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घर की छत
कविता

घर की छत

रोहित कुमार विश्नोई भीलवाड़ा, राजस्थान ******************** घर की छत आज भी पुराने दिनों को पुकारती है मुण्डेर पर रोज बैठ कागे का वो कांव-कांव करना, सारे पक्षियों के लिए सुबह रोज परिण्डे पानी के भरना। मक्का-बाजरे का छत की फर्श पर वो बिखरना, सैकड़ों कबूतरों के साथ दो-तीन तोतों का छत पर मस्ती से फिरना। गोरैयों की फौज की जगह एकदम साफ फर्श छत को संवारती है, घर की छत आज भी पुराने दिनों को पुकारती है।। परिचय :- रोहित कुमार विश्नोई स्नातकोत्तर - हिन्दी विषय (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा-उत्तीर्ण) स्नातक - कला संकाय (हिन्दी, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान) स्नातक - अभियान्त्रिकि (यान्त्रिकि शाखा) निवासी - पुर, भीलवाड़ा, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाश...