Sunday, April 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: शकुन्तला दुबे

मन का मैदान
कविता

मन का मैदान

शकुन्तला दुबे देवास (मध्य प्रदेश) ******************** मैदान तो मैदान होता है धरा का हो या मन का। मार लिया जिसने मनका मैदान। जीत लिया उसने सारा जहान। मन का मैदान नहीं औरसे चौरस वो तो निरा गोल है। कोना नहीं है कोई, ना कोई छोर। इसलिए नहीं पकड़ पाते मन की डोर। विचारों का अंधड़ कोई बीज बो जाता है वो मानस के पावस से हरा हो जाता है। तब मन का मैदान बनता है बगीचा। जैसे सुन्दर फूलों का गलीचा। किन्तु जब होती है ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट की अतिवृष्टि। दल-दल में बदल जाती समुची सृष्टि। मानस मैदान को कीच से बचाना है। मन को दोष रहित, विमल बनाना है। तो बोते रहिए बीज विश्वास के, गाते रहिए प्रेम के गान। अखिल सृष्टि खिल उठे, हरियाता रहे। मन का मैदान। परिचय :- शकुन्तला दुबे निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र। सम्प...
अकेली लड़की
कविता

अकेली लड़की

शकुन्तला दुबे देवास (मध्य प्रदेश) ******************** अकेली लड़की हां। मैं अकेली लड़की हूं। तो क्या हुआ? मेरे साथ मैं तो हूं। अपनी सम्पूर्ण सजगता के साथ। मेरी इच्छाएं आकांक्षाएं अपने विस्तार के साथ। हमेशा रहती है मेरे पास। मेरी सहचरी बनकर कभी सपना कभी सखी बनकर। जब इस निष्ठुर संसार में आदमियों की भीड़ में भी। आदमी अपने आपको पाता है नितान्त अकेला। सुनेपन को झेलता हुआ। तब मैं अकेली नहीं। मैं देती हूं अपने आपको सहारा। एक सुंदर संसार प्यारा मेरे अन्तस का संसार हरा-भरा सबसे न्यारा। जिसमें व्याप्त सकल रुप मे मैं-मैं-मैं और मैं। संसार हरा भरा परिचय :- शकुन्तला दुबे निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र। सम्प्रति : सेवा निवृत्त शिक्षिका देवास। घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...