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Tag: शिवदत्त डोंगरे

ढूँढ रही हैं आँखें किस को
कविता

ढूँढ रही हैं आँखें किस को

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ढूँढ रही हैं आँखें किस को क्या खोया कुछ खबर नहीं है. भटकन-तड़पन-बेचैनी है सब है लेकिन सबर नहीं है। क्या ऐसा था गुमा दिया जो जिसको ढूँढ रही हैं आँखें ग़लत दिशा में हो बाहर की बाहर कोई डगर नहीं है। खुद में ही खुद मंजिल अपनी खुद में ही खुद रस्ता अपना जो खोया खुद में खोया है किसी शहर किसी नगर नहीं है। कैसी तुम को बेचैनी है पहले खुद में खुद पहचानों कैसी भी आफ़त हो खुद में आखिर खुद से जबर नहीं है। ग़ाफ़िल-सा दौड़े खुद में ही खुद का कोई होश नहीं है ज़रा सुकूँ भी पा नहीं पाओ जो गर खुद में ठहर नहीं है। कुछ न कुछ तो खोया लगता कुछ न कुछ असआर ग़लत हैं या तो ये फिर ग़ज़ल नहीं है या फिर इसमें बहर नहीं है। क्या चाहा क्या पा जाओगे क्या मर्ज़ी का जी जाओगे? मरे-मरे जीना पड़ता है यहाँ हौसल...
जब भावों में जीते हो
कविता

जब भावों में जीते हो

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब भावों में जीते हो तो जीवंत हो, हृदय में हो जब विचार में जीते हो मूर्छा में हो, मस्तिष्क में हो। हृदय और बुद्धि एक नही हृदय आपका स्वभाव है उसका अनुभव सत्य का अनुभव है उसकी सुनना ही वास्तविक धर्म है जब बुद्धि में जीते हो बुद्धि से निर्णय लेते हो तब अस्तित्व की अनंत संभावनाओं से चूक जाते हो बुद्धि का और प्रेम का कोई संबंध ही नहीं. बुद्धिमान, चालाक और चतुर प्रेम कर ही नही सकते वे प्रेमी हो ही नही सकते उनके लिए प्रेम व्यर्थ है वे बुद्धि के तल पे जीते हैं लाभ और हानि के गणित में पड़ते हैं और प्रेम से चूक जाते हैं उनके लिए भावजगत संवेदना का जगत निर्मूल्य है महत्वहीन है। वे एक नीरसता भरे जीवन में अकेली पड़ गई आत्माए हैं जो मृत मुर्दा वस्तुओ के लोभ से ग्रसित हैं वे मरणासन्न हैं, य...
प्रश्न घनैरे उठते भीतर
कविता

प्रश्न घनैरे उठते भीतर

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रश्न घनैरे उठते भीतर और समाधान भी पाया है. पर एक प्रश्न सदा से बाकी समझ नहीं जो आया है। यक्ष-प्रश्न से होते तो मैं भी उत्तर कब के दे देता. निजी-प्रश्न मुझी से मेरा पर अपनों में कह लेता। बडा़ सहज सा प्रश्न स्वयं से अक्सर करता रहता हूँ. मै-मैं-मैं-मैं करूँ रात-दिन, हूँ भीतर कहाँ रहता हूँ? आँत-औज़ड़ी हृदय-फेफड़ें हड्डी़-पसली भरी पड़ी है. आमाशय भी भरा फेफड़ें साँस के उपर साँस खडी़ है। मकड़-जाल से जटिल-जाल सिर में सारे नसें भरी हैं. और नसों में रक्त दौड़ता ऐसे-जैसे नस नगरी है। नयनों में भी दृश्य समाये और कानों में घुस आया शोर. आधा-जीवन रात भर गई आधा ही जीवन होती भोर। बाहर तो मैं देखूँ सबको भीतर भी सब जान गया हूँ. कोई जगह नहीं खाली भीतर मैं हूँ तो फिर रहे कहाँ हूँ। इतना त...
जाने आजाद कब होंगें
कविता

