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Tag: राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’

धरती का रुदन
आलेख

धरती का रुदन

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** प्रकृति का इतना अधिक दोहन हो गया कि उसकी चीत्कार आज पूरे विश्व में रह रह कर हर पल हर क्षण हमारे कानों में गूंज हमें हमारी भयंकर भूल का एहसास करा रही है। मौत की सिहरन जिन्दगी का अर्थ समझा रही है। गांव, शहर, जंगल सब के सब पेड़ विहीन होते जा रहे हैं। धरती कराह रही है,ऐसा क्या हो गया, क्यों हो गया, कैसे हो गया, हर कोई हतप्रभ हैरान है, उसे रास्ता ही नहीं सूझ रहा है- "घर गुलज़ार, सूने शहर, बस्ती बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई, आज फिर जिन्दगी महँगी और दौलत सस्ती हो गई।" बस कुछ ऐसा ही सोचता मैं घर के पीछे बने पार्क के लॉन में नरम नरम घास पर लेट गया, क्या करूँ, सोच भी इन दिनों ज़वाब नहीं देती जैसे ही करवट ली तभी धरती के अन्दर से रुदन की आवाज़ सुन चौंक उठा, मैनें कानों को धरती से लगाया, मुझे लगा कि जैसे वो कह रही है आज मैं बहुत दुःखी ...
प्यार के उत्सव की नई नूतन आशा
कविता

प्यार के उत्सव की नई नूतन आशा

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** दुआयें देने के लिए, उठती थीं, सदा ही जिनकी हथेलियाँ, आज वही नम हो, भरे दिल से, अब दे रहे हैं श्रद्धांजलियां, आज कलम लिखने को उठती ही नहीं, कैसे करू आगाज़ सच लिखूं, कैसा भी, सच में, सत्ता वाले हो जाएंगे नाराज़। बरसों से बसी बस्ती की, यूँ ये हालत, अब देखी नहीं जाती, अनगिनत जलती लाशों के बीच में, मैं कितना करूँ विलाप, उनको कहो, आकर देखें, क्या इसीलिये सम्भाली थी बागडोर, नारों से भले महका लो बगिया, आओगे फिर भी हमारी ओर। तुम खास, मैं आम, अब आम जनता की क्या बची है औकात, चैन की साँस कहाँ, अब तो साँस बचाने में ही साँसे फूल रहीं, तुम कहते सब ठीक, ये तो हुई वही बात, कि राजा ने कहा रात, मंत्री संतरी भी कह उठे रात, पर थी तो ये, सुबह-सुबह की बात। दर्द में डूबे दिल को दे दिलासा, समझनी है नम आंखों की भाषा, सब सहम कर बैठ जायेंगे, कौन रखेगा म...
पिता का मर्म और कर्म
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पिता का मर्म और कर्म

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                              माँ की ममता की चर्चा तो खूब होती है,पर पिता के मर्म को, उसके कर्म को, उस की अनुभूति को वही समझ सकता है जिसने उसके संघर्षमय जीवन के एहसास को महसूसा हो। ऐसे भाग्यशाली पिता बहुत कम हैं, जिनके बच्चे ऐसे हैं अधिकतर तो जीवन में थोड़ा सा मुकाम पाते ही कह देते हैं, तुमने हमारे लिये किया ही क्या है, नई पीढ़ी की सोच पूरी तरह से आत्मकेंद्रित हो गई है। पिता सूरज की तरह गर्म हैं पर न हों तो अंधेरा ही है। पिता खुशियों का इंतज़ार हैं, पिता से ही हजारों सपने हैं, बाजार के हर खिलौने अपने हैं।पिता से परिवार हैं, उसी से ही माँ को मिला माँ कहने का अधिकार है। बिन्दी, सुहाग, ममता का आधार है। पिता के फैसले भले ही कड़े हों, पर हम उसी से ही खड़े होते हैं। बच्चे यह बड़े हो कर यह भूल जाते हैं, माँ से जीवन का सार ह...
खुशी की चाहत
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खुशी की चाहत

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                                हर समय खुश रहना कौन नहीं चाहता! खुशी हमारी चाहत है! खुशी हमारी चाहना है पर सिर्फ चाहने से क्या होता है? खुशी को अपना नैसर्गिक स्वभाव बनाना होगा, यह कहना जितना आसान है, इस पर अमल करना उतना ही अधिक मुश्किल! जब बरसों से सँजोई अपेक्षायें कुछ ही समय में टूट जाये, अपनों से ही उपेक्षा, तिरस्कार मिले, बहुत मेहनत करने के बाद अपेक्षित सफलता न मिले या किसी स्वजन का साथ एकाएक छूट जाये तो ख़ुशी बरकरार रखने के लिये स्वयँ को अन्दर से मज़बूत कर इसे प्रभु की मर्ज़ी स्वीकार कर अपने अन्दर की खिलखिलाहट को फिर से बाहर लाना होगा। खुशी तो हमारे मन का एहसास है, भावनाओं की अभिव्यक्ति है। अपने ही सामर्थ्य के प्रति भ्रामक धारणा ववास्तविकता को स्वीकार न करने की प्रवर्ति खुशी की राह में सबसे बड़ी बाधा है कोई कभी ...
राजनीति की गँगा-कितनी मैली और विषैली
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राजनीति की गँगा-कितनी मैली और विषैली

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                                 आखिर राजनीति में ये सब क्या हो रहा है, राजनीति की गंगा कितनी मैली और विषैली हो गई है। अपने को दूसरों से अलग बताने वाली भाजपा अब अलग नहीं रही, सब दल सत्ता को किसी भी तरह हथियाने के चक्कर में गहरे दलदल का रूप ले चुके हैं, बाहर कोई नहीं निकल पा रहा, हर बार नैतिकता कोसों दूर खड़ी आँसू बहाती रह जाती है। भाजपा व उसके साथी दल जैसे तैसे बिहार में सत्ता में आ तो गए, बड़े सोच विचार के बाद बने १४ सदस्यी मंत्री मंडल में ९ पर तो आपराधिक मामले दर्ज मिले, बेचारे, शिक्षा मंत्री मेवालाल जी सत्ता का मेवा कुछ घँटे ही चख पाये, पुराने घोटाले जो उन्होंने कुलपति रहने के दौरान किये थे, को विपक्षी दलों के उजागर करने पर त्यागपत्र दे बाहर हो गए। देश की राजनीति में अपराधियों का बढ़ता वर्चस्व चिंता का विषय तो ह...
घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये
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घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                   किसी ने सच ही कहा है कि जिस घर मे बुजुर्ग सन्तुष्ट व प्रसन्नचित्त रहते हैं, वह घर धरती पर स्वर्ग के समान है, परन्तु आज आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में रिश्तों में उत्पन्न व्यवहारिकता व आपसी सामंजस्य व घटती सम्मान की भावना के कारण ऐसा स्वर्ग अब अपवाद का रूप लेता जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में अब बुजुर्गों को जीवन के अर्धशतक के नज़दीक आते आते सिर्फ अपने भविष्य के प्रति सचेत हो जाना चाहिये, कुछ नहीं पता हालात क्या मोड़ ले लें, स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत कर, स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए आशा व विश्वास से परिपूर्ण ऊर्जावान बनाये रखना होगा तभी तो बुढ़ापा खिलखिलाहट से भरा होगा, उसकी जगमगाहट अंदर तक आपको जाग्रत कर देगी। आज बच्चों की भी अपनी विवशताएँ है, कम आमदनी, बढ़ते खर्चे, चकाचैंध से भरा जीवन जीवन ज...
हिन्दी, हिन्द का ह्रदय स्पन्दन
कविता

