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Tag: सीमा रंगा “इन्द्रा”

पुरानी पेंशन
कविता

पुरानी पेंशन

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** रोक ली क्यों पुरानी पेंशन, अब तो कर दो लागू। आस लगाए बैठे कब से, बन बैठे क्या साधू। यहां जवानी अपनी खो दी, कैसे कटे बुढ़ापा। नहीं सुनी जो बातें हमारी, हम खो देंगे आपा।। हक हमारा देते नहीं है, वंचित करते हमको । सता के हम सबको यूं, मिलता क्या है तुमको। मात- पिता से रहते हरदम, दूर बहुत सपनों से। घर बार दिया है छोड़ हमने, दूर रहें अपनों से।। शपथ सभी ने मिलकर ली थी, नाम देश हो कतरा। आंधी आए तूफान आए, नहीं हमें है खतरा दो -दो पेंशन है नेता की, हमें एक न मिलती। कब तक रहेगा दोगलापन, घर पर खुशी ने खिलती।। करो बहाल पुरानी पेंशन, खुशी दिला दो हमको। दुख से मिल जाएं छुटकारा, अपना कहेंगे तुमको । जीवन को खुशहाल बना दो, करते हो क्यों देरी। सब कुछ है हाथ में तुम्हारे, बात सुनो जी मेरी।। ...
नासमझ बेटा
कविता

नासमझ बेटा

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मात-पिता की बात मान लो, नही पड़े दुख सहना, समझा- समझा हार गए क्यों, नहीं मानते कहना, कहने बैठो गर कुछ इनको, कहे नासमझ हमको, भूल रहे जीवन से शिक्षा, दूर करे है तमको। इनकी बातें बड़ी निराली, चकित सभी को करती, सुने नहीं है बात बड़ों की, देख इन्हें माँ डरती, जुबां चलाएं सबके आगे, करते हैं मनमानी, घर में अपना रौब जमा कर, करते है नादानी। दो आखर को पढ़ कर समझे, खुद को बेशक ज्ञानी। पड़ जाए जो बोझ उठाना, याद करे वो नानी, फिर मत कहना नहीं समझ थी, हमें नहीं समझाया, निकल गया जो समय हाथ से, लौट कहो कब आया। बन जायेगा जीवन तेरा, सुनो ध्यान धर बातें, तेरे ही सुख खातिर जागे, हैं हम कितनी रातें, केवल सच ही जीवन नैया पार करेगा तेरी, इसीलिए बेटा बातों पर, अमल करो बिन देरी परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निव...
दिल बिखर जाता है
कविता

दिल बिखर जाता है

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** गम कभी मेरे यहां तुम गर जरा पहचान लो। है मुझे तकलीफ अब कितनी कभी तुम जान लो।। दिल बिखर जाता है मेरा टूट कर जोड़ो इसे। पर कभी हारा नहीं यह देख इसका ज्ञान लो। आस छूटी है दिखा दे रोशनी की अब प्यार से। उलझनें ही है निशानी प्रेम की बस मान लो।। जिंदगी की कशमकश ने भी मुझे जकड़ा यहां। फिर रही मारी हुई सी अब जरा संज्ञान लो।। दर्द दिखता है सभी को तुम भला क्यों नासमझ हो। आज फिर से तुम यहां पर प्रेम का ही दान लो।। हो रही बेचैनियां है अब फिर मिला लो नैन तुम। अब कहो अपनी भलाई है इसी में ठान लो।। मान जाओ बात मेरी कह रही सीमा तुझे। हम बने हैं एक दूजे के लिए ही मान लो। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं ...
सामाजिक सरोकार
कविता

सामाजिक सरोकार

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आया बनकर हितैषी हमारा सामाजिक सरोकार परिवार हमारा अलख जगा दी जन-जन में दवाई, पढ़ाई और कमाई की नहीं मांगते हीरे-जवाहरात बस चाहिए रोजगार इन्हें कर रहे शुरुआत नई ये भारत शक्ति सम्मान की दे रहे मान गुरुओं को रख संग मात-पिता को सत्य पथ पर चलकर जग में लहरा देंगे तिरंगा मिलकर युवाओं ने हौसला बढ़ाया बुड्ढा खेड़ा को बनाया आदर्श गांव सबको दे रहे सम्मान सरीखा चलकर एकता की राह पर सीमा भी डाल रही आहुति यज्ञ में आओ बहनों ! आओ साथियों ! बनो भागीदारी महायज्ञ के हरियाणा की शान बढ़ा दो गांव का संदेशा ये निराला पहुंचा दो जन-जन तक परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी ...
जान तेरी
कविता

जान तेरी

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बिछुड़न तेरी तड़प मेरी धड़कन तेरी आह! मेरी सौदाई तेरी मोहब्बत मेरी यादें तेरी इंतजार मेरा बेवफाई तेरी वफ़ा मेरी भूलना तेरा यादें मेरी लड़ाई तेरी प्रेम मेरा धोखा तेरा विश्वास मेरा फटकार तेरी मिलान मेरा महबूबा तेरी हमदर्द मेरा जान तेरी दिल मेरा सांसे तेरी तू मेरा .... परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्ड, द प्रेसिडेंट गोल्स चेजमेकर अवार्ड, देश की अलग-अलग संस्थाओं द्वारा कई बार सम्मानित बीएसएफ...
आज तेरी बारी आई
कविता

आज तेरी बारी आई

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मान ले बात मात-पिता की आज बारी तेरी आई। पढ़ ले, निखार ले खुद को वक्त को जानने की बारी आई। उठ प्रातः कर मेहनत पूरा दिन समय का सदुपयोग की बारी आई। भूल जा मस्ती, शरारतें, त्याग निंद्रा उज्जवल भविष्य करने की बारी आई। कम वक्त है पास तुम्हारे नसीहतें मानने की बारी आई। नहीं रहेंगे तुझे कहने वाले एक दिन तड़पाएगा वक्त ,समझने की बारी आई। अकेला रह जाएगा इस दुनिया में आज संभलने की बारी आई। कहीं पछताता ना रह जाए सीमा आज वक्त को जानने की बारी आई। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड ...
महादेव
स्तुति

महादेव

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** शिव शंभू हितकारी महादेव जटाओं में समा गंगा गले में रख नाग। चले विषधारी हरने कष्ट जगत के अनोखी छवि देखते सभी इनकी। ना रह पाता अछूता आराधना से इनकी नाम भोले भंडारी पल में जाते मान। सावन में बजते ढोल बजाते शंख पूजन करते शिवलिंग पर नर-नार। ओंकारेश्वर कष्टनिवारक विषधारी हटते कष्ट देख ना पाते तड़प लालायित रहते करने मदद। देखो जरा, लगा भस्म बाबा नंगे पांव आए हरने कष्ट भक्तों के, संग पार्वती मैया। विष अपना, रख सर्प, लगा भस्म उठा डमरू, ले त्रिशूल निकल पड़े नागेश्वर। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्ड...
राज बताते नहीं
कविता

राज बताते नहीं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** प्रेम पत्र सभी को दिखाते नहीं हाथों से लिखी भावनाएं मिटाते नहीं। भेजा था चित्र सभी को दिखाते नहीं खोलते चूमा जिसे बटुए से हटाते नहीं। मन की बेचैनी को यूं जताते नहीं ओ राज था राज को बताते नहीं। महीने गुजारे इंतजार में सबको दिखाते नहीं रात भर बातें की थी तन्हाई को दिखाते नहीं। पेड़, झरने, पानी, बर्फ छोड़ कागज निहारते नहीं वादियों के बीच में महबूबा-महबूबा चिल्लाते नहीं । ९० दिन में हर एक दिन यूं काटते नहीं बचे बस दिन कुछ,यह आश लगाते नहीं। छुट्टी की खुशी में भागे-भागे यू आते नहीं बचा हर पल को यूं खुद को परेशान करते नहीं। आ कर जाने की तिथि बताते नहीं खुशी में यूं जाना है रोज बताते नहीं। जाते वक्त मुरझाया चेहरा दिखाते नहीं पी आंसू नकली हंसी इन्द्रा हंसते नहीं। हर बार छोड़ सीमा को यूं जा...
डॉ. भीमराव अम्बेडकर
कविता

