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Tag: राजेन्द्र लाहिरी

अच्छे नेता
कविता

अच्छे नेता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब तो नालायकों से भी काम चल जाता है, इसी बहाने लोगों का दिल बहल जाता है, राजनीति में सुचिता की बातें एक धोखा है, इन नेताओं ने नैतिक स्याही को सोंखा है, आज के लीडर की मशहूरियत जरूरी है, झूठ, गुंडागर्दी के बिना नेतागिरी अधूरी है, जीत पाने के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं, वक्त आने पर गर्दन में छुरी भी धर सकते हैं, मतदाताओं को अपनी ओर लाना जरूरी है, तभी तो उनकी भावनाएं भड़काना जरूरी है, नहीं रहा वो दौर जब आरोप पर पद छोड़ते थे, खुद और दल की छवि स्वच्छता से जोड़ते थे, लायक बेचारा विजय वोट नहीं ला पाता है, नाकारा नालायक विजय उड़ा ले जाता है, इन्हें कोसने का हमें कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि हमें खुद अच्छे लोग स्वीकार नहीं है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...
जीवन बचाव केंद्र
कविता

जीवन बचाव केंद्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी बचाने और देखभाल करने की ग्यारंटी देने वाले मशहूर चिकित्सकीय संस्थान के द्वारा जैसे ही स्पेशल वार्ड से जनरल वार्ड में मरीज की शिफ्टिंग हुई व्यवहार बदला बदला सा दिखाया जाने लगा, मरीज के परिजनों को इस बदले व्यवहार से झटका आने लगा, कहां रात व दिन भर मिटने को तैयार संस्थान के स्टॉफ वालों को अटेंडरों में बित्ते भर भर कांटे नजर आने लगे, महानुभव लोग गरियाने झुंझलाने लगे, छत्तीस घंटों से नींद से दूर मरीजों के रिश्तेदारों से चिकित्सालय को खतरा नजर आने लगे, इधर मरीज परेशान, उधर चौकीदार सुजान, पेशेंट की चिंता कि अब मुझे रात में कहीं जरूरत की जगह पकड़कर ले जायेगा कौन? पहरेदार का गुरूर कैसे रहे मौन? मरीज और उसके घरवाले सोच रहे कि कल तक गूगल में सकारात्मक फ़ीडबैक लिखाने वाले आज कौन सा ...
घबराहट क्यों …?
कविता

घबराहट क्यों …?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** माना कि हम दुनिया में जीने आए हैं, जिंदगी का हर रस पीने आए हैं, पर हम भूल क्यों जाते हैं, कि हर परीक्षा, हर तकलीफ, हमें मजबूत करने आते हैं, बिना संघर्ष का जीवन हम कैसे सम्पूर्ण मान लें, खुशियों को ही जीवन का हिस्सा क्यों जान लें, संघर्षों से लड़ना, पल पल भिड़ना, और फतह हासिल कर एक कदम आगे बढ़ना, यही तो हमारे जीवटता का प्रतीक है, मौत की ओर बढ़ते जीवन का हर कदम होता ही सटीक है, फिर जीवन के विभिन्न पायदानों से हम रह रह घबराएं क्यों, इसे अपनी मंजिल की सीढ़ी कैसे और किस कारण न बनाएं क्यों, पानी में उतर कर यदि वे घबराते, फिर कैसे वो गोताखोर कहलाते, अदम्य साहस और शक्ति ही हमें सफल बनाते हैं, तभी तो ये जज्बा हमें काफी आगे तक लेके जाते हैं, घबराहट सिर्फ ठिठकाता है, पर इरादे खत्म नह...
आपका उड़ेला जहर
कविता

