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Tag: सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

उठे जब भी कलम
कविता

उठे जब भी कलम

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** उठे जब भी कलम मेरी अधरों पर कुछ विचार लिए। चल पड़ती हूँ तब में कुछ नयें अंदाज लिए।। सोचती है इक नयीं पहेली अंगुलियों की पनाह में। लिखती है नयीं कहानी एकान्त में।। उठे जब भी कलम भावनाओं के सागर में। डूब जाती है ये मेरी कलम स्याही के समन्दर में।। कभी अश्कों की नमी रच लेती है। कभी हृदय की परख कर लेती है।। बैठे-बैठे इतिहास स्वर्ण, अक्षरों में अंकित कर लेती है। ये मेरी कलम सागर से मोती हिमालय से मुकुट, और चाँद से चाँदनी चुरा लेती है।। उठे जब भी कलम, इक नया सूरज उगा लेती है। कभी निशां की रोशनी में कभी भोर में चल लेती है।। परिचय :-  सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ शिक्षा : स्नातकोत्तर- एच, एन, बी गढ़वाल यूनिवर्सिटी श्रीनगर निवासी : रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) सम्प्रति : शिक्षिका, लेखिका/कवय...
अनहदें…
कविता

अनहदें…

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है, मैंने सरहदों के दायरों में रहकर ये जीवन जिया है, मैंने शिखरों की चाह नहीं थी, सरहदों की परवाह थी हमें, गुजर गयी वो हदें जिनकी परवाह थी हमें, वो अनहदों के दायरे आज भी गूँज रहे हैं। वो नयनों की रोशनी कहीं खो गयी है, पर तुम्हारी खुशबू चंदन की तरह महसूस हो रही है वो शिरोमणि चमक रही है कानों में तुम्हारी आवाजें गूँज रही हैं।। मैं शान्त और शालीनता से तुम्हें महसूस कर रही हूँ, अभी भी अनहदों से गुजर रही हूँ, वो हल्की सी मुस्कराती हुई सुबह, वो शीतल होती हुई शाम, बन्द नयनों से महसूस किये जा रही हूँ,। बन्द कानों से तुम्हारी आहटों का अहसास जम़ी पे तुम्हारे कदमों को इस मखमली दूब के सहारे महसूस किये जा रही हूँ,।। अनहदों से होकर तुम्हें महसूस किया है मैंने, सरह...
घौंसला
कविता

घौंसला

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** इक चिड़िया घूमती बार-बार, घर आँगन अर द्वार। रोज पिताजी दाना डालते माँ पानी की धार।। चिड़िया रोज़ सबेरे आकर कहती है उठ जा गुड़िया रानी। में कहती रूक जा महारानी।। चिड़िया का घौंसला था दूर घौंसले आज पिताजी घर में ही ले आये। चिड़िया रानी को घौंसले बहुत सुहाये।। अपनी सखी सहेलियों को घर ले आई। आज खुशी से फूली न समाई।। सावन की घनघोर घटाएँ हैं छाई। मेरे घर आँगन चिड़िया चहचहाई, पिता जी की मेहनत रंग लाई।। मुझे इक नयी राह है दिखाई, इक चिड़िया घूमती बार-बार। मेरे घर आँगन अर द्वार।। खुशहाली से है चिड़िया का परिवार। प्रभात की बेला पर मुझे पुकारती बार-बार।। वो भी दाना चुगने जाती में भी, पापा मम्मी के आस पास मंडराती, उड़ान जब ये भरती है, इक नयी सीख मिलती है हर बार। कितना सुन्दर है चिड़िया का घर द्वार।। ...
विश्वास
कविता

विश्वास

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** हमें यकीन इतना है, कि तुम हमारी आत्मा की आवाज़ हो। घरौन्दा कहीं भी रहे ये धडकनें उड़ती तुम्हारे लिए ही हैं, कभी इस डाली पे कभी उस डाली पे बसेरा मेरा मगर ये साँसों की उड़ान तुम्हारे दर पे ही हो।। आस्था से भरी ये आहें खुशबू की तरह बिखरती रहे, पर श्रद्धा के सुमन तुम्हारे चरणों में ही हों। यादों के शिलशिले घनघोर सावन की घटाएँ कहीं भी बरसे, मगर निष्ठा की बूँदों का अहसास तुम ही हो।। ये मेरा समर्पण मेरी साधना तुम्हें महसूस करती हैं, मगर मेरी साधना के साधक तुम ही तो हो। हृदय की डोर लहरों से गुज़र रही है, इतना यकीन है! कि मेरी डगमगाती कश्ती की बागडोर तुम ही तो हो।। मन की श्रद्धा तन की निष्ठा समय की धारा इस धरा पे विश्वास का वो तिनका तुम ही तो हो।। लड़खड़ा जायें ये पग कभी सहारा तुम्हारी पग डंडी ...