भाव की अभिव्यंजना
राम कुमार प्रजापति "साथी"
जतारा, टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश)
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भाव की अभिव्यंजना होती अलंकृत,
सप्त स्वर नव रस भरे उर तार झंकृत।
भव्यता की दिव्यता दिनमान हिंदी।
शुभ सदन शौभाग्यशाली शान हिंदी।
वर्ण बावन वृह्म मुख से उच्चरित।
बृक्ष बट के पात सम शुभ पल्लवित।
सौम्यता सामर्थ्य सत पथ संचलन,
वेद महिमा गा रहे मन स्फुटित।
छन्द सलिला गीत गंगा सौम्य संगम,
हिन्द हिन्दू हर्ष हिदुस्तान हिंदी।
शुभ सदन शौभाग्यशाली शान हिंदी।
व्याकरण की शुद्धता उर में लियेहै।
गीत गाये भारती हुलषे हिये है।
जन्म से जीवन बनी आदर्श प्रिय तुम,
प्राण हिंदी प्रीत पट समरस किये है।
ध्यान चिंतन खोज की पावन नसेनी,
तर्क से अनुबंध कर विज्ञान हिंदी।
शुभ सदन शौभाग्यशाली शान हिंदी।
मातृभाषा मन मृदुल मोहित अधर अस।
राष्ट्र भाषा के लिए अब हो समर बस।
आइए मिल सब लड़ें यह जंग दुर्लभ,
आज से ही लीज...