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बुद्धि से तेज विचारों से श्रेष्ठ ज्ञान में ज्ञानी सहनशीलता की मिशाल जला दी जिसने अलख ज्ञान की आओ करें नमन उस महान ज्ञानी को किताब, कलम को बना ढाल छा गए जो महान करोड़ों दिलों पर जिसका राज रख नारी को संग दिला कर महिलाओं को शिक्षा का अधिकार बने नारी रक्षक गरीबों वंचितों को दिया उठा समानता का पढ़ाया पाठ सहकर कठोर यातनाएं रख शिक्षा को आगे आम से बने खास लिख दिया जिसने संविधान कहलाए वे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर नमन मातृभूमि के लाल को। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड...
सबको हंसा दो
कविता

सबको हंसा दो

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** सबका जीवन भरा कष्टों से पर हंसकर पार करो तुम माना धन की कमी है सभी को पर दिल से रहीश बनो तुम । आज अकेले कर परिश्रम दिखा दो ताकत सभी को तुम । करके जरूरतें कम अपनी खुशियों को बढ़ा लो तुम । आज पैदल कल साइकिल से चल गाड़ी में बैठ जाना एक दिन तुम बड़ों का आदर छोटों से प्यार सबके दिलों पर राज करो तुम गम में होके सरीक सभी के दुखों को कम कर दो ना तुम मुरझाए चेहरे हैं चारों तरफ बोल मीठे बोल खिलखिला दो तुम अपनी चाहतों को फैला कर रोते को सीमा हंसा दो ना तुम परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन ब...
वो रुलाता रहा
कविता

वो रुलाता रहा

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** वो रुलाता रहा मैं हंसती रही हंसी के पीछे आंसू छुपाती रही उन्होंने समझा बेपरवाह हूं पर मैं घर -बच्चों को देखती रही सपने तो संजोए थे पर पहले जिम्मेदारियां निभा रही थी जीवन जो छुटा था पीछे बस उसे ही धक्का देने में लगी थी जब लगाया जोर पूरा रेस में शामिल मैं हो गई फिर जिंदगी के इम्तिहान में प्रथम भी आ गई अब ना कहना लापरवाह हूं परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्ड, द प्रेसिडेंट गोल्स चेजमेकर अवार्ड, देश की...
हे! नारी तू उठ
कविता

हे! नारी तू उठ

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** हे! नारी तू उठ जा विजयपथ पर जीत का परचम लहरा जा तू मत डर आंधी की तरह बढ़ आगे डटी रहो जीवन रथ पर अरमानों को मत दबा रख बाजुओं पर भार अपना चल पड़, निकल ले उठा ले खुद को। राहों में मिलेंगे टेढ़े-मेढ़े रास्ते मत डरना मत रुकना डटी रहना पथ पर मंजिल की कुछ दूरी पर होगी तू डांवाडोल जरूर फिर ऊर्जा से भर जाना रास्ता अब नजदीक है पथ पर पहुंचेगी ठोकरे होंगी हजारों सीमा ठोकरों को मार ठोकर बढ़ जाना विजय की ओर परचम जीत का लहरा देना मर्दानी तू, दुर्गा रूप में खड़ी रहना सिंह पर हो सवार डटी रहना विजय रथ पर लहरा देना जीत का परचम है नारी तू डटना यूं ही परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बे...
पलायन
आलेख

पलायन

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** गांव की आबादी आज घटती जा रही है। गांव के लोग शहरों की तरफ रुख़ कर रहे हैं । इसका कारण सबका अपना-अपना मत होगा। परंतु बेरोजगारी और सुविधाओं की कमी से गांव वाले ना चाहते हुए भी अपना घर छोड़ कर शहर के छोटे-छोटे कमरों में रहने को मजबूर हैं। क्योंकि हमारे गांव में बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार नहीं है। मैं सभी गांव की बात नहीं कर रही। परंतु बहुत गांवों में यह समस्या आज भी मौजूद है। शहरों का विकास तेजी से हो रहा है और गांव में जाकर देखो शिक्षा के नाम पर एक प्राइमरी या हाई स्कूल। वह भी सभी गांव में नहीं है। आगे बेचारे गरीब बच्चे पढ़ने कहां जाए? गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए बहुत सारी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। यातायात- गांव में यातायात की सुविधा नहीं होती कैसे जाए पढ़ने के लिए बाहर। उनके पास दो विकल्प होते हैं या तो पढ़...
आज बारी तेरी आई
कविता

