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सिंदूरी पल
कविता

सिंदूरी पल

रागिनी स्वर्णकार (शर्मा) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज अचानक खुला क्या दराज ! लगा अंदर कुछ खुल गया है! और खुलता ही जा रहा है... मैं जा रही हूँ अंदर ...बहुत अंदर! उस बीते समय मे; पल-पल मुस्कुराता खड़ा! महकता हुआ वह ख़त, प्रथम गुलाबी स्पर्श, गुलाबी हुईं धड़कनें..! मैं सांगोपांग धड़कती हुई, हाथ में पत्र चारों ओर देखती विस्मित!!!!! एकांत में पढ़ने लगी पत्र! कुसुम-कली सी लज्जा, फैली हुई चेहरे पर..!I मानों ! सामने तुम! हर शब्द धड़क रहा दिल के संग! प्रथम अछूता एहसास ! महक गया था; सम्पूर्ण वजूद, चाहत की खुशबू से !! भला क्यों न महकता??? आज भी महक रहा पल जो मौलश्री हो गया स्मृतियों में!!! गुलमुहर-सा बिखेरता लालिमा, आज भी खड़ा है वह जीवन्त पल, सिंदूरी पल, जब भावनाओं ने रचा था स्वयंवर !!! परिचय :- रागिनी स्वर्णकार (शर्मा) निवासी : इंदौर (मध्य...