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Tag: ललित शर्मा

भक्तों के घर आती नवदुर्गा
कविता

भक्तों के घर आती नवदुर्गा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सिंह पर सवार होकर, नवदुर्गा, शरदकाल के नवरात्रि में जब आती, भक्तों के हर घर, हर आंगन में, ज्योत भक्ति भाव की, नियमित जलाती, देवी की पूजा पद्धति विधिवत करने की चौकी, माता की, भक्तों के घर सज जाती, अन्तर्मन में जगाकर प्रेम भक्ति का भाव विधिवत पूजा अर्चना का भरते भाव, श्रद्धालुओं में उमड़ता, मंत्रो का चाव समझते माता दुर्गा की शक्ति भक्ति भाव, कलश, दीप धूप रख करते भक्ति भाव विनती कर मैया से, जगाओ भक्ति भाव शारदीय दुर्गोत्सव की शुभ पावन बेला सुहावना, होता, भक्तिमय पल अलबेला आनंदित अंतरिम सुखमय मधुरिम भक्तिमय बन जाता, नवरात्रि का मेला मङ्गलमयदायक, प्रेरणादायक दुर्गा मेला विदाई में नम आंखे, खेलते सिंदूर खेला भक्ति गीत संगीत की तान ह्रदय में बजाती भावभक्ति से जगराते की रात जगाती मातारानी के नवरात्रि में शक्...
पितरों का श्राद्ध
कविता

पितरों का श्राद्ध

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आश्विन का मास पूर्वजों को करते तनमन से याद, करते श्रद्धा से पितरों का तर्पण करते उनका श्राद्ध, पूर्वजो के प्रति परिवारजन में जगाते श्रद्धा पितृपक्ष पर रहता मन मे श्राद्ध करने का विचार, पूर्वजो की श्रद्धा में श्रद्धापूर्वक करते पितृपक्ष की सेवा में श्रद्धा से श्राद्ध, भोजन से पूर्व तनमन से तर्पण गौओ, कोए को करते पहले अर्पण देते पहले ग्रास, पितृपक्ष पूर्वजो का एक सुंदर पर्व पूर्वजो की याद में पन्द्रह दिन तक परिवारजन निभाते अनुभव में करते गर्व, पूर्वजो के बिना अधूरा है जीवन पहचान है पूर्वज उनकी ही देन है उनके ही वंशज यही है अपना जीवन, पूर्वजो के प्रति करते है श्राद्ध समझते रहे है कर्तव्य प्रतिवर्ष करे श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध, पितरों को मुक्ति शांति मिले हम परिवारजनों ...
हिंदी की गूंज
कविता

हिंदी की गूंज

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सितंबर का महीना जब आता हिंदी की उन्नति व प्रगति का हिंदी दिवस और पखवाड़े का मनाने की बेसुमार खुशी लाता हिंदी प्रचारक दीप जलाता अन्तर्मन से हिंदी का नारा तनमन से हो आता प्यारा प्रफुल्लित सबजन लगाता हिंदी की प्रबलता नई गति दिशाहीन हिंदी को दिशा ताकतवर ज्वार खूब लाता जमावडा सबका हो जाता जमकर हिंदी दिवस का डंका बजाया जाता हिंदी के प्रचारप्रसार का मनुहार जोरो से हो जाता खोजते है तमाम उपाय हिंदी फलतीफूलती जाय जोरों पर हिंदी पखवाडा प्रतियोगिता तेज. बढ़ाता विकसित करने को हिंदी नारा जोरशोर से लगवाता कामयाब करने को पखवाडा लगता जाता इसमें तमाम झाड़ा दिवस हिंदी का पखवाड़ा हिंदी का कार्यशाला हिंदी की प्रतियोगिता हिंदी की रचनाएँ हिंदी की जागरूकता हिंदी की सितंबर महीना आता हिंदी को मान्यता दिलाने की गूंज हरको...
पक्षियों का सुखी संसार
कविता

