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Tag: विवेक सावरीकर मृदुल

तुम मेरी ज़द से
ग़ज़ल

तुम मेरी ज़द से

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** तुम मेरी ज़द से अक्सर जरा-सी कम रही कोशिशें पर मैंने की ये खुशी भी कम नहीं औरों की बेबसी पर आती है उनको हँसी झेल सकें हालात दो पल को भी दम नहीं उनपे हौसला न था, हम किस्मत के मारे थे वगरना हमने पेशनगोई, की कोई कम नहीं कब तलक रोते रहोगे, जख्म़ सहलाते हुए मुस्कुराओ इससे, बढ़कर कोई मरहम नहीं नेकियों का साथ मिल रहा है मुसलसल बदी करने वालों तुम इतने भी तुर्रम नहीं . परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म : १९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मरा...
मेरी पहचान
कविता

मेरी पहचान

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** ओ पिता! जबसे चले गये हो बहुत दूर और लोग कहते हैं कि तुम अब नहीं हो जबकि तुम अधिक रहते हो पास मेरे सुबह की धूप में दिखती है तुम्हारी हँसी छाँव में तुम्हारा वात्सल्य झलकता है शाम दिखाती है शिविर को लौटते हुए पसीने से नहाए लहुलुहान योद्धा की छवि रात को एक चिंताग्रस्त बाप बन जाती है ओ पिता! नहीं जानता था तुम्हारे जाने से पहले कि तुम्हारी यादें धँस चुकी हैं मेरे अंतर्मन में और घुल चुकी है मेरी धमनियों शिराओं में इतनी गहरी कि मेरे हर शब्द में बोलोगे केवल तुम ओ पिता! भरोसा है मुझे कि जब इस आपा-धापी से भरे जीवन में भावनाओं का सूखा पड़ जाएगा और भले बने रहने की नहीं बचेगी कोई सूरत तुम नेमत की बारिश की तरह आओगे और मेरी इंसानियत की फसल को सूखने से बचा लोगे ओ पिता! नहीं ला दूंगा तुम्हें नकली विशेषणों से नहीं करूंगा वृथा यशोगान भले ही नहीं मानूंग...
रिश्ता मेरा
ग़ज़ल

रिश्ता मेरा

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** यहां के हर बाशिंदे से है रिश्ता मेरा मैं नहीं जानता एनआरसी क्या है सफर भर अपना शहर साथ रखो फिर मुंबईया औ बनारसी क्या है? दिल को समझा दो प्यार की बोली हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू , फारसी क्या है? झूमो, नाचो कि अब तक जिंदा हो जिंदगी रक्खी उधार-सी क्या है ? जम्हूरियत बाँटने पर हो आमादा ये जुनूनी आरजू बेकार-सी क्या है . परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति : माख...
पूछती हैं बेटियाँ
कविता

पूछती हैं बेटियाँ

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** कर चुके हैं दर्ज कितने आक्रोश मोमबत्ती जला चीख चीख कर थक चुके चैनल चर्चित एंकर यहां धरने प्रदर्शन कर देश भर उकता गये हैं आम जन प्रश्न जस का तस अनुत्तरित क्या करें अब और हम? और कितनी बार हमारी सभ्यता नीलाम होगी और कितनी बार मानवता यहाँ बदनाम होगी रोष और खौफ के आगे क्या बढ़ पाएंगे सभी इस दरिंदगी से हमेशा को निजात पाएंगे कभी कब आखिर कब नुचेगी इन नरपशुओं की बोटियाँ पूछती है राख में झुलसी हजारों बेटियाँ . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता,...
अपनी नज़र में
कविता

अपनी नज़र में

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** बड़ा मानने के लिए खुद को अपनी नज़र में नहीं करने पड़ते कोई खास जतन कोई छोटी-सी उपलब्धि हासिल होती है और हो जाते हैं हम बड़े कानो में चारो तरफ से सुनाई देने लगती है विरुदावलियाँ जय घोष, प्रशंसा भरी निगाहे सुख शैया सी लगती है खुद को विनीत खड़े देखते हैं मंच पर कब लोग शुरू करें तारीफों की बौछार कब विनम्रता की शाल ओढ़े करे हम इसका स्वीकार कर्र ... कर्र ... कर्र ... कर्कश घंटी अलार्म की सुबह के स्वप्न की असमय हत्या करती है और एक आह के साथ पूरे दिन की यात्रा शुरू होती है तसल्ली देते हैं मन को बीच में कुछ समय निकाल कर उतनी बड़ी बात नहीं होती लोगों की नज़रों में बड़ा होना जितना अपनी ही नज़र में छोटा रह जाना लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में...
गाता रहता है मन
कविता

