मालिक इतना प्रसन्न थे कि उसकी...
रिश्तों के जज्बात
कविता

रिश्तों के जज्बात

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी होता है या नहीं पर मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है, आपको विश्वास हो या न हो क्या फर्क पड़ता है। आखिर ये कैसा रिश्ता है किस जन्म का संबंध है, संबंध है भी या नहीं ये मैं कह भी नहीं सकता। क्योंकि पूर्वजन्म के रिश्तों का मैं न हूं कोई ज्ञाता। पर आज रिश्ता है हमारा उससे जिसे देखा तक नहीं तो जान पहचान का तो प्रश्न ही नहीं। फिर भी वो जानी पहचानी लगती है इतनी छोटी होकर भी नानी दादी सी लगती है। वो चाहे जितनी दूर है हम आमने सामने मिलेंगे या नहीं ये तो कहना मुश्किल है। पर वो आसपास है घर के आंगन में फुदकती लगती है, हंसाती और रुलाती है, बेवजह सिर खाती है। अपने छोटे होने का लाभ उठाने का मौका भी वो कहाँ छोड़ती है, अपने अधिकारों का जी भरकर प्रयोग करती है। हमसे अपने रिश्ते बताती है जाने क...
ईश्वरीय विधान
संस्मरण

ईश्वरीय विधान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  साहित्यिक क्षेत्र में ज्यों-ज्यों मेरे कदम बढ़ते जा रहे हैं, संबंधों का दायरा भी उतना ही बढ़ता जा रहा है। जिसके अनेक बहाने भी होते हैं। जिसे अप्रत्याशित तो नहीं कहूँगा। क्योंकि साहित्यिक यात्रा में ऐसा होता ही रहता है। कभी हम किसी अंजान शख्स से आभासी माध्यम से बातचीत करते हैं, तो कभी किसी ऐसे ही अंजान शख्स का फोन आ ही जाता है। यूँ तो अपने-अपने क्षेत्र के लोगों से कभी न कभी पहली बार ये सिलसिला शुरू ही होता है, यह और बात है, जो आगे भी जारी रहता है और बहुत बार नहीं भी रह पाता। इसकी भी अपनी पृष्ठभूमि, कारण और परिस्थितियां होती है। ऐसा ही कुछ १० मई' २०२४ को पड़ोसी राज्य की राजधानी से एक उच्च शिक्षित युवा कवयित्री से पहली बार साहित्य की एक विधा के बारे जानकारी के उद्देश्य से आभासी संवाद हुआ। सामान्य शिष्टाचार...
पूर्वजन्म का नव अनुबंध
कविता

पूर्वजन्म का नव अनुबंध

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी हो सकता है बिल्कुल हो सकता है और यकीनन होता ही है। हमें खुद इसका अहसास भी होता है जीवन का कोई भी पहर हो जाति, धर्म, उम्र या लिंग कुछ हो बोध करा ही देता है हमें पूर्वजन्म के आत्मिक संबंधों का और जगा देता है भाव उसके साथ रिश्तों का। जाने कितने जन्मों बाद जोड़ देता है हमें उससे जिसे हम आप जानते पहचानते तक नहीं कभी मिले तक नहीं, शायद मिलेंगे भी नहीं न नाम का पता, न शक्ल सूरत का कोई चित्र न दूर दर तक कोई रिश्ता, न कोई संपर्क- संबंध। फिर भी अपनत्व का भाव अंकुरित हो जाता है और बन जाता है एक रिश्ता जिसे हम आप निभाते हैं बड़ी शिद्दत से और अटूट विश्वास करने लगते हैं पिछले किसी जन्म के रिश्ते से जोड़ संपूर्ण विश्वास के साथ निभाने लगी जाते हैं इस जन्म में भी पूर्व जन्म की तरह ...
मृत्यु मेरी दोस्त
कविता

