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Tag: वीणा वैष्णव

भूलाकर गाँव
कविता

भूलाकर गाँव

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** भूलाकर गाँव को तूने, शहर में घर बनाया है। खो गया रंगीनियों में, अपनों को बिसराया है।। गाँव के लोग भोले, दिल में प्यार बसता है। उनकी हर बात में सिर्फ, अपनत्व बरसता है।। शहर की जिंदगी, चारदीवारी में रहता है। अपनों बीच सदा, वह अकेला होता है ।। गांव के लोग सुख-दुख में, पास होते हैं । गांव एक आवाज में, चौपाल पर होता है।। पैसा तूने शहर में, रह बहुत कमाया है। अपनों बीच, तू सदा ही रहा पराया है।। हर बात गाँव के लोग, अपनों को बताते हैं। आए जब विपदा तो, मिल बैठ निपटाते हैं।। अकेला तू रोता, नहीं कोई ढ़ाढस बंधाता है। शहर लोग सिर्फ, दिखावटी प्यार जताते हैं।। लौट आ अब भी, तेरी हम राह तकते हैं। भूला सारे गिले-शिकवे, तुझे गले लगाते हैं।। तेरे आने से पुराने दिन, फिर लौट आते हैं। गाँव गलियों में, फिर हम धूम मचाते हैं।। एक बार बचपन को, हम फिर जीते हैं। गा...
तू दोस्त बन
कविता

तू दोस्त बन

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** तू दोस्त बन, या दुश्मन बन। कुछ भी बन, चल जाएगा।। भूल से भी, चमचा बना। जीवन में, दुःख तू पाएगा।। चमचे की, तुम बात न पूछो। हर बर्तन, खाली कर जाएगा।। जीवन में अगर, तुम्हारे आया। जीवन नर्क, वह बना जाएगा।। दूर ही रहना तुम, इन चमचों से। यह किसी का, नहीं हो पाएगा।। मीठी मीठी, बातें कर तुझसे। राह भ्रमित, तुझे कर जाएगा।। अपनों से दूर, तुझे वो कर। करीब गैरों को, वो ले आएगा।। अच्छे बुरे की, पहचान करना। कौन तुम्हें, अब सिखलाएगा।। विचारों को वो, तेरे गंदा कर। जहर दिमाग, भर जाएगा।। कहती वीणा, विवेक काम ले। सदा चमचों से, तुम्हें बचाएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक...
शब्दों में सामर्थ्य
कविता

शब्दों में सामर्थ्य

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** शब्दों में सामर्थ्य बस, इतना मुझे देना प्रभु। प्रार्थना मन से करूँ, तुम तक वह पहुँचें प्रभु।। धर्म जाति से परे हो, जीवन सदा मेरा प्रभु। किसी का दर्द समझू, ऐसा जीवन मेरा प्रभु।। कर्म कांड पाखंड से, सदा दूर में रहूँ प्रभु । किसी की मदद करू, इतनी शक्ति देना प्रभु।। सज्जन व्यक्ति बन, जीवन यापन करुँ प्रभु। दिल में जगह मिले, यही प्रार्थना करूँ प्रभु।। नहीं चाहिए धन दौलत, दीन बन रहूँ प्रभु। सेवा दीन की करुँ तो, जीवन सफल हो प्रभु।। प्रार्थना बस यही, तुझसे मैं सदा करूँ प्रभु। कोई गरीब भूखा उठे, पर भूखा ना सोए प्रभु।। जब जाऊ इस जहां से, याद में आऊँ प्रभु। कर्म कुछ ऐसे करूं, ठौर चरण पाऊँ प्रभु।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रू...
नफरत की तोड़ दीवारें
कविता

नफरत की तोड़ दीवारें

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** नफरत की तोड़ दीवारें, प्रेम को अपनाएंगे। सबके दिलों में हम, एकता भाव जगाएंगे।। बहुत लड़े हैं अब तक, अब न इसे दोहराएंगे। हंसी-खुशी साथ रह, हम भेदभाव भुलाएंगे।। एकता के दीप, हर घर में अब जगमगाएंगे। प्यार का महत्व बता, दिलों को जोड़ आएंगे।। पैसों के लालच में आ, अब न भ्रष्टाचार फैलाएंगे। भूखे प्यासे रहकर भी, एक साथ जीवन बिताएंगे।। बुजुर्गों का सम्मान कर, आशीष हम पाएंगे। उनके ही आशीष से, सफलता ओर जाएंगे ।। विविधता में एकता, देश की पहचान बताएंगे। हम हमारे देश को, विश्व में महान बनाएंगे।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
अर्थ नहीं समझ वो …
कविता

