Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: रेशमा त्रिपाठी

सूफियाना हुआ दिल
कविता

सूफियाना हुआ दिल

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** सूफियाना हुआ दिल मचलने लगे हम। तेरी याद में नगमे पढ़ने हम।। कैसे बताए क्या चाहते हम। तेरी खुशबू में जो महकने लगे हम।। सूफियाना........ तेरे जुल्फों की घनी छांव में। दबी उंगलियों संग उलझने लगे हम।। तेरी याद में..... मेरे दिल के घरौंदे में आओं कभी थोड़ा बहक जाऊं मैं भी तेरे आगोश में सूफियाना ...... मैं भी बंजर हूं, बेकार सा थोड़ी उग जाओं तुम भी मौसमी पौध सी... सूफियाना ......।। परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com प...
तुम मेरे रूह को
कविता

तुम मेरे रूह को

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** हर युग में बस मैं अधूरी रही राजमहलों से निकली तो मीरा बनी अल्हड़पन में रही जब दीवानी बनी जब राधा बनी तो अकेली रहीं हर युग में बस मैं अधूरी रही राजरानी बनी जब हरण हुआ नींद शैंया पर पूरा वनवास जिया इंद्रदेव से छली गई जब युगों-युगों तक पाषाण रही हर युग में मैं बस अधूरी रही माँ देवकी तो बनी पर अधूरी रही अग्निपरीक्षा भी दी फिर भी पाकीजा न हुई माँ कुन्ती के वचनों से, पांच हिस्सों में बांटी गई पत्नी बनी जब बुद्धदेव की, महलों में थी पर अधूरी रही हर युग में मैं बस अधूरी रही। पिया प्रेम में यम से लड़ी, कुछ वर्षों तक सती हुई अग्निपुत्री रही, केश खोली प्रतिज्ञा भी ली त्रिपुरारी ने छला तो तुलसी बनी कभी लक्ष्मी बनी, कभी लक्ष्मीबाई बनी जब-जब नारी बनी बस अधूरी रही। हर युग में मैं बस अधूरी रही।। . परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्...
अधूरी रही
कविता

अधूरी रही

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** हर युग में बस मैं अधूरी रही राजमहलों से निकली तो मीरा बनी अल्हड़पन में रही जब दीवानी बनी जब राधा बनी तो अकेली रहीं हर युग में बस मैं अधूरी रही राजरानी बनी जब हरण हुआ नींद शैंया पर पूरा वनवास जिया इंद्रदेव से छली गई जब युगों–युगों तक पाषाण रही हर युग में मैं बस अधूरी रही माँ देवकी तो बनी पर अधूरी रही अग्निपरीक्षा भी दी फिर भी पाकीजा न हुई माँ कुन्ती के वचनों से ,पांच हिस्सों में बांटी गई पत्नी बनी जब बुद्धदेव की ,महलों में थी पर अधूरी रही हर युग में मैं बस अधूरी रही। पिया प्रेम में यम से लड़ी, कुछ वर्षों तक सती हुई अग्निपुत्री रही, केश खोली प्रतिज्ञा भी ली त्रिपुरारी ने छला तो तुलसी बनी कभी लक्ष्मी बनी, कभी लक्ष्मीबाई बनी जब–जब नारी बनी बस अधूरी रही। हर युग में मैं बस अधूरी रही।। . परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्...
वसन्त ऋतु में
कविता

वसन्त ऋतु में

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** वसन्त ऋतु में ! यूं धीरे–धीरे सदियों का सर्दियों का जाना, गुनगुनी धूप का आना सूखे पत्तों का झड़ना नए पत्तों का सृजन होना सरसों के फूलों की सुगंध में प्रकृति स्वयं को अपने रंगो में घोलती उस रंगों की गुदगुदाहट में गेहूं की बालियों का आना किसानों का प्रफुल्लित मन देखकर लगता हैं मानो! कोई युवती अठारह बरस की हुईं हैं। यह मोहक छवि अम्बर तक फैली धानी चूनर सी लगती हैं ।। . परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के ...
भला कोई क्या लिखेगा
कविता

भला कोई क्या लिखेगा

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** नन्ही परी को गुड़िया के सिवा कोई क्या कहेगा उसे अपनी कहानी में परियों के सिवा कोई क्या लिखेगा। गुड़िया शब्द में उसे बांधना बहुत आसान हैं किन्तु! उसके अल्हड़पन में पीछे मातृत्व भाव पर कोई क्या लिखेगा।। गुड़िया को गुड़िया कहना बहुत आसान हैं उसी गुड़िया का कौमार्यं चित्रण करना बहुत आसान हैं। उसे प्रकृति का श्रृंगार औ वसुन्धरा लिखना बहुत आसान हैं किन्तु ! सीता के त्याग और धैर्यं का द्वंद्व कोई क्या लिखेगा।। मीरा के भक्ति का सार कोई क्या लिखेगा शबरी के प्रेमानुभूति का भाव कोई क्या लिखेगा। माँ के वात्सल्य भाव को लिखना बहुत आसान हैं किन्तु ! उसके प्रसव पीड़ा का दर्द रूपी प्रेम कोई क्या लिखेगा।। सच तो यह हैं एक नन्ही परी ही सृष्टि का निर्माण हैं भला इसे शब्द में कोई कितना कहेगा लड़की हैं ! बस इसी स्वरूप में इसे लिखना बहुत आस...
जन्मदिन तुम्हारा
कविता

जन्मदिन तुम्हारा

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** जन्मदिन हैं तुम्हारा, यह मेरा पैगाम हैं तुमको जीना जिंदगी अपनी, सब कुछ भूल कर के तुम। अपने अरमानों को पूरा करना, हौंसलों से तुम सब कुछ भूल करके, एक नई शुरुआत करना तुम। अनुभव के ज्ञान से, निष्कर्ष पर पहुंचना तुम ज़िन्दगी का हर एहसास अपनी दृष्टिकोण से देखना तुम। ओंस की बूंदों के जैसें, तुम ही गिरना, तुम संभालना, अपनी ही चेतना से सब कुछ भूल कर के एक नई शुरुआत करना तुम। अब तक जो बितायी ज़िन्दगी, उसे याद रखना तुम किन्तु खुद को मत मिटाना, यह सदैव याद रखना तुम। किसी के यादों में, बातों में, नजरों में, अब उठने की कोशिश मत करना तुम छोड़ दो रूठना, मनाना, जताना, अग्नि परीक्षा देना तुम। ज़िन्दगी एक सफर हैं, अब किसी के लिए रुकना नहीं तुम सब कुछ भूल कर, एक नई शुरुआत करना तुम। जन्मदिन तुम्हारा हैं यह मेरा पैंगाम हैं तुमको जीना ज़िन...
कैलेण्डर बदल गया
कविता

कैलेण्डर बदल गया

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** कैलेंण्डर बदल गया और कुछ नहीं हुआ। समय आगे बढ़ गया बच्चों की उम्र बढ़ गई और कुछ नहीं हुआ। माॅ॑–बाप के जीने की उम्र थोड़ी कम हो गई और कुछ नहीं हुआ। रिटायर मेंट की उम्र थोड़ी कम हो गई और कुछ नहीं हुआ। पोते/पोतियों की शादी की उम्र हो गई और कुछ नहीं हुआ। बचपन की मस्ती जवानी की यारी कैलेंण्डर जब जब बदला थोड़ा याद आया और कुछ नहीं हुआ। मौसम भी वहीं हैं लोग भी वहीं हैं बस कुछ नए चेहरे आ गए और कुछ नहीं हुआ। परम्परा भी वहीं हैं संस्कृति भी वहीं हैं बस थोड़ा सा जीवन जीने का तरीका बदल गया हैं और कुछ नहीं हुआ। सोच भी वहीं हैं जज़्बात भी वहीं हैं बस लोगों में संवेदना थोड़ी कम हो गई हैं और कुछ नहीं हुआ। दोस्त भी वहीं हैं दुश्मन भी वहीं हैं सपने भी वहीं हैं मंजिल भी वहीं हैं बस इक्सवीं सदी का बीसवां वर्ष लग गया हैं। और कुछ नहीं हुआ।। . ...
खुशखबरी
कविता

खुशखबरी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** उसका गुनाह इतना सा जब जुल्म हुआ तब ख़ामोश थी शायद इसलिए कि आज्ञापालन की उम्र थी सोच में उसके भावना कि प्रबलता थी हम उम्र की संख्या भी शून्य थी जीवन में सन्नाटा इतना था कि खुद की सांसों से डर लगता था उसे धूत्तकार, धिक्कार, बन्दी सा बचपन मैं एक बोझ हूँ, कोई इंसान नहीं उसकी कोई चाहत नहीं, कोई सपने नहीं इस बात से परेशान होकर हर दिन थोड़ा–थोड़ा सा हृदय आह्लादित करती एकाकीपन में खुद से बातें करती किसी ने बताया एक दिन! मुस्कुराहट हर मर्ज की दवा हैं उसने मुस्कुराना भी सीख लिया आदत ऐसी डाली मुस्कुराने कि हर लब्ज पर अब मुस्कान हैं उसके उस मुस्कान ने उसे महान बना डाला लोगों की नजरों में गुनेगार बना डाला वह ‘वह’ नहीं रही आदर्श की प्रतिमूर्ति उसे बना डाला मुस्कान ने उसे हर दिन ऐसा पाला अब लगता हैं वह मुस्कान भी बूढ़ी हो गई हैं मुस्कुरात...
आज न जाने क्यों
कविता

आज न जाने क्यों

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** आज न जाने क्यों? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं किसी ने कोई तोहफा न दिया हैं न पीठ थपथपाई हैं फिर भी न जाने क्यों ? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं कोई हसरत न पूरी हुई हैं न कोई अच्छा ख्वाब देखा हैं फिर भी न जाने क्यों ? आसमां में उड़ने का दिल कर रहा हैं गम भी वही हैं तन्हाई भी वही हैं अपनों से मिले तिरस्कार की टीस भी वही हैं समाज के दोगले चेहरों की बात भी वही हैं फिर भी ना जाने क्यों ? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं कई बार खुद को रोका मुस्कुराने से फिर भी मुस्कान आ ही गई होठों पर बहुत देर बाद समझ आया यह न्यूज़ चैनल के सुर्खियों से आई न्यूज की थी (हैदराबाद) जो दुःख की घड़ी में भी हर स्त्री के होठों पर मुस्कान की लालिमा बिखेर गई शायद इसलिए आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं खुले आसमान में उड़ने को कह रहा हैं ....।। . प...
सुदामा को देखा है मैंने
कविता

सुदामा को देखा है मैंने

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** गरीब घरों के बच्चों की जब आँखें रोती हैं तो उस वक्त मानों उनके पूरे बदन का एक-एक अंग रोता हैं उनके होठों की किलकारियों में अक्सर अश्रु बहते देखा हैं उनके नये–नये कपड़ों में लकीरों की सिलवटों को खिंचते देखा हैं उस वक्त जब वह तैंयार होते हैं पांव के जूते भी अक्सर किसी मोड़ पर मुँह फैलायें दिख ही जाते हैं और पेट की आग तो दीमक सी चिपक जाती हैं उनके मुस्कुराते चेहरों की सिलवटों में उनके पढ़ने की जद्दो-जहद में दो जून की रोटी को जोड़ते देखा हैं उनके खेलों में अक्सर ईट, पत्थर को तोड़ते किसी के जूते, चप्पल, प्लेट को घिसते देखा हैं सुना हैं बच्चे मन से चंचल होते हैं हाँ यकीनन किसी गरीब बच्चें ने कोई सपना देखा होगा कहते हैं बच्चों में भगवान होता हैं लेकिन अक्सर..! हालत से जूझते हर गरीब बच्चों में सुदामा रूप को ही देखा है मैंने।। . ...
कल के बच्चें हैं हम सब
कविता, बाल कविताएं

कल के बच्चें हैं हम सब

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** सुबह-सुबह उठना हैं पड़ता हम सब प्यारें बच्चों को मम्मी-पापा के सपनों का बोझा ढोंना पड़ता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। मम्मी कहती हिन्दी पढ़ लो पापा कहते गणित लगाओं बाकी घर वाले सब इंग्लिश के पीछे पड़ जाते हैं हम सब प्यारें बच्चों के। बिना भूख के खाना पड़ता बिना नींद के सोना पड़ता कपड़ों में यूनिफॉर्म शिवा हम सब को कुछ न मिलता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। कभी तो पूछो हम सब से भी हम सब का सपना क्या हैं? हम सब को क्या अच्छा लगता हैं? हर कोई तो कहते हो कि हम सब आने वाला कल हैं फिर अपने कल को आप सभी आज कैंद क्यों करते रहते हो हम सबको भी थोड़ा सोने दो हम सबको थोड़ा खेलने दो बचपन को बचपन रहने दो हम सब प्यारे बच्चों का।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
नसीब अपना –अपना
कविता

नसीब अपना –अपना

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** नसीब अपना हो या अपनों का कभी एक सा नहीं होता कभी किसी कि ख्वाइशें पूरी होती हैं तो कभी बस जरूरतें किसी के हसरतों में बच्चों की किलकारियां होती हैं तो किसी के आँखों में बच्चों के लिए अश्रु वह अश्रु दुःख, सुख के नहीं बल्कि बच्चों के दो जून की रोटी के लिए होते हैं किसी के सपनों की हकीकत में मखमली सेज होती हैं तो किसी के समूचे जीवन की हकीकत नीले आसमां की चादर होती हैं कोई आधुनिकता में फटे कपड़े पहनता हैं तो कोई अपनी गरीबी में कोई शानों-शौंकत में हरी घास की चप्पल पहनता हैं तो कोई नियति मान हरें पत्तों से तन को ढकता हैं ये नसीब आया उस दिन जीवन में, जिस दिन पैदा हुए सभी उससे पहले भी एक से थे दिखतें भी एक से थे ख्वाइशें भी एक सी थी मां का गर्भ भी एक सा था पैदा होते ही बदल गए नसीब अपना–अपना लें मरेंगे जिस दिन वह दिन भी एक सा होगा रा...
अभी मैं बच्चा हूँ
कविता

अभी मैं बच्चा हूँ

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** मैं बहुत अच्छा हूँ क्योंकि अभी सच्चा हूँ मुझें क ख ग घ नहीं आता क्योंकि मैं अभी बच्चा हूँ। एक से सौं तक की गिनती मुझको नहीं आती हैं। इंग्लिश की ए, बी, सी, डी मुझको बहुत पकाती है। सुबह– सुबह मम्मी कि डांट हर रोज उठते ही खाता हूँ पांच किलों का बैग उठा हर रोज स्कूल भी जाता हूँ । स्कूल पहूँच पीटी टीचर की हर रोज मार भी खाता हूँ। और क्लास टीचर की तो हर दिन धमकी पाता हूँ । फिर ट्यूशन टीचर से तो हर रोज लाल हो घर आता हूँ घर आते ही मम्मी का ज्ञान और पापा का लेक्चर सुनता हूँ। इतना पढ़कर, खाकर सोता हूँ कि हर दिन सब कुछ भूल जाता हूँ अरें भाई बताया तो मैं बच्चा हूँ इसलिए अभी अच्छा हूँ।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
कसक
कविता

कसक

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** व्यक्ति के अंदर स्वयं से टकराने की अहम भावना जो उसके उत्तेजित स्वर द्वारा व्यक्त होती हैं वह हैं ‘कसक' मनुष्य के असमर्थता का भाव समर्थता में प्रदर्शित करने की गतिविधि की क्रियान्वित विधि हैं ‘कसक' वर्ग विहीन समाज की कल्पना में गतिशील मानव के विकास की बाधा में उत्पन्न होने वाले टकराव का भाव हैं ‘कसक' धनलोलुपता निरीह जनता के शोषण के विरुद्ध उठने वाली आवाज को दमन करती हुई रेखा में प्रस्फुटित ना हो पाने वाला स्वर् हैं ‘कसम' हृदय के उद्गार को स्वच्छंद रूप से अभिव्यक्त ना दे पाने का भाव हैं ‘कसक' अपने और अपनों के बीच स्पष्ट दृष्टिकोण ना रख पाने का भाव हैं ‘कसक' छल और प्रवचन में ऐश्वर्यवादी मनुष्य का दास बनने का भाव हैं ‘कसक' सामंती व्यवस्था को देर तक ना सहन कर पाने का भाव हैं ‘कसक' दंडनीय कार्यों का न्याय न कर पाने पर विध...
स्वप्न दीप
कविता

स्वप्न दीप

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** दीप जला एक सपने में, वह सपना चंचल भोला था मृग नयनों ने जब पाला तो, मृदु अधरों ने भी बोला था। पंख ना तो तुम इसको रश्मि, इसे अम्बर तक अभी जाना हैं फिर संध्या हुई साँझ की रंगमयी, साँझ हुई सन्ध्या की करुणा। बना व्योम की पावन बेला, जुगनू से राह सजाना था उड़ते खग– मृग पुलकित होते, अपनी सुध– बुध में थे डूबे। स्नेह बना अम्बर से जब तो, तारों ने भी स्वीकार किया ये थी मेरी स्वप्न व्यथा जिसने उज्जवल अक्षर जीवन पाया। बिखरी थीं जो स्मृती क्षार–क्षार, तब एक दीपक ने मुझको अजर–अमर बनाया, फिर स्नेह–स्नेह हमने पहचाना। लिया संकल्प अब लौं बन जाना हैं, दीप जला एक सपने में।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करव...
क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी
कविता