हिन्दी, हिन्द का ह्रदय स्पन्दन

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** हिन्दी, हिन्द का ह्रदय स्पन्दन तिरंगे सी महान,एकता की पहचान, देवभाषा की संतान हिन्दी ने सदभाव खूब बढ़ाया है। हिन्दी हिन्द का गौरव है, जिसकी सरलता और व्यापकता ने पूरे विश्व में परचम लहराया हैं।। अंग्रेजी-अंग्रेजी रटने वालो, तुमने स्वयं ही तो, मातृभाषा का मान घटाया है। क्या कभी अंग्रेजों ने, अपने देश में, किसी भी तरह, अंग्रेजी दिवस मनाया है।। हिन्दी, मनभावन हिन्दी, प्यारी हिन्दी, दुलारी हिन्दी, हिन्दी हिन्द की ह्रदय स्पन्दन। आओ लिखें हिन्दी, पढ़े हिन्दी, बोलें हिन्दी, यही तो है, हिन्दी का पूर्ण अभिनन्दन।। साहित्य, सिनेमा, सोशल मीडिया, दूरदर्शन में, हिन्दी प्रयोग से मिट गई हैं, सब दूरियां। हिन्दी को ह्रदय में बसा लो, अपना बना लो, फिर मिट जायेंगी, सब मजबूरियां।। हिन्दी है, हमारे ह्रदय की, धड़कन, ये धड़कती धड़कन, है हमारा अमिट प्यार...
गुरु हैं धरती पर भगवान
कविता

गुरु हैं धरती पर भगवान

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** प्रभू देते हैं जिन्दगी, माता पिता देते हैं खूब दुलार। खूबियों का एहसास करा गुरु जीवन को देते संवार।। गुरु वही जो जीना सिखाये, कराये आपसे आपकी पहचान। गुरु के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना कोई कैसे बने महान।। गुरु ही रखते ज़मीं से आसमां तक, ले जाने का हुनर। गुरु की महिमा से शिष्य की गरिमा बढ़ गई है कुछ इस कदर।। शिष्य ने पाई सफलता की ऊंचाई तो गुरु को भी मिलता सम्मान। तराश कर बना दिया उसे हीरा जिसने, वो है धरती पर भगवान।। ज्ञान से ही बना सुन्दर जीवन, सारथी बन गुरु ने खूब साथ निभाया है। जब जब गिरा सम्भाला उसने, हर मुश्किल को ही आसान बनाया है।। गुरु ब्रम्हा ने उपजाया, गुरु विष्णु की है माया, गुरु महादेव का साया। गुरु के प्रताप से जीवन में सब कुछ है पाया, गुरु ही है पेड़ों की छाया।। गुरु चरणों मे जिसने शीश नवाया, वही ही तो पूरे जगत ...
घर एक मन्दिर ही है
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घर एक मन्दिर ही है

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                   यह बात निस्संदेह नितान्त सत्य ही है कि घर एक मन्दिर की तरह है। मन्दिर में जाते ही प्रभु से समीपता का एहसास होता है, ऐसे ही घर में जहाँ परस्पर प्यार,लगाव, आकर्षण है, जाते ही अपनेपन का एहसास हिलोरें लेना लगता है, घर की देहरी में आते ही सारी थकान दूर हो जाती है तो यह मंदिर ही जैसा लगता है,नहीं तो मकान ही है, ईंट सीमेंट से बना, जहां एक दूसरे से विमुख कुछ प्राणी बस किसी तरह रहते हैं। पति-पत्नी दोनों या सिर्फ पति की नौकरी,बच्चों के स्कूल,टयूशन व शाम को ऑफिस से लेट आना, फिर घर रसोई के काम, बच्चों से पढ़ाई व अन्य जानकारी लेना अगले दिन फिर वही रूटीन, जिंदगी यूं ही बीतती जाये तो मशीन से क्या अलग है,एकाएक इस महामारी के कारण हुए लॉकडाउन या अब कुछ अनलॉक के कारण जीवनधारा तो बिल्कुल ही बदल ही गई, पहले कहते थे,मरने की फुर्सत न...
रोम-रोम में राम
कविता

