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Tag: राजेन्द्र लाहिरी

शिक्षा और चेतना
कविता

शिक्षा और चेतना

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** लोग इस धरा पर आते गए, अपनी पहचान खातिर कुछ न कुछ बनाते गए, पर बुद्धि और विज्ञान के अनुयायी अपने किये कराये पर धरे रह गए, कैसे भयंकर बदलाव सह गए, आर्यों का हुजूम इस धरती पर आया, अपने लिए मंदिर बनाया, मुगल लोग आये, अनेकों मस्जिद बनाये, गोरे भी आये, साथ में चर्च भी लाये, पर शोषितों, वंचितों के जीवन में ज्योतिबा आया, ज्योति पुंज लाया, मां सावित्री आई, स्त्री शिक्षा लाई, बाद भीमरावआया, संघर्षों से तपकर संविधान लाया, इंडिया इज भारत बताया, जिनके कारण हम ऊंचा सर करते हैं, हाथों में किताबें और तन में कपड़े धरते हैं, और फिर कांशी आया, सत्ता से दूर बैठे सहमें अभागों में राजनीतिक चेतना जगाया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि ...
छीन लो अपना हिस्सा
कविता

छीन लो अपना हिस्सा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जगह जगह रख छोड़े हैं इंसानों ने गुलाम, जिसके अंग-अंग पर नजर आ जाती है प्रतीक गुलामी के, मस्तिष्क में सजा हुआ है आस्था के ताज, जिसे वे मान रहे रिवाज, माथे पर सुहाग की निशानी, नाक में नकेल, गले में सुहाग सूत्र, बांह में बहुटा, कमर में करधन, पैरों में बेड़ियां, क्षमा कीजिये प्यारा नाम पायल, तन को पूरी तरह लपेटते, ढंकते साड़ी, घूंघट, बुरखे, किसी से सीधे नजर न मिलाने की ताकीद, और भी बहुत सारी बंदिशें, जिन्हें जरूरी और कीमती बता धकेला गया कई बरस पीछे, ताकि न मिला सके वो कदम से कदम, की गई है बराबरी न कर पाने की अनेक कुत्सित साजिशें, हतप्रभ हूं उधर से क्यों नहीं की जा रही है विद्रोह की रणभेरी का आगाज, जबकि उनके साथ खड़ा है अशोक स्तंभ की तरह संविधान, पढ़ो, जानो और वैधानिक तरीकों से छीन ...
अंतिम संस्कार
कविता

अंतिम संस्कार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** नाम बदलिये अपने महत्वपूर्ण संस्कारों के साहबानों, सिर्फ मुझे पता है आपके संस्कारों के नाम पर अब तक कितना लुटा चुका हूं, अपनी जमीन भी गंवा चुका हूं, मृत्यु पूर्व इलाज कराना मेरा फर्ज़ था, मृतक के दिए जीवन का चुकाना कर्ज़ था, मृत्यु के दिन, जोर देकर सभी की उपस्थिति में आपने कहा था ये अंतिम संस्कार जरूरी है, किया मैंने अंतिम संस्कार, जिसके लिए कर दिया था और भी जरूरी कार्यों को दरकिनार, विधान कह करवा सम्पूर्ण श्रृंगार, कहा कर लो आखिरी दीदार, मिट्टी कार्य के बाद तीसरे और दसवें दिन फिर करने पड़े थे कुछ संस्कार, जिसे आपने नाम दिया है मृत्युभोज, अब तक हैरान हूं ये है किसकी खोज, गांव, परिवार, रिश्ते नाते सबको खिलाया, घर के अंतिम दाने को भी मिलाया, बड़ी मुश्किल से कुछ महीनों में जिंदगी को पटरी पर ला ...
गिद्ध भोज
कविता