जाने आजाद कब होंगें

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ना जाने आजाद कब होंगें जात-पात के झगड़ों से, धर्म-धर्म के दंगों से, जहर बुझे वाणी के तीरों से, बढ़ते अपराधों से, ना जाने आजाद कब होंगें, बढ़ती बेरोजगारी से, रूठ चुके अफसानों से, भुखमरी, कालाबाजारी से, टूट रहे अरमानों से, ना जाने आजाद कब होंगें बारूद की पहरेदारी से, नफरत की चिंगारी से, घोटालों- धांधली से, भाषाओं की चार दीवारी से, ना जाने आजाद कब होंगे दहशत के अंगारों से, धर्म के ठेकेदारों से, मजहब की दीवारों से, अंग्रेजी की गुलामी से, ना जाने आजाद कब होंगे, रंग नस्ल की बोली से, रूढ़िवादी जंजीरों से, जहरीली तकरीरों से, क्षेत्रवाद की दीवारों से, ना जाने आजाद कब होगें परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (म...
हृदय की बात
कविता

हृदय की बात

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हृदय-हृदय की बात है हृदय-हृदय में रह गयी हृदय,हृदय मिला नहीं जीवन कभी खिला नहीं. हृदय को न सुना गया हृदय ने न आवाज़ की हृदय हृदय में गुम हुआ रहा अनकहा व अनसुना हृदय हृदय में ही मर गया खोपड़ी में गोबर भर गया जिंदा हैं, पर हम रहे नहीं मरते रहे कभी जीये नहीं हृदय को फ़िर भी भ्रम है ये धड़क रहा, धड़क रहा यह हृदय मेरा, हृदय तेरा ये भटक रहा, चटक रहा परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
मिलने का संयोग नहीं
कविता

मिलने का संयोग नहीं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हम-तुम एक धरा पर फिर भी मिलने का संयोग नहीं है! प्रेम गणित है ऐसा जिसमें सुख का कोई योग नहीं है!! दूरी जिससे कम हो जाए ऐसी कोई राह नहीं है! और तुम्हारे बिन मंजिल से मिलने की भी चाह नहीं है! पत्थर का सीना पिघलाए फूलों में वो आह नहीं है! आज मरें हम, कल मर जाएं, दुनिया को परवाह नहीं!! बादल से सावन, सागर से मोती, नदियों से गंगाजल, सारे जल-जीवन में केवल 'आंसू' का उपयोग नहीं है! सांसों का संगीत जिन्हें लगता है धड़कन की मजदूरी! मृग से ज्यादा प्यारी होती है जिनको कस्तूरी!! कैलेंडर बदले जाने को हैं जिनके दिन-रात ज़रूरी! रंग महज लगती है जिनको दुल्हन जैसी सांझ सिंदूरी!! उनको ही तो मुस्कानों का सारा कारोबार फलेगा, जिनकी आंखों के पानी का पीड़ा से उद्योग नहीं है! हमने खुद अपने आंचल ...
चुप्पी तोड़नी होगी
कविता

चुप्पी तोड़नी होगी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों के लिए जो हांक दिए जाते हैं सांप्रदायिकता की आग में, जिन्हें धर्म के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर लड़ाया जाता है . जो लगातार उपेक्षित हैं विकास की दौड़ में जो कैद है अंधविश्वास की जंजीरों में जिनकी आंखों में बंधी है अज्ञानता की पट्टियां जिनकी आंखों में गुम हो रहे हैं सपने जिनकी स्वपनहीन आंखों में भर दी गई है नफरतें हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों की जो दबंगों के आगे चुप है उंची नीच की दीवारों में बंद है हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन कन्या भ्रूण के लिए जो मार दी जाती हैं गर्भ में उन बेटियों बहू और माताओं के लिए जो हो रही है मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना और अपने परायों से बलात्कार की शिकार. हमें चुप्पी तोड़नी होगी सभ्यता...
खतरा किससे है
कविता

