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Tag: शैलेन्द्र चेलक

क्या है हिन्दी …?
कविता

क्या है हिन्दी …?

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** हमारी आत्माभिव्यक्ति की भाषा है हिंदी, मां की ममता, पिता की आशा है हिंदी, दिल की तार जो छेड़ दे वो मधुर गान है, मैत्री की, प्रीति की परिभाषा है हिंदी, सखी है, बहन है, माता है, प्रिया है, डूबा है इसमें वें जो इसको जिया है, हल्कू है, झूरी है, धनिया है, होरी है, सुहाग की साड़ी को मरती एक गोरी है, धनपत राय को मुंशी की पहचान है, ग्रामीण जीवन को दिखाता गोदान है, आँसू है, लहर हैं, झरना का पानी, विनाश में नवनिर्माण दिखाती कामायनी, प्रसाद है, पंत है, महादेवी की गान है, गद्य को आधार देते, भारतेंदु महान है, तिलस्मी अय्यारी है, चंद्रकांता प्यारी है, देवकीनंदन की करामाती, अलगू जुम्मन की यारी है, कुरुक्षेत्र की भूमि में पड़े पितामह अवधूत है, रश्मीरथी का कृष्ण सिखाते शान्ति दूत है, विषमता को दूर करने मुक्तिबोध उठाय...
स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम
कविता

स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम, वीरो के गुण गाये हम, दासता मिटाने जान गवां दिए जो, उन पर बलि - बलि जाएं हम, स्वतंत्रता ... थी कभी सोने की चिड़िया, सजी-धजी सी इक गुड़िया, फूट डालकर फिरंगियों ने, लगा दी दासता की बेड़ियां, अब बेड़ियाँ तो टूट गए, पर भाईचारा छूट गए? आओ मिलजुलकर अमन फैलाये हम, स्वतंत्रता ... चुनौती हर दशक में नया-नया, कभी गरीबी होती नही बयां, कभी आधुनिकता के अंधे, भ्रष्टाचार-घूसखोरी धंधे, कुछ नेक बंदे हैं, कुछ राजनीति वश गंदे है , गंदगी दूर भगाए हम, स्वतंत्रता ... रोजगार की मारामारी है, कहीं कालाबाजारी है, किसान मजदूर हो चला, उनकी विवशता लाचारी है, नई सोच से सबके हित, स्वरोजगार सृजाएँ हम, स्वतंत्रता ... सीमा पर युद्व विराम नही, सेना को आराम नही, पड़ोसी नासमझ, न समझे तो, चुप रहना काम ...
मन ठहरा मन बहता
कविता

मन ठहरा मन बहता

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, छत्तीसगढ़ ******************** टिक न सके ये क्षण भर, मन चंचल मन बावरा, राममय शांत कभी, कभी रासमय सांवरा, बहे तो सलिल सरिता- जो उद्यत मिलने सागर को, स्वच्छन्दता सा वेग धारे, तोड़ बंधनों के गागर को, पर संघर्षो में चंचलता, व्याकुलता में हो परणीत, खो देता विस्तार स्वयं का, भूलकर जीवन के गीत, बहता मन ठहर जाता , अवसाद लिए, प्रमाद लिए, घिर जाता निराशाओं में, अंतर्द्वद्व का नाद लिए, सुख-दुख कुछ नही रे बंदे, मन की गति, मन का कहना, जीवन चलता रहता पल-पल, तुम धारा संग सीखो बहना, मन आतम मिले तो राह चले ईश्वर की, न मिले तो ये कहता, भाव उद्दीग्नो में बहे चले, रे मन ठहरा रे मन बहता, परिचय :- शैलेन्द्र चेलक निवासी : पेंडरवानी, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने ...