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काली का स्वरूप धरूं
गीत

काली का स्वरूप धरूं

रेशू पर्भा राँची, (झारखंड) ******************** लक्ष्मी बनूँ, दुर्गा बनूँ, या काली का स्वरूप धरूं रानी बनूं, अबला बनूं, या कोई कुरूप बनूँ तेरी छलती नयनों से, कैसे अब मैं दूर रहूँ कहो पापियों मुझे बताओ, इस युग में कौन सा रूप मैं लूँ अत्याचार अब बढ़ा बहुत है, किस तरह मै दूर करूँ अग्नि ज्वाला बरसा दूँ, या प्रलय सा हाहाकार करूँ पिला दूँ विष का प्याला मैं, या सीने पर तेरे वार करूँ कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा संहार करूँ जन्म दिया जिस नारी ने, करते कैसे तिरस्कार हो उनकी छांव में पलकर तुम, करते कैसे बहिष्कार हो अरे हीन विचारों वाले, कैसे तुझसे संवाद करूं कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा अभिवाद करूँ राहों पर जो चले अकेली, नजरों से नग्न तुम देखते हो जरा बताओ, अपनी माँ बहनो को भी ऐसे ही निहारते हो इस स्वर्णिम सृजन सृष्टि का अब कहो कैसे उद्धार करूँ तुम ही बताओ ओ वहशी कैसे तेरा मैं नाश करूँ आधु...