खतरा किससे है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* दुनिया को खतरा है किससे धर्म से या विज्ञान से नहीं खतरा है आदमी के भीतर बैठे शैतान से जो दूषित कर देता है हर संस्थान, हर संगठन, हर धर्म आदमी को डर है किससे दुनिया से या भगवान से नहीं वो डरता है अपने भीतर के अज्ञान से जो उसे बना देती है भीड़ जाति का, धर्म का, विचारधारा और राजनीति का जीवन को बचाना चाहिए किससे जानवर से या इंसान से नहीं बचाना चाहिए अपने भीतर के झूठे गुमान से जो बना देती है इंसान को संकीर्ण, क्रूर और मतलबी. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पू...
निशब्द
कविता

निशब्द

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसे पल हैं आते जब समझा समझा कर खुद का ही अन्तर्मन कोई समझ ना पाता और हम थक है जाते। शब्दों के कोलाहल में सब अर्थ अनर्थ हो जाते मन की व्यथा समझाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो जाते आपके हर तर्क के विरुद्ध अनेक प्रत्यर्थ हैं टकराते। तब सिर्फ एक मौन का ही सहारा समर्थ कर जाता है बिन कुछ कहे ही वो तो सारा भाव व्यक्त कर जाता है। चीखता तो घमंड है विनय तो बस मौन है हठ में तो कर्कशता है त्याग तो बस मौन है झूठ के हैं लाखों तर्क सत्य की भाषा तो मौन है। मौन है दर्पण मौन है तर्पण मौन है अर्पण मौन समर्पण मौन प्यार है मौन स्वीकार है मौन तकरार है मौन ही इकरार है। हर वाद-विवाद प्रतिवाद से मुक्त हो पाते हैं जब आपके शब्द निशब्द हो जाते हैं। जब आपके शब्द निशब्द हो जाते ...
वो एक लमहा
कविता

वो एक लमहा

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वो एक लमहा अब तक नहीं पकड़ पाया मैं जब बदल गयीं थी दिशाएँ हमारी गुज़रते वक्त से बार-बार गुज़रकर मैं अब भी ढूँढता हूँ वो पल जो ले गया तुम्हें दूर मुझसे न जाने वो क्या था जो अदृश्य सा तैरता रहा हमारे बीच और जिसके रहते तय न हो सके फासले कभी ! वक्त का एक बड़ा सा टुकडा बेरहमी से भाग रहा है हमारे बीच कहते हैं कि वक्त के साथ सब बदल जाता है मै देखना चाहता हूँ तुम्हे भी तुम्हारे बदले हुए रूप में तो क्या अब तुम नहीं पहनती वो आसमानी नीली साड़ी जिसे देखते ही मैं बन जाता था उफनता पागल सा सागर ! शायद अब तुम्हारी डायरी के पन्ने किसी और रास्ते से गुजरकर मुकम्मल होते होंगे और शायद तुमने अब मीठे की जगह नमकीन खाना भी सीख लिया होगा शायद तुम छोड़ चुके होंगे मेरे न होते हुए भी मु...
प्रेम क्या है
कविता

प्रेम क्या है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम क्या है क्या ये किसी रिश्ते का नाम है या इसका संबंध देह से है नहीं 'प्रेम' तो इक 'अनुभूति' है वह मोहताज नहीं रिश्तों का क्योंकि रिश्ते तो अपना मूल्य मांगते हैं मूल्य न मिलने पर सिसकते, टूटते, बिखरते हैं फिर यहाँ प्रेम कहाँ. क्या प्रेम देह से जुड़ा है नहीं जिस तरह पूजा के बाद अमृत, पानी नहीं रह जाता तो प्रेम का पर्याय देह कैसे हो सकता है? प्रेम का न कोई मूल्य होता है न ही कोई दैहिक सम्मोहन प्रेम इन सब से परे है प्रेम इबादत है. प्रेम इन्सानियत है प्रेम बन्दगी है प्रेम भक्ति है प्रेम विश्वास है इसमें ना खोना है न पाना है बस करते चले जाना है. फिर ये प्रेम मनुष्य का मनुष्य से हो या मनुष्य का ईश्वर से हो या ईश्वर की किसी कृति से हो. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक...
प्रेम किया नहीं जाता
कविता

