आश्वस्त हूं
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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फांसी ले लूं या दे दो
मतलब एक ही है,
मेरा आकलन क्या है न पूछो
इरादा नेक ही है,
शायद मैं अपनी
जिम्मेदारी न निभा पाया,
अपने जज़्बात
किसी को न बता पाया,
शायद नजरिये का
फ़र्क अजूबा है,
मेरे या उनके सोचने का
तरीका दूजा है,
मैं अपने घर की मजबूत
दीवार लग रहा था,
पर कोई तो था जिन्हें मैं
बीमार लग रहा था,
संभाल पाना सबको
शायद मेरी औकात नहीं,
या हो सकता है
अब शायद यह
सोचना न पड़े कि
अब मुझमें उस तरह
की जज्बात नहीं,
अब तो अब मैं
तब भी खरा सोना था,
मेरी जद में हर कोना था,
नकार दो मेरा वजूद
पर मैं शाश्वत हूं,
समझा जाएगा मुझे कभी
मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं।
परिचय :- राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...