मखोल्या की खीर भाग 2
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रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद"
उको सरीर दुबलो ने दो असाढ़ जैसो थो। सरीर गठिलो करने सारू उ सेर में पड़ने गयो थो।
अय गांव में तगड़ी बारिस होने लगी गय ने ४-५ पावणा अय गया। घर मे समान भी कम थो ने इतरा सारा लोग ! हिम्मत वाली थी पटलन, दाल चडई दी चू ला पे ने सोचने लागि के मीठा में तो कय बनाने सारू हेज नी। चावल भी खुटी गया। कय करू।
मेहमान पटेल का इन्तजार कर रहे थे। चाय पिलाने का बाद पटलन ने जल्दी-जल्दी दाल-रोटी, खीर ने
अचार परस्यो। मेहमान ने भरपेट भोजन करी ने पटलन से खीर का बारा में पूछ्यो तो वा बोली नी। बड़ा लोग ना का सामने वा आवाज भी नि निकालती। सो मेहमान राते रुक्यया ने हवेरे-हवेरे वापस जाता रया।
रास्ता में पटेल हरिसिंह अपनी लाडी का साथे पैदल पैदल चल्या अय रया था। आमनो-सामनो होने पे पटेल से सबी जना प्रेम से मिल्या ने मेहमान नवाजी की बात बतय के खीर की त...