प्रेम किया नहीं जाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम में मांगा नहीं जाता प्रेम में दिया जाता है प्रेम किया नहीं जाता प्रेम जीया जाता है प्रेम में स्वार्थ नहीं होता प्रेम में परमार्थ होता है प्रेम को मापा नहीं जाता प्रेम को साधा जाता है प्रेम एक तरफा भी होता है प्रेम दूर से भी निभाया जाता है अखंड प्रेम बार-बार नहीं होता प्रेम एक ही बार में संपूर्ण होता है प्रेम पागल नहीं होता प्रेम तो चैतन्य संक्रिया है प्रेम को सोचा नहीं जाता प्रेम एक सतत प्रक्रिया है प्रेम में किसी बांधा नही जाता प्रेम में इंसान खुद बंध जाता है प्रेम में सतत प्रवाह होता है प्रेम को कहीं रोका नहीं जाता प्रेम में गमगीन नहीं होना पड़ता प्रेम में पूर्णत: लीन होना होता है 'तू नहीं तो कोई और' अ-प्रेम है प्रेम का कोई विकल्प नहीं होता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे...
लेखनी मुझसे रूठ जाती है
कविता

लेखनी मुझसे रूठ जाती है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब मैं लिखने बैठता कविता, लेखनी मुझसे रूठ जाती है, वह कहती मेरा पीछा छोड़ दो, मुझसे अपना नाता तोड़ दो, क्या तुम मुझे सौंदर्य में ढाल सकोगे, इस घुटन भरे माहौल से निकाल सकोगे, क्या तुम कुछ अलग लिख सकोगे, या तुम भी दुनिया की बुराइयों को, अपनी रचना में दोहराओगें ? दहेज, भूख, बेकारी के शब्द में अब ना मुझको जकड़ना, हिंसा दंगों या अलगाव के चक्कर में ना पड़ना, नेताओं को बेनकाब करने में मेरा सहारा अब ना लेना, बुराइयां ना गिनाना अब बीड़ी सिगरेट या शराब की, उकता गई हूं अब मैं, बलात्कार हत्या या हो अपहरण, इन्हीं शब्दों ने किया है जैसे मेरे अस्तित्व का हरण। लेखनी बोलती रही, मुझे मालूम है तुम इंसानियत की दुहाई दोगे, इसलिए मैं पास होकर भी हूं पराई। अगर लिखना हो तो लिखो, प्रकृति की गोद में बैठ कर, ...
मैं एक सिपाही हूं
कविता

मैं एक सिपाही हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो जीता है देश के लिए, सिपाही जो मरता है देश के लिए, सिपाही फिर भी गुमनाम हैं। मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो एक शिक्षा हैं, सिपाही जो एक प्रेरणा हैं, देश पर न्यौछावर होने के लिए, फिर भी उसे स्थान नहीं मिलता दिलों में, इतिहास के पन्नों में भी सिपाही का नाम नहीं, रंगीन हो जीवन में ऐसी कोई शाम नहीं। मैं एक सिपाही हूं मेरा नाम मिलेगा सरहद पर दूर कहीं रेगिस्तानों में, पहाड़ों में, बर्फीले तूफानों में, अनजानी सी बारुद गोली में, और मिलेगा नाम देश के सुनहरे भविष्य की नींव में, फिर भी सिपाही गुमनाम हैं ... मैं एक सिपाही हूं जिसकी कल तक जय-जयकार थी, तब देश को मेरी जरूरत थी, आज मुझे भुला दिया है, जब मुझे देश की जरूरत है, कल तक कंधों पर मेरे देश की सुरक्षा का भार...
मैं आदमी हूँ
कविता

