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Tag: विजय पाण्डेय

परिंदा हूँ मैं
कविता

परिंदा हूँ मैं

विजय पाण्डेय महूँ जिला इंदौर ******************** रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नही। वक्त का मारा, परिंदा हूँ मैं। उड़ना भी चाहूँ मैं , उड़ पाता नहीं। जिंदगी के रन्ज गम, सह पाता नहीं। रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। गैरों के घर मेरा, आशियाना बना हैं। कब टूट जाए ये, मैं जताता नहीं। जो खुद ही तपन में, जलता रहा हैं। वो और का आशिया जलाता नहीं रूठना मनाना मुझें, आता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नहीं। धर्म भी कोई मैं, निभाता नहीं। मैं आरति बंदन, गाता नही। मैं मन्दिर,मस्जिद, बताता नहीं। किसी को कभी मैं, सताता नहीं। . परिचय :- विजय पाण्डेय पिता- श्री रामलखन पाण्डेय माता- मानवती पाण्डेय जन्म तारीख : १६/०६/१९८४ जन्म स्थान : लदबद बाणसागर शहडोल, मध्यप्रदेश वर्तमान निवास : महूगाँव महू जिला इंदौर शिक्षा : बी.ए व्यवसाय : नौकरी लयुगांग इंडिया पीथमपुर आप भी अपनी कविताए...
वतन की खुशबू
कविता

वतन की खुशबू

विजय पाण्डेय महूँ जिला इंदौर ******************** मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो ज़मी के कण से आती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो पहचान हमें दिलाती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो अमन शान्ति में रहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो मेरे रक्त कणों में बहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो नदियों को माँ कहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो मेरे धर्म ग्रंथ में रहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो खेतों के फसल में रहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो धूप बदन पर सहती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो मेरे संस्कार में बसती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो हर दुख सहकर भी हँसती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो सरहद की हिफाज़त करती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो दुश्मन को ललकारे भरती हैं। मुझें प्यारी हैं वो खुशबू, जो गद्दारों को सबक सिखाती हैं। मुझें प्यारी हैं वो ख...