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Tag: वीणा वैष्णव

दो जून रोटी खातिर
कविता

दो जून रोटी खातिर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** दो जून रोटी की खातिर,जान बाजी लगा रहा। यह दुनिया एक रंगमंच,वह करतब दिखा रहा। अपनों की परवाह उसे,दर-दर ठोकर खा रहा। आएंगे शायद अच्छे दिन,इसी उम्मीद जी रहा। दो जून रोटी खातिर................. बड़े-बड़े बंगले देख,वो मन ही मन खुश हो रहा। कितना सुकून होगा उसमें, वो नादान सोच रहा। तभी किसी ने आवाज लगाई, काम करोगे क्या। मीठे सपनों से जागा,जी आया हुकुम कह रहा। दो जून रोटी की खातिर............. दो जून रोटी के खातिर, वह कितना तरस रहा। रोटी चीज नहीं है छोटी,महत्व अब समझ रहा। अपने बच्चों के आंसू देख,वो खून आंसू रो रहा। गरीब होने की सजा,देखो बहुत ज्यादा पा रहा। दो जून रोटी खातिर ............... अपना देश छोड़, रोटी तलाश विदेश जा रहा। लाखों व्यर्थ लूटा देंगे, गरीब न कोई सुन रहा। सारे गुनाह इसी के पीछे, वह मासूम कर रहा। कहे वीणा दो जून रोटी लिए,जहा भटक रहा...
परोपकार
कविता

परोपकार

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** परोपकार दिखावा हर जन ने सदा किया। किया बहुत कम, और ज्यादा दिखा दिया। अखबार में छाने का, जुनून ऐसा सर चढ़ा, सचे परोपकारी को, सबने पर्दे पीछे छुपा दिया। वृक्ष नदियों को, कैसे सब ने बिसरा दिया। गाय माता बन पाला, कभी कुछ ना लिया। सब कुछ किया, यूं इन्होंने अपना समर्पित, कितने स्वार्थी है हम, हमने उनको भी भूला दिया। परोपकारी पीठ थप थपाना, कभी न किया। परोपकारीता का, बस उपहास उड़ा दिया। लोभ मोह अंधा, बस जीवन को गवाँ दिया। मनु धर्म का सार परोपकार, यह समझ ना पाया। पर दु:ख देख जो, द्रवित कभी भी हुआ। दीन दुखी मदद,जीवन सार्थक वो किया। मानव है मानवता दिखा, तू परोपकार कर, प्रभु श्रेष्ठ रचना को, कुछ बिरला ने सार्थक किया। ऋषि दधीचि को, हर जन ने भुला दिया। मृत्यु नहीं डरा, कर्ण कवच कुंडल दिया। परोपकार से, देखो इतिहास है पूरा भरा, अब सोचो जरा, हमने मातृभूमि हित...
वर्तमान को जी ले
कविता

वर्तमान को जी ले

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** जिंदगी हर पल, बड़े आनंद से बिताया। न ही बिगड़ा वर्तमान, भविष्य सजाया। कहाँ क्या बोलना, ये बहुत ध्यान रखा। चुप वहाँ न रही, गुनहगार मुझे बताया। सब वर्तमान हकीकत, लेखनी बताया। स्वार्थी मानव, कुछ भी समझ न पाया। ऊंची दुकान, फीके पकवान सजाया। तभी कुछ दिनों में, ताला खुद लगाया। हार मान लू मैं, पर यह मेरे बस में नहीं। प्रभु श्रेष्ठ रचना को, मैंने ना बिसराया। करती अच्छा, बड़ों का आशीष पाया। तभी भरी महफिल, सुनने जहां आया। कहती वीणा, छोड जाना सब यहाँ। फिर फालतू बातों, क्यूं समय गवाँया। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
सब मेरा परिवार
कविता