आपका उड़ेला जहर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां भरा है जहर मेरे मन मस्तिष्क में, पर इसे उड़ेलने वाला, भरने वाला कौन है? वो आप हैं, आपकी मत्वाकांक्षाएँ है, आपके सत्ता प्राप्ति की ललक है, खुद आप दिखला चुके झलक हैं, आपकी बातों में आकर मेरा हितैषी पड़ोसी मुझे खटकता है, मेरा जमीर, मेरी इंसानियत पता नहीं कहां कहां भटकता है, कल तक थे हम भाई-भाई, तूने ही हमारी खुशियों में आग लगायी, आपके भड़काने से आपको लाभ हुआ जबरदस्त, पर मैं बुरी तरह हारा हुआ महसूस कर हो गया हूं पस्त, आज जान पाया कि एकमात्र सत्ता की है आपको भूख, मगर समता,बंधुत्व और मानवता वाली आपकी सारी तंत्रिकाएं गयी है सूख, प्रकृति आपको हुनर बांटे, कहीं आपका उड़ेला जहर आप ही को न काटे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
मंजिल तो…
कविता

मंजिल तो…

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं, इसे यहां जाना है, उसे वहां जाना है, दरअसल ये सब भ्रम है सबका अंतिम मंजिल एक ही ठिकाना है, हमने बुद्ध का देह खोया, कबीर का, रैदास का, ज्योति बा का, बाबा साहेब भीमराव का, मान्यवर कांशीराम जी का, देह किसी का नहीं बचा, पर इन सभी महापुरुषों के विचार,जी हां विचार जिंदा है, अमानवीय व पाखंडी व्यवस्थाएं इनके विचारों के आगे बुरी तरह शर्मिंदा है, कौन सोच सकता था कि भारत जैसे देश में एक रुग्ण विचार हावी हो सकता था, जो आपसी सौहाद्र को डुबो सकता था, जातिय उच्चलशृंखला इतना प्रभावी हो सकता था, जो मानवीय संवेदनाओं को तार तार कर डुबो सकता था, पर ऐसा हुआ, मानव ने मानवता को नहीं छुआ, परिणामतः जातिय घमंड नित परवान चढ़ता रहा, सहयोग की भावना उधड़ता रहा, हमने इन बात...
जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …
कविता

जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आप छोड़ दो साहब हमारी फिक्र करना, आपके फिक्र करने से हमें पड़ जाता है फिक्र करना, हमें पता है आप जिस तरह से हमारी चिंता करते हैं, तब तब हमारे लोग दुख तकलीफ और यातनाओं से पल पल गुजरते हैं, पता नहीं हमारे बारे में आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक, बढ़ जाती है हमेशा हम पर जुल्म आप हो जाते हो जातिवादी व हिंसात्मक, हमारा कसूर क्या है? यहीं न कि हम आपके अतार्किक और अमानवीय व्यवस्था में निचले पायदान पर पहुंचा दिये गए हैं, लेकिन यह मत भूलिये आपके हर गलत कार्यों का हमारी हर पीढ़ी ने विरोध किया है, तुम्हारे हर मंसूबों पर चोट दिया है, भले ही ताकत पाने के लिए दिखना चाहते हो हमारा रहबर, ताकि ताकत का इस्तेमाल कर सको हमीं पर रह रह कर, ये भी पता है कि चंद टुकड़ों के लिए हमारे ही लोग समाज से ...
समर्पित चौथा स्तंभ
कविता

समर्पित चौथा स्तंभ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गोरों के शासनकाल में पत्रकार खूब लिखते बोलते थे, हुकूमत के अत्याचार से तनिक नहीं डोलते थे, खैर अंग्रेज गए अंग्रेजों का शासन गया, आ गया देश में स्वशासन नया, सत्ता के छोटी सी गलती के खिलाफ ये हुंकार ले चिल्लाते थे, इनकी जागरूकता देख सरकार व विपक्ष दोनों घबराते थे, समर्पित चौथा स्तंभ ये खुद को साबित करते थे, लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये नहीं किसी से डरते थे, समय बदला शासन बदला बदल गए पत्रकार, पक्षपात में इतना डूबे भूल चुका अपना अधिकार, सत्ता से सवाल पूछते मुंह सूख जाता है, प्रश्न दागने वालों को सत्ताई तलवा अब सुहाता है, सत्ता का डर इतना बैठा विपक्ष से सवाल दागता है, सूखी हड्डी के लिए श्वान मालिक की ओर ही ताकता है, जनता के मुद्दे मुद्दे नहीं उन्हें अब मीडिया वाले बहकाते हैं, रात दिन भौं ...
काश दिख जाये
कविता