क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** “वही जिन्दगी क्यों? कभी अनजानी कभी अनचाही कभी अनमने ढंग से वही क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी कभी उलझनों में कभी संघर्षों में कभी अपनों के कटु वचनों के बीच क्यों ? फकतनुमा जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी हर पल की टेंशन में कल्पना की प्रवृत्ति में कभी आर्थिक क्रांति में उलझी संस्कार और कौमार्य के टकराव में क्यों ? विवशतापूर्ण जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी जायज कभी नाजायज द्वंद्व में! कभी विरुप अनुभवों के बीच तो कभी सामाजिक मुखौटों के बीच क्यों? यायावर जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी तन्हाइयों में तनावों से गुजरकर स्थिर खुशनुमा जिन्दगी की तलाश में क्यों? मानसिक संघर्षों के बीच जीनी पड़ रही हैं जिंदगी क्यों? आहिस्ता आहिस्ता वहीं जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं।.." . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी...
चाँदनी
कविता

चाँदनी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** शरद चाँदनी के जैंसी तुम हर रोज चमकती हो पगली उसकी किरणों की आभा सी तुम रोज दमकती हो पगली तुम हर रोज चाँद सी लगती हो अनुपम अपनी काया ले करवा चौथ का चाँद देख तुम जो मेरी उम्र बढ़ाती हो राज की बात बताऊं तुमको सच तो यह हैं! साथ तुम्हारा पाकर पगली मेरी उम्र हर रोज हैं बढ़ती चाँद रश्मि के जैंसी तुम खीर की जैंसी मीठी तुम शरद चाँदनी के जैंसी जो हर रोज चमकती हो पगली जो हर रोज चमकती हो पगली ।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मे...
मेरी राह देखना तुम
कविता

मेरी राह देखना तुम

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम तुमको ही पूरा माना है, तुम ही मेरे मन में हो तुम मेरे हर क्षण में हो ,तुम मेरी सांसों में हो तुम ही प्राणप्रिया हो मेरी, यही याद कर राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। तुम्हीं भाग्य गए हो, तुम्हीं कर्म हो तुम्हीं बुद्धि हो, तुम्हीं सिद्धि हो तुम्हीं हो मेरे, सुख-दुख की रानी तुम्हीं मेरे सपनों की, शहजादी यादों में भी गर्व कर, मेरी राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। जानती हूॅ॑ न लौटेंगे कभी, हृदय उनका निष्ठुर हुआ हैं त्याग कर मेरा समर्पंण तो, मातृभूमि को किया हैं प्रेम में त्याग एक का, दूसरे पर स्वयं बलिदान हो गए रोता हुआ छोड़ कर मुझे, स्वयं जाते-जाते कह गए आएंगे हर रोज सपनों में तेरे, मेरी राह देखना तुम जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम।। . परिचय :- नाम : रेशमा ...
अच्छा होता मैं तेरी न होती
कविता

अच्छा होता मैं तेरी न होती

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश तुम्हारे ही होठों की मुस्कान थी तुमने छीन लिया तुम्हारे ही ह्रदय की अनुराग थी तुमने द्वेष भर दिया तुम्हारी ही संवेदना थी तुमने वेदना से भर दिया तुम्हारे ही जिस्म की मधुशाला थी तुमने धिक्कार दिया तुम्हारे ही नयन की लव थी तुमने बुझा दिया तुम्हारी आत्मा थी तुमने अपमान किया क्या? दोष था मेरा जो इतना अपमान दिया जब– जब प्यार से पुकारा तो मुस्कुरा दिया जब हृदय से लगाया तो समर्पण भी कर दिया फिर क्यों? इतना वेदना से भर दिया आज धिक्कारती हूं खुद को क्यों? तुमसे प्यार किया क्यों? वह निष्ठुर अपमान सही अच्छा होता वैसी होती, जैसी तेरी संकल्पना थी तब तू शायद मेरा होता, औ मैं तेरी न होती रिश्ते भी फिर नीभ जाते इस तथाकथित समाज में।।" . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...