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Tag: सरला मेहता

ज़रा मुस्कुराइए
कविता

ज़रा मुस्कुराइए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुस्कुराहट है एक भावना छुपाए है भाव संभावना कई होते हैं सौभाग्यशाली उनके चेहरे ही मुस्कुराते हैं कइयों के थोबड़े ही ऐसे हैं किस्म किस्म की मुस्कान असली नकली मासूम सी भेदी, वहशी, हास-परिहास नशीली, चुटीली, अट्टहास पर मस्त है मोनोलिसा की सच, मुखौटा होती मुस्कान छुपा लेती दिल के दर्दों को कर देती खुश, जो भी मिलता दिल की सेहत का है नुस्खा तो ज़नाब, मुरकुराइए ज़रा हाँ, हँसी में शामिल होइए किसी के ऊपर ना हसिए हँसी में उड़ाइए हर दर्द को हर मर्ज़ का इलाज़ है यह तो हँसते रहो हँसाते रहो ख़ज़ाना खुशी का लुटाते रहो हर ओठ पे मुस्कुराहट लाते रहो जीवन का लुत्फ़ उठाते रहो परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
ये ज़िन्दगी
कविता

ये ज़िन्दगी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** द्वारे-द्वारे वन्दनवारे मुस्काती ज़िन्दगी हंसते गाते मुखड़े देख गीत गाती ज़िन्दगी सिसकती झुर्रियों के बीच अश्रु बहाती ज़िन्दगी दर्दों की दुनिया देख कर लँगड़ाती ज़िन्दगी कुचली कली के दुखों पे शरमाती ज़िन्दगी हैवानियत की हद कहाँ? है बौराती ज़िन्दगी उलझी डोरें रिश्तों की भी सुलझाती ज़िन्दगी प्यार से संग उड़ती पतंगें नहीं कटाती ज़िन्दगी डोलती कश्ती को कभी नहीं डुबोती ज़िन्दगी बिन तैरे ही मझधार पार नहीं कराती ज़िन्दगी सुप्त सिंह के मुख में मृग लाती नहीं ज़िन्दगी बुलन्द हौंसलों को ही है बढ़ाती ज़िन्दगी मंज़िल को हाथों में देने नहीं आती ज़िन्दगी पहला कदम तो बढ़ा राहें खुलवाती ज़िन्दगी दिल में उतरे सज्जनों को संभालती ज़िन्दगी दिल से उतरे से सम्भलना है सिखाती ज़िन्दगी परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्...
महादेवी वर्मा व्यक्तित्व एवं जीवन परिचय
जीवनी

महादेवी वर्मा व्यक्तित्व एवं जीवन परिचय

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्रद्धेया महादेवी वर्मा का जन्म २१ मार्च १९०७ को फर्रुखाबाद (यू.पी.) में होली के पावन पर्व के दिन हुआ था। पिता का नाम श्री गोविन्द प्रसाद तथा माता का नाम श्रीमती हेमरानी था। परिवार में सात पीढ़ियों पश्चात पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। अतः उनका महादेवी नामकरण हुआ। और यथार्थ में भी वे विश्व सहित्याकाश में विद्या की देवी शारदा स्वरूपा सिद्ध हुई। मुहँबोले भाई महाकवि निराला जी उन्हें सरस्वती कहा करते थे। उनके जन्म के दिन होली के रंग भी बरस रहे थे। इन्हीं सप्तरंगों की इंद्रधनुषी आभा को अपनी रचनाओं में बिखेर दिया। सात वर्षीय नन्हीं बालिका की पहली कविता है,"बांके ठाकुर जी बोले हैं..." बालवय में दुल्हन बनी और सत्रहवें वर्ष में वे पिया श्री स्वरूप नारायण के घर पहुँची। रंग-रूप में साधारण थी किन्तु अति सुंदर ह्रदय व अथाह ज्ञान से परिपूर्ण दि...
जय शिवाजी
गीत

