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Tag: संजय वर्मा

पिता
कविता

पिता

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता का दाहसंस्कार कर घर के सामने खड़े होकर अपने पिता को पुकारने की प्रथा जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती भर जाती आँखों में पानी वो पानी बढ जाता गला रुँध जाता, तब जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला और सामने जल रहा हो दीपक बचपन की स्मृतियाँ संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर जो काम पिता कर लेते थे वो लोगो से पूछकर करना पड़ता होंसला अफजाई और परीक्षा में पास होने पर पीठ थपथपाई भी गुम सी गई अब में पास हुआ किंतु शाबासी की पीठ सूनी सी है और त्यौहार भी मुँह मोड़ चुके और रौशनी रास्ता भूल गई पकवान और नए कपडे कैद हो गए पेटियों में इंतजार है श्राद पक्ष का पिता आएंगे पूर्वजो के संग धरती पर अपने लोगो से मिलने जब श्राद में पूजन तर्पण और उन्हें याद...
आँखों के आंसू
कविता

आँखों के आंसू

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" बेटी के ससुराल में पिता के आने की खबर बेसब्री तोड़ देती बेटी की आँखे निहारती राहों को देर होने पर छलकने लगते आँसू दहलीज पर आवाज लगाती पिता की आवाज -बेटी रिश्तों, काम काज को छोड़ पग हिरणी सी चाल बने ऐसी निर्मल हवा सूखा देती आँखों के आंसू लिपट पड़ती अपने पिता से रोता - हँसता चेहरा बोल उठता पापा इतनी देर कैसे हो गई समय रिश्तों के पंख लगा उड़ने लगा मगर यादें वही रुकी रही मानो कह रही हो अब न आ सकूंगा मेरी बेटी मगर अब भी आँखे निहारती राहों को याद आने पर छलकने लगते आँसू दहलीज पर आवाज लगाती पिता की आवाज -बेटी अब न आ सकी पिता की राह निहारने के बजाय आकाश के तारों में ढूढ़ रही पापा कहते है की लोग मरने के बाद बन जाते है तारे आंसू ढुलक पड़ते रोज गालों पर और सुख जाते अपने आप क्योकि निर्मल हवा कभी सू...