पक्षियों का सुखी संसार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** ये पक्षियों का अपना जीवन जीने की अपनी इनकी शैली कितनी सूंदर कितनी होती अलबेली निर्भरता बिन खुद खुशियों में बीतती पशु पक्षियों की कार्यशैली करते काम वही जिनमें लगता आराम घोंसला स्वयं बनाते एक एक पत्तियों तिनखे चुगने को निकल जाते भोर में शाम तक ये प्यारे न्यारे पक्षी अपना काम जिमेवारी से स्वयं निभाते किसी को किसी से नहीं होता भरोसा खुद घरौंदा बनाने निकल जाते बच्चो को पहले खिलाते जुगाड़ में दूर दूर तक जाकर उदरपूर्ति के जुगाड़ में उड़ जाते पक्षियों की अलबेली दुनिया शांति सुख से जीवन बिताते पेड़ पर रहने का बसेरे एक एक तिनका चुगकर मुहं में लपेट लपेटकर अपना आवास बेरोकटोक बनाते किसी पर निर्भरता नहीं ये पक्षियों का संसार हंसते हंसते जिंदगी जीना हमको सिखलाते हरे भरे घने जंगलों पेड़ो पौधे में चिंतामुक्त ये...
मिटे बालश्रम
कविता

मिटे बालश्रम

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** बचपन बका जीवन पढ़ने खेलने कुदने खानेपीने मौजमस्त हंसी खुशी का जीवन बाॅंध पीठ पर पोथी विद्यालय का सुनहरा पढ़ने का प्यारा दिन शिक्षा अर्जित के दिन मजबूरी में बच्चों का बीत रहा सुहावना दिन वंचित विद्या से मासूम मेहनत में जुटा बचपन अथकपरिश्रम में बचपन शिक्षा के बिन उदासीन मेहनत में इन बच्चों का बीत रहा सुनहरा बचपन बालश्रम है देखो नबचपन क्यों है जबकि आंखे बंद श्राप गरीबी का ऐसा लगा बाल मजदूरी बढ़ता बचपन चूल्हा जलाने, रोटी कमाने भूख पेट की सबकी मिटाने सर्दी गर्मी आंधी तूफानों में कमाता बोझ उठाता बचपन परिवार की दीन दशा पर सुधार का सपना है बनता शिक्षादीक्षा करता है दफ़न पढ़ाईलिखाई बिन बीतता मासूम बच्चों का बचपन बेबस भी और लाचार भी जाने कितने मासूम बचपन जन-जन जागरूकता लाये बचपनसे शिक्षित हो जीवन मिटाओ बच...
पिता का प्यार
कविता

पिता का प्यार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जिंदगी का तजुर्बा एक पिता समझते बेटे उनके हम पिता कहते हाथ पकड़कर स्कूल ले जाते घर आते वो साथ ले आते भटक न जाय बचपन अनुशासन की डोर बांधकर बचपन में नियंत्रण पिता रखते गोद में बैठे हम हंसते या रोते पिता अपने प्यार में सन्तान को हँसते हंसते दुःख भरी जिंदगी बिल्कुल नहीं कहते धैर्य संयम की डोर बांधकर सशक्त करते पिता हंसते हंसते मस्त रहने के तजुर्बे में पिरोते पिता सुनाते खट्टे मीठे अनुभव हम दुबले या मोटे उपदेश पिता के नही लगते खोटे एक पिता ही है दुखी रहकर चाहत पूरी करते हम उन्हें पिता कहते परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आठ से साठ
कविता

आठ से साठ

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** वक्त कब कैसे बीतता जीवनभर मन सोचता आठ वर्ष का बचपना खेलकूद से जी भरता कब जगते, खाते, सोते घरेलू नुस्खे उपजते खेलते कूदते बचपना बाल्यकाल में झगड़ते कब आया यौवनावस्था नही पता कैसे मस्त रहते बड़े बुजुर्ग गलतियों पर अक्सर वे कान पकड़ते आंख के इशारे से डरते चुप्प रहते मगर हंसते छोटीबड़ी बातें सुनते हंसते मुस्कुराते रहते कुर्सी में आगे बैठते बड़े पीछे कर देते पहले बुजुर्गवर्ग बैठते बचपना नही समझते हम अलमस्त हंसते युवावस्था, इन्हें समझते दिनप्रतिदिन यूं ही बीतते यौवनास्था से प्रौढ़ावस्था जिम्मेवारी में रहते रहते दुःखसुख स्वतः सुलझते सवारी थे ध्यान नही देते जन्मदिन आते बुलाते जाते तालियां बजाते हरदम अपने जीवन के खुशियों के दिन भूलते बस जीवन के दिन कटे जो हमे छोटे बच्चे कहते उम्र समय कैसे बीते ...
समझो क्या होती है मां
कविता

समझो क्या होती है मां

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मां सुबह से शाम, बिन आराम बच्चों का हरदम रखती है ध्यान खुद भूखी रहकर बच्चो को पहले कराती है जलपान मां पहले बेटे को खिलाकर भोजन लेती चैन करती आराम हिम्मत इतनी देती थकने का नहीं लेती नाम खुद आग के धुएं में रोटी पकाकर हाथों से सेंककर बच्चो को खिलाती बच्चों की दुःख विपदाओं में मां पहले आगे आती मां आंखों में आंसू नहीं कभी झलकाती मां होती है कितनी भोली दुःख दर्द पीड़ा बच्चो की सबसे पहले समझ जाती बच्चों के जीवन की खुशियां मां अन्तर्मन से खुशियां लाती बच्चों के कष्टों के बादलों को मां पल भर में चतुराई से खुद कष्ट झेलकर हटाती जीवन के सच्चे पाठ सिखलाती जीवन की नैया पार लगाती जीवन का जंजाल मां स्वयं गले लगाती बच्चो की खुशियां खातिर सारी मोहमाया हटाती बच्चों की खातिर मां सुबह से शाम तक बरामदे में बैठी...
चुनाव का महापर्व
कविता

चुनाव का महापर्व

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** चुनाव का महापर्व चुनाव है लोकतंत्र को मजबूत करने का महापर्व मतदान का महायज्ञ खुद का अधिकार खुद को होता है गर्व किसी से न होता डर आता है जब चुनाव नेता को चयनित का बटन दबाकर करते गर्व मतदान की कतार में मतदान का दिखता महापर्व मतदान केंद्र में मतदाता भारी उत्सकुता से आता मतदाता कतार लगाता मतदान से निर्णय दे जाता चुनाव अधिकारी मतदाता का हिसाब चुनाव में रखता जाता चुनाव परिणाम में मतदाता का मतदान मुख्य भाग्य विधाता कहलाता चुनाव का अधिकार मतदाता को लोकतंत्र मजबूत की परिभाषा बताता मतदान केंद्र में एक एक मत का कितना है दम समझो कि है देश के मतदाता एक एक मत से लोकतंत्र मजबूत बनाते हम मतदान केंद्र में जाने का सबको समझाओ अर्थ अपने अधिकार का चुनाव दिखलाता अर्थ यही है चुनाव यही मतदान का महापर्व परिच...
होली का चटकीला रंग
कविता

