खुले आसमां में
रामकेश यादव
काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र)
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खुले आसमां में उड़ाएँ पतंगें,
सुख, समृद्धि, शान्ति की उड़ाएँ पतंगें।
फसलें सजी हैं किसानों की देखो,
चलो हवा से मिलके उड़ाएँ पतंगें।
मकर संक्रांति का फिर आया उत्सव,
असत्य पे सत्य की उड़ाएँ पतंगें।
तस्वीर दिल की इंद्रधनुषी बनाएँ,
अरमानों के नभ में उड़ाएँ पतंगें।
दक्षिणायन से उत्तरायण हुआ सूरज,
नीचे से ऊपर को उड़ाएँ पतंगें।
तमोगुण से सतोगुण की ओर बढ़ें,
करें दान पहले, तब उड़ाएँ पतंगें।
बेखौफ होकर गगन को छू आएँ,
उसके चौबारे में उड़ाएँ पतंगें।
नहीं कुछ फर्क है जिन्दगी-पतंग में,
उलझें न धागे वो उड़ाएँ पतंगें।
बिछाई है जाल महंगाई नभ तक,
हिरासें न घर में, उड़ाएँ पतंगें।
कागज का टुकड़ा इसे न समझो,
चलकर फलक तक उड़ाएँ पतंगें।
दरीचे से बाहर निकलेगी वो भी,
चलो आशिकी में उड़ाएँ पतंगें।
फना होना तय है हमारी ये...