जय शिवाजी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शाहजी भोंसले बाबा थे माँ थी महान जीजाबाई पुणे के शिवनेरी दुर्ग में अवतारे लाल शिवाजी थे वंदेमातरम... माँ ने दी थी शिक्षा दीक्षा शस्त्र शास्त्र का ज्ञान मिला बुद्धिमानी निडरता पाई बहादुरी का थे दम भरते रामायण महाभारत पढ़ते सर्वधर्म समभाव वे रखते जातिभेद से नफ़रत करते सबको अपना ही समझते कद छोटा और छोटा घोड़ा पर भारत का नक्शा बदला छुरी कटार जैसे हथियार कपड़ो में छुपाकरके रखते गुफ़ा और कंदराओं से छापामारी खूब करते थे मुट्ठीभर सैनिक लिए वे पहाड़ी चूहों से दुबकते थे आदिल शाह ने चालाकी से शाह जी को किया नज़रबंद फ़िर भी आदिल तोड़ न पाया वीर शिवा का चक्रव्यूह बड़ी साहिबा बीजापुर ने अफ़ज़ल खान को भेजा था उसने जो गड्डा खोदा था वो ख़ुद ही जमीदोज हुआ शाइस्ता खान बराती बनकर औरंगजेब का संदेसा लाया तीन उंगलियाँ कटवा...
मकर संक्रांति का महत्व
आलेख

मकर संक्रांति का महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत के विभिन्न त्योहारों में से, विशेषकर ज्योतिष विज्ञान पर आधारित, मकर संक्रांति एक है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है और पृथ्वी के सबसे निकट होता है। धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश से यही नाम रखा गया। ऋतु परिवर्तन का संधिकाल अर्थात जाड़े की विदाई व ग्रीष्मा रानी का आगमन। पौष माह से माघ में प्रवेश। अमूमन यह चौदह जनवरी को आता है किंतु कभी-कभी मौसम परिवर्तन से तेरह या पँद्रह जनवरी को भी पड़ जाता है। पंजाब में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। ज्वार मक्का की धानी, सिके चने व मुमफली जैसे चना-चबीना,बीच में आग जलाकर बाँटते व खाते हैं। दक्षिण में केरल व कर्नाटक में संक्रांति तथा तमिलनाडु में पोंगल मनाते हैं, नई फ़सल के उपलक्ष में। सुंदर फूलों आदि से रांगोळी बना पूजा-नृत्य करते हैं। घरों में नए अनाज की खाद्य सामग्री बनती...
मानते हैं पर करते नहीं
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मानते हैं पर करते नहीं

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नर व नारी...मनु व शतरूपा से बने हमारे समाज में जब भी तीसरी प्रजाति का ज़िक्र आता है, मन करुणा से भर जाता है। सामाजिक संस्थाबाएँ बस इनकी गणना करवाती हैं ताकि भीड़ जुटा कर फोटो खिचवा सके। नलसा निर्णय भी इनकी गिनती करवाने के सिवा कुछ नहीं कर सका। इनका अवतरण प्रकृतिजन्य त्रुटि ही है। जैसे मशीनों द्वारा भी कुछ आधे-अधूरे प्राडक्ट रह जाते हैं। इसमें किसी का क्या कुसूर भला ? युगों से यह परंपरा चली आ रही है। ये जनोत्पति का हिस्सा रहे हैं। पुराण व इतिहास भी इसके साक्षी हैं। यह तीसरी प्रजाति मूलत: हिमालय क्षेत्र की मानी जाती है। अर्जुन व एक नागकन्या के प्रेम का परिणाम है उनका पुत्र इरावन । इन्हें ही किन्नरों का देवता माना जाता है। अर्जुन स्वयं वनवास काल में किन्नर बन कर रहे थे। कहते हैंं इरावन का विवाह नहीं होने से स्वयं कृष्ण ने नारी रूप धर ...
बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए
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बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीजें हैं अपना समय और अच्छे संस्कार। एक श्रेष्ठ बच्चे का निर्माण सौ विद्यालय बनाने से भी बेहतर है।" -स्वामी विवेकानन्द बाल-विकास की अवधि गर्भावस्था से परिपक्वता तक मानी जाती है। गर्भ में पल रहे शिशु पर माता के खान-पान, आचार-विचार एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है। माता को "भए प्रगट कृपाला" जैसे पाठों का वाचन-श्रवण करने की सलाह दी जाती है। अभिमन्यु, चक्रव्यूह प्रवेश की जुगत माँ के गर्भ से सीखकर आया था। ईंट अपने साँचे जैसी ही ढलेगी। १ से ५ वर्ष तक शैशवास्था में बच्चा परिवार में रहता है। गीली मिट्टी से जैसा कुम्भ चाहो गढ़ लो। संस्कार किसी मॉल से नहीं, घर-परिवार के माहौल से मिलते हैं। कहते हैं... "बुढ़ापे में रोटी औलाद नहीं, हमारे द्वारा दिए संस्कार देते हैं" "बातों से संस्कार का पता चलता है" ५ से १२...
पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी
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पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पानी रे पानी तेरा रंग कैसा... रंग पूछ रहे हो मुझसे मेरा। मेरा अपना कोई रंग है ही नहीं। मैं बेरंगा पारदर्शी तरल पदार्थ हूँ। किन्तु मैं परिस्थिति के अनुसार अपना रूप परिवर्तित कर लेता हूँ। उच्चस्तरीय शीतलता पाकर बर्फ़ बन जाता हूँ। ऊष्मा पाकर वाष्प बन जाता हूँ। अपने स्वरूपों में बदलाव लाते हुए रिमझिम वर्षा बनकर धरा को निहाल कर देता हूँ। कभी माँ के गर्भ में समा जाता हूँ तो कभी पिता आसमान की गोद में जा बैठता हूँ। किन्तु मैं अपना उपकारी स्वभाव विस्मृत नहीं करता। और तुम मूर्ख मानव ! अभी तक मुझे समझ नहीं पाए। कब तक करूँ मैं तुम्हारी गलतियाँ माफ़ ? मुझसे ही कुछ सीख लो। याद करो... सुबह उठने से लेकर तो रात में सोने तक मुझे कितना बर्बाद करते हो। उठते से ही गए वाशबेसिन पर। धड़ाधड़ खोला नल और बहा दिया पूरा आधा बाल्टी। यही काम एक मग से भी हो सकता है...
तालियाँ
लघुकथा

तालियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रादेशिक नृत्य प्रतियोगिता के लिए नाम दर्ज हुआ था "मृणाल रेगे"। एक नाज़ुक सा साया मंच पर आया। मंच पर रोशनी होले-होले पसरने लगी। इस स्वप्न सुंदरी के आने से मंच और भी प्रकाशित हो गया। नाज़ुक सी नार-नवेली छा गई। गुलाबी चूनर से ढका मुखड़ा व रंगबिरंगी घेरदार कलियों वाला घाघरा। बगैर कुछ बोले उसने हाथ जोड़े और लगी नाचने...मैं ससुराल चली जाऊँगी...। दर्शक मंत्रमुग्ध हो निहारने लगे। शायद तालियाँ बजाना ही भूल गए। निर्णायकगण खड़े हो गए। अंत में घूमर का जलवा दिखाया। ज्यों ही घूँघट हटाया और नमस्कार बोला, अचंभित हो सब देखने लगे। एक निर्णायक से रहा नहीं गया, पूछ बैठे, " आप लड़के... हो। " सिहरती-सहमती मर्दानी आवाज़ सुनाई दी, "जी, मैं मृणाल, न लड़का और न लड़की।" हॉल में सन्नाटा, कहीं से सिसकियाँ भी सुनाई दी। जजों ने ख़ूब सराहा, "एक बार सब मृणाल के लिए जो...
धुँधला होता रंग
आलेख

धुँधला होता रंग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अभी-अभी पान पर एक लेख पढ़ा। सच इस पान प्रकरण ने कई यादें ताज़ा कर दी। यूँ देखा जाए यह शनै-शनै विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में भी आ सकता है। मुखवास के नए साधनों की कमी नहीं है। कई तरह के पान मसालों से बाज़ार पटा पड़ा है। एक ज़माने में प्रत्येक घर में एक पीतल या चाँदी का पाँच-सात खानों वाला अदद पानदान हुआ करता था। लौंग, इलायची, सौंफ, सुपारी, पिपरमिंट, जायत्री, गुलकन्द आदि भरे रहते थे। कत्था व चूनादानी अलग से होती थी। और गीले कपड़े में लिपटे पान बेड़ामाची (पंडेरी) पर मटके के साइड में रखे रहते। भोजनोपरान्त सबको प्यार से पान खिलाया जाता था। इस कार्य का दायित्व घर के बुजुर्ग निभाया करते थे। हाँ, चाय का रिवाज़ नहीं होने से मेहमानों का स्वागत भी पान से होता, पान बहार से नहीं। पान हमारी परंपरा बनकर छा गया है। धार्मिक क्रियाओं में पान की प्रमुखता र...
पुरुष
मुक्तक

