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Tag: रामकेश यादव

खुले आसमां में
कविता

खुले आसमां में

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** खुले आसमां में उड़ाएँ पतंगें, सुख, समृद्धि, शान्ति की उड़ाएँ पतंगें। फसलें सजी हैं किसानों की देखो, चलो हवा से मिलके उड़ाएँ पतंगें। मकर संक्रांति का फिर आया उत्सव, असत्य पे सत्य की उड़ाएँ पतंगें। तस्वीर दिल की इंद्रधनुषी बनाएँ, अरमानों के नभ में उड़ाएँ पतंगें। दक्षिणायन से उत्तरायण हुआ सूरज, नीचे से ऊपर को उड़ाएँ पतंगें। तमोगुण से सतोगुण की ओर बढ़ें, करें दान पहले, तब उड़ाएँ पतंगें। बेखौफ होकर गगन को छू आएँ, उसके चौबारे में उड़ाएँ पतंगें। नहीं कुछ फर्क है जिन्दगी-पतंग में, उलझें न धागे वो उड़ाएँ पतंगें। बिछाई है जाल महंगाई नभ तक, हिरासें न घर में, उड़ाएँ पतंगें। कागज का टुकड़ा इसे न समझो, चलकर फलक तक उड़ाएँ पतंगें। दरीचे से बाहर निकलेगी वो भी, चलो आशिकी में उड़ाएँ पतंगें। फना होना तय है हमारी ये...
चाँद से मुलाक़ात!
हिन्दी शायरी

चाँद से मुलाक़ात!

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इश्क में कोई शिड्यूल कास्ट नहीं होती, इसमें कोई छुआछूत की बात नहीं होती। जवां दिल मचल जाता है कहीं पर यूँ ही, पर दिन में चाँद से मुलाक़ात नहीं होती। जिस्म तन्हा, बेचारा जां भी तन्हा क्या करे, छाती हैं काली घटाएँ, बरसात नहीं होती। टुकड़े-टुकड़े में बीत जाता है दिन अपना, मगर मुझसे अब वो खुराफ़ात नहीं होती। हुस्न की पनाह में इश्क लेता है साँसें, उस संगमरमरी बदन की जात नहीं होती। जिस सूरत को मैंने देखा कहीं और नहीं, बात इतनी है उससे मुलाक़ात नहीं होती। कुदरत हमारी जरुरत की हर चीज बख्शी, लोग रहते घमंड में, बस बात नहीं होती। कत्ल कर देती हैं बिना तलवार से नजरें, दूर-दूर रहने से रंगी रात नहीं होती। प्यार के कितने भी टुकड़े तुम कर डालो, मगर उसकी चाहत कभी कम नहीं होती। मजे में रहो औ खुश रहो ऐ...
दीप जलाएँ
कविता

दीप जलाएँ

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** चहक उठा सबका दिल फिर से, आई देखो ! दिवाली। खेत - खेत में झूम रही है, देखो ! धानों की बाली। जीवन - बगिया महक उठी है, दीपों के फूल खिले हैं। बिहसि रही है अखिल धरा ये, तम के होंठ सिले हैं। झूम रही चहुँ ओर फ़िजाएँ, वो कुदरत के नजारे। सुख - दुःख तो आना- जाना है, सब ईश्वर के सहारे। परहित में कदम उठें सबके, अहं की दीवार गिराएँ। मोहब्बत की दरिया में हम, अब मिलकर नित्य नहाएँ। ज्ञान प्रकाश करें जग में, अंधेरा हम दूर भगाएँ। राम राज्य लाकर भू पर, खुशहाली का दीप जलाएँ। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा : कविता सम्प्रति : पूर्व (रिटायर) मनपा शिक्षक बृहन्नमुम्बई महानगरपालिका, मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हू...
आग लगाते हैं जो
कविता

आग लगाते हैं जो

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आग लगाते हैं जो वो भी यहीं रहते हैं, लगी आग बुझानेवाले भी यहीं रहते हैं। बहने दो गंगा-जमुनी तहजीब अपनी, अमन का पैगाम देनेवाले यहीं रहते हैं। ये मुल्क हमने पाया नदियों खून बहाकर, अपना सर्वस्व लुटानेवाले यहीं रहते हैं। हुकूमत की बदौलत कुछ तबाही मचाते, अच्छी सियासतवाले भी यहीं रहते हैं। सरकारी इम्दाद खा जाते हैं मुलाजिम, नमक का दरोगा जैसे भी यहीं रहते हैं। जवानी के दिनों में इतना मुँह मत मार, देख एक अदद बीबीवाले यहीं रहते हैं। रंजो-गम से भरी है ये दुनिया हमारी, मगर हँसने-हँसानेवाले यहीं रहते हैं। अक्ल से तू बौना है मगर दुनिया नहीं, इंसाफ करने वाले भी यहीं रहते हैं। तुम्हारी बद्द्ुवाओं से वो मरेगा नहीं, दुआ देने वाले भी तो यहीं रहते हैं। मत उतार तू किसी के तन का वो कपड़ा, देख कफन देनेवाले भी यहीं रह...
देशरत्न लता दीदी
कविता

देशरत्न लता दीदी

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** लता जैसा कहाँ बन पाता है कोई, स्वर- साम्राज्ञी न बन पाता है कोई। युगों-युगों में किसी वरदान के जैसा, ऐसा अवतार विरला पाता है कोई। कागज की फुलवारी में रहते बहुत, रातरानी के जैसा गमकता कोई। जाने को लोग रोज जाते ही हैं, ऐसे कहाँ विश्व को रुलाता कोई। जीवन का अंत तो सभी का है तय, सूरज-चंदा के जैसा चमकता कोई। त्याग भरा जीवन जीते हैं कम, यादगार पल कहाँ जीता कोई। गाई हैं जो नग्में लता दीदी ने, ऐसा हुनर कहाँ पाता है कोई। वक्त देखो उड़ता हवा की पीठ पे, अदब का फनकार मिलता कोई। हीरे की कीमत जौहरी ही जानता, ऐसा पारखी जहां में होता कोई। वक्त के झरोखे से ही देख पाओगे, स्वर-कोकिला बन के आता कोई। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा : कव...
जरुरत है!
कविता

जरुरत है!

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बिखरे सपने सजाने की जरुरत है, नफरत जहां से मिटाने की जरुरत है। तहस- नहस किया कोरोना जिंदगी, कारोबार फिर बढ़ाने की जरुरत है। मत भूलो अपने गाँव -घर का पता, पतझड़ से उसे बचाने की जरुरत है। बहाओ न आँसू जरा- सी ठेस पर तू, हवा में समंदर उठाने की जरुरत है। सभी लोग तो हैं इसी मिट्टी से उगे, बस आईना दिखाने की जरुरत है। बड़ा बनने की भूल कभी न कर तू, कागजी-कश्ती चलाने की जरुरत है। टपकने लगी है निगाहों से मस्ती, अब वो दरिया बचाने की जरुरत है। किसान बेचारे कितना सहें तकलीफ, उनके अच्छे दिन आने की जरूरत है। पानी के परिन्दे कब तक उड़ेंगे नभ, हरियाली और बढ़ाने की जरुरत है। खुशियाँ संभाले नहीं संभल रहीं, इसे औरों पे लुटाने की जरुरत है। मरना तय है बचकर जाओगे कहाँ, पुण्य की गँठरी बढ़ाने की जरुरत है। आखिरी साँस तक महको...
लाशों से सजाते क्यों धरती?
कविता

लाशों से सजाते क्यों धरती?

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** लाशों से सजाते क्यों धरती, मानवता से घबराते हो। सब कुछ नहीं पद, सत्ता पैसा, क्यों मजलूमों को रुलाते हो? इतनी बर्बरता ठीक नहीं, जिल्लत का जहर पिलाते हो। इस नश्वर जग में आखिर क्यों, अपनों पे सितम तू ढाते हो? उस उपवन के हो तू माली, क्यों पहचान मिटाते हो। दफ़न करो तू अंधकार को, क्यों कांटे के आँसू बोते हो? चीख, दर्द, चीत्कार से दुनिया, निशि-दिन घायल होती है। शक्ति प्रदर्शन देख-देखकर, फिज़ा वहाँ की रोती है। सिर्फ विकास की बात करो, तब सुख के बादल बरसेंगे। मोहब्बत की किरनें झूमेंगी, ज़ब सर न किसी के उतरेंगे। अमनो चैन की उस दुनिया में, तब मानवता करवट लेगी। फांकों के दिन टल जायेंगे, खुशहाली तब थिरकेगी। मत रौंदों, न मसलों इज्जत, अब ना तू नर-संहार करो। अपने पथ से भटके लोगों, एक दूजे से प्यार करो। प...
जरा देख के चलो
कविता

जरा देख के चलो

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** फूल हैं कम, कांटे हैं ज्यादा, जरा देख के चलो। भरोसा कम है, धोखा ज्यादा, जरा देख के चलो। मुस्कान कम, तनाव है ज्यादा, जरा देख के चलो। आधी हक़ीक़त, आधा फ़साना, जरा देख के चलो। आसमां कम, औ ऊँचे मकां ज्यादा, जरा देख के चलो। फायर ब्रिगेड कम, शार्टसर्किट ज्यादा, जरा देख के चलो। परिन्दे हैं कम, बहेलिए ज्यादा, जरा देख के चलो। खरे इंसान कम, खोटे ज्यादा, जरा देख के चलो। सूरज है क़ैद, सितारे सोये, जरा देख के चलो। ये रंग-रलियां औ वो कहकहे, जरा देख के चलो। जिस्म का बाज़ार, उड़ते पैसे, जरा देख के चलो। रेशमी आँचल, अश्क़ से भींगा, जरा देख के चलो। रेंग रही मौत, उड़ते वायरस, जरा देख के चलो। ये तूफ़ान, वो बाढ़ का पानी, जरा देख के चलो। पलभर की जवानी, लंबी जुदाई, जरा देख के चलो। अम्न, तहज़ीब की बिगड़े न खुशबू, जरा देख के चलो। ...
आईना
कविता

आईना

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आईना खुद देख,तब दिखा आईना, तरफदारी में उतरता नहीं आईना। मेरे चेहरे पे पड़ जो रही झुर्रियां, नहीं छुपा सकता उसे कोई आईना। टूटकर बिखर जाना, गवारा इसे, झूठ का पैर छूता नहीं आईना। क्या जाने भेद, गोरे -काले का ये, जैसा जो दिखता, दिखाता आईना। सोने- चांदी के फ्रेम में भले जड़ दो, किसी ऐब को छुपाता नहीं आईना। फितरत समझता है हर आदमी का, सच से बे-खबर नहीं रहता आईना। बे-आबरू होकर घूमते जो भी जहाँ, उन्हें नज़र नहीं आता वही आईना। गला कोई दबाता झूठ आज बोल, खुद सलीब पे है चढ़ जाता आईना। फायदे के लिए हम तोड़ रहे कायदा, पर अपना फर्ज़ नहीं भूलता आईना। वतन के लिए जिवो, वतन पर मिटो, यही मंत्र हमको सिखाता आईना। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा :...
महंगाई
कविता

महंगाई

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** महंगाई से लोग परेशान हैं, खुश न तो खेत न ही वो खलिहान हैं। पाई - पाई के लिए लोग मोहताज़, कुछ का तो पैसा ही भगवान है। लगी है आग रोज डीजल- पेट्रोल में, कीमत उसकी सातवें आसमान है। पसारी ली है ऐसा पांव बेरोजगारी, लगता आदमी जैसे बेजान है। मंहगाई का असर सीधे जेब पर, अच्छे बाणों से खाली कमान है। कैसे हो ऐसे रिश्तों की तुरपाई, हर एक घर की अपनी दास्तान है। वोटों की फसल तक सीमित जनता, घड़ी- घड़ी वोटरों का इम्तिहान है। धूप पर जैसे निर्धन का हक़ नहीं, मुट्ठीभर लोगों का ये आसमान है। गुजरती है जिंदगी घुटने बटोर कर, अंदर से छाती लहूलुहान है। मजे में वो जिसकी ऊपरी कमाई, बाकी जनता बेचारी परेशान है। बेचकर चेहरा कुछ बीता रहे दिन, ऐसे यौवन का क्या सम्मान है। मीठी-मीठी बात से पेट नहीं भरता, सबसे ज्यादा किसान परेशान है। कागज ...
कोई लौटा दे !
कविता

कोई लौटा दे !

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तुझे ढूँढ रहा बचपन, तुझे ढूँढ रही मस्ती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। बहकी -बहकी राहें, वो कलियों की बाँहें। लौटा दे कोई बचपन, लौटा दे मेरा सावन। वो फूल से भी नाजुक, वो बच्चों की बस्ती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। वो बचपन के लम्हें, जीवन के खजाने थे। कब हार के फिर जीते, वो दिन अनजाने थे। वो धूल भरी सड़कें, मेरे होंठों पे सोती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। वो माटी की खुशबू, वो फागुन की होली। जो बंद है मुट्ठी में, वो खुशियों की झोली। जो गाती माँ लोरी, वो थी कितनी सस्ती। कोई लाके मुझे दे दो, मेरे गाँव की वो कश्ती। गुम हो चुका वो मौसम, ठग ली मुझे जवानी। तुतलाती भाषा वो, लौटा दे मेरी कहानी। उन खेल -खिलौना की, है कितनी बड़ी हस्ती। कोई लाके मुझे ...
बरखा रानी
कविता

बरखा रानी

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अमृत-सा जल लाकर बादल, पहले नभ में छाते हैं। उमड़-घुमड़कर करते बारिश, नदियों से प्रलय मचाते हैं। हरी-भरी धरती हो जाती, वो फूला नहीं समाते हैं। सज जाती खेतों में फसलें, ऐसा रंग चढ़ाते हैं। पड़ जाते डालों पे झूले, दादुर शोर मचाते हैं। पानी की लहरों पे बच्चे, कागज की नाव चलाते हैं। कभी-कभी बादल भी नभ में, खुद पक्षी बन जाते हैं। हिरन, बाघ, हाथी बनकर, बच्चों का मन वो लुभाते हैं। वन-उपवन के होंठों पे तब, हँसी की रेखा खिंचती है। कुदरत की बाँहों में देखो, दुनिया कितनी खिलती है। पत्थर, पहाड़, पठार सभी, पानी की संतानें हैं। पानी देखो! कहीं न बनता, हम कितने अनजाने हैं। सब ऋतुओं की रानी बरखा, जीवन नया ये बोती है। जन-जन की धड़कन है यही, ना समझो तो भी मोती है। जल संरक्षण करके ही हम, जल स्तर को बढ़ायेंगे...