मैं आदमी हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं आदमी हूँ मुझे परेशानी भी आदमी से ही है मैं परेशान भी आदमी के लिए ही हूँ क्योंकि मैं आदमी होने से पहले किसी जाति का हूँ किसी धर्म का हूँ किसी संप्रदाय और विचारधारा का हूँ जिससे कारण मुझे आदमी आदमी नहीं बल्कि दिखाई देता है तो कोई विरोधी कोई दुश्मन, कोई ऊँचा, कोई नीचा कोई काला तो कोई गोरा हाँ मैं आदमी हूँ। मुझे आदमी होने का मूल्य पता नहीं इसलिए मेरा दुःख कभी जाता नहीं. मेरे विचार ही मेरे दुःख है इस बात को मैं समझता नहीं. खुद से ही अनजाना हूँ. इसलिए आदमी होकर भी आदमी से ही बेगाना हूँ. सुखी मैं, जानवरों जितना भी नहीं पर सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी हूँ हाँ मैं आदमी हूँ। आदमी होने की कीमत कुछ इस तरह मैंने अदा की है आदमी होकर आदमी को ही आदमी से जुदा की है क्योंकि मेरी खुशी ...
स्पर्श
कविता

स्पर्श

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* सुनो ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, संवेदना की आख़िरी परत तक, जिसकी पहुँच हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी निर्मल चेतना. घेरे मन और मगज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी मीठी वेदना, अंतर्मन की समझ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसके पार तुम्हें देखना, मेरे लिए सहज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसकी अनुभूती के लिए. उम्र भी एक महज़ हो. ऐसा स्पर्श दे दो मुझे, जिसमें सूर्य सी उष्मा हो जिसमें चांद सी शीतलता जिसमें ध्यान की आभा हो जिसमें प्रेम की कोमलता जिसमें लोच हो डाली सी जिसमें रेत हो खाली सी जिसमें धूप हो धुंधली सी जिसमें छाँव हो उजली सी जो तन मन को दे उमंग नयी जो यौवन को दे तरंग नयी जो उत्सव बना दे जीवन को जो करूणा से भर दे इस मन को ऐसा स्पर्श दे दो मुझे.... परिचय :- शिवदत्त ड...
नारीत्व
कविता

नारीत्व

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आ गए तुम? द्वार खुला है अंदर आ जाओ। पर तनिक ठहरो ड्योढी पर पड़े पायदान पर अपना अहं झाड़ आना। मधुमालती लिपटी है मुंडेर से अपनी नाराज़गी वहीँ उड़ेल आना। तुलसी के क्यारे में मन की चटकन चढ़ा आना। अपनी व्यस्ततायें बाहर खूँटी पर ही टाँग आना जूतों संग हर नकारात्मकता उतार आना। बाहर किलोलते बच्चों से थोड़ी शरारत माँग लाना। वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है तोड़ कर पहन आना। लाओ अपनी उलझने मुझे थमा दो तुम्हारी थकान पर मनुहारों का पँखा झल दूँ। देखो शाम बिछाई है मैंने सूरज क्षितिज पर बाँधा है लाली छिड़की है नभ पर। प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर चाय चढ़ाई है घूँट घूँट पीना। सुनो! इतना मुश्किल भी नहीं हैं जीना। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : दे...
मैं शून्य हूँ
कविता