होली का चटकीला रंग

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** महीना फाल्गुन मस्ती का आया, कि रंगों की खुशियां खूब है लाया सारा जहांन रंगों से खूब महकाया सुहावना खुशबूदार मौसम बनाया रंगों की कालीन यह पर्व बिछाया प्रेम प्यार का माहौल खूब बनाया घर आंगन में रंगों की ऋतु लाया पिचकारी रंग की सबपर बहाया प्यारी न्यारी मनभावन फुहार लाया फाल्गुन की रंग बिरंगी बहार लाया मस्ती भरी धुनों की तान में नचाया महफ़िल हंसी ठहाके की सजाया। सबको हंसा हंसाकर हंसी में डुबाया बिरंगीरँगीन कालीन बिछाते आया फाल्गुन फिर मधुर मुस्कान लाया हंसी मुस्कान से रौनक चेहरे में लाया। निमंत्रण फागुन का महीना भिजवाया सबको करीब यह महीना बुलाया जमकर रंग की पावन होली खिलाया मस्ती का माहौल होली पर्व बनाया खूब चटकीला रंग चेहरे पर लगवाया महकता मुस्कुराता रंग खूब उड़ाया चारोदिशाओ को सुहावना बनाया रंगो...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जिंदगी तो जिंदगी व्यस्त है जिंदगी समय बेकार व्यर्थ फिजूलखर्च में बीत रई है जिंदगी जिंदगी की कहानी जिंदगी की जुबानी जिंदगी ही समझाती जिंदगीभर सिखलाती जिंदगीभर सताती जिंदगी कहर बरपाती जिंदगी सुखदुख में जिंदगी बीत जाती जिंदगी कभी आसान जिंदगी कभी परेशान जिंदगीभर झनझनाहट जिंदगीभर आहट जिंदगी का अहसास जिंदगीभर करवाती जिंदगी समझ नहीं पाती जिंदगी कभी रुलाती जिंदगी कभी हंसाती जिंदगी का वक्त अच्छा जिंदगी का वक्त बुरा जिंदगी में हंसकर जिंदगी में रो रो कर जिंदगी सांसे लेती जिंदगी सांसो में जीते जिंदगी सांसो के भरोसे जिंदगी समेटे रखती जिंदगीभर बेफजूल जिंदगी लगती धूल जिंदगीभर की जिद्द जिंदगीभर होती न सिद्ध जिंदगी में नफरत जिंदगीभर करते कसरत जिंदगी की यही झंझट जिंदगी यहीं लेती करवट जिंद...
मनभावन ऋतु है बसन्त
कविता

मनभावन ऋतु है बसन्त

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** बसन्त ऋतु का मौसम है कितना सुनहरा जिधर देखो दिखे प्रकृति का रूप सुनहरा सुहावना प्यारा मौसम खिलता हरा भरा अनुपम मनोरम दिखे नजारा हरा भरा वृक्ष होतेहरेभरे चढ़े लता रँगभरे फूल पत्ते प्रकृति का मनवभावन खिलता नजारा प्रकृति पर अनोखी चढ़ती है लालिमा नया नया रूप सुनहरा वादियों में मनोरमा जब आता है ऋतुओं का महीना फागुन उत्साह ऊर्जा यौवन ऋतु बसन्त की धुन खिलखिलाती है प्रकृति, महकता है मन मनमोहकता मस्ती में रहता ऋतु बसन्त चढ़ाता है प्रकृति में अपरिसीम उमंग तरंग कुदरत की फैलती हर कोने में खुशबू खुशियों की बहार में उमंग तरंग संग करती है बसन्त ऋतु मन ह्रदय प्रसन्न बसन्तपँचमी का आये शुभ मंगल दिन बीणापाणी के साधक करते आराधना मांशारदे तनमन से करते पूजा और वंदन सरस्वती पूजा में साहित्य सँगीत साधक लगाते ध्यान करते विनती दे दो...
अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे
कविता

अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आजादी की लड़ाई में भेदभाव रहित देशवासी झलकाये अनेकताओं में एकता स्नेह प्यार समन्वय, विश्वास आपस में था सबका साथ मिलकर सब लड़ते गए लम्बी लड़ाई देशवासी अहिंसा से लड़ने की अपनी अहम विशेषता दिखलाई विदेशियों की हिंसात्मक योजनाएं देशवासियों की एकता में पड़ी खटाई में, जमीन पर आई थके नहीं देशवासी लड़े गए अहिंसा की लड़ाई अंत तक नहीं तोड़े धैर्य हिम्मत सफलता की सीढ़ी पर ऊंचाई सीना तान चढ़ आई देशवासी ने अपनी हिम्मत बढ़ाई गाँधीजी का था अग्रणी कुशल नेतृत्व परास्त करने का सबने किया था अटल ब्रत संघर्षों में चलाया आपसी विचार विमर्श अंत तक सबने रखा प्रेम स्नेह एकमत देशवासी जब स्वतः कूदे पड़े जंग में नेस्तनाबूत शिथिल पड़ी वर्षो की गुलामी भारतीयों के मन में चढ़ आया उत्साह, उमंग, तरंग असहयोग का देशभर में हो गया संग ख...
बिगड़े न बातों में बात
कविता

बिगड़े न बातों में बात

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कभी-कभी समझ में नहीं आती बात समझ के फेर में उलझ जाती बात कभी-कभी बिगड़ी बात तिल का ताड बनकर लाइलाज बन जाती जीवन जीने की बात बिगड़े काज सुधार भी जाती कुछ अच्छी बात जीवनभर जुबान पर कायम रहती अच्छी बात सबसे भारी पड़ जाती जीवन में कई कड़वी बात बिना बुलावे अक्सर कई कारणों में कई बार जुबान पर चली आती है कुछ चुभती बात बीमारी सी हालात कर देती है बात ही बात कभी कभी मन को बेचैन कर जाती जीवन जीने की बात फिर भी शांति सगुन भरने की समझ से परे रहती जीवन जीने की बात नहीं समझ आती जीवन जीने की बात कोई राह नहीं नजर आती बात ही बात में बिगड़ती जाती बात में बात तिल से ताड में उलझ जाती जीवन जीने की तमाम बात कभी कभी खुशियां लाती बात कभी मातम ले आती बात आती चली जाती आती चली जाती कभी कभी दुश्मनी की दीवार खड़ी क...
नूतन वर्ष
कविता

नूतन वर्ष

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जीवन है अनमोल मूल्यवान और अनमोल नेकविचार बनाये भेदभाव को दूर भगाएं समाज, देश कल्याण में बेजिझक मिलकर सब आगे आएं, वर्षभर के दिन, महीने और साल लौटकर वापस अब नहीं आयेंगे नववर्ष में आपस में वापस फिर हम मिलते चले जायेंगे करने को है बहुत कुछ समाज, देश जाति के प्रगति के काज जीवन सुख-दुख का सागर है सद्भाव और सुविचारों से अनमोल स्वच्छ विचार बनाएं सबको उठाएं सबको जगाएं सबको मिलकर बढ़ाये समस्त जनों की खातिर मंगल कल्याण का गीत एकसुर में मिलकर गाये निःस्वार्थ सेवाभावना से निर्धन ग़रीबों असहाय के हम मिलकर मददगार क्यों न सभी बन जाएं, इस महत सेवा के रास्ते में भरा है अनन्त असीम प्रेमप्रीतप्यार स्नेहता का खोलता है यह आपस में द्वार यही दीप मिलकर जलाएं सद्धविचार लाएं भेदभाव दूर भगाएं जीवन को भयमुक्त बनाएं नए सा...
तीज त्यौहार
कविता

तीज त्यौहार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आ जाए जैसे तीज त्यौहार बढ़ जाये वाणिज्य व्यापार खरीद बिक्री बढ़ती जाए रहता कोई न बेरोजगार बढ़कर फैले कारोबार आर्थिक लेन देन धुंआधार कोई न रहता लाचार बढ़ती कमाई बढ़ता व्यापार जब आता है तीज त्यौहार कोई भलाई सेवा करता चार कोई जमकर करता व्यापार कोई चाहता मनाये सपरिवार सबको बुलाये मनाये त्यौहार कोई चाहता न रहे दीन दुखी फैले उनके घर खुशी हजार सेवा में उनकी होते तैयार मनाते उनके तीज त्यौहार कोई रद्दी चुनकर लाये कोई रद्दी समझ फिंकवाये कोई रद्दी से रोजगार बढ़ाये कोई उसी से खुशी मनाये कोई घर पर नए दीये लाये कोई पुराने कलात्मक बनाये बुद्धि वृद्वि करते तीज त्यौहार कलाकार वस्तएं बनाये कोई उसका आनंद उठाए दीपावली ऐसा है त्यौहार मनभावन बढ़ती साफ सफाई दीपोत्सव का है पावन त्यौहार बच्चों को रौशनी में होता प्यार ...
मानवता जगाएं
कविता

मानवता जगाएं

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आओ हम मानवता लाएं आगे स्वतः बढ़ आएँ मानवता आगे बढ़ाएं, द्वंद, घृणा, बैर, क्लेश, जड़ से हटाएं मिटाए स्नेह प्यार सौहार्द आपस में बढ़ाएं खुलेमन से सबको गले लगाएं बढ़ाएं जन जन से प्रेम प्रीति और व्यवहार सेवा, सहयोग, सहायता हम खूब आपस में बढ़ाए प्रेमरिश्तों को निभाये रचाये मधुरता का मानवता का यह संसार संबंध व्यवहार का नाजुक न कहीं पड़ जाए रचती बढ़ती रहे देशसमाज में मानवता जगे मानव के ह्रदय से मानवीयता की मधुर आवाज बढ़ता जाए आपस में सबजन का मेलमिलाप वृहत रचे और रचती रहे मानवता का मधुरतम बढ़े ह्रदय में भरें हरदम मन में उच्चतम विचार मानवता का रचता रहे मानव का मधुर सम्बन्ध मानव का मधुर व्यवहार परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र ...
घड़ी
कविता

घड़ी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कांटे की घूमती, सिखाती कहती बिन थमे चलती हूं, हर दिन हर पल नाम है घड़ी, बिन गति बदल मेरी टिक टिक, आती है आवाज समय है कीमती टिक टिक में कहती समय, घड़ी, पल की दिलाती याद न रुका न रुकेगा, कीमती पल साथ घड़ी कहती समय पल घड़ी मत बदल मत रुक एक पल, मूल्यवान हर पल समय व्यर्थ कर न आज, न कर कल न समय न घड़ी न एक पल आएगा कल नाम है घड़ी मेरा, चलती बिन गति बदल हर पल हर दिन रहती अविराम बदलती नहीं बिल्कुल भी गति समझो सीखो कर लो पल कीमती नाम है एक घड़ी, कभी नहीं रुकती समय घड़ी पल की जिमेवारी रखती मैं रुकती नहीं, तू भी मत रुक, कर्म करते बढ़ते कभी न थक न थम न थक बस चल हर पल बिन सांस, चलती हूं हर पल हूं घड़ी, चलती हूं कांटे के बल धूप बरसात न मौसम की बात जब समय घड़ी में आये विध्न बाधा न चिंता तू आज कर, न कर कल चलती हूं ...
सम्पर्क सुख
कविता

सम्पर्क सुख

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** रिमोट बटन कमान में, काम का बदलता रूप हर काम में डिजीटल ले रहा है नया रूप बदलता युग बदला काम डिजीटल से काम की कमान का मानव ले रहा मनचाहा सुख नितप्रतिदिन डिजीटल का बढ़ता बदलता सुख कामकाज का प्रचलन, बनाया सरल बना लिया है बखूब, डिजीटल के काम की आधुनिक पद्धति बना ली है हर क्षेत्र के काम में अपनी बना ली एक स्मार्ट गति दिखता है डिजीटल का काम अनोखा और अद्भुत हाथ से काम की आदतें वे आदते देखने को मिल नहीं रही जिधर देखो वे हाथ की विद्याये डिजीटल के भरोसे अब गई सबकी छूट और अब डिजीटल से ही नजर आता है कैसे कितना बदल डाला है डिजीटल का युग डिजीटल से देख रहा स्थानों को डिजीटल से देखता है सब रुट कर रहा है हर मानव काम, काम कर लिया है आसान जीवनशैली में हर व्यक्ति की भागदौड़ डिजीटल के भरोसे ही ले आय...
छठ व्रत की महिमा
कविता