काश दिख जाये

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि अपनी मौत कैसे देखूं, हां देखना है यार मुझे बनिस्पत इसके कि कोई मेरा अपना मुझे दिखाये, मुझे व्यवहार या चाल सिखाये, वैसे थोड़ा-थोड़ा जा रहा हूं उसी अनचाहे रास्तों की ओर जहां नहीं चाहता कोई स्वेच्छा से जाना, सभी चाहते हैं फर्ज निभाना, हर कर्ज़ चुकाना, लेकिन फंस जाता है भंवर में, जज्बातों के, हालातों के, जो करने की कोशिश करता है कि इसे कब और कैसे कमजोर करूं, इनके सिर पर कब पांव धरुं, दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो बुरे या आफत के वक्त में आपको सम्बल दे, हर रिश्ते से लेकर हर मित्र मंडली तक तैयार बैठे हैं शायद आपके मौत के इंतजार में, चाल,चरित्र,चेहरा मेरा स्थिर था है और रहेगा, अभी तक किसी को भी अपनी मौत देखने को नहीं मिला, काश दिख जाये, जब भी आये। ...
क्या नहीं चाहिए
कविता

क्या नहीं चाहिए

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जरा बता तो दो ऐ ताक़त क्या तुम्हें इस वतन में मजलूम नहीं चाहिए, गरीब लाचार नहीं चाहिए, यदि हां तो कुछ करते क्यों नहीं? तुम्हारे कारिंदे सुधरते क्यों नहीं? पॉवर सिर्फ पैसे, पद और कद बढ़ाने के लिए ही नहीं है, उनका जीवन स्तर सुधारने के लिए है जो इसके दायरे में रहते सही हैं, गरीबों, दलितों पर रौब जमाने के लिए नहीं है, कैलेंडर से पांच साल निकल जाते हैं, पर दिल का कालापन रह जाते हैं, बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह जाते हैं, सत्ता कुछ चंद गिरोहों का धंधा नहीं, संविधान के सफल क्रियान्वयन का है एक उचित जरिया, जहां चलना चाहिए एकमात्र नजरिया, क्या देश का संपूर्ण विकास संवैधानिक तरीके से संभव नहीं? पॉवर के लिए कुछ भी असंभव नहीं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत...
जरे आदमी
आंचलिक बोली, कविता

जरे आदमी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी) वइसे तो दूध के जरे आदमी ह दही घलो ल फूंक के पिथे, फेर कोनो धियान नइ देवय के गरीब शोसित आदमी ह का का सहि के जिनगी जींथे, वो तो गरीबी के आगी म रोज के रोज जरत रथे, उपर ले जात के अपमान कोनो ल कुछु नइ कहय फेर भितरे भीतर धधकत मरत रथे, कतका घिनक बेवस्था बनाय हें मनुस के घटिया रहबरदार मन, बिन काम बुता करे बने हे ऊंच अउ काम कर कर के मरत हे निच कहा जरोवत हे अपन तन, बेसरमी ल ओढ़ रात दिन जात पात के नाव म सतावत हें, जानवरपना भरे हे ओकर तन मन म रोज रोज छिन छिन जतावत हें, आदमी जरे तो हे फेर मरे नइ हे, का डर हे के पलटवार करे नइ हे, जे दिन एमन जुर मिल एक हो जाहि, सासन सत्ता अपन हाथ म लाय के बिचार नेक हो जाहि, जे दिन अदरमा इंखर फाट जाहि, ओही दिन अपन बिरूध बने सबो अमानवीय बेवस्था ल काट जाहि। ...
पढ़ ले संविधान को
कविता

पढ़ ले संविधान को

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** नीम करेले क्या जानेंगे बाबा जी की शान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, बाहरी बातों में आकर भूले उनके ज्ञान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, स्कूल के बाहर रहकर क्या तू पढ़ पाता रे, रो रो पाठशाला छोड़ घर को चला आता रे, याद कर झाड़ू पीछे गले थूकदान को, भूल जा पाखंड बांटे ऐसे विद्वान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, मुसीबतें सह सह कर भी बस्ता उसने उठाया था, जातिवादी ताने सुन-सुन आंसू खूब बहाया था, प्रचलित ढोंगों पर उसने उंगली प्रतिपल उठाया था, चमत्कार को नहीं मानकर तार्किक प्रश्न लाया था, अभावों में पढ़कर उसने कई डिग्री लाया था, भीमराव की नजर से आ देख ले जहान को, सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को, ढोंगियों की ढोंग के आगे नतमस्तक होना पड़ा, मुश्किलों से मिला हुआ अधिकार खोन...
ठौर नहीं होगा
कविता

ठौर नहीं होगा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** यलगार करने के लिए कोई वक्त मुक़र्रर नहीं होता, हर समय किया जा सकता है, वो दौर और था कि महिलाएं, बच्चे, दलित, आदिवासी, खामोश रह सब सहा करते थे, डर कहें या अमानवीय नियम ये हद से ज्यादा हद में रहा करते थे, पर आज का दौर और है, हर जगह इनका हक़ व ठौर है, ये हक़ हमें संविधान ने दिया है, जिनकी रक्षा का हमने प्रण लिया है, वो संविधान जो सबको सम मानता है, अधिकारों को छीनना अक्षम्य मानता है, एक स्त्री को घर तक सीमित क्यों रखना? वह किसी पुरूष से कम नहीं, उसके बाद भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी को दमित करना, किसी का हक़ मारना, जान कर जातिय दुर्व्यवहार उभारना, कुछ कुंठितों का शगल है, मगर वे मत भूलें कि ये सब यदि अपने पर उतर आए, तो मुंह छिपाने के लिए कहीं भी सुरक्षित ठौर नहीं होगा। ...
कलम का हत्यारा
कविता

कलम का हत्यारा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब इसे कहूं तुम्हारी हताशा या लहू से हाथ रंगने का जुनून, बड़ी आसानी से बोल रहा है कि मैंने कर डाला कलम का खून, ऐसा करके तूने की है वाहियात कोशिश मिटाने की बुद्ध के विचारों को, कबीर, रैदास के विचारों को, ज्योतिबा,सावित्री के सरोकारों को, चुनौती देते पेरियार के दहकते अंगारों को, बाबा साहब के बोये संस्कारों को, जागरूक करते कांशी के पंद्रह-पच्चासी वाले बहुजन विचारों को, पर भूलना मत कि कत्ले-कलम से फिर पैदा होंगे अनगिनत कलम, उस काल्पनिक रक्तबीज की तरह, तब तू पड़ा रहेगा ताउम्र गाली खाते अपनों से, खुद से, क्या तुम्हें अब भी उम्मीद है कि कलम फिर से लिखेगा वो काल्पनिक बहकावे जिसके चपेट में तू आ गया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्...
जाति की ख्याति
कविता

जाति की ख्याति

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जातियों के भीड़ में हर जगह नजर आ जाता है जाति, जिसके साये में रहकर ही लोग पाना चाहते हैं ख्याति, मुंह सुख गया हो और प्यास से तड़पने मरने की जब आ चुकी हो नौबत तब भी अपने से नीची माने जाने वाले लोगों के हाथों से पानी पीने से इंकार करते हुए देखा हूं लोगों को, काश ऐसे लोग मर ही जाते, क्यों इंसान को इंसान नहीं सुहाते, एक तरीके से पैदा होते, एक जैसे शरीर रखते, एक जैसे जिंदगी का स्वाद चखते, हर लम्हा एक सा गुजारते, पर एक दूजे को देख जाति की नजरों से निहारते, चीथड़ों में पड़ा व्यक्ति भी केवल जाति के कारण कुलीन सा दिखने वाले को देखता है हिराक़त की नजरों से, मुस्कान छोड़ गाली छोड़ते हैं अधरों से, ये किस तरह की समूह के लोग हैं, वो जाति ही एकमात्र आधार है नित अंगूठा काटने के लिए, इसने अब तक नफरत ...
समता और न्याय
कविता

