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Tag: विश्वनाथ शिरढोणकर

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?
आलेख, बाल साहित्य

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बुद्धी और ज्ञान दुनियां में बहुत महत्वपूर्ण हैं, फिर वह किसीसे भी प्राप्त हो, उसे अनुभव से प्राप्त कर आत्मसात करना होता हैं। ज्ञान एवं अनुभव ग्रहण करने वाला शिष्य और ज्ञान देने वाला या प्राप्त करवाने वाला गुरु होता हैं। ऐसा यह गुरु और शिष्य का बुद्धी, ज्ञान और अनुभव का रिश्ता होता हैं। ज्ञान तथा अनुभव लेनेवाले एवं देनेवाले की उम्र का इससे कोई संबंध नहीं होता, सिर्फ ज्ञान देनेवाला अपने विषय में निष्णात होना चाहिए, और ज्ञान लेनेवाले का देनेवाले पर विश्वास होना चाहिए। यहीं इस रिश्ते की पहली शर्त होती हैं। बच्चें की पहली गुरु का मान यह उसकी माँ का होता हैं। इसके बाद जीवन के हर मोड़ पर ज्ञान और अनुभव देनेवाले गुरु की आवश्यकता महसूस होती रहती हैं। ‘गुरुपूर्णिमा‘ यह सभी गुरुओं को आदर और श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का दिन हैं। गुरुपूर्णिमा को ‘व...
क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?
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क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** स्त्री और पुरुष उस सर्वशक्तिमान की अमूल्य भेंट है। आजतक के विकास में स्त्री और पुरुष की समान हिस्सेदारी भी है। इतना होते हुए भी हर समय यश, प्रसिद्धी, मानसन्मान, निर्णय लेने का अधिकार हमें हरस्तर पर आज पुरूषों के लिए ही दिखाई देता है। देश में हर स्तर पर महिलाओं के लिए ५० प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए परन्तु ३३ प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भी पुरूषों के अड़ियल और महिलाओं के प्रति उनके नकारात्मक द्रष्टिकोण के कारण अनेक वर्षों से लोकसभा में लंबित था। वैसे भी वर्तमान में महिला सशक्तिकरण की अनेक योजनाये कार्यरत है, परन्तु लचर मानसिकता और भ्रष्टाचार के कारण वांछित परिमाण देश में दिखाई नहीं दे रहे है। पुरुष सत्तात्मक समाज में आज भी महिलाओं को पुरूषों के बाद का ही दर्जा दिया जाता है। समानता को स्वीकार करने की मानसिकता ही दिखाई नहीं देती। मजे की बात ...
रिश्ते
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रिश्ते

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रिश्ते आदमी को जन्म से ही अपने आप मिल जाते है। भले ही रिश्तों का कोई आकार प्रकार ना हो, परन्तु रिश्ते धीरे धीरे अपने आप जुड़ते जाते है और श्रृंखलाबद्ध हो जाते है। अटूट बंधनों में बंध जाते हैं। कुछ रिश्ते अचानक कोई लॉटरी खुल जाए ऐसे भाग्योदय जैसे उस लॉटरी में खुले इनाम की तरह मिल जाते है। जैसे परिवार में किसी की शादी तय होती है और वरमाला पड़ते ही अचानक कई सारे रिश्ते जुड़ जाते है। कुछ रिश्ते पुष्प जैसे होते है, खिलते जाते है, बहार लाते रहते है, महकते जाते है और हमेशा खुशबूं ही बिखेरते रहते है। गुलाब की पंखुड़ियों में अक्षरों से लिपट जाते है। कुछ रिश्ते पत्थर जैसे जडवत रहते है। अक्षरशः गले में पत्थरों की माला जैसे बोझा बन लटकते रहते है और उन्हें जबरन ढोते रहना पड़ता है। कुछ रिश्ते मन में चिडचिडाहट पैदा करने जैसे होते है। बिलकुल हैरान परेशान ...
अमरप्रेम
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अमरप्रेम

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** अमरप्रेम इस विषय पर साहित्य में, फिल्मों में और धारावाहिकों में हमें ढेर सारी सामग्री मिलती हैंI क्या अमरप्रेम यह विषय मनोवैज्ञानिक हैं? क्या अमरप्रेम की मस्तिक्ष में कोई ग्रंथि होती हैं? उम्र का इससे भले कोई संबंध ना भी हो तो भी अक्सर ख़ास कर किशोर अवस्था से इसकी शुरवात क्यों होती हैं? आगे जाकर यह किस तरह पनपता हैं या किस तरह इसका अंत होता हैं? और क्या यह परिस्थतियों पर निर्भर होता हैं? आखिर अमरप्रेम होता क्या हैं? अमरप्रेम इस शब्द का उपयोग स्त्री-पुरुषों के संबंध हेतु, विशेष कर प्रेमीयुगल हेतु और उनके अंतरंग संबंधों हेतु किया जाता हैंI ‘प्रेम मय सब जग जानीI’ कबीरदास इसके भी आगे जाकर कहते हैं, ‘ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होयI ‘सब कुछ भूलकर और भुलाकर प्रेम में डूब जाने वाले ऐसे युगलों की एक लम्बी फेहरिस्त हैंI लैला-मजनू, शिरी-फरहाद,...
हर घर एक वृद्ध को गोद ले
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हर घर एक वृद्ध को गोद ले

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** हमारे देश मे १२ करोड से ज्यादा जनसंख्या ६० वर्ष के उपर के वृद्ध लोगो की है। और सन २०२५ तक यह २५ करोड से ज्यादा होने की संभावना है। वरिष्ठ नागरिको की संख्या मे होने वाली वृद्धी को एक चरम संकट की चेतावनी ही समझी जानी चाहिये। २५ करोड़ वरिष्ठ नागरीकों का मतलब दुनिया में चीन और अमेरिका को छोड़ दिया जाय तो यह किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या से ज्यादा होगी। पश्चिमी राष्ट्रों में संयुक्त परिवारों का विघटन बहुत पाहिले ही हो चुका है। परन्तु हमारे देश में इसकी शुरवात पिछले ३० -४० वर्षो में हुई और विगत १० वर्षो में इसकी गति बहुत तेज रही है। पश्चिमी राष्ट्रों की तुलना में हमारे यहां संयुक्त परिवारों का विघटन देर से होने के कारण हमारे यहां संयुक्त परिवारों का सुख भोग चुके वृद्ध आज भी उन यादों को संजोये हुए है। वृद्धावस्था में आने वाले संकटों का सामना सभी...
मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति
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मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा कह सकते है। मुद्दों के बारे में यह कि तात्कालिक विषयों को हम जब अल्पावधि में विचार कर तर्क संगत परिणिति तक पहुचाते है तब उन्हें मुद्दे कहना न्याय संगत होता है। मुद्दों को जब हम समय के अभाव में या पसंद नापसंद के धरातल पर तोलकर या अहंकारवश या और किसी कारण से अतार्किक पद्धति से परिणिति तक पहुचाने का प्रयास करते है तब मुद्दा अपना मूल रूप और क्षमता खो देता है। फिर जो बचता है वह मुद्दे को तर्क वितर्क और कुतर्क के साथ एक मजबूत अहंकार में बदल देता है। इसके बाद जो परिणाम होते है वह स्वार्थो का टकराव और अहंकार का शिखर जो स्पष्ट रूप से आचार विचार और व्यवहार में परिलक्षित होता है। मेरा अपना स्पष्ट मानना है कि कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हो इनसे अपने आप को बचाए रखना चाहिए। परिस्थितियों पर नियंत्रण नहीं हो सकने के कारण मुद्...
एक राष्ट्र–एक चुनाव
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एक राष्ट्र–एक चुनाव

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** विश्व में आज हमारा लोकतंत्र जितना स्थिर, स्थायी, मजबूत और परिपक्व हैं, उतना ही हमारा मतदाता भी परिपक्व होता जा रहा हैंI ऐसे में यह भी सोचना होगा कि क्या ‘एक राष्ट्र एक चुनाव‘ यह देश का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हैं या महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए एक और नया मुद्दा हमें परोसा जा रहा हैंI भले ही सारे राजनितिक दल और नेता पुरानी तरह से सोचते हो परन्तु वास्तविकता यह हैं कि तकनिकी विकास और सोशल मिडियाने मतदाताओं को परिपक्व किया हैं, इसका अंदाजा नेताओं को शायद नहीं हैं I पक्ष-विपक्ष के राजनितिक दलों के अपने अपने तर्क हो सकते हैं I परन्तु सत्ताधारी और विपक्ष वे ज्वलंत मुद्दे क्यों नहीं उठाते जो देश के सामने विकराल रूप से आज भी चुनौती दे रहे हैं I यह आश्चर्यजनक हैं कि राजनैतिक दल उनके ही द्वारा उठाये गए पुराने मुद्दों को अधूरा छोड़ते जा...
लोकतंत्रीय तानाशाही
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लोकतंत्रीय तानाशाही

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** भीड़तंत्र की, 'लोकतंत्रीय तानाशाही' पढ़कर और सुनकर अनेक लोग हैरान हो सकते हैं और उन्हें यह विषय हास्यास्पद भी लग सकता हैं, परन्तु वस्तुस्थिति यह हैं कि हम लोकतंत्रीय तानाशाही की ओर बढ़ रहें हैं, जहाँ किन्ही चयनित या निर्वाचित कुछ ख़ास व्यक्तियों को व्यवस्था रूपी तंत्र निर्णय लेने के सारे अधिकार सौप देती हैंI एक दो व्यक्ति, चाहे घर हो या बाहर, या हो राष्ट्र में, योग्य निर्णय लेने की असीम एवं निष्पक्ष क्षमता नहीं रख सकते, बल्कि यह कहें कि सुचारू व्यवस्था के लिए और नित नयी समस्याओं के समाधान हेतु किसी एक या दो व्यक्तियों को योग्य और सक्षम निर्णय लेना संभव ही नहीं हो सकता I लोकतंत्रीय तानाशाही में सलाहकार भी एक वृत्त और उसकी परिधि की चकाचौंध से भ्रमित हो उन्हें योग्य सलाह देने का साहस ही नहीं जुटा पाते, क्योंकि उन्हें हमेशा यह भय सताता रहता ह...
कितना राष्ट्रप्रेम कितनी राष्ट्रभक्ती
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कितना राष्ट्रप्रेम कितनी राष्ट्रभक्ती

********* विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. किसी भी राष्ट्र की भौगोलिक सीमा ये उस राष्ट्र का अस्तित्व, महत्व, और पहचान के लिये पर्याप्त नही होती। जमीन पर दिखने वाली इस सीमा रेखा के अंदर उस राष्ट्र के नागरिकों के अपने राष्ट्र के प्रति जो आदर, जो कर्तव्य, जो प्रेम और अपनत्व की भावनाएं अपने परिपक्व स्वरूप मे होती है, और यह सब जब राष्ट्र के नागरिकों के व्यवहार और आचरण मे प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होती है, तब हम इसे राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती कह सकते है। राष्ट्र के स्थायित्व और सर्वांगीण उन्नती के लिए तथा भावनात्मक रूप से राष्ट्र को एक सूत्र मे पिरोये रखने के लिए इसी राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती की नितांत आवश्यकता होती है। - इतिहास साक्षी है कि राष्ट्रप्रेम के अभाव मे भारत का विभाजन हुआ। आगे संयुक्त पाकिस्तान मे भी नागरिकों के राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती की भावनाओं का ऱ्हास होने के कारण ...
कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?
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कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?

********* विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. हमारे देश मे तामिलनाडू राज्य मे हिंदी भाषा के लिये कुछ असंवेदनशीलता देखने को मिलती है और वैसा हमे प्रत्यक्ष अनुभव भी होता है परंतु यह भी सच हैं कि, तामिलनाडू राज्य मे उनकी मातृभाषा के लिये गौरव, सन्मान और अभिमान और आत्मीयता भी उन्हें अनुभव होती है I राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे मे तामिल जनता से और राज्य के राज्यकर्ताओ से अन्य भारतीयो का कितना भी मतभेद हो परंतु एक राष्ट्रभक्त होने के नाते हमे निश्चित ही तामिलों की भावनाओ का आदर भी करना चाहिये, और मातृभाषा के प्रती उनके लगाव के कारण हमे गौरवान्वित भी होना चाहियेI हमे इस हेतू निश्चित ही संतुष्ट भी होना चाहिये कि एक राज्य की भाषा (तमिल) को, संस्कृती को और अस्मिता को सहेजकर और सुरक्षित रखने के लिये वहां के लोग जी जान से जुटे है और भावनिक दृष्टी से अपनी मातृभाषा से भी जुडे हुए है परंतु राष्ट्रभाषा हिंद...