पुरुष

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विधा - मुक्तक मात्रा भार - ३० घर के हर सदस्य के प्रति, कर्तव्य सारे निभाता है पसीना दिन-रात बहाता व अधिकार भूल जाता है जो आधार स्थम्भ है परिवाररूपी इक इमारत का सबकी खुशी में ही खुश रहता वह पुरुष कहलाता है घिसी स्लीपरें पहनकर, सबको ब्रांडेड शूज़ दिलाएँ तन ढाँके उतरन-पुतरन से, बच्चों को नये सिलाए तन-मन-धन सब परिवार पर अर्पण कर देता है पुरुष करके रात पाली थककर, सबकी दिवाली मनवाए परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
जादू नगरी
बाल कहानियां

जादू नगरी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया-लड्डू बनाकर ऊँची रेक पर रख दिए। नीनू बेचारी... गुड़िया बहियन की छोटी गुजिया केही विधि पाए ? उसके सारे प्रयास विफ़ल, रेक तक पहुँचने के। नीनू ललचाते हुए माँगती है, "बस एक गुजिया दो न मम्मा, सच्ची बस एक ही।" माँ ने फटकार लगाई, "बिल्कुल नहीं, भोग के बाद मिलेगा समझी।" नन्ही नीनू मिठाई का सोचते-सोचते निंदिया रानी की दुलारी हो गई। और सपने में जादूनगरी पहुँच गई। वहाँ का नज़ारा देखकर वह हैरान... एक अनूठे पार्क में नितांत अकेली चहलकदमी कर रही है। पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रहीं हैं...रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन वगैरह-वगैरह और... उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ। नीनू की तो भई बल्ले-बल्ले हो गई। वह समझ नहीं पा रही कि क्या करें, "चलो पहले सब देख लूँ, फिर खाने का इंतज़ाम करती हूँ।" ज्यों ही उसने सामने द...
बेगारी एक अभिशाप
आलेख

बेगारी एक अभिशाप

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्वाधीनता दिवस के बारे में सोचते सोचते अंग्रेजों द्वारा बरपाई क्रूरता याद आ गई। और वे यह सिखा गए हमारे उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों को। वर्षों पूर्व के वाकये हैं ये... सरकारी उच्च अधिकारियों के घर पर निम्न श्रेणी कर्मचारियों को घरेलू कार्य करने हेतु तैनात किया जाता था। उनसे अमूमन लोग झाड़ू-बर्तन-कपड़े, लीपना -पोतना, खाना बनाना, बच्चों को खिलाना, प्रेस-पालिश सब कुछ करवाते। मिर्ची-मसाले भी लगे हाथ कुटवा लेते। यह तो एक तरह की प्रताड़ना ही हुई। ऐसा जब भी मैं देखती करुणा से भर जाती थी। मेरे घर भी आते थे। सबसे पहले मैं उन्हें चाय नाश्ता खाना वगैरह करवाती। फ़िर रोज़ का कार्य करवाती। उन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोतना मुझे कभी नहीं गवारा। साथ वाली मेडम जी...सो काल्ड बाई साब लोग कहती, "आप भी न... ऐसी दया किस काम की। अरे! इन्हें सरकार पगार-भ...
करवाचौथ मनाव रे
गीत

करवाचौथ मनाव रे

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** करवाचौथ मनाओ रे चालो धीरे-धीरे चालो धीरे-धीरे, सखी री चालो धीरे-धीरे लाल-लाल लुगड़ो, असमानी पोलको माथे टीको नाक माय नथनी चुड़लो चमचम, नौलखी हरवो गजरा री कलियाँ बिखरे रे चालो धीरे-धीरे हाथे सजी है पूजा नी थाली माटी रो करवो, चाँदी री छलनी दिवड़ो री ज्योति दमके रे चालो धीरे-धीरे करवाचौथ री रात बी आई गई सासू बई ने प्रेम से सरगी सजाई मेहँदी भर्या दोई हाथ रे चालो धीरे-धीरे सौलह सिंगार म्हारा पियाजी लाया चाँद री वाट जोऊँ, सखियाँ बी आई गई म्हारो चाँद तो म्हारा साथ रे चालो धीरे-धीरे दो-दो चाँद म्हारे आँगने उतर्या ऊ चाँद तो घटतो ने बढतो म्हारो चाँद तो सदा मुस्काय रे चालो धीरे-धीरे करवाचौथ मनाव रे सखी चालो धीरे-धीरे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह ...
अपने-अपने रावण
कविता