मैं शून्य हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मै शून्य हूँ अपूर्ण हूँ पूर्ण होने की कोई चाह भी नहीं मेरा ख़ुद का कोई वजूद नही कोई अहंकार नहीं कोई आग्रह भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं है कोई चाहत भी नहीं है मै तनहाई में भी अकेला नहीं होता और भरी महफिल में भी मेला नहीं होता मेरा कोई मोल नहीं है मै सत्ता के गलियारों मे नहीं मिलता मैं दुनिया के बाजारों मे नहीं मिलता मैं तपस्वी के मन मे मिल सकता हूँ मै निर्जन वन मे मिल सकता हूँ मैं आकाश के सुनेपन में मिल सकता हूं मै किसी के अकेलेपन मे मिल सकता हूँ तुम शून्य को अपने मे से घटा भी दोगो तो तुममे कुछ कम नहीं होगा हाँ तुम चाहो तो मुझे अपने में मिला सकते हो कुछ मै तुम में जुड़ जाऊंगा कुछ तुम मुझ में जुड़ जाना। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
संवादहीन जो …
कविता

संवादहीन जो …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* संवादहीन जो मौन खड़ा है अंधियारे में ये कौन खड़ा है आकुल प्रश्न ये बहुत बड़ा है ये सत्य, जो स्वीकार नहीं है मत सोच ये तेरी हार नहीं है प्रयास रहे तो स्वर्ग धरा है पाप पुण्य का लेखा जोखा करो तुझको है किसने रोका तपे वही जो स्वर्ण खरा है पीड़ा का परिसीमन क्या है जीवन क्या है, मरण क्या है समयचक्र में सभी पड़ा है मृत्यु द्वार पर जीवन नाचे पाप पुण्य के किस्से बाँचे युग युग की यही परंपरा है विकट प्रश्न ये बहुत बड़ा है परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
सैनिक का प्रेम
कविता

सैनिक का प्रेम

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हाथों में यह कलम ना होती, निकलते न ये भाव, आंखें कभी ना रोती तन्हाई हमें यूं न चुभती, यदि तुम मेरे पास होती आने वाला पल याद तुम्हारी लाता है जाने वाला पर टीस पीछे छोड़ जाता है जितना चाहा तुम्हें भूलना उतना ही तुम याद आती हो तुम्हें याद करने की जरूरत ना होती यदि तुम मेरे पास होती तुम्हें कुछ लिखना चाहा, जब भी मैंने भावों को शब्दों में ना बांध पाया दिल की आवाज सुन लेती आंखों की जुबान समझ लेती यदि तुम मेरे पास होती बाहों में तुझे ले लूँ, चाह ये बार-बार होती दामन में तेरे, सर रख रोता सिंदूर मांग में तेरी भर देता सोचते-सोचते दिन कितने गुजर गए हालत हमारी यूं ना होती यदि तुम मेरे पास होती।। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा...
मेहमान बन के
कविता

मेहमान बन के

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मेहमान बन के आये थे, मकीं बनके बैठ गये, आसमां के चंद टूटे हुए क़तरे, ज़मी बनके बैठ गये, वैसे तो ऐसा कोई दर्द न था, जाने क्यों अश्क़ पलकों पे नमीं बन के बैठ गये, बस दो कदम साथ चलने का ही वादा था, कब कैसे वो, हमनशीं बन के बैठ गये, शरिकेग़म थे वैसे तो वो मेरी हर नफ़स के, भरी बज़्म में न जाने क्यों वो, अज़नबी बन के बैठ गये। ठहाकों से भरी बज़्म लूटने वाले, क्यों अचानक इतनी सादगी बनके बैठ गये। भले बुरे की परख अब वो ही जाने, मुझे परखने के लिए, पारखी बनके बैठ गये। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
वहम होता है
कविता