सब मेरा परिवार

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** गोद माता की मिले, और संग मिले पिता प्यार। नहीं जाना मुझे काशी मथुरा, सब मेरा परिवार। माँ बच्चों की प्रथम गुरु, है वो सबकी मूलाधार। जन्म दिया माता, गुरु ही देता सदा आकार। सदा प्रसिद्धि पाई जग में, संग पाया सम्मान। मात पिता से दूर गए, तो समझो जीवन बेकार। नेह दिखाती माँ सदा, पिता का सतत व्यवहार। परिवार संग जीवन यापन, यह जीवन आधार। वो राह भटक गए, नहीं मिला उन्हें कोई छोर। दर-दर ठोकर खाते रहे, वह बने रहे बस ढोर। स्वच्छंदता उन्हें पसंद, नहीं चाहिए कोई रोक। बिन लगाम घोड़े बने, वह अब दौड़े चहुँओर। राह खड़ी करते मुश्किल,वो जीवन जीते ढोर। ऐसा जग में वो करते, जो वंचित रहे संस्कार। कर ले कुछ अच्छा जग में, बन जा तू सिरमोर। नहीं पाएगा जीवन मनु, बस भटकेगा चहुँओर। कहती वीणा मान जा, और गले बांधले डोर। आवारा ज्यूं भटकता रहा, नहीं मिलेगा छोर। . परिचय : का...
राह दिखाएगी
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राह दिखाएगी

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** मेरी लेखनी हर जन ह्रदय, एक दिन छा जाएगी। जिंदगी कब तक, तू खुद को आईने से बचाएगी। अभी चूभ रही हूँ जिन्हें, नुकीले कांटों की तरह। उन घावों पर, सुकुं औषधि बन वो लेप लगाएगी। क्या हश्र होगा, जब हकीकत तेरी सामने आएगी। चेहरा नकाब हटा, वो हकीकत रुबरू कराएगी। तेज झंझावत से उजड़े है, बागबान ऐ गुलशन। कर इंतजार, पतझड़ बाद बसंत बहार आएगी। ठोकर लगेगी, जिन्होंने पांव अंजान राह बढ़ाया। पूछ कर जो चले, मंजिल उनके करीब आएगी। गुजरती जिंदगी, और तू रंगीनियों में भटकता रहा। तेरी हसरतें ही, तेरा एक दिन जज्बा आजमाएगी। सपने आंखों में बहुत, पर नींद तुझे नहीं आएगी। दर्दे आशिया बनाया, ख्वाब में रात गुजर जाएगी। मौत हकीकत जान, जिंदगी आसां बन जाएगी। बची है थोड़ी, वह तो अपनों संग गुजर जाएगी। कहे वीणा नेक राह, सफलता करीब लाएगी। महल नहीं घर बना, जिंदगी जन्नत बन जाएगी। . ...
हसीं मौसम
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हसीं मौसम

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** हसीं मौसम का आनंद, आप अपनों संग लिजिए। गैरों संग मजे कर, अपनों को दर्द कभी ना दीजिए।। मौसम कोई भी हो, उसे हसीं मौसम बना लीजिए। ठंड बहुत ज्यादा हो, अलाव जला आनंद लीजिए।। इसी बहाने कुछ पल, अपनों से आप बातें कीजिए। बड़े बुजुर्गों के अनुभव को, साझा आप कीजिए।। जिंदगी में कभी भी, उदास आप ना रहा कीजिए। है बहुत छोटी, हर पल आनंद से जिया कीजिए।। कुछ यादें, जाने से पहले आप अमिट छोड़ दीजिए। जग याद करें, ऐसा कुछ तो आप काम कीजिए।। सुबह शाम चक्कर में, जिंदगी तमाम ना कीजिए। मिला है अनमोल जीवन, इसे सार्थक कीजिए।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ ...
यश वो ही पाएगा
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यश वो ही पाएगा

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** नि:स्वार्थ भाव से काम कर, तो तू यश को पाएगा। आ गया स्वार्थ, तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।। दोस्त का हमदर्द बनकर, जो उसका दर्द बटाएगा। जख्मों पर हकीकत में, वो ही मरहम लगाएगा।। मतलबी दुनिया, जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा। करता रह नि:स्वार्थ कार्य, तू सफलता पाएगा।। प्रभु घर देर अंधेर नहीं, तू सार्थक कर पाएगा । आँखों के अंधों को, आईना तू ही दिखाएगा।। नि:स्वार्थ भाव रख, तू जग में अमर हो जाएगा। बाकी स्वार्थ में डूबा, दर दर ठोकर खाएगा।। सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा। एक झूठ छुपाने में, जीवन उसका गुजर जाएगा।। कहती वीणा नि:स्वार्थ रह, जग नहीं बिसराएगा। अपने श्रेष्ठ भावों से वो, जग में अमरता पाएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी ...
क्षमा वीररस्य भूषणम्
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क्षमा वीररस्य भूषणम्

