Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: रुचिता नीमा

जिंदगी का सफर
कविता

जिंदगी का सफर

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** अगर जिंदगी है तो मुश्किलें आती रहेंगी, अगर आगे बढ़ना है तो मुश्किलें आती रहेंगी... जैसे नदियां बहती जाती है, पर्वतों को काटकर, जैसे सूरज निकलता है रोज, अंधेरे को मिटाकर।। जैसे चंदा बढ़ता पूनम को, अमावस को पारकर, वैसे ही मन्ज़िल को पाना है, तो मुश्किलों को हराकर।। हार कर यूं बैठ जाना किसी समस्या का हल नहीं, ऐसे मुश्किलों से घबराना, जिंदगी का मक़सद नही।। थककर बैठने वालों को मंजिल कहा मिलती है, और कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती है।। अगर जिंदगी है तो मुश्किलें तो आती ही रहेंगी, तू मुश्किलों का सामना कर, और कर्म पथ पर बढ़ता चल, बढ़ता चल।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी...
वतन हमारा
कविता

वतन हमारा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जान से प्यारा वतन हमारा जग से न्यारा देश है प्यारा ये ऋषियोँ की है तपो भूमि ये अर्जुन कृष्ण की है कर्म भूमि यहाँ है जन्मे बौद्ध महावीर यही से निकले परसुराम शूरवीर यही हुआ है जन्म दधीचि का और रामकृष्ण, विवेकानन्द जैसे जगत गुरु का देवी अहिल्या हो या लक्ष्मीबाई कल्पना चावला या फिर मीरा बाई नारी शक्ति ने भी अपनी अलग ही पहचान बनाई तरह तरह की भाषाए और तरह तरह के परिधानो में, विभिन्न रीति रिवाजों और अलग अलग धर्मो के धागों में बंधा हुआ ये देश है प्यारा जब भी धरा पर विपदा आई विश्व गुरु की छवि है पाई छिपा हुआ हर समाधान यहाँ पर होती है मुश्किलें आसान यहाँ पर कोरोना के टीके में भी सर्वे भवन्तु सुखिनः की छाप है आई और भारत ने पूरी दुनिया मे गरिमा पाई अनेकता में एकता और देश की अखंडता ही भारत की है विशेषता परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप ...
अनकहे रिश्ते
कविता

अनकहे रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो अनकहे से, अनदेखे से, वो अनसुलझे से रिश्ते जो कभी बीच राह में, तो कभी खयाल में बन जाते है।। वो हकीकत से दूर, वो ख्वाबो की दुनिया के रिश्ते लेकिन बड़े खूबसूरत से रिश्ते, हर बार जीवन मे नई उमंग भर जाते है।। राह चलते किसी अजनबी का यू मुस्करा जाना जैसे उपवन में किसी खूबसूरत गुलाब का खिल जाना।। वो बिना नाम, पहचान के रिश्ते, वो दिल से जुड़े अनजाने से रिश्ते... जब राह पर चलते किसी बुजुर्ग को मंजिल तक पहुचना हो या किसी भूखे को पसन्द का खाना खिलाना हो या कभी ला देनी हो किसी बच्चे के चेहरे पर मुस्कान या दिला देना हो किसी कमजोर को सम्मान भर जाता है मन में आत्म सम्मान ये बिना नाम के क्षणिक से रिश्ते ये जीवन के रंगों से लिपटे हुए रिश्ते ये जीवन की ऊर्जा के रिश्ते ये सब धर्मों से परे रिश्ते ये बिना किसी स्वार्थ के रिश्ते ये रिश्ते बहुत खूबसूरत है ये ...
रिश्ते … 2
कविता