वहम होता है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वहम होता है, सितारे कभी टूटा नहीं करते, उड़ा के शिगूफे ख़ुद ही, लूटा नहीं करते, कसैले होते हैं, अक्सर शिकवों के वार, कड़वी बातों से कभी मुंह जूठा नहीं करते, लौट के फिर आ मिलता है, अपना ही कर्मदण्ड, आसमां की तरफ मुँह करके, कभी थूका नहीं करते, उमर भर का लेखा जोखा होता है, यूँ तिनको को संभालना, बना के अपना ही आशियाना, ख़ुद ही फूंका नहीं करते, वज़ह लापरवाही है या और ही कुछ शायद, यूँ हमसफर तो कभी, रस्तों पे छूटा नहीं करते, माना के शिकवे गिलों का बोझ नहीं सँभलता, जान बूझ कर तो, अपनी छाती कूटा नहीं करते, बादलो जी भर के तर कर दो, ज़मीं का जिस्म, बिना नमीं के तो ज़मीं में, अंकुर फूटा नहीं करते। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
तेरा मेरा इतना नाता
कविता

तेरा मेरा इतना नाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं परिपक्व एक बुढ़ापा तू मुस्काता बचपन सा मैं ढलती एक रात हूँ तू उगता सूरज प्यारा मैं प्यासी बंजर धरती तू बरसता सावन सा आया तेरा मेरा इतना नाता मैं माटी का दीपक तू उजली बाती सा मैं कलकल बहती नदिया सी तुझमे जोर समुंदर का सारा तेरा मेरा इतना नाता मैं एक सूखा फूल हूँ तू नन्हा कोपल का जाया मैं हूँ कड़वी नीम निम्बोली तू मीठा शहद सा भाया तेरा मेरा इतना नाता मैं पल पल बीता लम्हा हूँ तू नए साल सा इठलाता मैं हूँ एक खत्म कहानी तू ख्वाब सा सबको भाता तेरा मेरा इतना नाता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
वही तो नहीं …
कविता

वही तो नहीं …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जिसे देख के बहार आयी थी मेरे मे निखार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। जब ये घटना -घटी तुम थे नायक मै थी नटी निहारती रही कटी सी कटी रह गयी आंखें फटी सी फटी मैं हिस्सो में अब बंटी ही बंटी मन ने माना मै पटी तो पटी उसके लिए स्वर्ग से उतार आयी थी मुर्तिवत खड़ी जैसे उधार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। सांसे मानों थम सी गयीं निगाहें उसपे जम सी गयी मैं थोड़ी सहम सी गयी उसपे जैसे रम सी गयी गुस्सा भी अधम सी गयी ज़िंदगी से ग़म सी गयी मैं लिए जिंदगी के सपने हजार आयी थी कहीं तुम वही तो नहीं। मेरे खुशी का ठिकान नहीं था उस जैसा कोई पहलवान नहीं था मुझ जैसा वो नादान नहीं था उसका पटना आसान नहीं था वैसा कोई महान नहीं था अब मेरा कोई अरमान नहीं था उसके मिलने से पहले मैं बीमार आयी थी कहीं तुम वह...
कश्मकश आम इन्सान की
कविता

कश्मकश आम इन्सान की

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* न जानवर हूँ न हैवान हूँ दुख है मैं इन्सान हूँ अर्थ बदल गया ईमान जल गया मैं पत्थर नही हूँ. इसलिए ठोकर खाता हूँ दिल है.. इसलिए टूट जाता हूँ. मैं सच बोलता हूँ तो साथ छोड़ता है इन्साफ वक्त का पाबंद हूँ मगर उपलब्धी का हकदार नही. कर्तव्य में विश्वास है मगर प्रशंसा का अधिकार नही दिखावे से जलता हूँ इज्ज़त पे मरता हूँ धोखे का भय है दोस्ती से डरता हूँ गली में टहलता हूँ हर दरवाजा़ आज बन्द है मतलब के लोग हैं इस बात का रंज है. दुख का साथी नही सुख का ढोल है बेटे का बाप से भाई का भाई से दौलत का खेल है बाप के मरनें तक रिश्तों में मेल है सच पे जी सकता नही झूठ सह सकता नही न ढल सका मैं कभी इसका मुझको खेद है बदल गया हर चीज़ क्यों इसमें कोई भेद है हर लोग आज़ हैवान हैं गम तो है इस ...