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** दुख देने से दुख बढ़ेगा, फिर क्यों दुख देते हैं। अमन प्रेम विस्तार कर, चहुँओर यश पाते हैं।। बरसे हृदय से करुणा, ऐसा काम सब करते हैं। हो जाए भूल वश गलती, उनको क्षमा करते हैं।। द्वंद अगर हो जाए तो, थोड़ी दूरी रख लेते हैं। मन वचन अगर क्लैश हो, माफी वो मांगते हैं।। आगे जीवन क्लेस मुक्त हो, प्रयास करते हैं। बड़े हैं, क्षमा करने से बड़े ही सदा बनते हैं।। कोई नहीं दोषी, अनजाने में गुनाह सब होते हैं। इस चक्रव्यूह से, क्षमा मांग ही सब बचते हैं ।। स्वयं करता नहीं कोई, कर्मों का ताना-बाना है। सब इस जग में रह, कर्मों का कर्ज चुकाते हैं।। क्षमा वीररस्य भूषणम, अपना महान बनते हैं। क्षमा दान देकर ही, वह अहंकार को हरते हैं।। कहती वीणा उत्तम क्षमा, क्यूं अवसर गवांते हैं। एक क्षमा शब्द से, कितने जीवन संवर जाते हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्...
सलाह
कविता

सलाह

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** बुजुर्ग से सलाह ले, तू निश्चय मंजिल पाएगा। अनुभव उनके पास बहु,तू सफल हो जाएगा।। छोटी सोच त्याग, निर्मल जीवन बन जाएगा। कल किसने देखा, तू आज को जी पाएगा ।। सुख घड़ी गुजर गई, दुख भी ठहर न पाएगा । सुख दुख तो आने जाने, पर तू निखर जाएगा।। नेक सलाह लें, काम जो नित करता जाएगा। कठिन परिश्रम कर, राह आसान बनाएगा ।। जैसी सोच रखेगा, फल उसी अनुरूप पाएगा। बोया पेड़ बबूल का, तोआम कहाँ से आएगा।। अहम दीवार बीच आई, तो रिश्ता टूट जाएगा। फासला इतना ना बढ़ा, फिर मिल ना पाएगा।। मन भेद जो रखा, तो देख मनमुटाव बढ़ जाएगा। समझौते का फिर कोई, द्वार नजर ना आएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी र...
सच्चाई
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सच्चाई

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** मीठे बोल राह भटकाएंगे, मान यही सच्चाई है। बुजुर्गों ने समझाया, बात कहा समझ आई है।। शब्दों में कठोरता, राह नेक उसने दिखाई है। संग सदा वह खड़ा रहा, जैसे तेरी परछाई है ।। सच्चाई जग में, सबने सदा ऐसे ही बिसराई है। अपनी गलती को मनु, तूने नित ही दोहराई है।। नापाक मंशा मुकम्मल, कभी नहीं हो पाई है। झूठी राह अपना, हकीकत जिसने बिसराई है।। झूठ फरेब नकाब लगा, हकीकत छुपाई है। प्रभु पारखी नजर से, नहीं बचा कोई भाई है।। कह रही वीणा, यह दुनिया बहुत तमाशाई है। झूठ दौड़ रहा, सच्चाई की नहीं सुनवाई है।। सच्चाई पर अड़े रहे, हंसकर जान गवाई है। मर कर अमरता, कुछ बिरलो ने ही पाई है।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, क...
कदम
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कदम

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कदम रखना फूंक-फूंक, अतीत सदा दोहराया जाएगा। जब जब आगे बढे़गा, अतीत बता पीछे धकेला जाएगा।। हर व्यक्ति मैं में सिमटा, वो राह गलत तुझे दिखाएगा। वाणी में वेदना भरी, वह खुशी फूल कैसे खिलाएगा।। सोच समझ कदम बढ़ा, रास्ता चहूँओर नजर आएगा। गहराई से कर चिंतन, स्वयं नया सृजन कर पाएगा।। सज्जन राह पूछ कदम बढ़ा, दुर्जन राह भटकाएगा। जैसी संगति बैठिए, कहावत यतार्थ वो कर जाएगा।। मत कोसना अपनों को, कर्मानुसार फल तू पाएगा। फस गया कभी दलदल तो, कमल फूल खिलाएगा।। रख इरादे मजबूत कदम बढ़ा, दृष्टिकोण बदल जाएगा। समस्या को नजरअंदाज कर, तू निश्चय मंजिल पाएगा।। सकारात्मक सोच रख नजरिया बदल, अपनापन पाएगा। करता रह श्रेष्ठ कार्य, दुर्जन तेरे कदमों में झुक जाएगा।। इतिहास पृष्ठों पर, तेरा नाम स्वर्णाक्षर लिखा जाएगा। मर कर भी तू हर जन हृदय में, बस अमरता पाएगा।। . परिचय : का...
माता-पिता का आशीष
कविता

माता-पिता का आशीष

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** घने वृक्ष छांव से, घनी मात पिता आशीष छाया। पड़कर लोभ लालच मनु, सौभाग्य यह गवाया।। पत्नी प्यार अंधा हो, मात पिता को ठुकराया। जीवन लगा दिया, तूने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया।। तेरी बारी भी आएगी, क्योंकि तूने भी पुत्र जाया। जैसा देखा वैसा किया, यही विधाता की माया।। पुत्र वह तेरा है लेकिन, पत्नी बाहर से वो लाया। होगा एहसास, जब खेल यही तेरे संग दोहराया।। सुख दुख दोनों सहता, मात पिता आशीष छाया। श्रवण जैसा क्यों ना बना, बना विभीषण भाया ।। मात-पिता वचन पूरा करने, राम ने वन पाया। सुख दुख सहे बहू, तभी तो जग ना बिसराया।। इतिहास अमर हो गया, राम संग लक्ष्मण भाया। कैकयी को कुयश मिला, नाम न कोई दोहराया।। माता पिता आशीष छाया, जिसने जीवन में पाया। स्वर्ग सुख धरा पर, उस परिवार ने ही सदा पाया . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध...
घोर कलयुग
कविता

घोर कलयुग

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** देखो मेरे देश में, गुनहगार खुलेआम घूम रहे हैं। बेगुनाह नहीं मिली जमानत, सजा काट रहे हैं।। एनकाउंटर को गलत, कुछ मनचले ठहरा रहे हैं। देश की कानून व्यवस्था को, सही बता रहे हैं।। हम क्या करेंगे फिर, न्यायाधीश यह कह रहे हैं। तारीख पर तारीख, देने के सिवा कर क्या रहे हैं।। कर गुनाह पहुँच वाले, जमानत पैसों से पा रहे हैं। बेगुनाह के मां-बाप, कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं।। जिंदगी गुजर गई, फिर भी जमानत नहीं पा रहे है। घर खेत सब बेच दिए, नेताओं के पैर पकड़ रहे हैं।। कत्ल बलात्कार करने वाले, सरेआम घूम रहे हैं। इनको देखकर ही तो, दुष्कर्म देश में बढ़ रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
कटु सत्य
कविता

कटु सत्य

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** लोग मुँह मिश्री घोल, आजकल यूं बोला करते हैं। मुँह राम बगल में छुरी, कहावत चरितार्थ करते हैं।। महकते हैं फूलों की तरह, खुशबू मिलावट रखते हैं। पत्तों सी कोमलता नहीं, स्पर्श दर्द दिया करते हैं।। बातें लच्छेदार कर, वो ऐसे बात करामात रखते हैं । मिले जब भी खबर, नमक मिर्च लगा पेश करते हैं। गुनाह करते हैं बहुत, पर शर्म नहीं किया करते हैं। यह कलयुग, ऐसे लोग ही मजे से जिया करते हैं।। सच बोलने वाले, सदा ही गुनहगार बना करते हैं। झूठ बोलने वाले, एकछत्र चहुँओर राज करते हैं।। सौ सुनार एक लुहार, कहावत प्रभु यथार्थ करते हैं। जवानी में किया गुनाह, सजा वो बुढ़ापे में पाते हैं।। प्रभु घर देर अंधेर नहीं, हकीकत नहीं समझते हैं। करते हैं हिसाब सब बराबर, उधार नहीं रखते हैं।। कह रही वीणा, ये मनु फिर क्यूं नहीं संभलते हैं। अपने संग अपनों का भी, जीवन बर्बाद करते हैं।...
रिश्ते ऐसे
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रिश्ते ऐसे

