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Tag: शैलेश यादव “शैल”

आ गया बसंत है
कविता

आ गया बसंत है

शैलेश यादव "शैल" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** विटपों के पुराने पत्ते जब मिलने लगे धूल, वसुधा भर के वृक्षों में जब लगने लगे फूल, आम की मंजरी जन जन का मन मोहने लगे, सेमर पलाश वन लाल सुमनों से सोहने लगे, तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है। कलघोष सुमधुर कंठों‌ से जब प्रिय बोलने लगे, अपनी मधुरता को मनुज के मन में घोलने लगे, सहजन का तरु जब श्वेत पुष्पों से भर रहा हो, बरगद जब कूचों को लाल लाल कर रहा हो, तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है । बैरों के वृक्षों में भी जब लालिमा छा गई हो, जामुन के वृक्ष में भी जब नई पत्ती आ गई‌ हो, जब कटहल के छोटे फल वृक्ष में लटक रहे हों, जब अपने पराए सब यहाॅं-वहाॅं भटक रहे हों, तो समझ लीजिए आस-पास आ गया बसंत है। महुए में भी छाई एक अलग ही मुस्कान हो, सुमनोहर सुगंध से भरा जब सारा वितान हो, जब चारों तरफ खुशियों की छाई बहार हो, ...
हाँ ! मैं लड़की हूँ
कविता

हाँ ! मैं लड़की हूँ

शैलेश यादव "शैल" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** हाँ! मैं लड़की हूँ। हमारे जन्म लेते ही, घरवाले हो जाते हैं मायूस, सोहर नहीं होता हमारे जन्म पर, नहीं बाँटी जाती मिठाइयाँ, कभी तो इस जहाँ में आने से पहले ही, भेज दी जाती हूँ दूसरे जहाँ में, हमें अपनो द्वारा ही बोझ समझा जाता है, अपनों के द्वारा ही सुनती बहुत घुड़की हूँ, छोटी हूँ, मझली हूँ या मैं बड़की हूँ, हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ! मैं लड़की हूँ। संसार के श्वानों की आंखों में गड़ती हूँ, दिन-रात गिद्धों से लड़ती झगड़ती हूँ, सारा काम घर का मैं ही तो करती हूँ, फिर भी दुनिया से मैं ही डरती हूँ, जहाँ देखें वहीं, खाती मैं झिड़की हूँ हाँ ! मैं लड़की हूँ, हाँ ! मैं लड़की हूँ। मुझे पराया धन माना जाता है, मुझे दान किया जाता है, कभी सारी सभा के बीच में अपमान किया जाता है, कभी सौंदर्य का कभी पीड़ा का गुणगान किया जात...