मृत्यु मेरी दोस्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे मृत्यु! तू इतना इतराती क्यों है? आखिर बेवकूफ बनाती क्यों है? आ जाने की धमकी देकर डराती क्यों है? तेरा सच मुझे पता है तुझे आना नहीं होता है तू तो हरदम सिर पर सवार रहती है सिर्फ डराती, धमकाती है पर अफसोस खुद बड़ी असमंजस में रहती है। तो सुन तू इतना हैरान परेशान न हो तू स्वतंत्र है जो करना है कर आने की धमकी देकर मुझे मत डरा तुझे अब, कहां आना है तू तो हमारे जन्म के साथ ही सुषुप्तावस्था में हमारे आसपास ही है बड़े असमंजस में समय काट रही है। उहापोह से बाहर निकल जो करना है खुशी मन से कर अपना कर्तव्य पूरा कर और खुश रहा करो मैं तुझसे डरता नहीं हूं, इसलिए बेवजह समय जाया न कर, डरने का कोई कारण भी तो नहीं है। आखिर मुझे जाना तो तेरे ही साथ है फिर भला मुझसे डरने का मतलब ही क्या है? अच्छा है जब त...
आभासी रिश्तों की उपलब्धि
संस्मरण

आभासी रिश्तों की उपलब्धि

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  २४ अप्रैल २०२४ की सुबह लगभग साढ़े दस बजे सात समंदर पार खाड़ी देश से आभासी दुनिया की मुँहबोली बहन का फोन आया। प्रणाम के साथ उसके रोने का आभास हुआ, तो मैं हतप्रभ हो गया है। जैसे तैसे ढांढस बंधाते हुए रोने का कारण पूछा तो उसने किसी तरह रुंधे गले से बताया कि भैया, आपके स्नेह आशीर्वाद को पढ़कर खुशी से मेरी आंखे छलछला आई, मैं निःशब्द हूं, बस रोना आ गया, समझ नहीं पा रही कि मैं बोलूं भी तो क्या बोलूं? रोते-रोते ही उसने कहा यूँ तो आपकी आत्मीयता का बोध मुझे कोरोना काल से है, जब मैं कोरोना से जूझ रही थी और आपने उस समय जो आत्मीय संबंध और संबोधन दिया और आज भी उस स्नेह भाव को मान देकर मुझे गौरवान्वित कर रहे है। पर आज तो आपके स्नेह आशीर्वाद की इतनी खुशी पाकर रोना ही आ गया। हुआ ये कि लगभग एक सप्ताह पूर्व जब उसने मुझे ...
वसंत पंचमी
कविता

वसंत पंचमी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** वसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, ज्ञान की देवी सरस्वती और धन की देवी लक्ष्मी का अवतरण दिवस भी वसंत पंचमी को हुआ था, इस दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती का कलश स्थापन‌ कर पूजन, आरती किया जाता है, वसंत पंचमी पर वाणी की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती की पूजा, प्रार्थना का विशेष महत्व है। शास्त्रानुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और देवताओं की प्रतिनिधि विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी हैं, माता सरस्वती की पूजा आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित है, माता के रहस्योद्घाटन का दिन भी वसंत पंचमी को ही माना जाता है। ये दिवस सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, माता सरस्वती को वागेश्वरी, भगवती, शारद...
अयोध्या से अयोध्याधाम
कविता

अयोध्या से अयोध्याधाम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज जब अयोध्या में राममंदिर का भव्य निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा का इंतजाम हो रहा है, तब अयोध्या के चहुंमुखी विकास का कार्य भी बड़े जोर शोर से आगे बढ़ रहा है। आज अयोध्या को दुनिया में अपनी गरिमा, उचित पहचान, स्थायित्व और सम्मान प्राप्त हो रहा है, राम और मंदिर-मस्जिद विवाद से कल तक अयोध्या जानी पहचानी जाती थी, आज अयोध्या राम, भव्य राम मंदिर और चहुँमुखी विकास से पहचानी जाने लगी है, राम जी के विग्रह की अब जब प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चल रही है। कोई माने या माने दुनिया तो मान रही है अयोध्या अब सिर्फ राममंदिर से नहीं अयोध्याधाम बन खूब इतराने लगी है। देश ही नहीं दुनिया भर में अब अयोध्याधाम अपनी चर्चा हर रोज हर पल कराने लगी है, बिना किसी घोषणा के ही अब तक की अयोध्या अयोध्याधाम ब...
प्राण प्रतिष्ठा और दुष्ट आत्माएं
कविता

प्राण प्रतिष्ठा और दुष्ट आत्माएं

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज एक बार फिर यमराज का बिना किसी सूचना के मेरे घर आगमन हुआ, मैं पहले से ही दुखी था, अब और दुखी हो गया जैसे किसी ने मेरे घावों पर नमक रगड़ दिया। मैं कुछ कहता सुनता उससे पहले शायद उसने मेरे दर्द को महसूस कर लिया और बड़े आत्मीय भाव से कहने लगा, प्रभु! आप परेशान हो मुझे पता है पर आपकी परेशानी का सीधा सा उत्तर मेरे पास है। मैंने संयम बनाए रखा और बड़े प्यार से कहा यूं तो मैं परेशान बिल्कुल नहीं हूँ फिर भी तुम्हें यदि ऐसा लगता है तो तुम ही बता दो, मेरी परेशानी का हल दे दो। यमराज बोला-मुझे चेहरा और मन पढ़ना आता है यह अलग बात है कि मेरा राम मंदिर, निमंत्रण और राजनीति से दूर-दूर का नहीं नाता है। मैं बस रामजी को और रामजी मुझे जानते हैं मेरी वजह से थोड़ा-थोड़ा आपको भी पहचानते हैं, फिर भ...
अनुभवों संग पक्षाघात बना  वरदान
संस्मरण

अनुभवों संग पक्षाघात बना वरदान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** संस्मरण (द्वितीय पक्षाघात का एक वर्ष) गत वर्ष ११-१२ अक्टूबर की रात जब सोया तब क्या पता था कि सुबह का अनुभव इतना पीड़ादायक होगा। लेकिन ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही सबकुछ चलता है और सुबह जब होकर उठने को हुआ तब मैं एक बार फिर मुझे पक्षाघात का शिकार हो चुका था। तब से लेकर आज एक वर्ष पूरा होने तक मुझे पीड़ा के अलावा अनेकानेक खट्टे-मीठे अनुभवों से दो चार होना पड़ा। यह अलग बात है कि अभी पता नहीं है कि मुझे इस पीड़ा से कब मुक्ति मिलेगी। लेकिन इस पीड़ा के बीच जिस कटु अनुभवों से दो चार होना पड़ा, उसने पक्षाघात से भी ज्यादा पीड़ा दी। ईमानदारी से कहूं तो विश्वास कर पाना खुद ही कठिन हो रहा है, मगर जो खुद महसूस किया, जिसका खुद साक्षी हूं, जो मेरे साथ हुआ है, उसे नजरंदाज कैसे कर सकता हूं और फिर नज़र अंदाज़ कर देने भर स...
जीवन की भूल
हास्य

जीवन की भूल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** इधर पांच राज्यों में चुनावी तारीखों का एलान हुआ, नेताओं में खुशियां थीं पर मेरा बुरा हाल हुआ। एक एक करके कई बड़े नेताओं का फोन पार्टी स्टार प्रचारक का आफर के साथ आया मैं हैरान परेशान हो गया ये सब क्या से क्या हो गया। अब इन सबको समझाना मुश्किल हो रहा था स्टार प्रचारक बनकर क्या झंडा हिलाना है। मैंने भी दिमाग चलाया एक को अपने जाल में फंसाया बड़े बुद्धिमान हो तो मुझे पार्टी का चेहरा बनाओ कहीं से भी चुनाव लड़वाओ मेहनत करोगे तो जीत ही जाऊंगा, मुख्यमंत्री बनाओगे तो दूसरी पार्टी के विधायकों को तोड़ लाऊंगा। पहले करोड़ों का खुला आफर दूंगा फेल हुआ तो धमकियां दूंगा, कुर्सी के लिए दो चार विकेट भी लेना पड़ा तो ले लूंगा, बिल्कुल नहीं शरमाऊँगा पर मुख्यमंत्री तो मैं ही बनूंगा। मेरा आफर...
चलो चांद की ओर
हास्य

