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Tag: रोहताश वर्मा “मुसाफिर”

वृद्ध हो रहा हूं …
कविता

वृद्ध हो रहा हूं …

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** टूट रही है शाखें, झड़ रही है पत्तियां, धीरे धीरे; चेहरे पर उभरती झुर्रियां, आपस में लड़ रही है... होता शिथिल तन, पुनः बालक सा अब, समृद्ध हो रहा हूं। कांपने लगे हैं हाथ-पैर... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। कंघी केश बिखरने लगे हैं सफेद होना है नियम, धंसने लगी है आंखें भीतर, जड़ें मजबूती है छोड़ रही... उकेरे है जो साल मैंने जीवन की स्लेट पर, उनसे आज प्रसिद्ध हो रहा हूं। धीमी हुई चाल मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। धूंधला होने लगा है सवेरा, स्मृति अभी बदली नहीं, सावन सा योवन बीत रहा, आता जो बसंत की तरह... पल पल, लम्हा लम्हा बीते सूख रहा तना हरा, ठंडा मौसम सा घिरता... माह वो सर्द हो रहा हूं। झुकने लगी है भौंहें मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। परिचय :- रोहताश वर्मा "मुसाफिर" निवासी : गां...
ओ चंद्रयान
कविता

ओ चंद्रयान

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** चल चल चला चल हमारी पहचान करता जा। चांद की जमीं को... तू हिंदुस्तान करता जा।। है अमर गाथा अब दूर न कोई ग्रह होगा.. देखना धीरे धीरे एक दिन नया भोर उदय होगा .. आंचल में शामिल तू आसमान करता जा।। क्या मुश्किलें क्या रूकावट? सब पर भारी पड़ेंगे.. देखना एक दिन... स्वर्णाक्षरों में इतिहास गढ़ेंगे.. चांद की जमीं पर अपना निशान करता जा।। धन्य! इसरो, धन्य देश हुआ.. हर गिरते हुए को... एक नया संदेश हुआ.. हार न मानना कभी, सफल.. हर इम्तिहान करता जा। हे ! टूटते 'मुसाफिर' स्वयं को चंद्रयान करता जा।। चल चल चला चल चांद की जमीं को हिन्दुस्तान करता जा।। परिचय :- रोहताश वर्मा "मुसाफिर" निवासी : गांव- खरसंडी, तह.- नोहर हनुमानगढ़ (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित ...
मैं भारत हूं
कविता

मैं भारत हूं

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** मैं भारत हूं मैं भारत हूं… मैं भारत हूं… मैं मार पालथी बैठा हूं…. कहीं सड़कों पर, कहीं मंदिरों में, कहीं चौराहे पर तो, कहीं अनाथालयों में, बस दो जून की रोटी को… मैं दर दर हाथ फैलाता हूं। मैं भारत हूं… मैं भारत हूं… मैं मिलूंगा बर्तन धोते हुए.. मैं मिलूंगा ठेला उठाते हुए। मैं हूं लावारिस हालत में, कहीं किस्मत को आजमाते हुए। है मृदुल सा मेरा बदन, मैं रूखी-सूखी खाता हूं। मैं भारत हूं.. मैं भारत हूं.. मैं सर्कस का हूं बंदर, मुझे अमीर मदारी नचाते हैं। करके मेरा अपहरण कुछ, अकर्म भी करवाते हैं। मेरी जठराग्नि बनती अभिशाप, हर चंगुल में फंसता जाता हूं। मैं भारत हूं.. मैं भारत हूं.. मैं मिलूंगा कहीं झाड़ियों में, ज़ख्म से रोते बिलखते हुए। मैं मिलूंगा बीच बाजार तुम्हें, गर्म लोहे को पीट...
सीढ़ियां खिड़की तक
कविता

सीढ़ियां खिड़की तक

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** बेड़ियां है अभी तक.. न खुलेगी ना खोली जाएगी, यूं ही घसीट कर पांव रखने होंगे। ऐ उम्मीद ! तू बस जिंदा रह, पीढ़ी दर पीढ़ी उजागर करने को, ये रिसते घाव रखने होंगे। यदि उठा देती हूं आवाज... इन अपनों के खिलाफ, रिश्तों की बनी दीवारें ढहेंगी। ये घर प्राची-रिवाजों का है, सीढ़ियां खिड़की तक ही रहेगी।। खुले आसमां के तले फैला नहीं सकती बांहें। पर्दे की ओटन में छुपी झुकती रहे सिर्फ निगाहें। निकल न सकती चौखट से सांसें भी दास बनी है। ढोंगी ये शिक्षित समाज रुढ़ि-तलवार गले टंगी है। हूं अबला युगों की भोगी पीड़ा, यातना यूं ही सहेंगी। ये घर बुढ़े-नातों का है, सीढ़ियां खिड़की तक ही रहेगी।। परिचय :- रोहताश वर्मा "मुसाफिर" निवासी : गांव- खरसंडी, तह.- नोहर हनुमानगढ़ (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...