आज बारी तेरी आई

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मान ले बात मात-पिता की आज बारी तेरी आई। पढ़ ले ,निखार ले खुद को वक्त को जानने की बारी आई । उठ प्रातः कर मेहनत पूरा दिन समय का सदुपयोग की बारी आई । भूल जा मस्ती, शरारतें, त्याग निंद्रा उज्जवल भविष्य करने की बारी आई। कम वक्त है पास तुम्हारे नसीहतें मानने की बारी आई । नहीं रहेंगे तुझे कहने वाले एक दिन तड़पाएगा वक्त ,समझने की बारी आई। अकेला रह जाएगा इस दुनिया में आज संभलने की बारी आई । कहीं पछताता ना रह जाए सीमा आज वक्त को जानने की बारी आई। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड ...
प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण
आलेख

प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** जीत तू जरूर छू ऊंचाइयों को, कर मेहनत जरूर, सपने कर पूरे बस तू , कर मेहनत आज के आधुनिक दौर में आगे निकलने की दौड़ में सभी अपना वजूद ही खोते जा रहे हैं ।जो है उनके पास स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं ।माता-पिता प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने बच्चे को ही प्रथम लाना चाहते हैं। अच्छी बात है, पर दूसरों के साथ तुलना करके क्यों? सभी बच्चों में कौशल होता। हालांकि ये अलग बात है कि प्रतिभा अलग-अलग है। जैसे कोई चित्रकारी में, कोई नृत्य में, कोई गाने में, कोई पढ़ने में, कोई खेल में, कोई अपने घर के कार्यों में, पर अभिभावक चाहते हैं की हमारा बच्चा ही हर काम में प्रथम आए। हमें सिर्फ अपने बच्चे की प्रतिभा को देखना है। वह किस क्षेत्र में अच्छा है, उसकी प्रशंसा करना, ना की उस पर इतना दबाव बनाना की वह अवसाद में चला जाए। आज के दौर की...
नमन नववर्ष का
कविता

नमन नववर्ष का

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आओ! करें नमन नववर्ष का भूल पुरानी यादों के समंदर को मना ले नवल का त्यौहार मिलझूल झूमे गीत गाए। भूले दुःख-दर्द बीते वर्ष के माफ करे दिए कष्ट जिन्होंने इस नववर्ष की बेला पर बना लेते हैं शत्रु को भी मित्र। चलेंगे संग में पुराने सखा भुला देंगे दुःख भरी यादों को अपनों का आशीर्वाद साथ में नववर्ष को लगा लो गले। शीत-ऋतु की ठंड में करें आगाज मन के मतवाले बन छा जा जग में एक-दूजे का साथ निभा ले दोस्ती आलस त्याग संघर्ष को लगाओ गले। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, ...
सातों जन्म मांगती तुझको हूं
कविता

सातों जन्म मांगती तुझको हूं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** क्या हुआ मुझे दिया नहीं कभी लाखों का हार, पर जीवन के हर पल को माला में संजोया है। क्या हुआ मुझे कभी दिया नहीं कीमती उपहार पर अपने जीवन के कीमती पल मेरे नाम किए हैं। क्या हुआ कभी मुझे महंगी साड़ी गिफ्ट नहीं की पर हमारे रिश्तो को एक-एक धागे में पिरोए रखा है। क्या हुआ ऊंचे महलों में नहीं बिठाया कभी हमें पर छोटे से घर की एक-एक ईंट में प्यार भर दिया है। क्या हुआ कभी हम गए नहीं विदेश घूमने तो स्वदेश के हर सुनहरे संगीत से रूबरू करवाया है। कभी किया नहीं झूठा वादा कि ताज महल बनवा दूंगा पर घर के एक कोने में सुंदर सा कमरा हमारे नाम किया है। क्या हुआ कभी हम धन-दौलत से भरा नहीं हमारा घर प्यार भरपूर देकर हमें रहीस बना दिया है। दुनिया से अलग है मेरे हमसफर झूठे वादे करते नहीं मुझे हमेशा खुश रखते हैं हमा...
सुरक्षा कवच
लघुकथा

सुरक्षा कवच

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** अरे ! अरे ! मैं तुझे कुछ नहीं कहूंगी। बाहर आओ ! बाहर आओ ! देखो मेरे बच्चे भी खेल रहे हैं। हम सब मिलकर खेलेंगे । बहुत मज़ा आ रहा है।आ जाओ तुम भी। नहीं-नहीं चिंटू मत जाना मम्मा ने मना किया है कि बिल से बाहर जाते ही खतरा ही खतरा है, और यह बिल्ली तुझे खा जाएगी चिंटू। बहन ने उसे समझाते हुए कहा पर यह तो खेलने के लिए बुला रही है। तभी तो मैं कह रही हूं बाहर नहीं जाना नहीं तो मैं मां को बताऊगीं। लेकिन चिंटू बार-बार बाहर जाने की जिद कर रहा था। इतनी देर में ही चूहिया बाहर से आ जाती है। जिनको आते ही बच्चे सारी बातें बता देते हैं। कैसे बिल्ली हमें बाहर बुला रही थी। चूहिया ने तीनों को समझाते हुए कहा, यह बिल ही तुम्हारा सुरक्षा कवच है। जैसे ही बिल से बाहर निकले जिंदा नहीं बचोगे। इसलिए जब भी मैं खाना लेने बाहर जाऊं तुम अंदर ही रह...
युवाओं का दर्द
कविता

युवाओं का दर्द

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** इन नौजवानों को देख लो जरा समझ जाओ ना इनकी तकलीफ रहते हरदम परेशान बेचारे समझो ना इनकी बेचैनी तुम गहराई में छुपे अश्रुओं को देखो तुम खाम का ही बोलते हो दर्द नहीं होता इन्हें उतर जाओ नैनों में इनके एक बार दुख की परछाई को झांक लो जरा तुम इनकी हंसी के पीछे छुपे गम जानो तड़पते मन को मरहम लगा दो पूछकर जिम्मेदारियों का वजन इन पर बहुत कभी तो उठा लो तुम भार इनका संभले, सुलझे लगे भले ही तुम्हें ये गहराई में जा इनकी उलझ न जाना तुम वक्त से पहले हो जवां उठा लेते जिम्मेदारियां बेरोजगारी छीन लेती बचपन की हठखेलियां खंडूस बोल दे ताने ना वार करो तुम समझो गहराई, नरमी, मासूमियत इनकी बना लो पहचान संग इनके तुम समझ पीड़ा देख दर्द मिटा दो ना परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) व...
नासमझ बेटा, समझ ना पाया बापू
कविता

नासमझ बेटा, समझ ना पाया बापू

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** काश समझ पाते कीमत वक्त की काश मान जाते बात मात-पिता की काश रहते ना उतावले हमेशा काश कभी तो शांति से करते बात काश झुक जाते फर्ज की खातिर काश भनक लग जाती तूफ़ा की हमें भी काश आंचल में संभलते रहते धीरे-धीरे काश पिता का साया पहले याद करते काश कुछ जिम्मेदारियां हम भी बांट लेते काश कुछ वजन हम भी कर देते कम काश उन्हें भी सोने देते बेफिक्र होकर काश कभी हम भी उठ जाते पहले उनसे काश जिन हाथों ने हमेशा रखा सिर पर हाथ काश हम भी लगा लेते हाथ उनके चरणों के काश हमारी तरह होता सीना चौड़ा उनका काश मैं भी कर लेता पिता संग काम कुछ काश घर ऐसो आराम के बजाय दिखता घर काश हम भी समझ पाते दर्द उनका का भी परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना ...
बिछुड़न तेरी
कविता

बिछुड़न तेरी

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बिछुड़न तेरी तड़प मेरी धड़कन तेरी आह! मेरी सौदाई तेरी मोहब्बत मेरी यादें तेरी इंतजार मेरा बेवफाई तेरी वफ़ा मेरी भूलना तेरा यादें मेरी लड़ाई तेरी प्रेम मेरा धोखा तेरा विश्वास मेरा फटकार तेरी मिलान मेरा महबूबा तेरी* हमदर्द मेरा जान तेरी दिल मेरा सांसे तेरी तू मेरा.... परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्ड, द प्रेसिडेंट गोल्स चेजमेकर अवार्ड, देश की अलग-अलग संस्थाओं द्वारा कई बार सम्मानित बीएसएफ द्व...
सदा सुहागन रहो
कविता