गाता रहता है मन

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** गाने का रियाज़ छूट जाने पर भी गाता रहता है मन थोड़ी अतिरिक्त मिठास सुरों में थोड़ी अतिरिक्त गमक और पूर्वाभ्यास की संचित चमक से लूटने को आतुर वाहवाही दौड़ता है जब तब मंच की ओर तन गाता रहता है मन।। लंबी आलापचारी में हांफता रहता है बार बार समय से पहले सम पर आ जाते सुरों के निढाल सवार पर तब भी गाने को है उत्सुक यमन, कल्याण, काफी, मल्हार उम्र के ढलान का अटूट जौबन गाता रहता है मन।। गाने का खुमार चढ़ रहा है गाना भीतर को बढ़ रहा है होठों से भर नहीं है गान अंग अंग लेने लगा है उड़ान शरीर को न रहे सुर होने का भान कंठ से न निकले अपेक्षित तान भीतर के सुर करते हैं गुंजन गाता रहता है मन।।   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशि...
काम पर लगो चलो
कविता

काम पर लगो चलो

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** उम्र की ढलान को, मन की थकान को भूल कर उठो चलो, काम पर लगो चलो।। मंजिलों को पाना है, तो चलने का जतन करो लोग जुड़ें खुद बा खुद, ऐसा आचरण करो काफिला जुटाओ मत, पथ का तुम चलन बनो भूल कर………… कायरों की तरह, यूँ पलायन मत करो कर्म करो डूब कर, थोड़ी हिम्मत धरो बात ऐसी बोलो के, सबके उद्धरण बनो भूल कर………… रात है न इसलिए, कष्ट लग रहे बड़े पर सुबह के सामने, होंगे कैसे ये खड़े ? तुम उजाले के लिए, सूर्य की किरण बनो भूल कर…………   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रं...
नज़रिया
कविता

नज़रिया

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** झाड़ू बुहारते गृहणी इतनी मगन  है इतनी मगन मानो चेहरा चमकाती हो ब्रांडेड  स्क्रब क्रीम से तुम्हें मगर शिकायत रही हमेशा ठीक से सजती नहीं वो कि पूरा मेकप किट दिलाया है उसे पिछली दिवाली पर इसलिए फर्ज़ है उसका कि सजे वो और अहसास माने जिंदगी भर समय मिले तो झांक लेना उसी किट में फाउंडेशन सूख गया कबका लिपस्टिक  हो गई चिपचिपी आई शैडो का बॉक्स फैंसी ड्रेस कम्पीटीशन को तैयार होते समय भूल आई स्कूल में तुम्हारी आठवी कक्षा में पढ़ती बेटी ले देकर बची केवल एक काजल पेंसिल लगाती है वो तुम तो इतना भी नहीं जानते होगे कि  लिप्स्टिक की बिंदी लगाती है वो जब तुम खुद चिपचिपाते हुए बैठ जाते हो उसके माथे पर जैसे रह गया तुम्हारे से उसके संबंध का यही एक ज़रिया नहीं, मेकप किट नहीं बदलना है तो बदलो अपना नज़रिया   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कान...
रजस्वला
कविता

रजस्वला

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** रजस्वलाओं की सुबह अब अलग नहीं होती वे बोरा लिए कोने में अस्पृश्य सी नहीं सोतीं सुबह उठकर घर आपके बर्तन मांजने आती है या आपके छौने को स्कूल छोड़ने जाती है प्रयास पूरा करती है ना प्रवेश करे पूजाघर में दूर रहती है आरती,पूजन और प्रसाद ग्रहण से रास्ते के मंदिर के पास पांव आदतन ठिठकते हैं बस वो मौन प्रार्थना कर दूर निकल जाती है ।। मगर नहीं चाहती वो कि कोई माने बताए उसे शुचिता का कि सिखाने लगे उसे पाठ पवित्रता का क्योंकि देवी है वो अगर तो देवियां कभी नहीं होती रजस्वला रहती हैं सदा वत्सला।।   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित म...
अनगिनत यात्राएं
कविता

अनगिनत यात्राएं

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** पिता ने की अनगिनत यात्राएं पर जा नहीं पाए दूरस्थ जगहों पर इस डर से कि हमें कहीं कुछ कम न पड़ जाए साधन की बहुत कमी के बगैर भी मुल्तवी करते गये घूमने का शौक देखते रहे सपनों में हरियाली भरे पर्यटन स्थल चीड़ के वन बर्फाच्छादित उपत्यकाएं बताते रहे प्रसंगों से जोड़कर माँ के साथ संपन्न चुनिंदा यात्राओं का रससिक्त वर्णन उनकी यात्राओं में अक्सर  आड़े आता रहा हमारा बचपन या हमारी पढ़ाई और एक दिन जब हम सब बड़े हो गये  नहीं रहा  हमारी कमी का डर और रह गया उनके पास समय ही समय हमने देखा पिता के शौक को भी अंतिम सांसे लेते हुए एक दिन पिता की तरह   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठ...
पुरानी हर ईमारत
ग़ज़ल

पुरानी हर ईमारत

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) पुरानी हर ईमारत ढहाई जाएगी तब स्मार्ट सिटी बसाई जाएगी सिनेप्लेक्स क्लब या मॉल होंगे झुग्गी बस्ती की जमीन जाएगी यादों का मलबा दबाया जायेगा और नई नेमप्लेट लगाई जाएगी एक ग़ज़ल भर नहीं मेरी संवेदना उम्मीद है दिल से सुनाई जाएगी वहीँ दफ़्न होगी 'मृदुल' की आरज़ू जहाँ से भी मिटटी उठाई जाएगी   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय ...
मैं क्यों नहीं चीख पाता इन दिनों
कविता

मैं क्यों नहीं चीख पाता इन दिनों

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) मैं जानता हूं रे कि चीखने का समय है ये पर करूं क्या! आज तो मेरा कंठ रूद्ध है तुम देखते हो क्या कोशिश कर? कहता आया हूं मैं यही ताज़िंदगी एक अप्रिय स्थिति से जान बचाकर।। देखो उंगली उठानी है मुझे उनकी मुखालिफत में जो सड़कोंऔर चौराहों पर बहा देते हैं किसी का भी खून पर क्या करूं उंगली अकेली कहां है वो और चारों के साथ है उसके उठने और झुकने पर किसी न किसी अनजाने षड़यंत्र का हाथ है।। अरे मैं सचमुच चढ़ाना चाहता हूं त्यौरियाँ, लाना चाहता हूं पेशानी पर बल उनके खिलाफ जो बाजार पाट रहे हैं मिलावट के जहर से मैं अब भी चैक करता हूं एक्सपायरी डेट दवाओं और सीलबंद खाद्यपदार्थों की पर वो लिखी होती है बहुत महीन फिर ये सोचकर कि ले रहे है इसे मेरी बगल में खड़े कॉरपोरेट कल्चर में नहाए शार्ट्स और स्वेट शर्ट्स पहने अनगिन लोग मैं हो जाता हूँ मुतमईन बेशक़, मैं रोना चाहता हूं अनाम...
चाय गरम
कविता

चाय गरम

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) चाहे कोई मरे चाहे भाड़ ही में जाए हमको तो मिले बस गरमागरम चाय चुस्कियां भरें और बांचे अखबार दोसौ मरे, दो घायल, चार बलात्कार खुद के बचे रहने का जश्न हम मनाए।। हादसों को देखे सिर्फ बन तमाशबीन इमदाद की बात पर हो जाएं उदासीन फोकट में कौन साल्ला थाने कोर्ट जाए! हमदर्दी के चंद जुमले दोहराये वायदों के लॉलीपॉप जन को थमाए पांच साल के लिए फिर सबको भूल जाए चाय गरम चाय, गरमागरम चाय।। . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप ...
रिश्तों की मृत्यु
कविता

रिश्तों की मृत्यु

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) रिश्तों की मृत्यु अचानक नहीं होती वो तिल तिल कर होती रहती है मगर हमें इसका पता हमेशा देर से चलता है सुदूर जा पहुंचे दोस्त मिलते हैं कभी फेसबुक पर सुख,दुख,पैसा-लत्ता, नौकरी-बिजनैस, बच्चे-बहू और यहां तक कि माँ-बाप भी आते जाते हैं बातों में रस बढ़ाते, प्यार जताते, नाज उठाते कितने ही क्षण और फिर पसरने लगती है ऊब भरी सांझ अपनेपन का अनमना होना देखते हैं हम पर समझ नहीं पाते कि  मुरझा चुकी है रिश्ते की बेल कभी कहीं फिर टकराने पर "तुम तो आते ही नहीं... भूल गये क्या ऐं ऐं" कहकर रिश्ते के मृतसम शरीर पर फूंका करते हैं थोड़ी-मोड़ी प्राणवायु और समय निकाल लेते हैं मन को तक नहीं जानने देते कि रिश्ता मर चुका है बहुत पहले ही यह तो केवल उसकी याद की देह है . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवा...
पैबंद खुशी का
कविता