रिश्ते … 2

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** रिश्ते तरह-तरह के कुछ दूर के, कुछ पास के और कुछ आसपास के कुछ निभाए जाते है मिलकर तो कुछ दूरभाष से है जीवित कुछ रहते हमेशा साथ भले ही उनमे न हो मिठास अब क्या कहूं रिश्तों की परिभाषा इन पर ही टिकी रहती सबकी आशा जिस रिश्ते में जितनी आशा अक्सर मिलती वही निराशा जहाँ जितना अंध विश्वास वही आ जाती है खटास कुछ रिश्ते है बड़े रसीले कभी है खट्टे कभी है मीठे ऐसे रिश्तों से टिका परिवार सारा इनके बिना न जीवन गुजारा लेकिन एक रिश्ता है अटूट जिसमे चलता कभी न झूठ वो रिश्ता है आत्मा का परमात्मा से और अपना अपनी अंतरात्मा से बस यही रिश्ता है अनमोल अगर समझ सको इसका मोल परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया ह...
वो खूबसूरती की निशानी
कविता

वो खूबसूरती की निशानी

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो खूबसूरती की निशानी वो पूनम का चाँद, आज सुबह जैसे उतर आया मेरी खिड़की पर लगा जैसे कुछ कह रहा है मुझसे... वो मंद मंद मुस्कुराता रहा और कहने लगा कि देख मुझे... आज सबको रोशन कर रहा कल से फिर खत्म हो जाऊंगा फिर खुद को बनाऊंगा, और सम्पूर्णता को पाऊंगा रुचि!!! सुन यही जीवन है... मैं तो सदियों से हर माह जीता मरता हूं लेकिन हर बार इस दुनिया को शीतल रोशनी से भरता हु लाखों तारे है मेरे साथ... फिर भी तो मैं अकेला हूँ।। लेकिन जब मैं चमकता हु, तो सिर्फ मैं ही दिखता हु... मेरी चाँदनी की रोशनी में ही प्रकृति खूबसूरती पाती है।। बस यही सीखाने आया तुझको, कि हर बार नई शुरुआत होती है हर बार पूर्णता आती है, बस चलते चलते तू कर्मपथ पर हर अमावस के बाद पूर्णिमा ही आती है पूर्णिमा ही आती है परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता ल...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** अजीब से रिश्ते इस दुनिया के अजीब सी है रिश्तों की दुनिया तरह तरह के किरदार मे लोगों को बहकाती दुनिया कोई सगा, कोई सौतेला, कोई अपना तो कोई पराया तरह-तरह के संबंधों को अपने ढंग से निभाती दुनिया लेकिन सब रिश्तों को पीछे छिपी हुई है स्वार्थ की दुनिया बड़ी मुश्किल से मिलेंगे इस दुनिया मे निस्वार्थ के रिश्ते... ऐसे रिश्तों को ही केवल, दिल से निभाती है दुनिया बाकी तो सब दिखावे के है रिश्ते जो सिर्फ बेमतलब निभाती है दुनिया..... रुचि!!!! मत उलझ इन रिश्तों के भंवर में सबको भटकाती है ये दुनिया चलती जाओ बस कर्म पथ पर सुलझती जाएगी ये रिश्तों की दुनिया अजीब से रिश्ते इस दुनिया के अजीब सी है रिश्तों की दुनिया परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयो...
भूख
कविता

भूख

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी मन्दिर की सीढ़ियों पर... तो कभी मज्जिद के बाहर... कभी गुरुद्वारे के लंगर में... तो कभी चर्च के गलियारों में... कुछ चेहरे हर जगह नजर आ जाते है जिनके पेट की भूख, उन्हें हर जगह ले आती है... ये वो लोग होते है, जिनका कोई धर्म नही, कोई मज़हब नही होता।। जो उन्हें कुछ दे दे, बस वही इनका भगवान होता है इनके लिये हर धर्म का भी बस 'रोटी' नाम होता है। दुनिया इन्हें भिखारी कहे, या कहे बेचारे लेकिन ये है सब किस्मत के मारे।। मज़हब के लिये लड़ना सिर्फ हम जानते है, जो भूख से तरसते है, वो सबको मानते है।। हम इंसान तो भगवान से भी महान हो गए जब मज़हब के नाम पर लाखों कुर्बान हो गए।। कभी भेद न किया उसने किसी पीर में फकीर में, और हम खींचते चले गए धर्म पर धर्म की लकीरें।। इस दुनिया में भूख का कोई मजहब नही होता और इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नही होता।। परिचय :-  रु...
चाहतों का नशा
कविता