अर्थ नहीं समझ वो …

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** अर्थ नहीं समझ, वो गलत अर्थ लगाते हैं। सोच के अनुरूप, अपना दिमाग चलाते हैं।। अर्थ बिना सब व्यर्थ, समझ नहीं पाते हैं। बिन कही बात का भी, अर्थ वो लगाते हैं।। राग द्वेष सब, इसी वजहसे पैदा होते हैं। अर्थ का अनर्थ कर, अपनों से दूर जाते हैं।। अर्थ गागर में सागर भर, यश को पाते हैं। समझदार ही, इस भाषा को समझ पाते हैं।। बाकी सब विवेकानुसार, अर्थ लगाते हैं। मन मोती संग, इच्छानुसार माला पिरोते हैं।। सकारात्मक सोच अपना, सही अर्थ लगाते हैं। इंसान वास्तव में, वही पूज्य बन जाते हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ह...
रंग बिरंगी दुनिया में
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रंग बिरंगी दुनिया में

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** शहर की रंग बिरंगी दुनिया में, खो गए हैं सब बहुत मुश्किल बयां करना, पराए हो गए है सब। बाहर से उजले, अंदर से काले हो गए हैं सब। अपनत्व खत्म कर, रंगीनियों में खो गए हैं सब।। दर्द एहसास नहीं, दिखावटी प्यार जताते हैं सब। एक कमरे में रहकर भी, कोना ढूंढते हैं सब।। अपने होकर भी, गैरों की तरह मिल रहे हैं सब। रंग बिरंगी दुनिया में, कितने बदल गए हैं सब।। पैसे बहुत है, दिल से गरीब हो गए हैं सब। झूठी मुस्कुराहट चेहरे पर, लिए फिर रहे हैं सब।। झूठी रंग बिरंगी दुनिया, क्यों खो रहे हैं सब। हकीकत बिसरा, अनजान बन रहे हैं सब।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर ...
दीपावली
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दीपावली

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** इस बार दीपावली, हम इस तरह मनाएंगे। हर घर रोशन हो, सोच यही अपनाएंगे।। पटाखे जला, पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैलाएंगे। उन पैसों से, गरीब बच्चों के उपहार लाएंगे ।। मिट्टी दीपक जला, रोशनी चहुँओर फैलाएंगे। चीनी उत्पादकों को हम, अब नहीं अपनाएंगे।। अज्ञान अंधकार दूर कर, ज्ञान दीप जलाएंगे। खुशहाल जीवन, जीने का हुनर सिखाएंगे ।। मन मेल इस दीपावली, गंदगी संग दूर भगाएंगे। सब के दिलों में बस, अपनत्व भाव जगाएंगे।। गरीब चौखट पर, इस बार दीप जगमगाएंगे । भेदभाव भूलकर, मिलकर दीपावली मनाएंगे।। बंदनवार हर द्वार लगा, रस्म कुछ यू निभाएंगे । रामवतार मान अतिथि, कुमकुम तिलक लगाएंगे।। लक्ष्मी पूजन कर, माँ को प्रसन्न कर जाएंगे। कोई भूखा ना रहे, बस यही आशीष पाएंगे।। वसुधैव कुटुंबकम की, भावना हम अपनाएंगे । देश पर विपदा आए तो, प्राण बाजी लगाएंगे। श्रीराम को आदर्श बना, जीवन...
वीणा नाम मुझे दिया
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वीणा नाम मुझे दिया

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कितने प्यार से माँ ने, वीणा नाम मुझे दिया। शारदे ने गोद धारण कर, नाम सार्थक कर दिया।। नाम के अनुरूप ही, काम सदा मैंने किया । ना लजाया माँ गोद, नाम अनुरूप काम किया।। बन निडर, हर मुसीबत का सामना किया। धरती माँ की गोद को, सदा हरा भरा किया।। जन्नत सुख माँ की गोद मैं, सदा मैंने पाया। रुखा सुखा जो भी था, माँ के हाथ से खाया।। यही सुख पाने को, कान्हा देखो धरती आया। मचा धूम गोकुल, बहू आनंद संग ग्वाल पाया।। जन्म देवकी दिया, गोद जसोदा सुलाया। दो माँ की गोद पा, कान्हा फुला ना समाया।। कहती वीणा माँ गोद, कोई कभी न बिसराया। चहुँधाम आनंद, सब ने मांँ गोद में पाया।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...