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राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका
आलेख

राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र का तात्पर्य मात्र देश नहीं, देश के साथ उसकी संस्कृति भी है। इसमें वन, पहाड़, नदियाँ व  सामाजिक रीतिरिवाज भी समाविष्ट हैं। राष्ट्र एक प्रवाहमयी इकाई है। साहित्यकार जो अनुभव करता, वही लिखता है। साहित्य, समाज का दर्पण ही है।  आदिकाल, भक्तिकाल व रीतिकाल तक राज्याश्रय, अध्यात्म व श्रृंगार के संदर्भ में लिखा गया। आधुनिककाल में राष्ट्रप्रेम व समाजसुधार की स्वस्थ भावनाओं द्वारा साहित्य, सामान्यजन से जोड़ा जाने लगा। गद्यविधा भारतेंदु युग  इस नवजागरण युग में सदियों से सोए भारत ने अँगड़ाई ली। राष्ट्रवादी-भाव, जनवादी- विचारधारा, संस्कृति- गौरवगान, स्वराज्य- भावना पर भी लेखनी चलने लगी। भारदेन्दु अंग्रेजों की फूट नीति में... "सत्रु सत्रु लड़वाई दूर रहि लखिय तमासा" "उठो हे भारत, हुआ प्रभात" नारी दशा पर  " स्त्रीगण को विद्या देवें " ...
अकेले हम
कविता

अकेले हम

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नहीं समझ पाया था जन्मदात्री माँ का दर्द कर्ज में डूबे पिता प्रति एक पुत्र का अहम फर्ज़ सोचता था बस यही जन्म दिया है इन्होंने कर्तव्य तो निभाना ही था कौनसा एहसान किया है जब मैं स्वयं पिता बना और पत्नी माँ बनी बदल गई हमारी दिनचर्या सुबह से रात तक की तुम्हें कोई दर्द होने पर रातभर तीमारदारी करना और जब तुम सोते थे जल्दी से काम निपटाना हम दोनों बारी बारी से लेने लगे थे छुट्टियाँ जब तुम्हारे दाँत निकले या ठुमक के चलना सीखे तुम्हारे स्कूल की मांगें जब भारी होने लगी हमारे शौकों की फ़ेहरिस्त छोटी होने लगी थी तुम्हारी पढ़ाई व नौकरी और ब्याह की रस्मों में खाली कर दिए सब खाते हमारा अरमान जो थे तुम अचानक चल दिए तुम अपनी ऊँची उड़ान पर रह गए दोनों वैसे ही जैसे थे कभी अकेले हम परिचय : सरला मेहता निवासी : इं...
भाग्य की कसौटी
लघुकथा

भाग्य की कसौटी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता (विषय मुक्त) में तृतीय स्थान प्राप्त लघुकथा।) शब्द संख्या- २०५ ब्याह की विदाई में नाइन पायल पाकर चहकने लगी, "अम्मा ! बहु आपकी चाँद का टुकड़ा है। भैया के साथ जोड़ी भी खूब जमती है। बुलाओ ना, ज़रा नज़र उतार दूँ।" यशोदा हँसती है, "तेरे मुँह में घी शक्कर। चल, दूल्हा-दुल्हन दोनों को एक साथ भेजती हूँ।" वन्दनवार अभी सूखे भी नहीं हैं। नई नवेली दुल्हन अपने प्रियतम के साथ मगन है। "पूर्णा ! बताओ ना, अपनी मनपसंद जगह। अच्छा ठीक है, मैं ही तय करता हूँ ।" कहते हुए पार्थ अपनी प्रिया को आग़ोश में ले निहारता है। और चल देता है टिकिट बुक कराने। तूफान कभी कहकर आता है भला। सड़क हादसे से पूर्णा के मेहंदी भरे हाथ मंगलसूत्र उतारने को मजबूर हो गए। ...
धीरे-धीरे रे मना
कहानी, नैतिक शिक्षा

धीरे-धीरे रे मना

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "अरे चुन्नू ! क्या सारा दिन खेलते रहोगे। पता है, छः माही सर पर आ रही है। पढ़ाई के लिए स्कूल ने छुट्टी रखी है और मैं भी तुम्हारे लिए घर पर हूँ। तिमाही का रिज़ल्ट देखकर पापा ने कितनी डाँट लगाई थी, याद है न। चलो जल्दी से पढ़ने बैठो।" कामवाली सरयू अभी तक आई नहीं है। धैर्या पोहे धोकर प्याज़ काटने बैठ जाती है। आँखों से झरते पानी में मिले बहू के आँसू अम्मा को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उन्होने भी तीन तीन बच्चों को पाला है। दोनों बेटियाँ सुघढ़ता से गृहस्थी चलाते हुए नौकरी भी कर रही हैं। और बेटा भी अपने कर्तव्य निभा रहा है। बस तीनों को नियमित अभ्यास करने बिठा देती थी। ख़ुद तरकारी भाजी साफ़ करते हुए उनकी कॉपियाँ भी देखती जाती। फ़िर तीनों मस्ती में खेलते-कूदते रहते थे। तभी बहू ने नाश्ते के लिए आवाज़ लगाई। सही मौका देख उसे टेबल पर हिदायतें देने लगी- "बि...