चलो चांद की ओर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये क्या कर रहे हो यार अभी-अभी तो चंद्रयान पहुँचा ही है और आपके मुंह में भी पानी आने लगा, कम से कम कुछ सभ्यता सीखो, मानवता दिखाओ। अभी थोड़ा इंतजार तो करो अपने सब्र का जिगरा तो दिखाओ। अभी चंद्रयान को ही मामा की आवभगत का भरपूर आनंद तो लेने तो, मामा के बात व्यवहार औकात का कुछ पता तो लगने दो, इतना न हड़बड़ाओ, नग्नता पर न उतर आओ अपनी धरती मां का अपमान तो न कराओ इतना भुक्खड़ हो ये चंदा मामा से छिपाओ शरीफ भांजे बनकर तो दिखाओ। क्या पता मामा का रहन सहन घर बार कैसा है? इतना पता तो लगने दो चंद्रयान की चिट्ठी तार, स्क्रीन शॉट तो आने दो मामा को भी इतना तो मौका दो कि वे हमारे खाने पीने रहने का इंतजाम तो कर सकें। ऐसी भी जल्दबाजी न करो कि हमें बेशर्म मानकर रुठ जायें खाने-पीने के नाम ...
समरांगण से… पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा

समरांगण से… पुस्तक समीक्षा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** पुस्तक समीक्षा समरांगण से... आज की पीढ़ी के लिए अनूठा उपहार ओज के युवा हस्ताक्षर शिक्षक कवि हेमराज सिंह "हेम" की प्रथम कृति "समरांगण से... " को पढ़ते हुए बहुत गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारे बीच का एक युवा ओज लिखते-लिखते इतनी गहराई में उतर गया कि आध्यात्मिकता से भरपूर श्रीमद्भगवत गीता को सरल शब्दों में काव्यमय रुप में आम जनमानस के बीच संपूर्ण गीता को सहज ग्रहणीय कृति के रूप प्रस्तुत करके नई पीढ़ी के कलमकारों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। पूज्य पिता श्री राजेन्द्र सिंह जी और माताश्री श्रीमती प्रभात कँवर जी को समर्पित हेम प्रस्तुत महाकाव्य "समरांगण से......की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार विजय जोशी जी ने लिखा है कि अपने परिवेश में सजगता से यात्रा करता हुआ व्यक्ति जब अपनी संस्कृति और संस्कार के सानिध्...
अयोध्याधाम में “मतंग के राम”
संस्मरण

अयोध्याधाम में “मतंग के राम”

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  १५ नवंबर २०२२ का दिन, जब हमारे प्रिय आ. आर.के. तिवारी मतंग जी सपत्नीक हमारे बस्ती प्रवास स्थल पर गोरखपुर से लौटते हुए मेरा कुशल क्षेम लेने आये, आपसी बातचीत और संवाद के बीच ही मई जून २३ में अयोध्या में एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं पुस्तक विमोचन आयोजन कराने की इच्छा व्यक्त की, तभी तत्काल इस बारे में मतंग जी से प्रारंभिक तौर पर आयोजन के संबंध में हमारी मंत्रणा, वार्ता का श्री गणेश हो गया था, और निरंतर आभासी संवाद के माध्यम से हम दोनों निरंतर आयोजन की रुपरेखा को अंतिम रूप देने में सफल हो, जिसका परिणाम आप सभी के सामने "मतंग के राम" आ.भा. कवि सम्मेलन, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह के रूप में जनमानस के बीच साकार रूप में सामने आया। जिसके प्रत्यक्ष गवाह आप सभी की एक छत के नीचे एक साथ एकत्र होकर बन चुके हैं। य...
रामभक्त हनुमान जी
स्तुति

