वही तो नहीं …
शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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जिसे देख के बहार आयी थी
मेरे मे निखार आयी थी
कहीं तुम वही तो नहीं।
जब ये घटना -घटी
तुम थे नायक मै थी नटी
निहारती रही कटी सी कटी
रह गयी आंखें फटी सी फटी
मैं हिस्सो में अब बंटी ही बंटी
मन ने माना मै पटी तो पटी
उसके लिए स्वर्ग से
उतार आयी थी
मुर्तिवत खड़ी जैसे
उधार आयी थी
कहीं तुम वही तो नहीं।
सांसे मानों थम सी गयीं
निगाहें उसपे जम सी गयी
मैं थोड़ी सहम सी गयी
उसपे जैसे रम सी गयी
गुस्सा भी अधम सी गयी
ज़िंदगी से ग़म सी गयी
मैं लिए जिंदगी के सपने
हजार आयी थी
कहीं तुम वही तो नहीं।
मेरे खुशी का ठिकान नहीं था
उस जैसा कोई पहलवान नहीं था
मुझ जैसा वो नादान नहीं था
उसका पटना आसान नहीं था
वैसा कोई महान नहीं था
अब मेरा कोई अरमान नहीं था
उसके मिलने से पहले मैं
बीमार आयी थी
कहीं तुम वह...