सदा सुहागन रहो

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** रहो सुहागन बहनों तुम देते रहे आशीष सभी तुम्हें भर के मांग, लगा के बिंदी लगा के टीका, लगा के मेहंदी पहन के नथ, पहन के बिछिया छनका के पायल, बजा के कंगना नैनो में लगा काजल, कर सोलह श्रृंगार रख व्रत करवा का, पति की खातिर सुन कहानी, करके दान-दक्षिणा शिव-पार्वती की कर पूजा करके नमन बड़ों को, ले आशीष उनसे सदा सुहागन का, पति की लंबी उम्र रहो सदा सुहागन बहनों तुम देते रहे से सभी आशीष तुम्हें परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत...
हर बार अंदाजा सही नहीं होता
स्मृति

हर बार अंदाजा सही नहीं होता

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** रेल अपनी स्पीड से चली जा रही थी। परन्तु रमा की टिकट कन्फर्म नहीं हुई थी परन्तु उनका जाना बहुत जरूरी था इसलिए रमा अपने तीन बच्चों के साथ बिना टिकट कन्फर्म ही ट्रेन में चढ़ गए थे। सोचे हो ही जाएगी, पर बैठने के बाद पता चला टिकट कन्फर्म नहीं हुई। टीटी ने उन्हें सीट पर बैठने को कहा,जैसे ही बैठे एक महिला ने कहा ये हमारी सीट है बड़े ही रोब से ।बेचारी को कुछ राहत मिली ही थी। उसे क्या पता था कि उसकी खुशी बस कुछ ही पल की थी।एक आस लगाए टकटकी लगाए उसी महिला को बार -बार इस उम्मीद में निहार रही थी कि शायद वह अपनी एक सीट हमें दे दें क्योंकि उसके दो बच्चे थे और एक बच्चा लगभग 4 साल का था ।उसकी मां ने उसे पास ही अपनी सीट पर सुला रखा था ।पर उन्होंने चार सीट बुक करवा रखी थी। 3 सीटों पर ही बैठे थे चौथी सीट खाली थी। रमा ने जैसा सोचा था ऐ...
परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण
आलेख

परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आज के भागदौड़ भरे इस आधुनिक जीवन में किसी के पास वक्त ही नहीं है। एक घर में रहकर भी घर के सदस्य एक-दूसरे के साथ बैठकर खाना नहीं खा पाते, बात नहीं कर पाते हैं। ऐसा नहीं है बात नहीं करना चाहते। सभी करना चाहते पर घर-परिवार की जिम्मेदारियां और फिर कमाने की जद्दोजहद में सब व्यस्त रहते हैं। सोचते हैं इस वर्ष की बात है अगले वर्ष सब ठीक हो जाएगा परंतु अगले वर्ष करते-करते कब बुढ़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता? एक आदमी को सिर्फ कमाना ही नहीं होता बल्कि बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, घरवालों के ख्याल के साथ-साथ बहुत से खर्चों का ध्यान रखना पड़ता है। उसे हमेशा एक ही चिंता रहती है कहीं घरवालों की जरूरतें पूरी ना हो, या कहीं कोई क़िस्त समय पर ना जाएं या फिर बच्चे की स्कूल फीस, ट्यूशन फीस लेट ना हो जाए। त्योहारों पर बच्चों की जरूरतो...
जिंदगी का भरोसा नहीं
कविता

जिंदगी का भरोसा नहीं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** पल-पल निहारती जिंदगी कब कहां किसे देख रहा तू ? कब होगा आखिरी क्षण ज्ञात नहीं है तुझे भी तो फिर क्यों लगी भागदौड़? जो है कर गुजारा उसमें देखा-देखी दौड़ में लगा पल भर का भरोसा नहीं आज तेरा कल होगा किसी का फिर क्यों जकड़ रखा खुद को? फिसलेगा तेरे हाथ से सब रोक ना पायेगा तू कहर को सुख-दुख का फेर निराला तू गठरी क्यों बांधे दुख की? दुःख की माला फेरता रहता सुख को क्यों नहीं जपता परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई ...