रे माधो
लज्जा राम राघव "तरुण"
बल्लबगढ, फरीदाबाद
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रे माधो! सुख है दुख के आगे।..
मन की तनिक लगाम खींच,
फिर सोई आत्मा जागे।
रे माधो सुख है दुख के आगे।..
मन तुरंग पर चढ रावण ने सीता जाय चुराई।
हनुमत संग सुग्रीव लिए श्री राम ने करी चढ़ाई।
देख सामने मौत दुष्ट को नहीं समझ में आई।
फिर राम लखन ने जा लंका की ईंट से ईंट बजाई।
लंका भस्म हुई सारी सब छोड़ निशाचर भागे।
रे माधो! सुख है दुख के आगे।..
बाली ने कर घात भ्रात से पाप किया था भारा।
भाई की घरवाली छीनी नाम सुमति था तारा।
गदा युद्ध प्रवीण बालि सुग्रीव बिचारा हारा।
राम सहायक बने तुरत पापी को जाय संहारा।
बड़े बड़े बलवान सूरमा काल के गाल समागे।
रे माधो! सुख है दुख के आगे।.
भक्ति में हो लीन 'ध्रुव' तारा बन नभ में छाये।
शबरी की भक्ति वश झूठे बेर राम ने खाए।
भागीरथ तप घोर किया गंगा धरती पर लाये।
दानव सुत प्रह्लाद बचाने भू पर विष्णु आये।
"विष...