पैबंद खुशी का

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) पैबंद खुशी का सिला हुआ लगता है भीतर से हर कोई हिला हुआ लगता है मुझे सामने देखकर वो हंसता बहुत है शायद दुश्मनों से मिला हुआ लगता है रात मेरी खिड़की पर बहुत जमी ओस कुदरत की ओर से गिला हुआ लगता है किसी न किसी बात पर मायूस होते हैं और बेबात दिल खिला हुआ लगता है जीतने के लिए इक होड़ सी मची यहाँ हरेक दूसरे पर यूं पिला हुआ लगता है थोड़ा हंसकर या रोकर सफर काट लो अपना यही सिलसिला हुआ लगता है . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता क...
हिंदी दिवस पर देखें ऐसे ही नज़ारे
कविता

हिंदी दिवस पर देखें ऐसे ही नज़ारे

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर  ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप मे...
कुछ कहा तो पर
ग़ज़ल

कुछ कहा तो पर

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) कुछ कहा तो पर बहुत अनकहा रहा उसके मेरे दरम्यान एक फासला रहा .  मैंने ताउम्र देखी नहीं मंज़िले मक़सूद  सामने  मुसलसल इक काफिला रहा .  हर दौर के हाकिमों का हाल एक है जिसे देखिए अवाम को बरगला रहा . हम चल आए अपने हिस्से की बाजी अब उनके हाथों हमारा फैसला रहा . आज चमकेंगे ,कल गर्दिश में जाएंगे  हमेशा किस बशर का जलजला रहा . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति ...
पिता का होना
कविता

पिता का होना

********* रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल हो सकता है कि किसी एक दिन याद करने से ज्यादा मिलता हो पुण्य अधिक मिलती हो लोकप्रियता बढ़ जाती हो बहुत फैन फॉलोइंग मगर पिता!  तुमको याद करने को तुम गये कब मेरे वजूद से याद है!  जब जामुनी बाटीक की चादर ओढ़कर सो गये थे तुम जमीन पर अनायास कितने आए,कितने रोये,कितने मनाये न हुए टस से मस ऐसे हठी .  देह तुम्हारी अग्निलोक में और तुम विदेह इसी लोक मे तबसे लगातार रहते हो मेरे संग उठते,बैठते,सोते जागते रोते गाते और लड़ते हुए सदैव इक जंग  तुम मिलते रहते हो और मेरे अंदर सूखते साहस को दुगुना भरते रहते हो . अब नहीं देनी पड़ती तुमको दवाईयां न जाना पड़ता है लेकर डॉक्टर के पास न क्रिकेट का जोश भरा कोलाहल घर में मचाता है हलचल न कोई हमें टोकता और समझाता है पल पल . फर्क इतना सा हुआ है कि इन दिनों तुम जब निहारते हो तस्वीर में से  हम नहीं कह पाते अब खीजकर थोड़ा तो लेने दिय...
हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य
कविता, व्यंग

हिंदी दिवस पर एक व्यंग्य

********* रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल अगवानी में लगे देश के मंच सारे उसे राष्ट्र के माथे की बिंदी पुकारे लगेंगे उसके सम्मान में जयकारे हिंदी दिन पर देखें ऐसे ही नज़ारे . परायेपन का बोझ ले विवाहित बेटी निज घर आती  सहमती औ बौराती पल सम्मानित, उपेक्षा युगों युगों की मुखर हो बात कभी न ये कह पाती . राष्ट्र भाषा का सपना आँखों में धारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . अंग्रेजीयत का रोमांच हमको भाता हिंदीवालों को समझते गंवार भ्राता यूं विश्वमंच पर ध्वज फहरा आते और सालों उस भाषण के गुन गाते . लेकिन अब भी हम अंग्रेजी के सहारे हिंदी दिन पर देखे ऐसे ही नज़ारे।। . .लेखिका परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दु...