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** जहां को दिखाने, रिश्ते ऐसे निभा रहे हैं। नहीं रहा अपनापन, दिखावा कर रहे हैं ।। झूठी मुस्कुराहट, चेहरे पे रख जी रहे हैं। अपनों बीच, देखो वो बेगाने हो रहे हैं।। रिश्ते खून के, औपचारिकता निभा रहे हैं। स्वार्थ रख मन में, वो करीब आ रहे हैं ।। जीवन में कैसा, परिवर्तन दौर आ रहा है। भीड़ में भी, अब तन्हा जीवन जी रहे हैं ।। रिश्ते दिल से नहीं, दिमाग निभा रहे हैं। अपनों को आहत, मन मन खुश हो रहे हैं।। वक्त भी देखो, अब वो करवट ले रहा है। दिल से निभाए रिश्ते, वह खास हो रहे हैं ।। दर्द में रिश्तो का, जब अहसास हो रहा है। नहीं की कद्र, तन्हा खून आंसू रो रहे है।। रिश्तो का महत्व, वो महसूस कर रहे है । अपनेपन अनमोल निधि, सहेज रहे है।। गैरों में पागल बने, अब अपनों को ढूंढ रहे हैं। कांख छोरा गाँव ढिंढोरा, कहावत दोहरा रहे हैं।। रिश्ते अहमियत, जिंदगी जन्नत बना...
आज रूबरू
कविता

आज रूबरू

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** जिंदगी हकीकत, आज रूबरू करा रहे हैं। आँखों के अंधों को, आईना दिखा रहे हैं ।। हकीकत को बिसरा, अनजान बन रहे हैं। अतीत गलती दोहरा, भविष्य बिगाड़ रहे हैं।। अनीति से पैसा, रात दिन वो कमा रहे हैं। कोई नहीं देख रहा, गलत कार्य कर रहे हैं।। माँ-बाप के पूछने पर, पागल बना रहे हैं। झूठी शानो शौकत, बच्चों संग डूब रहे हैं।। करनी देख, प्रभु मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं। तेरे कर्मों की सजा, इसी जन्म में दे रहे हैं।। लग रही पग पग ठोकर, संभल नहीं रहे हैं। बच्चों की गलती पर, झूठ पर्दा डाल रहे हैं।। उनके हर गुनाह पर, सिफारिश लगवा रहे हैं । आज का प्यार, कल मौत राह लेजा रहे हैं।। वक्त रहते नहीं संभले, फिर पछता रहे हैं। आई जब विपदा, अपने कर्मों पर रो रहे हैं। जन्नत थी जिंदगी सबकी, जहन्नुम बना रहे हैं। थोड़ा सुकून, बुजुर्ग आशीष से पा रहे हैं।। बुजुर्ग स्नेहाशीष को,...
सबक से सबक
कविता

सबक से सबक

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** सबक हर मोड़ पर, जिंदगी से सदा पाया मैंने। सबक से सबक, जिंदगी को जन्नत बनाया मैंने।। सबसे ले सबसे, और राह प्रशस्त किया मैंने । जो मिला जिसे मिला, सबक सदा लिया मैंने।। ठोकर लगी तो कभी, राह को बदला नहीं मैंने । उससे भी संभल, चलने का सबक लिया मैंने ।। बड़े बुजुर्ग अनुभव को, हृदय गम किया मैंने। आज जो कुछ हूँ, उसका श्रेय उन्हें दिया मैंने।। आदर्श उन्हें ही बना, हर कदम फूंक रखा मैंने । जहां चालबाजों का, परख अपना बनाया मैंने।। ना आई बहकावें में, धैर्य को धारण किया मैंने । बुजुर्ग सलाह से सदा, शुरु हर कार्य किया मैंने।। आशीर्वाद सदा उनका, हर कदम लिया मैंने। दुआओं में कितना दम, देख लिया आज सबने।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि...
इतना मुझे देना
कविता