रामभक्त हनुमान जी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** चिरंजीवी परमभक्त, भगवान राम के अनन्य सेवक बजरंगबली हनुमान जी का जन्मोत्सव आज है जिसे दुनिया उनके बारह नामों हनुमान, अजंनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुण सखा, पिंगाक्ष, अमित विक्रम, उदधि क्रमण सीता शोक विनाशन, लक्ष्मण प्राणदाता, दशग्रीव दर्पहा से जानती, पुकारती है रोज प्रातः काल इन नामों का जाप करती है। तुलसीदास जी ने जिसे विज्ञानी बताया जिनके विज्ञान ज्ञान से, दुनिया आज भी हैरान है। लंका दहन के लिए रावण की सभा में पूंछ को बढ़ाते जाना अशोक वाटिका में मां सीता के सामने अपने लघु और विशालकाय रुप दिखाना विशालकाय समुद्र के पार जाना विज्ञान ही तो था जिसे रामकथा वाचक मुरारी बापू विश्वास का विज्ञान मानते कहते हैं लंका मे सीता जी की खोज, संजीवनी बूंटी लाकर, लक्ष्मण की प्र...
हे राम जी! मेरी गुहार सुनो
कविता

हे राम जी! मेरी गुहार सुनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे राम जी! मेरी पुकार सुनो एक बार फिर धरा पर आ जाओ धनुष उठाओ प्रत्यंचा चढ़ाओ कलयुग के अपराधियों आतताइयों, भ्रष्टाचारियों पर एक बार फिर से प्रहार करो। उस जमाने में एक ही रावण और उसका ही कुनबा था जो कुल, वंश भी राक्षस का था फिर भी अपने उसूलों पर अडिग था, पर आज तो जहां-तहां रावण ही रावण घूम रहे हैं जाने कितने रावण के कुनबे फलते-फूलते वातावरण दूषित कर रहे हैं। इंसानी आवरण में जाने कितने राक्षस बहुरुपिए बन धरा पर आज स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं समाज सेवा का दंभ भर रहे हैं सिद्धांतों की दुहाई गला फाड़कर दे रहे हैं भ्रष्टाचार, अनाचार अत्याचार ही नहीं दंगा फसाद भी खुशी से कर रहे हैं दहशत का जगह-जगह बाजार सजा रहे हैं। जाति धर्म की आड़ में अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं अकूत धन संपत्ति से ...
याद किए जायेंगे
हास्य

याद किए जायेंगे

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** बहुत दिनों से सोच रहा हूं मैं भी एक राजनीतिक पार्टी बना लूं सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री भैया को अपना राजनीतिक गुरु बनाकर उन्हीं की पार्टी से गठबंधन भी कर लूं। सरकार बनी तो मंत्री बन ही जाऊंगा। फिर तो अपने भी वारे न्यारे होंगे लालबत्ती के साथ भ्रष्टाचार, घोटाले दोनों हाथ करेंगे। वैसे तो मुझे जैसे ईमानदार कभी पकड़ में नहीं आयेंगे पकड़ गए तो भी गम नहीं तिहाड़ जाकर भी मंत्री पद की सुख सुविधा और भौकाल से लुत्फ उठाएंगे भैया मुख्यमंत्री होंगे, वे थोड़ी हटायेंगे। उनकी छत्रछाया में रहकर राजनीति के सारे दांवपेंच भी सीख ही जायेंगे। सुख से जीवन जीने के सब हथकंडे सीख जाएंगे अपनी तीन पीढ़ियों की सुख सुविधा का इंतजाम काली कमाई से तो कर पायेंगे। हर चुनाव में किसी न किसी से गठबंधन कर विधानसभा त...
रंग बिरंगा उपहार
हास्य