समता और न्याय

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कहां जाएं, कैसे पायें? संविधान के युग में भी नहीं मिल रहा समता और न्याय, आजादी के इतने वर्षों बाद भी कुछ लोगों की मानसिकता आज भी सालों पुरानी वाली है, जो कुचक्रों, कुंठाओं से भरी है बिल्कुल नहीं खाली है, जहां समता दिखने चाहिए वहां ये समरसता की बात करते हैं, मुंह से इंसाफ की राग गाएंगे और दिलों में मसल डालने की चेष्ठा कुख्यात रखते हैं, जब सम की भावना ही नहीं तब न्याय मिलना असंभव है, पर तथाकथित उच्च व रईसों के लिए न्यायालय खुलना रात में भी संभव है, पर दमितों, दलितों के लिए न्याय कहां हैं? उनके मामले पीढ़ियों तक खींचाता है, मरने के बाद न्याय की अंतिम तारीख आता है, जहां विषमता है वहां न्याय की उम्मीद किससे व कैसे? जाति-पाति, ऊंच-नीच से इंसाफ तय होता है, समता के बिना न्याय बिकने लग...
जिंदगी कब बेमानी हो जाये
कविता

जिंदगी कब बेमानी हो जाये

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उम्मीद पाल हर कोई चलता है कि जिंदगी सुहानी हो जाये, कब किसे क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। मत कर उम्मीद कि नफ़रत पालने वाले दिल से गले लगाये, क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। उलझा हुआ है कौन कब कितनी झंझावतों में, कहां पिस रह जाये किस किस की अदावतों में, संबल की आस वाले जब लूटने लगे भरम, सितम भगाने वाले खुद बन जाये सितम, मौत ही पक्का जब निशानी हो जाये, क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। फरेब संग रहकर जब जटिल जाल बुने, दिल का हरा आंगन लगने लगे जब सुने, अनुराग और प्रेम जब लगाने लगे चुने, अहसास नहीं होता अपने अपनों को भुने, अपनों से अपनेपन का विश्वास जब खो जाये, क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोष...
वो अदना सा आदमी
कविता

वो अदना सा आदमी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हमने देखे हैं कि बड़े-बड़े तुर्रमखां लोग भी जेब से नहीं निकालते एक भी दमड़ी, जब कोई भूखा, कोई जरूरतमंद, कोई असहाय, आ जाए गुहार करने कुछ मदद की, तब दिहाड़ी करने वाले की जेब से निकलता है मदद को चंद सिक्के, जो वो बचाकर रखा रहता है अपनी मुश्किल पलों पर इस्तेमाल करने खातिर, उन्हें नहीं होता देने में कुछ मलाल, क्योंकि वो भी गुजरा रहता है किसी समय इस तरह के नाजुक पलों से, तब जाग उठता है उसके अंदर की इंसानियत, वैसे भी पेट भरा हुआ भी गाहे बगाहे निकालते रहते हैं इनसे पैसे, कभी चंदे के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, तो कभी उत्सव के नाम पर, यहीं तो है वो अदना सा आदमी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित ...
बदल नहीं पा रहा हूं
कविता

बदल नहीं पा रहा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अछूत हूं साब, गंगाजल से भी नहाता हूं, नित्यप्रति प्रार्थना करने मंदिर भी जाता हूं, ये अलग बात है कि वहां लतियाया जाता हूं, वहां से घर आकर घरवालों को सुनी कथा सुनाता हूं, चमत्कारियों का हूनर बताता हूं, साल में कई बार कराता हूं पूजापाठ, ये परंपरा नहीं भूलता चाहे गरीबी रहे या ठाठ, पूण्य कमाने की चाहत रखता हूं, प्रवचनों का स्वाद चखता हूं, अपने पूर्वज का सर कटाने के बाद भी नित्य मंत्र जपता हूं, लोग खाने को मेरे घर में नहीं आते तो क्या हुआ मंदिर में भंडारे कराता हूं, ब्रह्मदेवों को जिमाता हूं, इतना सब कुछ करने के बाद भी पता नहीं क्यों अभी भी बना हुआ हूं अछूत, पता नहीं देवों को क्यों नहीं आ रही दया जस का तस ही हूं नहीं हो पा रहा सछूत, तो बताओ किसको दोष दूं? अपनी जात को? उनके खयालात को? ...
तो मत पूजो कन्या
कविता

तो मत पूजो कन्या

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम उस देश के बाशिंदे हैं जहां औरतों को देवी कहा जाता है, पर उन्हीं औरतों द्वारा इसी देश में सबसे ज्यादा अत्याचार सहा जाता है, घर में, परिवार में, समाज में, कार्यक्षेत्र में, हर जगह उनका शोषण किया जाता है, उनकी विश्वनीयता का बार-बार परीक्षण लिया जाता है, मनहूसियत का तमगा, हर बात पर ताना, साथ में दोगलापन इतना आराध्य मान गा रहे गाना, दहेज के नाम पर जहर, क्या गांव क्या शहर, सिर्फ कहर हो कहर, ऊपर से कन्या पूजन का ढोंग, छेड़छाड़, बलात्कार का दंश, क्षण क्षण सम्मान का विध्वंस, समाज किधर जा रहा, पुरूषत्व सोच तड़पा रहा, ये सब सहकर भी दे रही सुकून, मां के रूप में, पत्नि के रूप में, बेटी के रूप में, थेथरई लिए हुए हम इतने स्वार्थी क्यों? मूढ़ों कल्पना क्यों नहीं करते उनके बिना अपने होने का, गर यही है मं...
हम नेताओं पर छोड़ दो
कविता

हम नेताओं पर छोड़ दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पहले तो बुदबुदाया, फिर नेताजी जोर से चिल्लाया, क्या जमाना आ गया दुनिया बन रही बुरे कर्मों की दीवानी, बढ़ रही है देखो मनमानी, मन से मनमानी तोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। हर विभाग वाले कर रहे भ्रष्टाचार, काम वे जिससे है आम जनता को सरोकार, युवा बैठे हैं बेकार, आह्वान है नई पीढ़ी से भ्रष्टता की दिशा मोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। गरीबी ऐसी कि नारी देह बेच रही, ऊंचे पद वाले गरीब देश की खुफिया जानकारी खेंच रहे, कुछ देश ही बेच रहे, भाइयों वतन बचाने पर जोर दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। भारत के नेता किससे कमजोर है, हमारे मस्तिष्क का होता बहुत जोर है, भले ही हम नहीं सुधर सकते हैं, पर हम कुछ भी कर सकते हैं, हमारा समर्थन चहुंओर पुरजोर हो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। परिचय :...
लहर का अनुमान
कविता

लहर का अनुमान

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बहुजनों की भीड़ देखकर कभी भी न करें लहर का अनुमान, बोलने से पहले दस बार सोच लो वर्ना हो जाओगे बदनाम, भीड़ का इस्तेमाल कैसे करें इनको पता ही नहीं, खैर इसमें इनकी कोई खता नहीं, ये बहकावे में सबसे ज्यादा आते हैं, अपने शक्ति का खुद मजाक उड़ाते हैं, बाद में जिनका समर्थन किये उनका पैर पकड़ गिड़गिड़ाते हैं, वक्त रहते समझ नहीं पाते हैं, सारी जिंदगी बेईमानी करने वाला निर्णायक दिन ईमानदार बनता है, रिश्वत के बदले दुश्मन को चुनता है, एक विचारधारा के होते नहीं है, खास सपने संजोते नहीं है, विरोधी इन्हें भला लगता है, अपना तो मनचला लगता है, भूल जाता है प्रतिद्वंद्वी के विचार, यादों से निकल जाता है भूतकाल के शोषण और अत्याचार, तो भीड़ देख न करें गुणगान, धराशायी हो सकता है लहर का अनुमान। परिचय :-  राजे...
गर आप न होते
कविता

गर आप न होते

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आप न होते तो हम होते जरूर, मगर क्या कर पाते किसी भी बात पर गुरूर, जिंदा लाशों की ढेर में एक लाश हम भी होते, जिंदगी गुजर जाता अपने होने पर रोते-रोते, जीवित होने पर घुटन होता, खाने को सिर्फ जूठन होता, रूखे भोजन संग गाली भी खाता, शोषक को कहते भाग्य विधाता, सहना पड़ता दिन भर अपमान, नहीं मिल पाता कभी सम्मान, ना पढ़ पाते ना गढ़ पाते, अस्वच्छता संग ही सड़ जाते, बिना ठौर रह जाते रोते, गर आप न होते आप न होते, क्या पढ़ पाते क्या लिख पाते, चार अक्षर क्या हम सीख पाते, पाबंद होकर मनु विधान के सूट बूट में क्या दिख पाते, क्या होती तब अपनी इज्जत, सहते रहते कितने जिल्लत, नहीं कभी भी सर उठाते, उनसे कैसे हम नजर मिलाते, आप न होते गर मेरे मालिक संविधान हम कैसे पाते, समता और बंधुत्व नाम की माला हम कैसे पिरोते, ग...
बिखरे सपनें
कविता

बिखरे सपनें

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिखरते आये हैं सपनें सदा से, दुश्मन मोहते आये हैं अपनी अलग अलग अदा से, एक बार फिर बिखर गया तो कोई बात नहीं, फिर से मिला सौगात नहीं, लेकिन हम आंसू बहाने वालों में से नहीं, हौसले की महल खड़ी करेंगे यहीं, संघर्ष करेंगे फिर से, हर बार उठेंगे गिर गिर के, शत्रु का काम ही है तोड़ना, अपनी सहूलियत अनुसार हमारी दिशाएं मोड़ना, मगर हमने कभी हार मानी न मानेंगे, लक्ष्य भेदने सारा संसार छानेंगे, तब होंगे हमारे पास अत्यधिक अनुभव, जो तय करेंगे दिशा और दशा करने को करलव, देखते आये हैं और देखते रहेंगे सपनें बार बार, कर कर खुद में सुधार, हम थे ही नहीं कभी तंगदिल, एक दिन मिल ही जायेगी मंजिल। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
श्रेय का खेल
कविता

श्रेय का खेल

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** श्रेय लेने देने का खेल जारी रहता है अनवरत, मरते को जीवन देता डॉक्टर तब चौक जाते हैं यकबयक, कि मरीज ठीक होकर धन्यवाद करता है उन मिथकीय पात्रों का जो किसी ने देखा नहीं, कण-कण में है कह तो देंगे पर किसी से कभी मिला नहीं, विज्ञान लगा है रात-दिन मनमाफिक जिंदगी जीने का मौका देने के लिए, पर एन वक्त आ जाता है जादू श्रेय लेने के लिए, ये तथाकथित कभी चुनावों में किसी को क्यों नहीं जिताते, प्रकट हो किसी को प्रतिनिधि क्यों नहीं बनाते, चुनने का अधिकार है सिर्फ और सिर्फ मतदाता को, चुनते नहीं देखा कभी खुदा या विधाता को, श्रेय का जो असली हक़दार है उन्हें दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे सारी जिंदगी जूझते हैं लोगों को खुशनुमा जीवन देने के लिए, मगर उनके पास समय नहीं होता आगे आ श्रेय लेने के लिए। प...
घर को घर ही बनाएं
कविता

घर को घर ही बनाएं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** स्वर्ग बनाने से अच्छा है घर को घर ही बनाएं, मिथ्या स्वर्ग-नरक में न उलझाएं, सिर्फ बेटी में ही दोष न देखें, उनकी भावनाओं को भी सरेखें, घर को मकान ही रहने देने का जिम्मेदार नशेड़ी बेटा भी हो सकता है, लालची भाई भी सुख शांति का धनिया बो सकता है, बहू से कुढ़ती-नफरत करती सास भी घर का माहौल बिगाड़ सकती है, उच्छलशृंख ननदें संबंध उखाड़ सकती है, संयुक्त परिवार की बेटी भी बहू बन एकल परिवार खोजती है, एकता मधुरता को तह तक नोचती है, घर सबसे मिलकर बनता है, तब मुखिया का सीना तनता है, दहेज शब्द घर का नहीं धनलोलुपों के स्वार्थ का नाम है, ये अकड़ दिखा भीख मांगने का काम है, घर में तनाव लेकर न जाएं, सभी अपनी जिम्मेदारी उठाएं, मिलजुलकर समस्याओं का समाधान खोज घर को घर ही बनाएं। परिचय :-...