गिद्ध भोज

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गिद्ध बड़े मजे से दावत उड़ाते हैं, बिना मेहनत से मिला खाते हैं, आज भी गिद्धों की बैठक हो रही है, बैठक भी वहीं जहां मिल गया गोश्त, आज झगड़ा भी नहीं सभी हैं दोस्त, आज तो बस जाम और साकी है, ऐसा खाये कि केवल हड्डी बाकी है, सबने देखा आज फिर कोई मरा है, हमारे लिए मैदान हरा ही हरा है, मगर ये क्या? इस मरने वाले को तो चार लोग कंधे पर उठाए हैं, आगे व पीछे भीड़ लगाए हैं, गिद्ध निराश हो गए, कई तो उदास हो गए, तब वृद्ध गिद्ध ने बोला, भाइयों इसका मांस हम नहीं खा सकते, क्योंकि ये इंसान है, ये अपने पीछे होने वाले नोचपने से अंजान है, इसे तो अभी जलाएंगे या दफ़नायेंगे, फिर कुछ दिनों के लिए ये सब गिद्ध बन जाएंगे, अब ये मरने वाले का शरीर नहीं नोचेंगे, बल्कि उनके परिवार वालों को नोचेंगे, हम तो वातावरण सा...
मानवता
कविता

मानवता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक संपूर्ण मानवीय गुण है मानवता, जिसमें भरा होता है, सौहार्द, बंधुत्व, समता और समानता, इसमें समाहित रहता है सद्भाव, प्रेम, सदाचारिता और सद्चरित्र, यहीं भाव होता है मानव में पवित्र, सुख समृद्धि एवं शांति से जीवन हो परिपूर्ण, मानवता के लिए ये विचार महत्वपूर्ण, इसमें मानवीय जीवन निरर्थक और उद्देश्यहीन नहीं, जो है सर्वथा उपयुक्त व सही, लोकमंगल की भावना तथा उत्कृष्ट विचार, ये सब मानवता के परिवार, भौतिकता से ऊपर है आदर्शों का स्थान, सिर्फ अपने सुख की चाह नहीं छुपा इसमें सबका मान सम्मान। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
हां, हूं नशे में …
कविता

हां, हूं नशे में …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उस नशे का कोई मोल नहीं जो किसी और दुनिया की सैर न कराए, दूसरी दुनिया का एक एक बंदा अपनी बात लेकर न टकराए, मैंने भी किया है नशा जिस नशे में मैं चूर रहता हूं, जिसका लिए हरदम सुरूर रहता हूं, इस नशे के कारण मैंने एक और बहुत बड़ी दुनिया जाना, जहां बना लिया अपना ठिकाना, वो दुनिया है बेबस मजबूर लोगों का, पाई पाई के लिए कशमकश करते भूखे,प्यासे मजदूर लोगों का, जिन्हें नहीं पता अपना हक़, लिए घूम रहे हैं माथे पर मिथक, खा रहा है कोई जिनके हिस्से की रोटी, जिन्हें पड़ रहा बार बार सीना लंगोटी, उन्हें खबर ही नहीं बहुत लोग खड़े हैं चोरी करने किसी और की टोंटी, हां है मुझे लोगों को जागरूक करना, क्योंकि अभी भी है मुझमें नशा हावी, साहू-फुलेवाद का, अम्बेडकरवाद का, पेरियारवाद का, संविधानवाद का, और यहीं नशा मुझे सैर क...
आस्तीन के सांप
कविता

आस्तीन के सांप

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हमारे देश में वैसे तो हर तरह के सांप पाये जाते हैं, सामने आ जाये तो डर से मारे जाते हैं या भगाये जाते हैं, सांप तेजी से डसते हैं, इसलिए लोग इससे बचते हैं, पर दुनिया का सबसे खतरनाक सांप आस्तीन के सांप होते हैं, इससे रूबरू होने से कोई नहीं बचते हैं, ये हर पल आपके साथ रहेंगे, साथ सुख दुख सहेंगे, मगर अपना असली रंग ये तब दिखाता है, जब कोई खास मौका आता है, ये किसी को भी डस सकता है, डस कर ये भागता नहीं बल्कि सबको स्पष्ट नजर आता है, तब आप झुंझलाने के सिवा कुछ भी नहीं कर सकते, इसका गर्दन या पूंछ कुछ भी नहीं धर सकते, वैसे तो इनसे बचकर रहना चाहिए पर बच नहीं पाएंगे, आप संगठन वाले हों, मिशन वाले हों इनसे बिल्कुल बच नहीं पाएंगे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ...
सूत्र
कविता