अपने-अपने रावण

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर जीवात्मा में होते सदा रावण या सदाचारी श्रीराम बुराई का प्रतीक है रावण तो अच्छाई दर्शाते श्रीराम काम, क्रोध, लोभ, मोह व मद जो दे देते तिलांजलि इनको वे हैं राम जैसे ही चरित्रवान लिखा जाते इतिहास में नाम पाँच विकारों के वशीभूत जो बन जाते दुष्ट दुराचारी सिया-हरण सा पाप करते जग में कहलाते हैं ये रावण मानव स्वकर्मो से ही बनता जो भी चाहे, रावण या राम क्यूँ न हरा दें इस रावण को बन जाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम हराकर दशाननी विकारों को दशरथसुत राम ही बन जाएँ करके स्थापना रामराज्य की धरा पर स्वर्ग ही अब उतार दें आज सबके हैं अपने रावण रिश्तों, कुर्सी की मारामारी में अत्याचार, अनाचार, आतंक में महाभारत का ही बोलबाला है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि ...
विजयादशमी का सामाजिक महत्व
आलेख

विजयादशमी का सामाजिक महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत त्योहारों का देश है। इनकी महत्ता हर क्षेत्र को प्रभावित करती है। किंतु समाज, जो जनसमूह से बनता है, के हितार्थ ही मानो त्योहारों की संरचना हुई है। समाज को चलाने में नैतिक मूल्यों को भुलाया नहीं जा सकता है। दशहरा उत्सव की जड़ में है रावण जिसने सीता को हरा था। इसके पीछे रावण का अहंकार व विजेता बनने की लालसा थी। मर्यादा के प्रतीक राम ने रावण को हराया अर्थात बुराई पर अच्छाई की जीत। समाज के भी नियम होते हैं...सदाचरण यानी नारी मात्र का आदर करना। जो यह नहीं पालन करता, उसे सजा मिलनी ही चाहिए। रावण के दस सिर दिखाए गए हैं व आज भी बनाए जाते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, वासना ये पाँच विकार हैं। रावण के दस सिर यानी पाँच स्त्री के विकार व पांच पुरुष के। समाज में ये विकार नहीं होने चाहिए। प्रेम सुख शान्ति चरित्र की पवित्रता व दुर्गुणों से ल...
शक्ति आराधना
कविता

शक्ति आराधना

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शक्ति सिध्दि की बात से दम्भी रावण हुआ प्रसन्न व्यथित राम हुए हार से सारे शमशीर हुए विफल जामवंत इक युक्ति सुझाई कमल एक सौ एक लेकर मन में धारे अटल विश्वास राम बैठे करने देवी- जाप रात्रि से भोर तक प्रभु किए पद्म अर्पण चरण कमल में पुष्प एक की कमी हुई जब प्रभु की चिंता गहराने लगी माँ शक्ति ने परीक्षा के लिए युक्ति से एक कमल छुपाया प्रभु को माँ कौशल्या सर्वदा राजीवलोचन ही बुलाती थी तीर उठाया यही सोच प्रभु ने क्यूँ न नयन ही अर्पण कर दूँ माँ शक्ति ने तब दर्शन देकर थामा हाथ स्व प्रिय भक्त का अमर शक्ति का वरदान पाकर प्रभु किया दुष्ट दशानन संहार आओ हम सब फ़िर मिल करके करें माँ शक्ति का आज आव्हान परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित...
बेरंग होते रंग
कविता