चाहतों का नशा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** बहुत से नशे है इस दुनिया में, किसी को दौलत का, तो किसी को शोहरत का नशा है। किसी को मंदिर का, तो किसी को मदिरा का नशा है। किसी को प्रेम का, तो किसी को सफलता का नशा है। हर किसी को किसी न किसी बात का नशा है, लेकिन सच मे तो यह चाहतों का नशा है। कि हर किसी को कुछ न कुछ पाना है, लेकिन मिलने की बाद भी शांति नही मिलती है, हर ख्वाईश जब पूरी हो जाती है, तो अधूरी सी लगती है। और फिर नई ख्वाईश जाग उठती है, फिर भागने लगते है हम उस मृगमरीचिका के पीछे उस अनजान को पाने के नशे में, जो भागकर कभी भी न मिल पायेगा। हर बार मिला भी सबकुछ, लेकिन ये वो न निकला की जिसके बाद कुछ पाने की ख्वाईश न बची हो। ये नशा ही ऐसा है, जो चढ़ गया तो उतरता ही नहीं, और हम भागते ही चले गए, कभी इधर तो कभी उधर। अब जब थक कर, रुककर देखती हूं तो लगता है कि, ऐसा क्या पाना था मुझको जो मैंने...
जीवन का सफर
कविता

जीवन का सफर

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** तमाम उम्र निकल जाती है, और हम समझ नही पाते कि एक सफर ही तो है जिंदगी जिसका मुकाम सिर्फ एक है,,,,, चाहे राजा हो या हो फकीर अंत सबका एक ही है।।।। बीच मे आते है कई पड़ाव कभी खुशी के, कभी गम के और हम चलते जाते है बस चलते ही जाते है सफर में मिलते जाते है कई मुसाफिर और बिछड़ते भी जाते है और देते जाते है नए अनुभव कभी मीठे, कभी कडुवे और हम उन अनुभव की गठरी बाँधे आगे बढ़ते जाते है कभी खुश होकर, कभी रोकर बस चलते जाते है लेकिन चलना तो अकेले ही है सफर में,, साथी तो बहुत है राह में....... कभी परिवार, कभी दोस्त,कभी प्यार लेकिन जो हर पल साथ निभाये वो हम खुद ही है यार........ तो क्यों किसी से उम्मीद रखें कि वो आपके साथ चले रख भरोसा खुद पर और अपने सफर की राह पकड़,,, कुछ करगुजर मुकाम आने से पहले कि लोग तेरे सफर को याद करे,,, एक खूबसूरत सफर है जिंदगी जिसको तू ...
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
कविता

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है यहाँ न रिश्तों की परवाह है न खुशियों की चाह है ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है... हर तरफ मतलब ही मतलब ... और सिर्फ बेमतलब का ही शोर है।। न बच रही कहि मानवता, और न ही प्रेम का कहि छोर है।। अपने स्वार्थ की खातिर, नए रिश्ते बना लेते है लोग, या यू कहे कि गधे को भी बाप बना लेते है लोग।। भरोसा उठ रहा सबका यहाँ इंसानियत और ईमानदारी से... भरोसा उठ रहा सबका यहाँ रिश्तों की वफादारी से... ये बेदिल, और मतलब परस्तों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। रुचि!!!! दुनिया के मिलने की चाह को छोड़ अब खुद के मिलने को तलाश कर... खुद को खुद में ही खोजकर अब खुद पर ही विश्वास कर।। छोड़ सब उम्मीदों को अब... ये इंसानी लाशों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२...
खुशियों का पैगाम
कविता

खुशियों का पैगाम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** किसी की याद जब हद से गुजर जाए तो कोई क्या करें.... कोई दूर रहकर भी बहुत याद आये तो कोई क्या करे.... न मिलना हो मुमकिन, न भूलना हो मंजूर.... कोई फितूर बनकर छा जाए तो कोई क्या करे ये खुदा!!!!! अब तो मदद कर या तो मिला दे उसको या फिर ज़ेहन से ही मिटा दे क्योंकि होश के बादल जब छाए तो कोई क्या करे अब जीना भी हुआ मुश्किल और मौत भी आती नहीं ऐसे में बेहोशी अगर छा जाए तो कोई क्या करे ये खुदा!!!!! अब तू ही राह दिखा वरना हर तरफ जब अंधेरा ही दिखाई दे तो कोई क्या करे अब तो हर तरफ बिखेर दे उम्मीदों की लड़ियाँ.... क्योकि मायूसी अगर छा जाए तो कोई क्या करें।। अब बस बहुत हुआ.... अब तो बस कोई खुशियों का पैगाम ही आये, दिल ये दुआ करे परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस...
नन्हा बीज
कविता

नन्हा बीज

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** एक छोटा सा नन्हा सा बीज वो प्यारा सा बीज कभी मिट्टी में बोया था मैंने,,, सोचा नहीं था कि अनन्त सम्भावनाएं है उसमें पहले उससे अंकुर निकला, नई जड़े जमीन को पकड़ने लगी,, फिर नव कोपल आये फिर तना, शाखा, फूल फल और वो बढ़ता ही चला आकाश की ओर बस थोड़ी सी मिट्टी मांगकर,,, और फिर वो देता ही चला कभी छांव, कभी फल, कभी आश्रय और भी बहुत कुछ और एक हम है जो उस मुठ्ठी भर मिट्टी के बदले लिये जा रहे उससे , उसका सबकुछ रोज कुछ न कुछ लेते जा रहे उससे,,,, लेकिन वो आज भी मुस्कराकर, सर झुकाकर देता ही जा रहा हम जैसे स्वार्थी लोगो को वो जड़ होकर भी चुका रहा कर्ज उस माटी का और इंसानो को देखो अपना तो ठीक, लेकिन दुसरो का भी हक़ खा रहा समझ नही आ रहा कि जड़ वृक्ष है या इंसान जो प्रकृति के करीब होकर भी उसे समझ नही पा रहा परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रह...
मित्रता की परिभाषा
कविता

मित्रता की परिभाषा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** मित्र एक शब्द है जाना पहचाना सा.... दिल के क़रीब कोई अपना सा.... जिससे नहीं हो कोई भी सम्बन्ध.... पर हो दिल के गहरे बंधन। जो बिन कहे सब समझ जाएं जिसे देख दर्द भी सिमट जाए.... जहाँ उम्र भी ठहर जाए.... जिसे देखकर ही आ जाये सुकून और सब तनाव हो जाये गुम.... तो वह है मित्र जब मुश्किलों से हो रहा हो सामना.... और लगे कि अब किसी को है थामना तब जो हाथ बढ़ाये वह है मित्र.... निःस्वार्थ, निश्छल, और सब सीमाओं से परे जहाँ बाकी न रह जाये कोई आशा.... बस यही है मित्रता की परिभाषा परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौ...
जाने क्यों
कविता

जाने क्यों

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग कि समझना ही नहीं चाहते खुद को, या फिर बन्द कर लेते है आंखों को देखकर भी नादान बने रहते है आजकल लोग जाने क्यों ऐसे हो रहे....? कोई गलत कर रहा, उसे करने दो.... कभी मन्दिर के नाम पर, कभी मस्जिद के नाम पर, बेवज़ह मुद्दों को खींचकर, बस अपनी रोटी सेंक रहे है लोग न धर्म बच रहा, न ईमान बच रहा.... अब तो ऐसा लग रहा कि कहा इंसान बच रहा....? बिक रहे बाजार में जानवर भी, इंसान भी और ईमान तो बहुत सस्ता बिक रहा.... जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग....? यहाँ हर चीज की बोली लग रही.... शरीर का हर अंग तक अब बिक रहा.... लेकिन फिर भी जीवन का मोल खो गया, जो छोटी छोटी बातों पर जान गवाने लग गए है लोग.... जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग....? क्या इनकी तन्द्रा भी कभी टूटेगी, या ये जिंदगी फिर ऐसे ही छूटेगी। इनका जाग...
जैसी हूँ मैं …
कविता

जैसी हूँ मैं …

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** मैं जैसी हूं मुझे वैसे ही स्वीकार करो मैं जैसी हूं मुझे वैसे ही स्वीकार करो कर दरकिनार मेरी बुराइयों को अच्छाइयों को अंगीकार करो माना लाख बुराइयां है मुझ में और गलतियों की भी कमी नही लेकिन कर उन सबको नजर अंदाज थोड़ा मुझमें भी विश्वास करो मैं जैसी हु, मुझे वैसे ही स्वीकार करो मोटी हु या हो चाहे पतली काली हो या चाहे गोरी सब रंग रूप को छोड़कर हाँ, सब रंग रूप को छोड़कर थोड़ा गुणो पर भी तो दृष्टिपात करो मैं जैसी हु मुझे वैसे ही स्वीकार करो मत बदलो मुझे इस दुनिया के अनुसार, जिंदगी!!!! जिंदगी है मेरी.... दिखावे की गुड़िया का खेल नहीं....? सरल, स्वच्छ, निर्मल लहर सी हूँ मैं ... मुझ मैं नकली सा जहर नहीं.... मत बनाओ मुझे कठपुतली हाथों की मुझे अपनी राह पर ही चलने दो मैं बना सकूं अपना अस्तित्व, मुझे खुद के निर्णय लेने दो.... अगर कर सको तो बस इतना कि मुझे ...
पापा
कविता

पापा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** हर खुशी आपके बिना अधूरी और हर गम आपसे ही दूर होता है हा पापा मेरा दिन आपसे ही शुरू होता है जब समझ न आती कोई राह तब आप ही सही राह दिखाते हो मुझ भटकी हुई को आप ही अपनी मंजिल तक पहुँचाते हो कभी गुरु बनकर कभी दोस्त बनकर तो कभी पिता बनकर आप हर क्षण मेरा मार्ग दर्शन कर जाते हो मेरे मन की बात को मुझसे पहले ही आप पढ़ जाते हो हाँ पापा हर बार आप मुझको मुझसे ज्यादा समझ जाते हो अक्स हु आपका ये कहते हुए बहुत फक्र होता है,,, इतने अच्छे पिता का मिलना बहुत कम को नसीब होता है।।। शुक्रगुजार हूं उस ईश्वर की जिसने मुझे आप जैसे पिता दिए बस विनती इतनी सी है कि हर जन्म में आप ही पिता के रूप में मिले परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस....
हे प्रियतम
कविता

हे प्रियतम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) हे प्रियतम कैसे व्यक्त करू.... अपने मन के भावों को वो ह्रदय में उठते वीणा के झंकारों को.... जानती हूं एक हसीन सपना हो तुम, जो कभी मिलकर भी मिल न सको, वो सबसे प्यारा अपना हो तुम...। लेकिन इस अतृप्त ह्रदय को अब समझाना है मुश्किल...। वो तुमसे हुई छोटी सी मुलाकात वो अपना सा स्पर्श, वो चिरपरिचित सी मुस्कान और तुम्हारा यह कहना कि मैं हु न तुम्हारे साथ हमेशा, इतना सकूँ दे गया कि तुम्हारे साथ न होने का सब दर्द भी ले गया, अब तो बस, इतना ही है कहना की इस मुलाकात के सहारे अब जीवन भर है जीना। और तुम्हारी ही होकर रहना.....। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक...
कदम दरकदम
कविता

कदम दरकदम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** https://youtu.be/6E9P66cpf30 हर कदम, दरकदम सब होते है हैरान, हर मन अशांत, हर शक्श परेशान, हर कोई आतुर है, अपना भविष्य जानने को कैसे भी बस पता लग जाये कि अब क्या है बाकी आने को।। हर शक्श उलझा उलझा सा है तारों में, नक्षत्रो में, जन्मपत्रिका के फेरो में, कभी हाथों की लकीरों मे कभी साधु सन्यासी के डेरों में कि मिल जाये कोई खजाना आने वाले वक्त का, अच्छा हो या हो बुरा लेकिन उसको हो सब पता.... ये है एक ऐसी जिज्ञासा जिसका कोई अंत नहीं.... अज्ञात को जानना तो कोई उचित विकल्प नहीं।। जानकर भी क्या कर लेना है जो होना है, वही होकर रहना है।। इसलिये इस अज्ञात की दौड़ में, अपना वर्तमान भी खोना है।।। जो सच है उसको तुम स्वीकार करो इस मृगतृष्णा को छोड़ तुम अपने कर्मो पर विश्वास करो भागो मत, अब जागो और जागकर भवसागर को पार करो . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म...
वो नव प्रभात फिर आएगा
कविता

वो नव प्रभात फिर आएगा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जब फिर से नई सुबह होगी बच्चे स्कूल को जाएंगे फिर से जिंदगी दौड़ेगी और बाजारों में फिर रौनक होगी लेकिन क्या वो अनजाना भय न होगा क्या फिर से पहले सा सब होगा मन की उलझन क्या खत्म होगी आपस की दूरी कैसे कम होगी???? इसका हल भी हमें ही पाना है खुद को मजबूत बनाना है विश्वास की नई बेल पर उम्मीदों के फूल उगाना है चल उठ मुसाफिर जीवन की नई राह पकड़,,,, उस नव प्रभात की बेला का पूरे दिल से तू स्वागत कर चेहरे पर एक मुस्कान लिये नव पथ पर तू आगे बढ़........ जो बीत गया उसे भूलकर अपने आप को सशक्त कर वर्तमान को स्वीकार कर इस नव प्रभात का स्वागत कर,,, स्वागत कर...... परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप...
बदलती जिंदगी
कविता

बदलती जिंदगी

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी भागते भागते जो गुजर जाया करती थी कब सुबह, कब रातें हुआ करती थी... जिंदगी की गाड़ी, इस रफ्तार से चलती थी कि तरस जाते थे, एक पल सुकून के लिये... माँगते थे दुआ कि, काश मिल जाये कुछ पल की शांति जब दूर हो दुनिया से, और कोई सम्पर्क भी न हो, बस मैं, मैं और मेरी तन्हाई हो... लेकिन इस कदर कबूल की, खुदा ने दुआ ये मेरी कि सबकुछ मिला भी तो एक भय के साये में, ये तन्हाई भी अब अच्छी नही लगती हर पल डर की छाया बनी रहती है। अब हर पल , पल पल ये महसूस होता है कि शांति कहि भी नहीं है मिलता सबकुछ है सबको जिंदगी में लेकिन उस पर हमारा कोई, बस नही होता... होता सबकुछ उस की मर्जी से ही है, हमे तो बस उसको ही कबूलना होता है।। उसको ही कबूलना होता है... परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आप...
मेरी इबादत
कविता

मेरी इबादत

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** आज भी तेरे दिल में अगर सबके लिये मुहब्बत है जो छलकते है किसी के दर्द में तेरे आँसू, तो यही इबादत है जरूरत नही तुझे कहि जाकर सजदा करने की तेरा दिल ही मंदिर, मस्जिद और चर्च की इमारत है मत घबरा इन धर्मों के दिखावों से, झूठे आडम्बरो से, बड़े बड़े तीर्थों और दिखावे के अनुष्ठानों से, अगर तेरा मन साफ है, तो यही सबसे बड़ा धर्म और सबसे पवित्र तेरी काया है.... मिलता नहीं है खुदा कभी, किसी को सताने से, किसी को नीचा दिखाने से अगर वो मिलता है, तो सबको अपनाने से सबमें उसकी झलक पाने से इतिहास गवाह है, कहि भी देख लो राम, कृष्ण, बुध्द, महावीर, नानक हो या क्राइस्ट इन सबने भी यही समझाया है, कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म और प्रेम ही परमात्मा की प्रतिछाया है.... . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी ...
तूफान अंतर्मन का
कविता

तूफान अंतर्मन का

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी तो वो तूफान उठेगा मेरे अंतर्मन में, जो बहा ले जायेगा अपने साथ हर विरोधाभास और बचेगा सिर्फ विश्वास खत्म हो जाएगा हर दोहराव और सिर्फ रह जायेगा एक ही पड़ाव फिर ये हर राह की भटकन न होगी सिर्फ एक राह ही मंजिल तक होगी कभी तो वो शीतल चांदनी फैलेगी मेरे अंदर के गगन में, जो भर देगी मन को असीम आनन्द में फिर न कोई उन्माद होगा बस अनाहत का नाद होगा अब बस इंतजार है मुझे उस तूफान का जो हर लहर के साथ एक उम्मीद छोड़ जाता है और दे जाता है इंतज़ार, इंतज़ार और इंतजार . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
पहली मुहब्बत
कविता

पहली मुहब्बत

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो गजब सी कशिश वो गजब सा एहसास, हा तुम ही तो थे वो तेरा मुस्कुराना जैसे कई कलियों का खिल जाना, कई भवरों का एक साथ गुनगुनाना, जैसे बादलों में इंद्रधनुष का निकल जाना, और सतरंगी सपनों का सच हो जाना, ख्वाब नही था मेरा, हकीकत थी तुम्हारा मिल जाना, जब में, में न रही, बस तुम ही तो थे और सब तुम ही थे और कुछ न था वो गजब सा एहसास वो साँसों की झनकार सब तुम ही थे बस तुम ही थे वो तेरा मिलना जैसे मिल गया कोई अनमोल खजाना वो तेरा होले से छू जाना या जैसे आ गई समंदर में नई तरंग वो पतझड़ में बहारों का आ जाना वो दिल मे खुशी का सैलाब बनकर हा वो तुम ही थे, मेरी जान वो तुम ही थे . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू ...
कभी कभी
कविता

कभी कभी

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी कभी कुछ पल ही तो माँगती हूँ, कभी कभी थोड़ी सी हिम्मत, थोड़ा सा प्यार माँगती हूँ... आ जाये इस दिलको करार वो साथ माँगती हूँ मैंने कभी कहा तुमसे, कि इससे ज्यादा की कुछ चाह है न धन की, न गहनों की कही कोई अभिलाषा है... सिर्फ इस व्यस्त जीवन से कुछ सुकून के पल ही तो माँगती हूँ आ जाये जिससे दिल मे सुकून तुम्हारे साथ वो वक़्त माँगती हूँ लेकिन तुम इतना भी नही कर पाते... हर चीज का लगा लेते हो मोल और जो है मेरे लिये अनमोल उसी को तुम कर देते हो गोल... समझते क्यो नही तुम इन जज्बातों को इन एहसासों को मेरी अनकही बातों को जिस दिन तुम, मुझे समझ स्नेह से गले लगाओगे ... सच कहती हूँ जितना दोगे उससे, कहीं अधिक तुम पाओगे... समझने लगो तुम अब मुझकों बस इतनी सी ही है चाहत मेरी क्यूँ ले रहे, कठिन परीक्षा, मेरे सब्र की... हर जनम दासी बन जाऊं बस पूरी हो जाए, चाह...
चेहरा
कविता

चेहरा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** बहुत मुश्किल है रुचि... इस दुनिया को समझना... कि लोग ..... मन मे कुछ ... और जुबा पर कुछ और रखते है... लोग अपने अंदर ही अनेक किरदार बसा रखते है खुद क्या है, ये कभी जान ही नहीं पाते और दूसरों को समझने के दावे हजार करते है जिस तरह लगा रखे है चेहरे पर चेहरे... असली को जानने के भी आईने हजार लगते है... देखते है जब वो खुद की सूरत को आईने में... हर बार सीरत के मायने हजार निकलते है... बहुत मुश्किल है रुचि... इस दुनिया को समझना कि एक इंसान से ही हजार निकलते है... बेहतरी यही है कि छोड़ दु मैं अब इस दुनिया को समझना... और जो जैसा है उसे वैसे ही कबूल करना।... पर उसके भी पहले जरूरी है यही कि खुद को ढूंढकर, खुद को समझना... . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जू...