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Tag: सलिल सरोज

हिन्दी कविता में आम आदमी
आलेख

हिन्दी कविता में आम आदमी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** हिन्दी कविता ने बहुधर्मिता की विसात पर हमेशा ही अपनी ज़मीन इख्तियार की है। इस बात की पुष्टि हर युग के कवियों द्वारा की गई कृत्यों से प्रतीत होती रही है। हिंदी कविता ने रामधारी सिंह दिनकर की क्षमता का उपयोग कर के राष्ट्र आह्वान का मार्ग प्रशस्त किया और साथ ही साथ आम आदमियों की दिक्कतों और रोज़मर्रा की समस्याओं को भी बेहद गंभीरता से उजागर किया है। अगर कोई साहित्य उस वर्ग की बात नहीं कर पाता जो मूक और बधिर है तो फिर साहित्य को अपने नज़रिये को बदलने की महती आवश्यकता होती है। रामधारी सिंह दिनकर सरीखे कवियों ने अपनी लेखनी में जनमानस की विपरीत परिस्थितियों का सजीव चित्रण ही नहीं किया बल्कि धनाढ्य और रसूखदारों पर करारा प्रहार भी किया और यह प्रश्न अक्षुण्ण रखा कि गरीबी और लाचारी के लिए क्या गरीब स्वयं जिम्मेदार है या फिर वह वर्ग भी जिमीदार है ज...
सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता
कविता

सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ। मैं तुम्हारी सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता हूँ, मुझे पहचानो। अब मैं वृद्ध और रुग्ण हो चला हूँ, मुझे संभालो। मैं विलाप करता हूँ अपनी वर्तमान स्थिति पर, मुझे सँवारो। मैं रेत में पड़ा ठंडा हुआ राख हूँ, मुझे फिर जला लो। जिस तरह मिलते हो अपने बच्चे से, मुझे भी गले लगा लो। शरीर सारा जलता हैं ग्रीष्म में मेरा, मुझे आँचल में छुपा लो। मेरे हृदय के कमल कुम्भलाने लगे हैं, प्यास तुम बुझा दो। मैं ठूँठ सा मंज़िल हुआ पड़ा हूँ, राह तुम बना लो। मैंने सदियाँ दी हैं सौगात में तुम्हें, मेरा भी अस्तित्व जिला दो। महावीर ने निर्वाण लिया मेरे ही प्रांगण में, उसकी तो लाज बचा लो। मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ, तुमसे गुहार लगाता हूँ- मेरा भी सिंचन करो, मेरी भी सम्मान करो। मैं तुमसे वादा करता हूँ, बिहार को मस्तक पर धरता हूँ, आलौकिक इतिह...
वो कोई ख्वाब ही थी
बॉलीवुड गॉसिप, सिनेमा, स्मृति

वो कोई ख्वाब ही थी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** ईरान के अब्दुल सलीम अस्करी और शदी हबीब आगा के घर में पैदा हुई मुमताज़ ने भारतीय सिनेमा पटल पर जो धूम मचाई, वो किसी भी अभिनेत्री और उसके दर्शकों के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं। कसा हुआ बदन, छोटी नाक, अदाएँ बिखेरते हुए लव, अनार से भी लाल गाल और ज़ुल्फ़ों में उमड़ता-घुमड़ता बादल देखकर केवल और केवल मुमताज़ का नाम ही जहन में आता है। दो रास्ते फिल्म का गाना "ये रेशमी ज़ुल्फ़ें, ये शरबती आँखें, इन्हें देखकर जी रहे हैं सभी "मुमताज़ की अदाओं को सौ फीसदी सही साबित करते हैं। अपने शुरूआती दिनों के संघर्ष में दारा सिंह के साथ कई फिल्मों में काम करने के बाद जब उनका सिक्का चलना शुरू हुआ तो फिर वो चलता ही गया। उस दौर में एक अभिनेत्री के लिए एक अच्छी नर्तकी होना लाजिमी समझा जाता था। उस दौर की वहीदा रहमान, आशा पारेख, हेमा मालिनी सभी बेहतरीन नृत्य करने में परिपक्व थी।...
बाल यौन शोषण
आलेख