रोम-रोम में राम

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** बरसों से ही बसे हुए हैं, हम सबके रोम रोम में राम। राम का नाम लेते ही देखो, कितना आ जाता आराम।। सदियों से हम तो करते अभिवादन, कह के राम राम। राम राम ही रटते रहो, इसी से मिल जाते हैं चारों धाम।। राम के नाम पर ही लड़ते रहे, भूल गये बाकी,तुम सब काम। अपरम्पार है राम की महिमा, करते रहो, क्या लगता है दाम।। कृष्ण हो या करीम, राम हो या रहमान, क्या फर्क है। लहू एक है, रंग भी कहाँ भिन्न, फिर ये कैसा तर्क है।। राम हो या अल्लाह, एक नूर से ही तो सब उपजा है। मंदिर मस्जिद की तकरार में ये कैसी मिल रही सज़ा है।। बरसों से चुभ रही थी एक चुभन, ह्रदय में बन कर शूल। आई घड़ी सुहानी तो खिलखिला उठे खुशियों के फूल।। कण कण में ही तो हैं राम विराजत, संग रहते वीर हनुमान हैं। जो पा जाते इनकी कृपा, उनको राम मिलना हो जाता आसान है।। अब छंटे हैं बादल, अंत हु...
माध्यम वर्ग का अजब पहाड़ा
कविता

माध्यम वर्ग का अजब पहाड़ा

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** आओ पढ़ें, मध्यम वर्ग का ये अजब पहाड़ा। सँघर्ष है जिसकी नियति, न कभी जीता, न हारा।। अमीर-गरीब के बीच पिस रहा मैं ही कर्णधार हूँ। हर टैक्स की अदायगी की मैं ही तो पतवार हूँ। मेरा जीवन नीति से नहीं, नीयत से चलता है। न जाने क्यों, हर शासक मुझे ही छलता है।। चुप रह जाना हर बार मेरी विवशता मत समझो। स्वयं ही कुछ महसूस करो, जानो और परखो। रख स्वाभिमान बरकरार कैसे हमारी जिंदगी है कटी। उजली दिखती कमीज़ के नीचे है हमारी बनियान फटी।। जुटा हिम्मत, कर व्यवस्था आराम के साधन जुटा लेते है। न बन पाये कभी बात तो अपनी जरूरत घटा लेते हैं। हर बार ही तुमने हमें थकाया है, भरमाया है । हर संकट में जबकि मध्यम वर्ग ने ही तुम्हें बचाया है।। जिन पर लुटा दिया तुमने लाखों करोड़ों का अम्बार। भाग गये विदेश वो, कर के तुम्हें पूरी तरह से लाचार।। मत भूलो हम ही हैं,...
परत दर परत
लघुकथा

परत दर परत

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** किशना पूरे गांव में घूम-घूम कर अपनी माँ की सत्रहवीं में आने के लिये सबको कह आया था। कारज में देसी घी का खाना था। सफ़ेद चकाचक कपड़े पहने किशना गर्वित मुद्रा में सबका अभिवादन कर रहा था। ११ पण्डितों द्वारा पाठ पूजा व उनके भोजन करने के बाद गांव वालों ने खाना शुरु कर दिया था अभी दो ही घंटे बीते थे तभी गांव के सरपंच के पिता मेजर दरियाव सिंह जो फ़ौज में शहीद बेटे की विधवा बहु पोते पोती की देखभाल के लिय शहर में रहते थे आ गये, किशना के कंधे पर हाथ रख कर बोले अब माँ की सत्रहवीं पर इतना बड़ा आयोजन कर वाहवाही ले रहे हो, जब तुम सिर्फ ७ साल के थे, तुम्हारे पिता के रेल दुर्घटना में मरने के बाद, छोटी सी दुकान से तुम्हें पढ़ाया, काबिल बनाया। १२ साल तुम्हारी माँ कूल्हे की चोट का सही इलाज न होने के कारण घिसटती रही, यही पैसा जो आज तुम दिखावे में लुट...