तलाश
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रचयिता : श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक"
४ बज गई ..... सभी सहेलियाँ एकता के घर पहूँच गई थीं ,,,,,
आशा :- अरे अन्नू ,,,,, शीला नहीं आई ,,,,
हाँ, आशा भाभी, वो अपनी बेटी के घर गई है।
सुधा :- अरे कुछ समय पहले ही तो गई थी ,,,,,, पूरे २० दिन में आई थी।
क्या करे बैचारी, खुशी ढूंढती रहती है। गहरी सांस लेते हुऐ रमा ने कहा।
मैं नहीं मानती ,,, अरे घर हमारा है ,,, तो हम क्यों छोड़े अपना घर ,,,,,,, भाई पूरी ज़िंदगी का निचोड़ है ये आज ,,,,,, अब तो सुख भोगने के दिन है।
कल कि आई लड़की के लिए तुम क्यों अपना घर छोड़ती हो ,,,,,
यहाँ तो शीला ही गलत है, बेटा हमारा है, फिर क्यों हम किसी ओर से उम्मीद रखें -----
बड़े आत्म विश्वास के साथ आशा ने कहा था ,,,,,,,
बैग में कपड़े रखते हुए आशा को ये सारी बातें याद आ रही थी ,,,,,,, अब समझ में आ रहा था कि ,,,,, भरा-पूरा...