इतना मुझे देना

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** शब्दों में सामर्थ्य बस, इतना मुझे देना प्रभु। प्रार्थना मन से करूँ, तुम तक वह पहुँचें प्रभु।। धर्म जाति से परे हो, जीवन सदा मेरा प्रभु। किसी का दर्द समझू, ऐसा जीवन मेरा प्रभु।। कर्म कांड पाखंड से, सदा दूर में रहूँ प्रभु । किसी की मदद करू, इतनी शक्ति देना प्रभु।। सज्जन व्यक्ति बन, जीवन यापन करुँ प्रभु। दिल में जगह मिले, यही प्रार्थना करूँ प्रभु।। नहीं चाहिए धन दौलत, दीन बन रहूँ प्रभु। सेवा दीन की करुँ तो, जीवन सफल हो प्रभु।। प्रार्थना बस यही, तुझसे मैं सदा करूँ प्रभु। कोई गरीब भूखा उठे, पर भूखा ना सोए प्रभु।। जब जाऊ इस जहां से, याद में आऊँ प्रभु। कर्म कुछ ऐसे करूं, ठौर चरण पाऊँ प्रभु।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि ह...
अस्तित्व खोकर
कविता

अस्तित्व खोकर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** अस्तित्व खोकर सब, गुमनाम जीवन जी रहे हैं। अनमोल मिला जीवन, अब अंधेरे में ढो रहे हैं।। कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं। जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं।। रिश्तो को बिखेर, यहाँ सभी अधूरे लग रहे हैं। एकांकी जीवन जीने, मजबूर अब हो रहे हैं।। बरसों लगे मुकाम पाने में, पल में गिर रहे हैं। पहचान छुपा सबसे, ऐसे वो जीवन जी रहे हैं।। जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं । गलत कार्य गलत नतीजा, देखो वो पा रहे हैं ।। राह मालूम नहीं, गुमनाम राहों पर जा रहे हैं । फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।। दूध जले छाछ भी, फूंक-फूंक अब पी रहे हैं। शेष जीवन उजाले में, वो इस तरह जी रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन...
सदा ऐसे ही छला
कविता

सदा ऐसे ही छला

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** सरल व्यक्ति को, सदा ऐसे ही छला जाता है। कर उसका अपमान, शर्मिंदा किया जाता है।। चिकनी चुपड़ी बातों से, वो अच्छा बन जाता है। लेकिन हकीकत को, वह नहीं छुपा पाता है।। गैर नजर नहीं, प्रभु नजर वह गिर जाता है। अपनी बर्बादी द्वार, वो स्वयं खोल जाता है।। शतरंज खिलाड़ी बन, होशियारी दिखाता है। प्रभु नजर से वह, कभी नहीं बच पाता है।। इतिहास गवाह, छलिया सदा ही दुख पाता है। रावण कंस कौरव, याद नहीं कोई रखता है।। अति सर्वत्र वर्जित, उसको ही वह दोहराता है। उपवास पात्र, सबके समक्ष वह ऐसे बनता है।। अपने मुंह मियां मिट्ठू, जो गलती से बनता है। अति होने पर, खुद अपने हाथ मुंह ढकता है।। गुणी बन बकवाद, लंबी तान वो छेड़ता है। अपना मान सम्मान, ऐसे स्वयं खो देता है।। श्रेय उसे ही मिलता है, श्रेष्ठ कार्य जो करता है। सरल व्यक्ति सदा, गुणों से ही पूजा जाता है।। . परिचय...
कर्तव्य पथ …
कविता

कर्तव्य पथ …

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** मनुष्य जन्म मिला, सार्थक कर। कर्तव्य पथ पर, सदा आगे बढ।। हो सके उतना, कर्तव्य निभा। श्रवण रह, कंस कभी ना बन ।। नींव पत्थर, दीवार मजबूत कर। संस्कारवान बन, फर्ज निभा।। कर्तव्य मार्ग, विपत्ति विघ्न। साहस धैर्य से, तू काम कर।। बाधा हर, नया सृजन कर। इरादे मजबूत रख, जीत जंग।। देश हित, जीवन समर्पण कर। कायर भांति, खामोश ना रह।। निस्वार्थ रह, पर हित कार्य कर। कर्तव्य पथ से, ना भटका कर।। राह दिखा, मार्ग प्रशस्त कर। कर्म पथ, सदा हो अग्रसर।। आदर्श श्रवण, जीवन सफल। जग ना भूले, नित कार्य कर।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा स...
बेवजह तुम हमसे यूं …
कविता

