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Tag: राजेश गुप्ता

आते जाते खू़बसूरत
यात्रा वृतांत

आते जाते खू़बसूरत

राजेश गुप्ता तिबड़ी रोड, गुरदासपुर ********************                दिल्ली एक उस शरारती बच्चे-सी है जो कभी चैन से न बैठता है और न ही किसी को बैठने देता है। दिल्ली अपने वेग से ही चलती है और अपने वेग से ही उठती है, बैठती है, न कोई इसे थाम सका है और न ही कोई शायद इसे थाम सकेगा। यह विचित्र-बहाव से बहने वाली नदी की तरह है जिस तरह एक चँचल बच्चा जिस के पास ऊर्जा का असीम भंडार होता है जिस से वह उत्प्रेरक होता है। उसी प्रकार दिल्ली भी असीम ऊर्जावान है उसके पास भी असीम कार्य करने की, दौड़ने-भागने की क्षमता है। वहां के दिन-रात एक ही जैसे हैं, हालाँकि रात को वह कुछ शांत होती है परन्तु रुकती याँ थमती वह तब भी नहीं है, यह उसकी विशेषता है। मैं अपनी पत्‍‌नी के साथ लगभग रात दस बजे के आस-पास घर से निकला क्योंकि मुझे ग्यारह बजे की गाड़ी पकड़नी थी। मैं और मेरी पत्‍‌नी कैब में आपस में आनन्दपूर्वक बातें कर...
चाय की चुस्की
कहानी

चाय की चुस्की

राजेश गुप्ता तिबड़ी रोड, गुरदासपुर ********************   चाय के प्यालों की भाप ने सम्पूर्ण कमरे में एक अलग ही तरह का वातावरण निर्मित कर दिया है। कमरे के चारों तरफ मध्यवर्गीय चाय की महक आ रही है।दोस्तों की महफिल सजी है। “छोटे-छोटे शहरों में बसे लोगों की एक अजीब-सी दास्तान है, रहते तो ये छोटे शहरों में हैं परन्तु सपने इनके बहुत बड़े-बड़े होते हैं ”एक दोस्त ने कहा। “छोटे शहरों में रह कर बड़े-बड़े काम कर जाना कोई आसान बात नहीं होती “फिर दूसरे दोस्त ने बात आगे बढ़ाई। “बड़े-बड़े सपनों वाले छोटे शहरों के नागरिक साधनों और संपर्कों की कमी के कारण पिछड़ जाते हैं, चाहे वो शिक्षा हो, कारोबार हो या फिर कला का कोई भी क्षेत्र, वे प्राय: योग्य होने के बावजूद भी पिछड़ जाते हैं भूमंडलीकरण के इस विस्तारवादी दौर में हर कोई उन्नति करना चाहता है “पहले दोस्त ने फिर कहा। “कला के पक्ष से देखें तो प्रत्त्येक कल...