बेरंग होते रंग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंदमुक्त रचना सच, कितना कठिन, दूभर होता है एक स्त्री के लिए ख़ुद को समझना उससे भी कठिन औरों को समझाना ज़िन्दगी के हर रंग में एकरस हो जाना नदी सी यात्रा कर सागर में समा जाना जन्म से तो मिलता प्यारा गुलाबी रंग असमानी रंग आने से धुंधलाने लगता अधिकारों पे कर्तव्य हावी होने लगते भूल जाती है गुड़िया हक़ का प्यार वार देती भय्यू पर सारा लाड़ दुलार लाल रंग की चूनर ओढ़े जाए पियाघर कड़छुल बन जाती दाल हिलाने को वार त्योहार पर ही ओढ़ती चुनरिया फ़िर बरसों सन्दूक में ही रखी रहती समा जाता लाल रंग काल के ग्रास में वह सोचती है सबके लिए दिल से ही ख़याल रखती सभी का हर तरह से फ़िर फोड़ा जाता है बुराई का ठीकरा बस और बस उसी के सिर पर आख़िर व सारे वो सुहाने रंग बदरंग होते जाते पेट भरती है बचा खुचा खाकर ही सबको खिलाकर गर्म घी वाले फुलके स...
मेरा जादूगर गणु
बाल कहानियां

मेरा जादूगर गणु

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बाल लघुकथा "वीनू ! क्या कर रहा है घण्टे भर से। अब थोड़ा हाथ में किताब भी पकड़ ले।" "बस आता हूँ माँ। ज़रा मेरे गणु के हाथ पैर तो बना दूँ। हाँ, बड़ा सा सिर बनाकर उनमें गणित के सवाल और सारे फार्मूले भी भर दिए हैं। देखता हूँ गणु कितना बुद्धिमान है।" "वीनू ! हाँ ठीक है पर उदर थोड़ा मोटा होना चाहिए।" "अरे मम्मा ! सूप जैसे कानों से सुनकर बुरी बातों का कचरा फटक देंगे तो बची हुई अच्छी बातें समा जाएगी इस पेट में। और क्या।" माँ को मोतीचूर के मोदक बनाने के लिए मशक्कत करते देखकर वीनू की जिज्ञासा जागी, "आपको भी मेहनत करने में ही मजा आता है। सीधे बेसन के लड्डू बना लेती।" "बेटू ये सब दाने बंधकर बताते हैं कि एकता का फल मीठा होता है, लड्डू जैसा।" वीनू की कॉमेंट्री चल ही रही है, "लो माँ ! देखो मेरे गणु को।" ध्यान से देख रही माँ टोकती है, "बच्चे ! ...
छंदमुक्त – क्षणिकाएँ
कविता

छंदमुक्त – क्षणिकाएँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंदमुक्त - क्षणिकाएँ भूख- मासूमा खड़ी चौराहे पे हाथ में ले कटोरा एक साया खाना लिए ले गया अँधेरे में भरपेट खिलाया उसे सहलाया पुचकारा ख़ुद भी भूखा था जी भरकर मिटाई अपनी देह की भूख एक दीया- मत जलाना दीए किसी भी दिवाली पर न राहें या चौराहें न घर न बाहर न मंदिर या मस्ज़िद में न यहाँ न वहाँ व्यर्थ उजाले की न हो चाह याद से लगाना एक दीया सरहद के शहीदों के नाम क्या हो- प्रदूषित सृष्टि जल-थल-नभ अशुद्ध हरीतिमा विलुप्त मरुथल विस्तृत पशु संपदा संतप्त नदियाँ अतृप्त जल-जीव मृत दम घोटती मलय पंछी विहल बचे पर्यावरण क्या हो भवितव्य न से नः तक- न ना से नदी व नारी नि से निशदिन व्यस्त नी से नीयत शुद्ध नु से नुमाइश न करे नू से नूतन सदा ही ने से नेकी ही करे नै से नैतिकता निभाए नो ये कभी नहीं कहे नौ से नौनिहाल द...
धरा
कविता

धरा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विधा.... क्षणिकाएँ माँ धरा ही सब है धारती उतारें तेरी हम माँ आरती ये ताज बने ऊँचे शिखर श्रृंखलाएँ तेरी है करधूनी रुनझुन पैंजनी हैं घाटियाँ मंद सुगन्धित मलय पवन ये कलकल करती नदियाँ रेशमी केशों की हैं लड़ियाँ ये झरने मोती की वेणियाँ घाटों में समाई हैं चोटियाँ मचलती सागर की लहरें पखारती चरणों को तेरे हरे भरे वन उपवन ये सारे धानी चूनर माँ को ओढ़ाए महकते फूलों की लताएँ ये लहँगा चोली खूब पहनाए सूरज लाल बिंदिया लगाए चंदा कर्णफूल बन जाता है सितारे माँग में जड़ जाते हैं परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
सैलाब
कविता

सैलाब

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सैलाब, विचारों का हो चाहे मनोभावों का हो बवंडर सा घिर जाता है दिलोदिमाग पे यकायक विचारों के भ्रमजाल का एक बोझ लद जाता है समेट लें कागज़ पर तो नवसृजन बन जाता है जब बाड़ में जलस्तर नदी का निजी स्वरूप किनारों का अस्त्तित्व आगोश में भर लेता है इसे संग्रहित करें हम तालों जलाशयों में तो खेत वनों व उपवनों में पर्ण प्रसून खिला देता जब समन्दर में जल का सैलाब तटों को तोड़कर तूफ़ानी लहरें उठा देता एक जलजला आ जाता इसीको प्रलय कहते होंगे क्यों न हम जंगल बढ़ाएँ रोककर जल तांडव को स्वर्ग सी धरा को बचालें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
वर्ण पिरामिड
कविता

वर्ण पिरामिड

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ण पिरामिड ॐ शिव ओंकार निराकार परमेश्वर त्रयम्बकेश्वर करो विश्व उद्धार हे शंभू त्रिचक्षु संकटी भू कल्याण कुरु बजादो डमरू करो तांडव शुरू ओ रुद्र शंकर विश्वेशर ओंकारेश्वर महाकालेश्वर आओ परमेश्वर परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
एक नन्हीं परी
कविता

एक नन्हीं परी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीले बादलों के रथ पे सवार झिलमिल तारों की पीछे है कतार चाँद की चांदनी दे रही बिदाई रिमझिम बूंदों ने शहनाई बजाई एक नन्हीं परी आँगन में उतरी उषा की लाल किरणें ज्यों बिखरी महके कनेर जुही चंपा हरसिंगार हर द्वारे झूमते देखो वंदनवार चाची ने रंगीली रंगोली सजाई ढोलक की थाप पे सोहर गवाई आरती भुआ ने खूब उतारी दादी ने काजल की बिंदी लगाई ठुमक ठुमक कर चलने लगी गुड़िया सजने अब लगी ख्वाबो की दुनिया तोड़ हदे सारी भरो ऊँची उड़ान माँ और बाबा ने कर दिया ऐलान गुड़िया ने सोची अंतरिक्ष की सैर या जा विदेश मनाऊँ अपनी खैर बाबा ने बोला पंख हमने दिए राहे मिल जाएगी पर ज़रा होले होले बुलन्द हौंसलें संजोए दिल में सात सुर गुंजाती पैजनियाँ ख़ामोश जय हिंद सेना में सरहद पे जा डटी नहीं हूँ बेटे से कम मैं...
कहानी नदियों की
कहानी

कहानी नदियों की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** परिवेश के साथ प्रकृति की प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन सम्भव है। होली हो गई रेन डांस व बसन्त पंचमी अब है वेलेंटाइन डे तो नदियाँ अपनी जीवन शैली क्यूँ न बदले भला। डिजिटल दुनिया तो नदियाँ भला कैसे पीछे रहती। वर्तमान आभासी संसार की देखा-देखी नदी परिवार की मुखिया माँ गंगा ने एक कॉन्फ्रेंस काल मीट में आदेश निकाल दिया, "सभी नदियाँ अपनी खुशियाँ व गम परस्पर साँझा किया करें। जब तक समस्याएँ पता नही होगी, समाधान कैसे ढूंढेंगे ?" माँ नर्मदे तो मानो भरी हुई बैठी थी। क्या क्या बताए? अतीत की भयावह स्मृतियाँ भुला नहीं पा रही हैं। यदा कदा चट्टानों में विचरती ताप्ती को दिल का हाल सुना देती हैं, "बहना, तुम जानती हो मुझमें आने वाली उफ़नती बाड़ों को। उन विकराल लहरों को याद कर मेरी रूह काँप जाती है। होशंगाबाद जैसे कई इलाकों में घरों की छतों तक पानी पहु...