बेशक मैं …
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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बेशक मैं अब दुश्मन की
श्रेणी में आता हूं।
पर जब भी मेरे अपनों
को जरूरत पड़ी
दिल से दुआएं दे जाता हूं,
हां होता रहता है अपनों के बीच
गिले शिकवे नाराजगियां,
मुसीबतों में खुद से
सबकी बलाएं ले जाता हूं,
महरूम हूं लाड़ प्यार दुलार से,
नाराज नहीं किसी के
गाली गलौज या लताड़ से,
झंझावतों से जूझते रहने का
नाम ही है जिंदगी,
पर किया हूं दिल से
हर रिश्ते की बंदगी,
पर मैं वो जालिम नहीं कि
बंधे बंधन की डोर पर
बिजली गिराता हूं,
बेशक मैं अब दुश्मन की
श्रेणी में आता हूं।
नहीं मेरे पास अकूत संपत्ति,
रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद,
रूठों को मनाने किसे करूं फरियाद,
चल रही है मेरे परिवार
की गाड़ी जैसे तैसे,
तूफानों से घिर बचा हूं कैसे,
मौत से पहले शायद
मना न सकूं रूठों को
पर अपने हिस्से का
फर्ज़ निभाता हूं,
बेशक ...