बाल यौन शोषण

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज और बच्चे के लिए बाल यौन शोषण कोई नयी समस्या नहीं है। ये एक वैश्विक समस्या है। ये समस्या १९७० और १९८० के दशक के बाद एक सार्वजनिक मुद्दा बन गयी है। इन वर्षों से पहले ये मुद्दा नागर समाज में दर्ज नहीं होता था। छेड़छाड़ से संबंधित मुद्दों की पहली सूचना वर्ष १९४८ में और १९२० के दशक में मिली थी। नब्बे के दशक में बाल यौन शोषण पर कोई औपचारिक अध्ययन नहीं था। जहाँ तक भारत का संबंध है, ये विषय अभी भी चर्चा के लिए वर्जित है, क्योंकि इस मुद्दे को घर की चारदिवारी के ही अन्दर रखने के लिये कहा जाता है और बाहर किसी भी कीमत पर बताने की अनुमति नहीं दी जाती। एक रुढ़िवादी समाज में जैसे कि हमारा भारतीय समाज, जहां छेड़छाड़ के मुद्दे पर लड़की अपनी माता से भी बात करने में असहज महसूस करती है। यह पूरी तरह से अकल्पनीय हो जाता है कि यदि उसे अनुचित स्थानों पर छूआ ग...
साहित्य ही समाज को गढ़ता है
आलेख

साहित्य ही समाज को गढ़ता है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो कभी न कभी, किसी न किसी रूप में साहित्य के किसी न किसी विधा के संपर्क में न आया हो। इतिहास से लेकर अब तक की बात करें तो भित्तिचित्र, शिलालेख, मिट्टी और काँसे के बर्तनों पर उकेरे चित्र, पत्तों पर लिखे शब्द, लोक संगीत, देववाणी, सत्संग, भजन, कीर्तन, उपदेश, गांव के चौपालों पर मंडली द्वारा गाया जाने वाला संगीत, शादी-विवाह के अवसर पर वर पक्ष को वधू पक्ष की ओर से दी जाने वाली गालियाँ, दादी नानी की कहानियाँ, चित्रकथाएँ, कॉमिक्स, कार्टून, नवीन संगीत, नृत्य, नाटक एवम अन्य कई और तरह की साहित्यिक विधाएँ जन मानस में रची बसी होती हैं। साहित्य केवल एक ख़ास वर्ग के लिए ही नहीं होता, नहीं तो आइंस्टीन और कलाम जी जैसे वैज्ञानिक संगीत के मुरीद न होते। साहित्य का हर रूप समाज को जोड़ने की कोशिश ही करता है। यह किसी दायरे में बंधा हुआ ...
मैंने एक गाँव को मरते हुए देखा है
आलेख

मैंने एक गाँव को मरते हुए देखा है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** बेगूसराय मुख्यालय से १८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवलगढ़ जो कि कालांतर में नौलागढ़ बन गया, इस त्रासदी का शिकार हुआ। अगर आप इसके इतिहास में जाएँ तो यहाँ विग्रा पाला ... के शिलालेख के साथ एक काले पत्थर टूटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जो कि इसके ऐतिहासिक धरोहर की वैभवता की कहानियाँ कहता है। आज हम आदर्श और स्मार्ट शहर की बात करते हैं लेकिन यह गाँव आज से कुछेक २० -२५ साल पहले तक एक जीता जागता सुन्दर और रमणीय गाँव था। शहर में काम करने वालों को गाँव से इतना प्रेम था क़ि लोग २ घंटे साईकिल चलाकर भी शनिवार की सुबह-सुबह गाँव पहुँच जाते और दो दिन उस ज़िंदगी को जीते थे। गाँव की चौहद्दी से बालान और बैंती नदी इसका श्रृंगार करती थी जहाँ लोग सुबह की सैर, स्नान एवं छठ के त्यौहार तक को सम्पन्न किया करते थे। कच्चे घरों की छत और दीवारों पर साग -सब्जियाँ भरी होती थीं...
वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है
कविता

वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है और मेरे गुनहगार होने का डर निकाल देता है बताओ, कैसे आदतें ये अपनी काबू में आएँगीं वो तो रोज़ कोई नया सिक्का उछाल देता है मैं कोशिश में हूँ कि कोई तो मीनार बच जाए हवा जब चले तेज़ तो हाथ में वो मशाल देता है अगर मिले मुझे जवाब तो मैं शान्त हो जाऊँ वो मज़िल के करीब लाकर नया सवाल देता है मैं उस की गली में जाना कब का छोड़ देता वो मेरी आँखों को तराशा हुआ जमाल देता है . लेखक परिचय :-  सलिल सरोज कार्यकारी अधिकारी लोक सभा सचिवालय नई दिल्ली आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...