छठ व्रत की महिमा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सूर्यदेवता के चरणों में सूर्यास्त की किरणों से सूर्योदय की किरणों तक सूर्यदेव की उपासना में व्यस्त सूर्यदेव का करते है व्रत, दीपोत्सव के छह दिन के बाद आता यह, कहलाता छठपर्व व्रतधारी हर नियम धर्म है रखते जलकुंड नदी तालाब पोखरे छठपर्व पर शुद्ध और पूजित होते सूर्यदेवता के आगे नतमस्तक होते नवाते ब्रतधारी जल में खड़े हो अपने शीश दण्डवत करके दऊरा लेके गाते छठ के गीत सूर्यदेव की करते सेवाभक्ति जल में उतरते अर्ध्य देने को तनमन में ब्रतधारी की शक्ति भक्तिमय रूपरंग में व्रतधारी सूर्यदेवता की करते सेवाभक्ति फल फूल ठेकुआ करते अर्पित स्नान ध्यान कर सूर्यदेवता का जल में खड़े करते है प्रणाम व्रतधारी छठपर्व पर करते ध्यान सूर्यपूजा, व्रतधारी का अन्तर्मन भक्तिभाव में लगता तन-मन लौकी भात खीर आदि पूर्व खाते छ...
मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका
आलेख

मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मनुष्य का जीवन दुख विपदाओं, नाना समस्याओं का संगी है। गौर करें तो उलझनें सुलझाने में अक्सर जटिल रूप धारण करती है, यानि जीवन को अंतहीन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती है। विवेकपूर्ण निर्णय से सरल जीवन जीने की कला में सुख की कलाएं प्रत्यक्ष होती है। बस आपाधापी जीवन संग्राम में लक्ष्य प्राप्ति हेतु लगन, इसमें बतौर संकल्प व एकाग्रता नितांत जरूरी है। मनुष्य जीवन कठिन सँघर्षरत तो है ही, सरलता, कुशलता से खुशहाली में ढालना एक विशेष कला है इसमें ढालकर व्यक्ति सुख की अनुभूति का अहसास करता है असम के सुविख्यात गायक, गीतकार, संगीतकार, कवि, साहित्यकार, सुधाकंठ डॉ भूपेन हजारिका में यह विशेषता अक्सर झलकती थी। कठिन डगर में बिन लड़खड़ाये खुशहाली से जीवन बिताये, अपने अंदर छुपी तमाम् कलाओं, प्रतिभाओं को जनमानस के बीच सरलता सादगी जीवन में पारदर्शी ...
दीयों की दीपावली पर महत्ता
आलेख

दीयों की दीपावली पर महत्ता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कुम्हारों के वंशागत पेशे से जगमगाती आ रही है दीपावली। आधुनिक युग में आधुनिक साज सज्जा की रोशनी में ध्यान केंद्रित है। दीपावली की रौशनी में भी आधुनिकता परोसने की घुड़दौड़ मची है। देशी विदेशी कम्पनी अपनी नई छाप छोड़कर नई रौशनी को परोसकर दीपावली की रौशनी के रंग बिखेरना चाहती है। यह उत्सव संस्कृति, परम्परा के निर्वाह से गहरा जुड़ा है। इसमें दीयों का होना आवश्यक है। कहा जाता है बिन दूल्हे के बारात का कोई महत्व नहीं ठीक दीयों के बिन दीपावली सुनी समझी जाती है। घर की मांगलिक महालक्ष्मी की पूजा पद्धति, सजावट, घर की रौशनी में दीयों की खरीददारी अनिवार्य होती है। आधुनिक सामग्रियों को कितना ही क्यों न व्यवहृत किया जाए, दीये के स्थान को छीन पाना असम्भव है। पूजन पद्धति संस्कृति परम्परा के निर्वाह में दूसरी सामग्री मूल्यहीन होती है सिर्फ मिट्ट...
मंगल खुशियां लाते मिट्टी के दीपक
कविता