बेवजह तुम हमसे यूं …

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** बेवजह तुम हमसे, यूं ना तकरार किया कीजिए। कसम से मर जाएंगे, एक बार मुस्कुरा दीजिए।। बेवजह दिल पर बोझ रख,ना तुम जिया कीजिए। हम आपके अपने हैं, मन की बात बता दिजिए।। गैर नजर बचा तुम, हमसे मिल लिया कीजिए । नजर लग जाएगी, थोड़ा पर्दा रखा कीजिए।। वजह ना हो तो, बेवजह मिल लिया कीजिए। करते हैं तुमसे प्यार, वजह ना ढूंढा कीजिए।। दिल ए दर्द गजल गा, बेवजह शर्मिंदा ना कीजिए। आ जाएंगे मिलने, बस एक इशारा कर दीजिए।। जीने की हमें, आप कोई एक वजह तो दीजिए। यूं ही सरेआम हमें, बदनाम ना किया कीजिए।। वजह की तलाश में, जिंदगी बर्बाद ना कीजिए। अपनों संग आ, हमें बस कबूल कर लीजिए।। बेवजह वजह मिले, आप जिंदगी रंगीन कीजिए। हासिल जहां की खुशियां, जिंदगी वजह दीजिए।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर...
अस्तित्व खोकर
कविता

अस्तित्व खोकर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** अस्तित्व खोकर, गुमनाम जीवन जी रहे हैं। अनमोल मिला जीवन, अंधेरे में ढो रहे हैं।। कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं। जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं।। रिश्तो को बिखेर, हर शख्स अधूरे लग रहे हैं। एकांकी जीवन जीने, मजबूर अब हो रहे हैं।। बरसों लगे मुकाम पाने में, पल में गिर रहे हैं। पहचान छुपा सबसे, ऐसे जीवन जी रहे हैं।। जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं। गलत कार्य गलत नतीजा, देखो वो पा रहे हैं।। राह मालूम नहीं, गुमनाम राहों पर जा रहे हैं। फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।। दूध जले छाछ भी, फूंक-फूंक अब पी रहे हैं। शेष जीवन उजाले में, इस तरह जी रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप ...
फिर कभी न पाते
कविता

फिर कभी न पाते

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कर अभिमान, पतन को पाते। स्वयं हाथ, विनाश न्योता देते।। समझाने से वो, समझ न पाते। ठोकर लगे, सत्य पथ अपनाते।। अभिमनी यश, कभी न पाते। मन ही मन, मियां मिट्ठू बनते।। अनीति पैसे कमा, जश्न मनाते। बच्चों के जहन, गलत बीज बोते।। एकांकी जीवन, सदा वह जीते। दर-दर ठोकर, जग में रह खाते।। दुर्योधन गलत कार्य, जो दोहराते। अपनों को भी, गर्त वो ले जाते।। साथ नहीं जब, कुछ भी ले जाते। फिर क्यों, समाज जहर फैलाते।। इतिहास साक्षी, दंभी प्रलय मचाते। मनुष्य जन्म, फिर कभी न पाते।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
जीवन साकार करूंगी मैं
कविता

जीवन साकार करूंगी मैं

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** पितु -मात आशीष को, सफल सदा करूंगी मैं। शूल को फूल बना, जीवन साकार करूंगी मैं।। नेक कर्म कर जगत में, यश को प्राप्त करूंगी मैं । छल कपट से दूर रह, जीवन साकार करुंगी मैं।। वसुधैव कुटुंबकम भावना, सदा अपनाऊंगी मैं। मर्यादा को अपनाकर, जीवन साकार करूंगी मैं।। मन निराकार सपने साकार, कड़ी मेहनत करूंगी मैं। अपनी हर गलती स्वीकार, जीवन साकार करूंगी मैं ।। खुशियों का दमन कर, आशियाना ना बनाऊंगी मैं। सत्य पथ अपनाकर, सदा जीवन साकार करूंगी मैं।। पेड़ आदर्श बना, देश हित सर्वस्व न्योछावर करूंगी मैं। देश को प्रगति पथ पहुंचा, जीवन साकार करूंगी मैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक म...