सूत्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खबर बनाना और बेचना खबरचियों और चैनलों का शानदार और कमाऊ धंधा है, इस धंधे में प्रॉफिट बहुत है धंधा बिल्कुल नहीं मंदा है, पहले की बात और थी पर आज खबरें बनाये जाते हैं, झूठ को सच का जामा पहनाये जाते हैं, पैसे देकर खबरें बनवाये जाते हैं, वक़्त आने पर उसे भुनाये जाते हैं, तब पत्रकार बन जाते हैं पत्तलकार, पत्रकारिता बन जाता है व्यापार, इनके सूत्र होते हैं मजबूत, जिसका होता नहीं वास्तविक वजूद, सूत्रों का नाम ले दिखा जाते हैं चरित्र, एक ही थैली के चट्टे बट्टे होते हैं सारे मित्र, कभी कभी सूत्र होते हैं विश्वनीय, असल में जो होते हैं निंदनीय, ये खुद को कहते हैं लोकतंत्र का चौथा खंभा, जिसे ये अपने कर्मों से साबित कर कमाने लग जाते हैं हरे रंग की अम्मा, अब बताओ सूत्र फर्जी खबरों का आधार नहीं हो सकता, सूत्र...
हां हूं मैं मूर्ख
कविता

हां हूं मैं मूर्ख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां हूं मैं मूर्ख, नहीं होता गुस्से में मेरा मुंह सूर्ख, बचपन से लोग कहते रहे हैं और आज भी कह रहे हैं, लगभग सबने ये घोषित किया है, घर से लेकर बाहर वालों तक ने ये वास्तविक शब्द मुझे दिया है, सच कहने की क्षमता शायद मूर्खों में ही होती है, सच्चाई के पीछे भागना और साफ हृदय का होना ही अहमकता की निशानी है, मां,भाई,बहन और पड़ोसी सभी इस बात पर एक राय हैं, समाज के लोगों ने भी माना, सामाजिक चिंतन करते देख यार दोस्तों ने भी पक्का जाना, कुरीतियों,पाखंडों,अंधविश्वास, अतिवादिता का विरोध, समझदार व्यक्ति कर ही नहीं सकता, समयानुसार जल रहे आग में अपना पांव धर ही नहीं सकता, कभी कभी तो लगता है कि मेरी बीबी बच्चे भी मेरी इस महानता को दिल की गहराई से स्वीकारते होंगे, अब तो मुझे भी लगता है कि मैं सचमुच ही मूर्ख ब...
झूठ
हास्य

झूठ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इस जहां का एकमात्र शाश्वत सत्य है झूठ, जी हां झूठ, जिसे साबित करने के लिए न पत्ते बचते हैं, न डाली बचती है और न ठूंठ, गपोड़ काल से हंसोड़ काल तक, कपोल काल से ढपोर काल तक, सर्वत्र रहा है झूठ, झूठ बोलता है आस्तिक भी, बोलता है नास्तिक भी, और बोलता है वास्तविक भी, इस पर किसी की मिल्कियत नहीं है, जो है जैसा है सब यहीं है, वैसे ये सभी को बोलने चाहिए, मुंह सबको खोलने चाहिए, एक दुखिया भी, और देश का मुखिया भी, सब झूठ बोलने के लिए स्वतंत्र है, बोलेंगे भई भले ही देश में गणतंत्र है, क्या मंत्री क्या संतरी, क्या मौनी क्या जंतरी, झूठ सबका है, जिस पर यकीन करने वाला अंधभक्त, मध्यम व गरीब तबका है, बोलो बोलो खुलकर बोलो, देश में बोलो, परदेश में, करो दिन की शुरुआत या रात्रि का खात्मा, बस झूठ में ही बसा लो खु...
आजादी के दीवाने
कविता

आजादी के दीवाने

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी का ये पावन क्षण, तश्तरियों में सज नहीं आयी है, रणबांकुरे रहे और भी, सबने मिलजुल लड़ी लड़ाई है। बांके चमार, मातादीन भंगी, ये भी आजादी के दीवाने थे, नाक में दम कर रखा फिरंगियों के,ऐसे ये परवाने थे। सिद्धू संथाल और गोची मांझी,युद्ध कला में थे निपुण, ताड़ पेड़ पर चढ़ तीर चलाये, अंग्रेजों ने भी माना गुण। नाहर खां और उदईया, गोरों के थे कट्टर विरोधी, फांसी पर चढ़ गया उदईया, धूल थी माटी की सोंधी। चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर को, इतिहासकारों ने भूला दिया, हुए कुर्बान देश की आन में, गोली से जिन्हें मार उड़ा दिया। झलकारी बाई के रण कौशल ने, अंग्रेजों को हैरान किया, हमशक्ल लक्ष्मी की थी वीरांगना, नहीं कोई गुणगान किया। उदादेवी पासी चिनहट युद्ध की, बलिदानी नारी योद्धा थी, छत्तीस गोरों को गोली से भूना, आजादी ...
बोली
आंचलिक बोली, कविता

बोली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी बोली झिनकर भरोसा के सबो बोलहि गुरतुर बोली, कोनो कस्सा बोलहि, कोनो गुरतुर बोलहि, कोनो जहर मौहरा कस बोलहि, त कोनो नुनछुर बोलहि, पढ़हे लिखे मनखे ले मत पालव उम्मीद, के गाबेच करहि मीठ-मीठ गीत, पढ़ेच होय ले का होही, जात के गरभ म अतका घमंड हे जागतेच रइही कभू नई सोही, एक ठीन बेरा रहिस रिस्ता नता अनुसार सबो मीठ बोलय, मीत मितान मन तो गोठियाय के पहिली मुंहे म सक्कर ल घोलय, फेर आज सब नंदावत हे, गियां, महापरसाद ल छोड़ संगी दाई, ददा, भाई तक ल भुलावत हें, कहां गइस मया अउ कहां गइस दया, आज सबो हे सुवारथ खातिर सिरिफ बासी खया, सत ल बताय बेरा चिचियाथें, अउ मीठ बोली म चेता के धमकाथें, मोला तो कोनो नई दिखत हें बिन सुवारथ के मीठ बोलवा, बोली के दोस नई हे आज सबो एके रद्दा म रेंगत हें ब्यवह...
हां सब कुछ मेरा है पर
कविता

हां सब कुछ मेरा है पर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सूरज मेरा है, चांद मेरी है, हवा मेरा है, कुदरती दवा मेरा है, ये फूल, पवन पुरवाइयां मेरी है, मेहनत मेरे हैं, पर जमीन उनका है, हर नाजनीन उनका है, सर्वत्र घूम रहे हैं जहरीले सर्प और बीन उनका है, व्यवहार मेरा है, संस्कार मेरा है, सारे पाखंडों पर लूट जाने का अधिकार मेरा है, पर सारे नियम उनके हैं, जिनकी नजरों में हम तिनके हैं, भले बाजुओं में दम है, हमारे सीनों में गम है, उनके लिए लफंगे हम हैं, कीड़े मकोड़े, भिनभिनाती कीट पतंगे हम हैं, पर चिराग उनका है, झपट्टे मारता हर बाज उनका है, जंगल पहाड़ हमारे हैं, सद्व्यवहार हमारे हैं, नैतिक मूल्य, व्यवहार हमारे हैं, पर व्यवस्था में बड़ा आकार उनका है, तन हमारे हैं, मन हमारे हैं, जन हमारे हैं, खोट हमारा है, वोट हमारा है, पर सम्पूर्ण सत्ता उनका है...
वो दिन कब आएगा
कविता

वो दिन कब आएगा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां मानता हूं कि दलित आदिवासियों के पास समस्याएं हैं, पर उनके पास अपनी परंपराएं हैं, उनके मन में भी सवाल है, यदि दाग दे तो बवाल है, व्यवस्था ऊपर आरोप है, सत्ता की ओर से प्रत्यारोप है, अपने पुरखे रूपी भगवान से उम्मीद है, अपने धरोहरों से अटूट प्रीत है, कुछ अतार्किकता है, दिलों में मार्मिकता है, जातियों में खंड खंड है, कहीं कहीं थोड़े बहुत पाखंड है, प्रशासनिक ज्यादिता है, अपनी रूढ़िवादिता है, यहां तक वोट देने का अधिकार है, पर कुछ दलालों के कारण बन जाता एकदिनी व्यापार है, केकड़ावृत्ति वाला समाज है, खंडित जिनका हर साज है, पर अफसोस मानवीयता और अमानवीयता में से चयन करने में पीछे रह जाते हैं, समाज के गोद में बैठे दलालों के कारण हरदम, हरपल धोखा खाते हैं, शिक्षा का सही उपयोग क्यों नहीं कर पाते...
काखर पाछु म जाना हे
आंचलिक बोली, कविता

काखर पाछु म जाना हे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दु माडल हे देस के आघु जेला चाहव चुन ल जी, का करम कुकरम हे एखर भीतरी आवव थोरकुन गुन ल जी, गोड़ गिरव अउ माथा रगड़व एक माडल ह कहिथे जी, जनमानस ल भरमाये खातिर आस्था के धार बहिथे जी, जात पात बरिन ल मान के खुदे नीच कहलावव जी, बइठान्गुर के बात ल मानव पेट ओखर सहलावव जी, जाति धरम के पाछु म आंखी मुंदा जावव जी, हाथी कस ताकत ल अपन छिन छिन म भुला जावव जी, एक बरन ह राजा रहि एक बरन ह रद्दा बताही जी, एक बरन ह लुटही खसोटही बाकी धार बोहाही जी, हजारों बरस के पाखंड ह जोर से फेर बोमियाही जी, पुरखा हमर रोये रहिन हे जइसे वोही दिन ह लउट के आही जी, अब बात करन दूसर माडल के ओमा का का होही जी, कोन उड़ही अद्धर अकास म कोन धरती म सुत रोही जी, संविधान ह रक्छा करही सबला सबल बनाही जी, भाई बरोबर सब मिल जुल रहीं समता के फुल ...
नशा मुक्त हो जीवन सबका
कविता

नशा मुक्त हो जीवन सबका

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दिखावे का युग आज है, बनावट ओढ़े सर पे ताज है, राजस्व की फिकर सत्ता को मय मदिरा घर-घर में आज है, लगा हुआ है ध्यान ये सबका, झूम रहा हर वंचित तबका, खोज रहा हर कोई कृपा ये रब का, तन मन धन बर्बाद है इससे, नहीं आता बाहर कोई इस सनक से, हर कोई दुखी हैं नशे की धमक से, यारों इस नशे को अब तो छोड़ो, कीमत चुकाये हैं नशे की सबब का, नशा मुक्त हो जीवन सबका, अब बात करें उस नशे की जो जीवन में बहुत जरुरी है, करलो समाजोत्थान का नशा, मिशन के गुणगान का नशा, जागृति अभियान का नशा, हर जीवन के सम्मान का नशा, मत भूलो इस नशे से भीमराव, फुले, पेरियार भी झूमे थे, जनजागरण के इस नशे के लिए बुद्ध, कबीर, गाडगे भी घर घर घूमे थे, तो छोड़ो नशा मद्यपान का, कुछ तो सोचो अपने सम्मान का। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी :...
लफंगे यार
कविता

लफंगे यार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो लफंगे यार, जिनसे मिला मुझे बेइंतहां प्यार, बचपन में साथ खिलाया, जिंदगी में कैसे चलना है बताया, भरोसा तोड़े बिना मुझ पर भरोसा जताया, अपनों के प्रति कैसे सजग रहना है गाली खा-खा कर सिखाया, गाली मेरे अपनों ने ही दिया, यारी के लिए कड़वे शब्दों का घूंट पीया, मेरे बेमकसद जिंदगी में बदलाव लाया, समाज संग अम्बेडकरी मूवमेंट सीखाया, अपने महापुरुषों से मिलाया, हर इंसान में अच्छाई के साथ बुराई भी होता है, वो मेरा यार है और रहेगा फर्क नहीं पड़ता मुझे कि कोई उन्हें लफंगा कह रोता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
वो कौन?
कविता

वो कौन?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वह कौन है जो बोल सकता है पर बोलना नहीं चाहता, तौल सकता है पर तौलना नहीं चाहता, फिजा में प्यार घोल सकता है पर घोलना नहीं चाहता, अच्छे कार्यों के लिए डोल सकता है पर डोलना नहीं चाहता, ज्यादतियों पर खून खौल सकता है पर खौलना नहीं चाहता, जन्म से लेकर मृत्यु तक उलझाते पाखंडी जालों को काट सकता है, पर काटना नहीं चाहता, मोहब्बत के कुछ पल बांट सकता है पर बांटना नहीं चाहता, अच्छे-बुरों को छांट सकता है पर छांटना नहीं चाहता, बिगड़ते पीढ़ी को सुधारने के लिए डांट सकता है पर डांटना नहीं चाहता, दिलों की दूरी को पाट सकता है पर पाटना नहीं चाहता, वो मतलबपरस्त आज का इंसान है, जो बन चुका हैवान है, कपोल कल्पित गाथाओं का उन्हें भान है, पर वो मस्तिष्क के कचरे को ढोकर चलना चाहता है जिसे मिटाने के लिए हमेशा ...
धुन
कविता

धुन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम थिरक रहे हैं उनके भक्ति भरे धुनों पर, हम गर्व कर रहे हैं उनके बनाये नमूनों पर, तांडव, विरह, विवाह, मिलन सारे के सारे धुन उनके, सत्ता, ताकत, धमक है जिनके, हमारे धुन है बेबसी के, मदहोशी के, खामोशी के, लाचारी के, दुत्कारी के, चित्कारी के, मनुहारी के, बदहाली के, कंगाली के, सामाजिक दलाली के, पता नहीं कब रच पाएंगे धुन, समता के, ममता के, टूटती विषमता के, न्याय के, इंसाफ के, अत्याचारियों के पश्चाताप के, सम्मान के, संविधान के, ज्ञान के, विज्ञान के, देश के विधान के, एक-एक अनुच्छेद के संज्ञान के, तैयार करने ही होंगे एक ऐसा धुन जिससे थिरके सारा देश, भूला के सारा द्वेष व क्लेश, जिसमें से न आए धर्म व जातिय गंध की कर्कश आवाज, हमें रचना होगा, सृजना होगा ऐसा साज। परिचय :-...
जकड़न
कविता

जकड़न

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ बंधा है, पांव बंधा है और बंधा मस्तिष्क, चुन सकते नहीं प्रेयसी कैसे लड़ाएं इश्क़, हाथ काम तो कर रहे पर किसी और का, पांव थिरक जा रहा किसी के रोकने से, मस्तिष्क दूसरों के डाले डाटा अनुसार चल रहा है, दरअसल यह मानसिक गुलामी के जकड़न का असर है, समाज और समाज के लोगों से दूर रहने का असर है, जिस हथियार के दम पर नौकरी पाया, रुतबा पाया, उसे भूल धुर विरोधी को गले लगाया, सालों साल लोगों को बहकाया, तो समाज की चिंता अब क्यों? अब कोई तवज्जो दे तो क्यों? मनन जरूर कीजिए। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
सम्राट अशोक
कविता

सम्राट अशोक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिंदुसार के पुत्र आपने एकछत्र साम्राज्य बनाया था, देश तो देश विदेशों में भी अपना लोहा मनवाया था, देख लहू की धार, अपने मन को विचलित पाया था, मन की शांति पाने खातिर बुद्धत्व को अपनाया था, लाखों स्तूप और शिलालेख धम्म के लिए बनाया था, हिंसा त्यागा अहिंसा अपनाया, खुद का मन निर्मल बनाया, आपने ही अथक प्रयत्न कर बुद्ध राह सहेजा था, पुत्र महेंद्र पुत्री संघमित्रा को समुद्र पार तभी तो भेजा था, शिक्षा लेने दुनियाभर से हर वर्ष हजारों आते थे, शिक्षा के संग शासन सुमता की बातें लेकर जाते थे, अशोक चक्र और चार शेर चिन्ह को देश ने यूं ही नहीं अपनाया है, विदेशियों ने अपने ग्रंथों में महान अशोक के निर्भीक शासनकाल का गुण गाया है, लड़ना नहीं है हमको अब तो मिलकर एक हो जाना है, अपना राज लाकर फिर से प्रियदर्शी का ...
सुख और दुख
कविता

सुख और दुख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अनुभव और ज्ञान मनुष्य के सुख दुख का कारण है, अब बताइए इसका क्या निवारण है, बंदर को कह दो हाथी, दुखी नहीं होगा उनका कोई साथी, हाथी को कह दो गधा, बिगड़ेगा नहीं चाल रहेगा सधा का सधा, शेर को कह दो सियार, नहीं बदलेगा वो खूंखार, खरगोश को कह दो चीता वो घास ही खायेगा, नहीं कोई खुशी मनाएगा, इन सारे जानवरों को बिल्कुल नहीं पता उनका नाम क्या है, पर इतना जरूर जानते हैं कि उनका काम क्या है, किसी को अपना नाम ज्ञात नहीं, नाम तो इंसानों की देन है, अपने अनुसार खेलता मानवी गेम है, ज्ञान और अनुभव के बिना वो अपनी दुनिया में खुश है, मगर सब कुछ जान कर मोह माया, स्वार्थ में डूबा आदमी नाखुश है, हर जीव जंतु अपने काम से जाने जाते हैं, केवल मनुष्य ही है जो नाम से जाने जाते हैं, तो मनुष्यों दुखी हो जाओ या सुख...
पानी
कविता

पानी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रे बाबा कैसी जिंदगानी है, पानी की भी अजब कहानी है, पानी से ही धोना नहाना, पानी से ही पीना खाना, नहीं करती कभी ओछी हरकत, पानी निःस्वार्थ देती है कुदरत, पर कुछ जातियों में जबरदस्त शक्तियां देखी जाती है जो अन्न को, जल को, यहां तक भगवान को भी अपवित्र कर देते हैं, कइयों की भावनाएं आहत कर उनमें मातम भर देते हैं, इनके आगे कोई नहीं ठहरता, पता नहीं कौन है इनमें शक्ति भरता, सुअर, कुत्ते, बैल जैसे जानवर भी किसी घाट, जलाशय को अपवित्र नहीं कर सकते, पर वाह रे अमानवीय नियम कुछ मानव पानी में अपना पांव नहीं धर सकते, मगर धन्य है वो महामानव, जिसने मनुवादियों के सामने पानी छूने से लेकर पीने तक का अधिकार दिलाया, लोगों को पानी पिलाया, रोते रहें वे जो रहते हैं हरदम रोते, लेकिन इतना जरूर जान लें पानी और खून कभी अ...
हां मैं बुरी हूं
कविता

हां मैं बुरी हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मैं बिल्कुल नहीं जीना चाहती तुम्हारी बनाई हुई खोखली परंपराओं के साथ, इंसां तो मैं भी हूं पर तुम्हारे लिए हूं नारी जात, धर्म के नाम पर, समाज के नाम पर, घर की इज्जत के नाम पर, थोप रखे हो गुलामी की दीवार, गाहे बगाहे होती रहती हूं दो चार, हमें घूंघट को कहते हो, खुद स्वच्छंद रहते हो, बुरखा सिर्फ मैं ही क्यों लगाऊं, बंधन में बांध खुद को क्यों सताऊं, घर की इज्जत का ठेका सिर्फ मेरा नहीं है, क्या घर में किसी और का बसेरा नहीं है, आ जाते हो पल पल देने घर के इज्जत की दुहाई, तुम्हारे बेतुके नियम मैंने तो नहीं बनाई, हां मान लो मुझे मैं बुरी हूं पर अब खुद की बॉस हूं, तुम्हारे द्वारा खड़ी की गई है जो गुलामी की दीवार अब उससे आजाद हूं, लंपट मर्द हो मुझमें ही बेहयाई खोजोगे, जब भी सोचोगे मेरे विरोध में सोचोगे, ...
आदर्श
कविता

आदर्श

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उनके लिए वो भद्दे परिपाटी जिसका आज चलन है, पर हम वंचितों का, बहुजनों का आदर्श बंदूक नहीं कलम है, तलवार से भी खतरनाक कलम को ही माना गया है, इसे ही सबसे शक्तिशाली जाना गया है, सत्ता को भी कलम गूंगी कर देती है, शक्तिहीनों में भी ताकत भर देती है, सदियों से चली आ रही व्यवस्था के हम घोर विरोधी हैं, हम बुद्धत्व के संबोधि हैं, भले ही हम हजारों सालों तक कागज कलम से दूर रहे, अपढ़ता का अभिशाप झेलने मजबूर रहे, उनकी बस्तियों से दूर रहे, उनके खंडित करते नियम हमारे लिए नासूर रहे, पर कलम की कसक हम दिलों में पाले थे, शिक्षा के लिए खुद को संभाले थे, तब अंग्रेज आये, वे उन्हें नहीं सुहाए, लेकिन हमें उन्होंने स्कूल की राह दिखाए, पढ़ाए, समता की बात सिखाये, हम शिक्षा का साथ ताउम्र नहीं छोड़ेंगे, कलम उठाएंगे...