मंगल खुशियां लाते मिट्टी के दीपक

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मिट्टी के प्यारे न्यारे दीपक, रौशनी में खिलखिलाते जलते-जलते तेलबाती के दीपक, घर को चमकाते दीपोत्सव से प्रकाशोत्सव पर्व तक छा जाते मिट्टी के शुभ मंगल दीपक, खुशियां भर-भर लाते कुम्हार के हाथों से, मथकर चिकनी मिट्टी के चाक के चक्कर कच्ची मिट्टी के लगाते सुहावने सुंदर आकृति में मिट्टी के दीपक बन जाते देख कच्ची मिट्टी के दीपक, हम मोहित होते जाते जगमगाते लुभाते, सुहावनी रौशनी, दीपक फैलाते मन को हर्षाते, जगमगाते, रोशनी खुशियां बिखराते प्रदूषण से सबको, तेलबाती के मिट्टी के दीपक बचाते घर-घर का मंगल उजियारा दीपोत्सव के दीपक बढ़ाते मिट्टी में रमते मिलते उत्सव की बेला पर मंगल गीत से आंगन को मधुरिम बनाते घर भर के आंगन में दीपक सगुन भरते जाते विराजमान होकर घर के कोने कोने तक सुख समृद्ध कुशल मंगल क...
स्वयं आत्मबल
कविता

स्वयं आत्मबल

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** चलता जा बढ़ता जा बढ़ाता जा मन का बल मत तोड़ हिम्मत हो जा निडर बढ़ता जाएगा स्वयं आत्मबल कदमों को बढ़ाता मनशक्ति बढ़ाता बढ़ता आगे निकल मत थाम कदम हिम्मत से ले काम बढ़ाकर मन का बल खुशियां का मिलेगा स्वयं आत्मबल बढ़ाकर विवेकपूर्ण मन के नेक विचार अनुभव खुशियों में बढ़ा आत्मिक बल खिलता चला आएगा स्वयं आत्मबल खुशियों सी लता सा फैल जाएगा संसार उच्च ख्यालों का बढ़ता जाएगा प्यार मन ही मन में भरेगा बंधायेगा अन्तर्मन करूणा प्रेम सम्बल झूठ कपट छलकपट त्यागकर पायेगा वही स्वयं आत्मबल फैलते रहे अन्तर्मन में सच्चाई ईमानदारी बढ़ते जाए उत्तम भाव रहे न मन कभी चंचल भूलकर जीवन के दुख मिलेगा चैन और बल मन ही मन भरता पायेगा दरदिन हरपल स्वयं आत्मबल परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति ...
भक्तिमयी नवरात्रि
भजन

भक्तिमयी नवरात्रि

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सिंह पर सवार होकर जब नवदुर्गा, शरदऋतु में भक्तों के घर है आती भक्तों के हर घर आंगन में खुशियां खूब महक आती शारदीय दुर्गोत्सव की बेला सुहावनी भक्तिमय मधुरिम आनंदित अंतरिम सुखमय मङ्गलमयदायक प्रेरणादायक जीवनगीत संगीत है सुनाती भक्तों में चाव, भक्ति का मां चढ़ाती सजधज कर मां, नवरात्रि पर आती आसन पर बैठ देवी मां, भक्तों में उत्साह उमंग फुर्ती भक्ति शक्ति की कृपादृष्टि मां दुर्गा बरसाती भक्ति की धूम मां के भक्तों में मां दुर्गा मचाती भक्ति भाव की शक्ति से भक्तिधरा की खिलखिलाहट भक्तों में नजर आती अलबेली भक्ति अन्तर्मन में भक्तवृन्द के मुखारविंद से मां की भक्ति खूब नवरात्रि पर है बिखरती नजर चारो और आती नवरात्रि पर देवी माँ दुर्गा का भक्तिभाव से होता जगराता भक्तों के ह्रदय में। मां दुर्गा की भ...