रंग बिरंगा उपहार

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी-अभी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का फोन मेरे पास आया मैंने बड़ी इज्जत से फोन उठाया प्यार से फरमाया क्या हाल है भाया जल्दी बोलो फोन क्यों मिलाया? शहबाज शरीफ तो जैसे रो पड़े क्या बताऊं जनाब हमारे देश की हालत आप से छिपी है क्या? और क्या बताऊं? लोग भूखों मरने लगे हैं दुनिया भीख देने को तैयार नहीं है आपका पुराना दोस्त कटोरा खान सिर पर चढ़ता जा रहा है, कटोरा संस्कृति हमारी नस -नस में ढकेल चुका है हमने भी उसका अनुसरण किया पर औंधे मुंह गिर पड़ा। अब मेरा हाल इधर खाई उधर कुंए जैसी है भाई लंदन में मजे कर रहा है भतीजी यहां नाक में दम किए है सारी समस्या की जड़ मुझे बता रही हैं। कुछ समझ में नहीं आता अब आप ही कोई राह दिखाइए मेरा ही नहीं पाकिस्तान का भी बेड़ा गर्क होने से बचाइए। मैं ...
शब्दांजलि
कविता

शब्दांजलि

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ताऊ जी श्री रामचंद्रलाल श्रीवास्तव को विनम्र शब्दांजलि पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में एक डर सा समाया रहता था, पर उसका आशय क्या है बस! यही समझ नहीं आ रहा था। पर आज सामने आ गया जब मेरे सिर पर अपनी अनवरत सुरक्षा छाया देने वाला विशालकाय वटवृक्ष अचानक ही गिर गया। निस्तेज, निष्प्राण, अनंत मौन होकर भी हमें संबल दे रहा था, जैसे अब भी हमारे पास होने का हमें विश्वास दिला रहा था। पर सच्चाई तो ये है कि हमें झूठी तसल्ली दे रहा था। या शायद हमें अपने कंधे मजबूत करने का संदेश दे रहा था। जो भी हो पर हमें भी पता है अब वो वटवृक्ष न कभी खड़ा होगा न शीतल हवा देगा न ही हमें सुरक्षा मिश्रित भाव ही देगा। क्योंकि वो तो जा चुका है अपनी अनंत यात्रा पर बहुत दूर जिसकी स्मृतियां हमें रुलाएगी दूर होक...
ममता का रक्षाबंधन
कविता

ममता का रक्षाबंधन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आँखें नम हैं मन में उल्लास भी, महज कपोल कल्पना सी लगती है, विश्वास अविश्वास की तलैया में हिलोरें भरती मेरी परिकल्पना को तूने आगे बढ़कर साकार कर दिया अपने नेह बंधन में बाँध मुझे तूने बहुत बड़ा काम ही नहीं सारा जग जैसे जीत लिया हमारे रिश्तों को नया आयाम दे दिया। ममता तेरी ममता के आगे तो तेरे भाई शीश सदा झुकाता ही रहा है आज तेरा कद आसमान सा ऊँचा हो गया है। तू छोटी सी बड़ी प्यारी, दुलारी है तू कल भी लाड़ली थी मेरी अब तो और भी लाड़ली हो गई है। तेरे सद्भावों पर गर्व हो रहा है, तेरा ये भाई भी खुशी से उड़ रहा है, तेरा मान न पहले कम था न आज ही कम है, न कभी कम होगा जैसे भी हो सकेगा, होता रहेगा रिश्तों का ये नेह बंधन कभी कमजोर न होने पायेगा रिश्तों का फ़र्ज़ तेरा ये भाई निभायेगा। बस ख्वाहिश इ...