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पैकेट
लघुकथा

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शिरीन भावसार इंदौर मध्य प्रदेश ******************** लछमी ओ लछमी पेशाब पानी कछु की जरूरत हो तो उतर आओ नीचे....अरे का सोच रही हो...इतना देर की बैठी हो...पाव मुरहा जाही...उतर आओ। सुरेश की आवाज़ सुन ट्रक पर सिमटी बैठी लछमी भय और पीड़ा से और भी ज्यादा सिमट गई। उस पूरे ट्रक में लछमी ही अकेली महिला थी इस विकट परिस्थिति में परेशानी अब वह कहे भी तो किससे और कैसे? लॉक डॉउन की घोषणा होने के बाद जल्दबाजी में अपने गांव वापस लौटने के लिए वे दोनो पहने हुए कपड़े और खाली टिफ़िन के साथ रात १० बजे इस ट्रक में चढ़े थे और अब दोपहर का १ बजने आया था। बढ़ते समय के साथ उसकी परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। अपनी गन्दी साड़ी को समेटती वह गठरी सी हो गई थी कि तभी उसे बाहर एक महिला की आवाज़ सुनाई दी. वह किसी से पूछ रही थी कि क्या तुम लोगो के साथ औरते भी है ? महिला की आवाज़ सुन लछमी ने राहत की सांस ली और गर्दन बाहर कर जब उस महि...