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Tag: शोभा रानी

ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख …
कविता

ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख …

शोभा रानी खूंटी, रांची (झारखंड) ******************** ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख ... बिखर सा गया हूं मैं.... बहुत याद आती है मुझे.... खुद की.... मुनासिब होगा अगर तू मुझे पहले जैसा कर दे..!! बहुत याद आती है मुझे... वो बचपन के ख्याली पुलाव... वो लड़कपन के हजारों खिलौने... वो अल्हड़ आजादी... वो निश्चल हृदय... वो बेख्याल सा मन... वो सुकून भरी नींद... वो सुनहरी खुशनुमा सुबह... भरी दोपहरी में दोस्तों संग... कच्ची अंबिया चुराना... यारों संग बर्फ के गोलो को... मां से छुपा कर खाना.. वो बारिश के पानी मे... कागज की कश्ती चलाना... वो पूस की ठिठरन में .... अपनो संग आग सेकना... वो सावन के झूले मे... गूंजती हंसी और ठिठोलियां.... वो ख्वाबो का जहँ।... और मुट्ठी भर आसमा... वो बचपन के दिन.... वो इंद्रधनुषी सा सतरंगी समा.... बदलते वक्त के साथ .... खोता हुआ झिलमिलाता सा.... ...
कुछ बर्फ सी
कविता

कुछ बर्फ सी

शोभा रानी खूंटी, रांची (झारखंड) ******************** कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में.... एक ख्वाब सा लगने लगता है.. यह लाल रंग सा इश्क लिए... मन शोर शराबा करता है ... फिर एक खामोशी सी छा जाती है... कैसे बताऊं ए ग़ालिब तुझे मैं... तन्हाइयो मैं खामोशी जान ले जाती है.... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में... वह मेरा ख्वाब उलझता जाता है.. फिर यह इश्क बिखर सा जाता है... ओस की इन बूंदों के तले ....... वह पत्थर सा जम जाता है .... फिर से पिघल के बहने को..... उस भोर की सुनहरी रोशनी में... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में... फिर खामोशी से निंदिया में ... तेरा अक्स कुछ कह जाता है... चुरा के फिर मेरी नींदों को... पलकों को सहलाता है... दर्द भी यही मेरा मर्ज भी यह... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांद...
अस्तित्व
कविता

अस्तित्व

शोभा रानी खूंटी, रांची (झारखंड) ******************** नारी तु सदैव है हारी जग जीत कर अपने रिश्तों से हारी जन्म के समय पुत्री बर कर हारी तरूनाई में प्रमिका बर कर हारी पति के घर बहु व पत्नी बन कर हारी माँ बन कर अपने बच्चों से हारी सास बन कर अपने बच्चों से हारी कभी आधी कभी पूरी मुस्कराते हुए तु हर रिश्तें से हारी कभी अपना अस्तिव मिटा कर कभी अपना आत्म सम्मान छोड़ की कभी सर्वस्व बलिदान कर तु अबला बन सारे संसार से हारी चाहे हो वो युग श्री राम का या समय चक्र में बदला युग आज का कभी माँ सीता के रूप में तु जीवन के पग-पग में रिश्तों से हारी हे नारी, हे नारी तु मुस्कुराते हुए सदैव हारी धर्म कहे तु आदिश्क्ति कर्म कहे तु धरती सृष्टि कहे तु पूजनीय मनुष्य कहे तु जीवनदायी भटक रही हुँ बस एक सवाल लिये कहाँ तेरा आस्तित्व है, हे नारी आखिर तु कैसे पूजनीय, कैसे महालक्ष्मी शक्त...